यहाँ आप जानेंगे: प्रदूषण पर निबंध, essay on Pollution, Essay on Pollution in Hindi, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण
1. प्रदूषण पर निबंध – Essay On Pollution
प्रदूषण मनुष्य, पशु, पक्षी, जल-जीवों, पेड़ पौधों इत्यादि सब जातियों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। हमारा वातावरण प्रकृति के देन है। प्रकृति ने हमें हरे भरे पेड़ पौधे दिये हैं, बारिश, गर्मी, सर्दी, पतझड़ जैसे मौसम दिया हैं, सुहावना खुला और फैला हुआ नीला आसमान दिया है, एक सर्वोच्च तंत्र दिया है, झरने, तालाब, नदियां और बड़े बड़े महासागर दिया हैं।
लेकिन आज की वर्तमान स्थिति यह है की हम धीरे धीरे आधुनिकीकरण और मशीनी-करण के इस युग में इन सब प्रकृति के उपहारों को नष्ट करने पर तुले हुए हैं। प्रदूषण एक एक करके इन प्रकृति के उपहारों को प्रभावित कर रहा है। ऐसे ही चलता रहा तो वो समय दूर नहीं जब हमें पीने के लिए शुद्ध पानी भी नहीं मिलेगा, ऑक्सिजन देने वाले पेड़ पौधे खतम हो जाएंगे, भूगर्भ में मौजूद सभी प्राकृतिक संसाधन खतम हो जाएँगे।
उद्योगीकरण के कारण और मानव की विलासता और सुविधाओं के लिए बढ़ते हुए मशीनों और उपकरणों के कारण हमारे वातावरण में प्रदूषण फैल रहा है।
प्रदूषण के प्रकार:
- ध्वनि प्रदूषण: अधिक ऊंची या तीखी आवाज के कारण अगर मनुष्य या किसी भी जीव को कठिनाई या बेचैनी हो उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। यह प्रदूषण तेज संगीत, परिवहन के साधनों की आवाज, मशीनों की आवाज, ट्रेनों और वायुयानों की आवाज और घर में बिजली के उपकरणों की आवाज से भी यह प्रदूषण फैल सकता है।
- वायु प्रदूषण: हवा में किसी भी प्रकार का अवांछनीय तत्व मौजूद हो जो मनुष्य या किसी भी जीव जन्तु को नुकसान पहुंचाए उसे हम वायु प्रदूषण कहते हैं। वायु प्रदूषण मुख्यतः कोयले या लकड़ी के जलने से निकलने वाले धुएँ, परिवहन साधनों में प्रयुक्त होने वाले ईंधन से निकलने वाले धुएँ, वातानुकूलित सनयन्त्रों और रैफरीजरेटरों से निकलने वाली गैस और पेड़ पौधों की कटाई से होता है।
- मृदा/ भूमि प्रदूषण: मृदा में उपस्थित गैसों, खनिज पदार्थों, लवणों और पानी के अनुपात में कोई बदलाव होने या इनमें किसी की अधिकता या अभाव होने को हम मृदा प्रदूषण कहते है। यह प्रदूषण मुख्यतः अत्याधिक उर्वरकों के उपयोग, प्लास्टिक पदार्थों के भूमि में जमकर सड़ने, कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट तत्वों, परमाणु परीक्षणों अधिक मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग करने से होता है।
- जल प्रदूषण: जब नदी, तालाबों, समुंदरों जैसे जल स्थलों में विषैले तत्व आ जाते हैं, और वो जल में घुल जाते हैं या इकट्ठे होकर पड़े रहते हैं तो जल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है और जल प्रदूषित हो जाता है। यह प्रदूषित जल रिस कर भूमि जल में भी मिल सकता है। जिससे जल प्रदूषण के साथ साथ भूमि प्रदूषण भी हो जाता है। यह प्रदूषण मुख्यतः फैक्ट्रियों से निकलने अपशिष्ट पदार्थों वाले गंदे जल, घरों से निकलने वाले गंदे जल और नदियों में मनुष्यों या जीव जंतुओं के मृत शरीर को बहा दिये जाने से यह प्रदूषण होता है।
- जैव प्रदूषण: सूक्ष्म जीवों, जीवाणु और विषाणुओं द्वारा वायु, जल या खाने के पदार्थों को दूषित करने को जैव प्रदूषण कहते हैं। आप सब को पता होगा की जीवाणु और विषाणु और ये सूक्ष्म जीव सब जगह मौजूद हैं। ये जल, वायु और खाद्य पदार्थों में भी उपस्थित होते हैं। इनमें से कुछ हमारे लिए लाभदायक भी हैं और कुछ हानिकारक भी हैं। ये हानिकारक जीवाणु या विषाणु ही जैव प्रदूषण का मुख्य कारण हैं। आजकल अनेक देश जैव हथियार भी बना रहे हैं। जो पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है।
- रेडियोधर्मी प्रदूषण: रेडियोधर्मी प्रदूषण वह स्थिति है जब द्रव, ठोस या गैस पदार्थों में रेडियोधर्मी विकिरण हो जाता है। इससे मनुष्यों या जीव जंतुओं पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे मनुष्यों और जीव जंतुओं की मृत्यु होने की स्थिति भी पैदा हो सकती है। यह प्रदूषण परमाणु परीक्षणों, परमाणु ईंधन, वैज्ञानिक अनुसन्धानों, x-रे मशीन और परमाणु सनयन्त्रों या उपकरणों की स्थापना से होता है।
- प्लास्टिक प्रदूषण: प्लास्टिक उत्पादों के जल में एकत्र होने से जो प्रदूषण फैलता है उसे प्लास्टिक प्रदूषण कहता हैं। आज का युग प्लास्टिक का युग है। दैनिक जीवन में में अधिकतर प्लास्टिक की बनी वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं। घरों या कारखानों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरा इसका प्रदूषण का मुख्य कारण है।
- ई – अपशिष्ट प्रदूषण: घरों या संस्थानों या त्याग किये जाने वाले इलैक्ट्रिक और ईलेक्ट्रोनिक उपकरण (फ्रिज, कूलर, टेलिविजन, मोबाइल, कैमरा इत्यादि) के कारण होने वाले प्रदूषण को हम ई – अपशिष्ट प्रदूषण कहते हैं। इन उपकरणों के जहरीले रसायनों के कारण यह प्रदूषण पैदा होता है।
- ठोस अपशिष्ट प्रदूषण: घरों, धार्मिक स्थानों, व्यावसायिक स्थानों, शिक्षा संस्थानों और औद्योगिक कारखानों से पैदा होने वाला ठोस कार्बनिक और अकार्बनिक कचरे को ही हम ठोस अपशिष्ट प्रदूषण कहते हैं।
- तापीय प्रदूषण: तापीय और नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों में मशीनों को ठंडा करने के बाद जो गरम जल होता है उसे फिर से जलीय निकाय में बहा दिया जाता है जिससे उस जलीय निकाय का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है इसको तापीय प्रदूषण कहते हैं।
प्रदूषण से होने वाली हानियाँ:
- वायु प्रदूषण के कारण सांस लेते समय अवांछनीय तत्व शरीर चले जाते हैं, जिनसे दमे की बीमार हो सकती है, साँस लेने में परेशानी हो सकती है, फेफड़े खराब हो सकते हैं।
- ध्वनि प्रदूषण के कारण कान खराब हो सकते हैं। कानों से सुनना बंद हो सकता है, कानों में अजीब सी आवाजें सुनाई देने लग जाती हैं, कानों से पानी बहने जैसे कानों की बीमारी हो जाती हैं। कानों मे ऐसी बीमारी होने से मस्तिष्क में भी दर्द हो सकता है।
- मृदा या भूमि प्रदूषण के कारण पेड़ पौधों और फसलों को उगाने में कठिनाइयाँ होती है। मृदा के पोशाक तत्व नष्ट हो जाते हैं मृदा प्रदूषण की वजह से, जिसकी वजह से अच्छी फसल पैदा नहीं हो पाती और पेड़ पौधे भी नहीं उग पाते।
- जल प्रदूषण के कारण भी मनुष्य को अनेकों बीमारी लग सकती हैं। जल दुनिया की हर प्रजाति के लिए बहुत आवश्यक तत्व है जिसके बिना जीने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। जल प्रदूषण के कारण जल प्रदूषित हो जाता हैं और जब हम इसे पीते हैं तो हम कोई भी बीमारी लग सकती है, हमारी जान भी जा सकती है। जल प्रदूषण का कृषि पर भी प्रभाव पड़ता है। जिस जल से फसल की सिंचाई होती है वो जल अगर प्रदूषित होगा तो हमारी फसल भी नष्ट हो सकती है।
- जैव प्रदूषण के कारण सब प्रजातियों में गंभीर बीमारी फैल सकती है। आधुनिक युग में अब जैव प्रदूषण को किसी हथियार के रूप में उपयोग किया जाने लगा है, जो बहुत गलत है। विश्व के अनेकों देश जैव हथियार बना रहे हैं। जैव प्रदूषण से बहुत भयानक बीमारी को फैलाया जा सकता है।
- समुन्दर में प्लास्टिक के पदार्थों के कारण पानी में रहने वाले जीवों पर बुरा असर पड़ता है। ये जीव पानी के साथ इन प्लास्टिक पदार्थों को निगल जाते हैं जिससे इनकी मौत भी हो सकती है। और प्लास्टिक के सूक्ष्म घटक भी परेशानी पैदा करते हैं। ये छोटे घटक आखिरकार किसी ने किसी तरह मनुष्य के आहार का हिस्सा बन जाते हैं जिससे मनुष्य बीमार पद सकता है या मर भी सकता है।
- तापीय प्रदूषण मुख्यतः जलीय जीवों को प्रभावित करता है। अचानक जलीय निकाय का तापमान बढ़ने से जलीय जीवों के लिए जल में घुली हुई ऑक्सिजन की मात्रा कम हो जाती है। जिसकी वजह से अवायवीय स्वसन शुरू हो जाता है। इसके अलावा इन जलीय जीवों में ज्यादा खाने और कम पचा पाने की समस्या पैदा हो जाती है जिससे इनकी मौत भी हो जाती है। नीली और हरी काई बढ़ने लग जाती है और इसके साथ साथ और भी अवांछनीय जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होने लगती है जिससे जल की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। तापीय प्रदूषण जलीय जीवन पर बहुत गम्भीर प्रभाव छोड़ता है।
- रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण कैंसर, ल्यूकेमिया, रक्तस्राव, अनिमिया जैसे बीमारियाँ फैलती हैं। इसके अलावा जीवन काल में कमी आना, समय से पहले मृत्यु और समय से पहले बूढ़ा होने जैसी समस्या पैदा होने लग जाती है। इस प्रदूषण के कारण नवजात बच्चों में अंधापन और कम वजन होने जैसी समस्या पैदा होती हैं। मृदा के पोशाक तत्वों को यह प्रदूषण नष्ट कर देता है जिससे मृदा का उपजाऊपन खत्म हो जाता है। इस प्रदूषण के कारण कोशिकाएँ भी नष्ट हो जाती हैं।
- ई अपशिष्ट प्रदूषण के कारण मनुष्यों, जीव जंतुओं, मृदा और सम्पूर्ण वातावरण पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इस प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं में विकलांगता, लोगों के फेफड़ों और किडनियों में बीमारियाँ फैल सकती है। इन अपशिष्ट से फैलने वाले रेडीएसन के कारण लोगों की मृत्यु भी हो जाती है। इससे पीने का पानी, जलीय निकाय और भूमिगत जल में रेडीएसन के कारण जहर फैल सकता है। इस प्रदूषण के कारण गर्भपात और कैंसर का खतरा भी पैदा होता है।
- ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के कारण हमारा वातावरण खराब हो रहा है। इससे न केवल वातावरण में सौन्दर्य पर बुरा असर पद रहा है बल्कि इससे सभी जीवों के जीवन और स्वस्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यह कचरा जमीन पर फैलकर जैविक, रसायनिक और भौतिक विशेषताओं में बदलाव का कारण बनता है जिसके कारण मृदा के उपजाऊपन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे दुर्गंध फैलती है। इस कचरे से जहरीले और हानिकारक जीवाणुओं को पनपने में मदद मिलती है। जिससे हमारे स्वस्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इस कचरे से उत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थ रिस कर भूजल में घुल सकते हैं।
प्रदूषण की रोकथाम के उपाय
- प्रदूषण सम्बंधित सख्त कानून बनाए जाये और उनका सख्ती से पालन होना चाहिए।
- पर्यावरण सम्बंधित शिक्षा स्कूल के स्तर पर लागू होनी चाहिए।
- परिवहन के वाहनों से निकलने वाली गैसों के लिए वाहनों में फ़िल्टर की व्यवस्था होनी चाहिए।
- परमाणु परीक्षणों, परमाणु विस्फोटों या आण्विक परीक्षणों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोक लगानी चाहिए।
- जनसाधारण के लिए सौर ऊर्जा के विकल्प को बढ़ावा देने के लिए इसकी व्यवस्था सुलभ करवानी चाहिए, जिससे की प्रदूषण पर रोक लगाई जा सके।
- पेड़ पौधों के सूखे पत्तों को जलाने की जगह पर उन पत्तों की प्राकृतिक खाद बनाकर इस्तेमाल करनी चाहिए।
- ताप-शक्ति केन्द्रों से निकलने वाले अपशिष्ट को उचित उपयोग में लेना चाहिए और इनको पुनः उपयोग में लेना चाहिए।
- गाय के गोबर को घर की दीवारों पर लेप लगाकर हम रेडियोधर्मी प्रदूषण को रोक सकते हैं। इसके अलावा गाय के दूध के इस्तेमाल भी इस प्रदूषण से बचा जा सकता है।
- कूड़ा-कर्कट, मृत प्राणियों और गोबर इत्यादि को गहरे गड्डे में डालकर ढक देना चाहिए। गोबर गैस का उपयोग करना चाहिए। गोबर गैस के उपयोग करने से हमें ईंधन के रूप में गैस भी मिलेगी और खेतों के लिए प्राकृतिक गोबर वाला खाद भी।
- ठोस पदार्थों व प्लास्टिक इत्यादि को जमीन में नहीं दबाना चाहिए।
- अपशिष्ट पदार्थों को नदी या किसी भी जलीय निकाय में ना डालकर उससे नष्ट करने या पुनः उपयोग के विकल्प ढूँढने चाहिए।
- ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए। जंगलों को काटने से बचना चाहिए। वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।
प्रदूषण से सम्बंधित बनाए गए कानून:-
भारतीय कानून:
- जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974
- जल प्रदूषण अधिनियम, 1977
- वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981
- वन्य-जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- जैव – विविधता संरक्षण अधिनियम, 2002
- राष्ट्रीय जल नीति, 2002
- राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2004
- वन अधिकार अधिनियम, 2006
अंतर्राष्ट्रीय कानून/ समझौते:-
- आर्द्र भूमि समझौता (रामसर समझौता) (Wetland Conservation or Ramsar Convention)
- मोंट्रियाल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol)
- जलवायु अधिवेशन (Climate Convention)
- जैविक विविधता अधिवेशन (Biological Diversity Convention)
निष्कर्ष
हर प्रकार के प्रदूषण का मुख्य कारण है हमारी सुविधाओं और विलासताओं के लिए विज्ञान द्वारा बनाए गए गए आधुनिक उपकरण, मशीनें, परिवहन के साधन इत्यादि और इसके साथ साथ बढ़ते हुए प्रदूषण के लिए ज़िम्मेवार हैं हमारी बड़े पैमाने की निर्माण परियोजनाएँ जिनके लिए जंगलों को काटा जा रहा है। इस आधुनिकीकरण और मशीनी-करण ने एक तरफ हमको सुविधाएँ प्रदान की हैं तो दूसरी तरफ प्रकृति के उपहारों को भी नष्ट किया है। विज्ञान और मनुष्य की बढ़ती हुई विकास की भूख से हमारी प्रकृति के उपहारों का बहुत तेज़ी से ह्रास हो रहा है। हमें नए विकल्प तलाशने की बहुत आवश्यकता है जिससे नष्ट हो रहे वातावरण संतुलन पर नियंत्रण किया जा सके। हमें हर तरह के कचरे को पूर्ण रूप से रीसायकल करना चाहिए और उसके बाद भी अगर कोई कचरा बच जाता है तो उसे नष्ट करने के तरीके तलाशने चाहिए। पेड़ पौधों को काटने से बचना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए। किसी भी तरह के कचरे को किसी भी जलीय निकाय में नहीं फेंकना चाहिए। कारखानों में प्रदूषण नियंत्रण रखने वाले उपकरणों का उपयोग करने चाहिए।
2. प्रदूषण पर निबंध हिंदी में – Essay on Pollution in Hindi
प्रदूषण आज पूरे विश्व की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। वैसे तो विज्ञान ने मानव जाती को बहुत कुछ दिया है, और बिना विज्ञान के आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन विज्ञान ने कुछ ऐसी अभिशाप भी दिए हैं, जिनके साथ रहना आज के दौर में मजबूरी बन गयी है।
प्रदूषण इन अभिशापों में से एक है। प्रदूषण के कारण सिर्फ़ मनुष्यों को ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर रहने वाली सभी प्रजातियों को इसका बुरा असर झेलना पड़ रहा है।
प्रदूषण के कारण ना ही साफ़ हवा हमें मिलती है, ना पानी और ना ही ज़मीन साफ़ मिल पाती है। इसने मानव जाति के साथ साथ जीव जंतुओं को भी बहुत ज़्यादा प्रभावित किया है। प्रदूषण के कारण कई प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो चुकी हैं, या विलुप्त होने की कगार पर हैं।
प्रदूषण के मुख्य प्रकार:
- वायु प्रदूषण – किसी भी प्रकार के हवा में मौजूद तत्व जिसके कारण किसी भी मनुष्य या जीव को नुक़सान हो, ऐसी अशुद्ध वायु को प्रदूषित वायु कहते हैं।
- जल प्रदूषण – नदियों में या किसी भी प्रकार के जल का विषैला होना जल प्रदूषण कहलाता है।
- ध्वनि प्रदूषण – शहरों में होने वाले शोर से ध्वनि प्रदूषण फैलता है, जिसके कारण जीव जंतु या मनुष्य को कठिनाई होती है।
- भूमि प्रदूषण – भूमि पर फैंके जाने वाले कचरे व विषैले पदार्थों से भूमि प्रदूषण फैलता है।
प्रदूषण से होने वाली हानियाँ
- जब नदियों तालाबों आदि का जल प्रदूषित हो जाता है तो उससे पानी पीने लायक नहीं होता यदि उस पानी का सेवन किया जाए तो बहुत सारी पेट की बीमारियां मनुष्य और अन्य जीव जन्तुओं को हो जाती है।
- वायु प्रदूषण होने से मनुष्य हुए जीव जंतुओं को साँस लेने में दिक़्क़त का सामना करना पड़ता है और अनेकों बीमारियां वायु प्रदूषण के कारण ही होती है जैसे साँस की बीमारी वह फेफड़ों की बीमारियां वायु प्रदूषण के कारण होती है।
- प्रदूषित भूमि पर कोई भी फ़सल या पेड़ पौधे नहीं उगते है और मिट्टी के पोषक तत्व ख़त्म हो जाते हैं जो पेड़ पौधों के लिए बहुत आवश्यक होते हैं।
- ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों और जीव जन्तुओं में बेचैनी बढ़ती है जिसके कारण कई सारी बीमारियां धोनी प्रदूषण के कारण होती है। शहरों में चिड़ियों और अन्य पक्षियों का कम होने का कारण ध्वनि प्रदूषण ही है।
प्रदूषण की रोकथाम
प्रदूषण को रोकने के लिए हमें कई प्रकार के क़दम उठाने की आवश्यकता है और इसकी ज़िम्मेवारी सिर्फ़ सरकार की ही नहीं बल्कि एक आम व्यक्ति की भी है। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए हमें बायो ईंधन की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है और हमें चाहिए की हम बायो ईंधन, न्यूक्लियर इंधन, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि का उपयोग ज़्यादा से ज़्यादा करें ताकि हम वायु प्रदूषण को कम कर सकें।
औद्योगिक कचरे को नदियों या नालों आदि में बहाया जाता है जिसके कारण नदियों और नालों का पानी पीने लायक़ नहीं रहता और न ही उस पानी से सिंचाई की जा सकती है इसलिए सरकार को इसके ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने चाहिए और औद्योगिक कचरे को रीसाइकल करने या उसे ख़त्म करने के लिए अच्छे उपाय ढूंढने का प्रयास करना चाहिए।
ज़्यादातर यह देखा गया है कि आम लोग अपने घर का कचरा किसी भी स्थान पर फेंक देते हैं जिसके कारण भूमि प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा बड़े बड़े शहरों में कचरे के निवारण के लिए कोई स्थान निर्धारित नहीं है और अगर है तो उसे खुले में ही डाल दिया जाता है जिसके कारण भूमि प्रदूषण और वायु प्रदूषण दोनों होते हैं। इस कचरे को रिसाइकल करके हम प्रदूषण से निजात पा सकते हैं।
स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को प्रदूषण के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जागरूक करके प्रदूषण पर रोकथाम लगायी जा सकती है।
800 शब्दों में प्रदूषण पर निबंध – Essay on pollution in hindi 800 words
आज के दौर में प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी है, वैसे तो मानव ने पिछले कुछ सालों में बहुत तरक़्क़ी कर ली है, लेकिन इस तरक़्क़ी के साथ साथ बहुत सारी समस्याओं का भी जन्म हुआ है, और प्रदूषण उन समस्याओं में से एक है।
प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है, जैसे शुद्ध हवा, शुद्ध वातावरण, शुद्ध जल व भूमि और अनेकों ऐसी चीजें मानव व धरती पर रहने वाली सभी प्रजातियों को दी हैं। लेकिन मानव ने तरक़्क़ी के नाम पर प्रकृति के साथ बहुत छेड़-छाड़ की है और उसी का नतीजा ये है की आज हमें अनेकों प्रकार के प्रदूषण को झेलना पड़ रहा है। प्रदूषण की समस्या इतनी भयावह है जिसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता है। प्रदूषण के कारण पूरे विश्व की खत्म होने की संभावना भी लगाई जा सकती है। प्रदूषण के कारण ना सिर्फ हमारे बाहरी पर्यावरण पर प्रभाव पड़ रहा है बल्कि हमारी धरती की आंतरिक संरचना पर भी बुरा प्रभाव पद रहा है। प्रदूषण से हमारे खनिज पदार्थ और प्राकृतिक संसाधन नष्ट होते जा रहे हैं। प्रदूषण विभिन्न प्रकार का होता है जैसे: वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा या भूमि प्रदूषण, ध्वनी प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण और जैविक प्रदूषण इत्यादि। मनुष्य की लापरवाही और अनुचित गतिविधियों की वजह से ही ये सब प्रकार के प्रदूषण जन्म लेते हैं। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के पैदा होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
- लकड़ी के इंधन के जलने से निकलने वाला धुंआ, कोयले के जलने से निकलने वाला धुंआ।
- पेट्रोल, डीजल और केरोसिन इत्यादि के जलने से निकलने वाला धुंआ।
- वातानुकूलित उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक सामानों से निकलने वाली गैस।
- घरों या कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ।
- वाहनों, लाउड स्पीकर, ट्रेन या कारखानों की मशीनों की चुभने वाली तेज आवाज।
- घरों, औद्योगिक स्थलों या संस्थाओं में प्लास्टिक का अत्याधिक उपयोग और वहां से निकलने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट।
- कारखानों से निकलने वाले जहरीले अपशिष्ट जिनको जलीय निकायों में बहा दिया जाना।
- पेड़ों और वनों की कटाई।
- जैविक हथियार बनाना।
- अपशिष्ट पदार्थों को खुले में फेंक देना।
- अत्याधिक मात्रा में उर्वरकों और कीटनाशकों का भूमि में इस्तेमाल करना।
- खुले में शौच करना।
- मनुष्यों या किसी भी जीव जंतुओं या पशुओं के मृत शरीर को किसी नदी या किसी भी जलीय निकाय में बहा देना।
- परमाणु संस्थानों, परमाणु परीक्षणों, वैज्ञानिक अनुसन्धानों, परमाणु उपकरणों इत्यादि से भी प्रदूषण फैलता है।
- नाभिकीय और तापीय ऊर्जा केन्द्रों में मशीनों को ठंडा करने के बाद पानी को किसी जलीय निकाय में फेंक देना।
- कूड़ा कर्कट का ढेर बना देना, प्लास्टिक को जलाना, प्लास्टिक को जमीन में दबा देना व अपने आस पास सफाई का ध्यान ना रखना इत्यादि।
वैसे तो प्रदूषण को रोकने के लिए हर देश में बहुत नियम व कानून बनाए गए हैं, लेकिन फिर भी प्रदूषण पर रोकथाम नहीं लग पा रही है। कोई भी राष्ट्र कितने भी नियम व कानून बना ले जब तक लोगों में जागरूकता नहीं फैलेगी प्रदूषण के लिए तब तक प्रदूषण पर लगाम नहीं लग सकती है। इसलिए प्रत्येक हर एक देश की सरकार को प्रदूषण के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए और हर एक संभव कोशिश करनी चाहिए जिससे व्यक्ति प्रदूषण के प्रति जागरूक हो और प्रदूषण पर रोकथाम की जा सके। प्रत्येक मनुष्य को निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए जिससे की प्रदूषण को रोका जा सके:
- अपने घर के आस पास कूड़ा कर्कट जमा न होने दें या कूड़े कर्कट का ढेर न लगाएँ।
- प्लास्टिक अपशिष्ट को जमीन में न दबाएँ।
- प्लास्टिक अपशिष्टों को जलीय निकाए में न बहाएँ।
- किस भी मृत जीव के शरीर को नदी या किसी भी जलीय निकाय में ना बहाएँ।
- वनों को ना काटें।
- अत्याधिक उर्वरकों और कीटनाशकों का जमीन में इस्तेमाल न करें।
- हर एक राष्ट्र को परमाणु परीक्षणों, नाभिकीय परीक्षणों व वैज्ञानिक अनुसन्धानों पर नियंत्रण रखना चाहिए।
- तेज आवाज में संगीत ना सुनें।
- बिना मतलब के शोर ना करें, जरूरत पड़ने पर ही वाहन का हॉर्न बजाएँ।
- कूड़े कर्कट को इधर उधर न फेंकें।
- ईलेक्ट्रोनिक अपशिष्टों को पानी में ना बहाएँ और ना ही किसी कूड़े के ढेर में फेंकें।
प्रत्येक व्यक्ति को निम्नलिखित कदम उठानें चाहिए जिससे की प्रदूषण को बढ़ने से रोकने में सहायता मिल सके:
- अपने आस पास सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाएँ।
- अपशिष्ट पदार्थों को पुनः इस्तेमाल करने के तरीके ढूँढने चाहिए।
- अपशिष्ट पदार्थों को पुनः इस्तेमाल करना संभव न हो सके तो उनको नष्ट करने के तरीके अपनाने चाहिए।
- प्लास्टिक की थैली की जगह कपड़े या कागज की थैली का इस्तेमाल करें।
- अपशिष्ट प्लास्टिक को पुनः इस्तेमाल करने की सम्भावनाएँ ढूँढे या उसको पूर्ण नष्ट कर दें।
- जमीन में खेती के लिए प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करें।
- थोड़ी दूरी के लिए पैदल चलें, ज्यादा जरूरत पड़ने पर ही वाहन का इस्तेमाल करें।
- अपने प्राकृतिक संसाधनों की खपत को कम करने का प्रयास करें।
प्रत्येक व्यक्ति को उपरोक्त वर्णित कार्य करके अपने वातावरण को प्रदूषित होने से बचाना है। वरना वो दिन दूर नहीं जब मनुष्य के साथ साथ हर प्राणी को ना तो सांस लेने को शुद्ध हवा मिलेगी न पीने को पानी।
पर्यावरण बचाएं पृथ्वी बचाएं। पर्यावरण बचाएं प्रकृति बचाएं। पर्यावरण बचाएं जीवन बचाएं।
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