रविवार, सितम्बर 24, 2023

CAA क्या है? – CAA क़ानून की सभी जानकारी

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CAA क्या है ?

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CAA – नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 भारत सरकार द्वारा 12 दिसम्बर, 2019 को पारित किया गया ऐसा अधिनियम है, जिसके तहत भारत में आने वाले प्रवासियों के लिए जो नियम थे उनको आसान बनाया गया है। सरल शब्दों में कहें तो इस अधिनियम के तहत भारत के पड़ोसी और मुस्लिम बहुसंख्यक देश (पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान) से आए हुए गैर मुस्लिम प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाया गया है।

CAA Full Form: Citizenship (Amendment) Act 2019 / नागरिकता (संसोधन) अधिनियम 2019

नागरिकता (संसोधन) अधिनियम, 2019  CAA कैसे बना?

  • हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, क्रिस्चियन और सिख धर्म से संबंध रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता का पत्र बनाने के लिए नागरिकता कानून, 1955 को संशोधित करने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 को 19 जुलाई, 2016 को संसद में पेश किया गया था।
  • इस विधेयक को पेश करने के बाद संयुक्त संसदीय कमेटी के पास 12 अगस्त, 2016 को भेजा गया था।
  • संयुक्त संसदीय कमेटी ने इस विधेयक पर अपनी रिपोर्ट 7 जनवरी, 2019 को सौंपी थी।
  • 8 जनवरी, 2019 को इस विधेयक को लोकसभा से पास किया गया था।
  • लोकसभा से यह विधेयक पास होने के बाद यह राज्यसभा में पेश नहीं हो पाया। इस विधेयक को नए सिरे से शीतकालीन सत्र में सरकार की फिर से पेश करने की तैयारी थी। 2019 के शीतकालीन सत्र में यह विधेयक फिर से पेश किया गया।
  • 10 दिसंबर, 2019 को यह लोकसभा से पास हो गया।
  • 11 दिसंबर, 2019 को यह राज्यसभा से भी पास हो गया।
  • 12 दिसंबर, 2019 को इस विधेयक पर हस्ताक्षर करके इसको नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 बना दिया गया।

नागरिकता (संसोधन) अधिनियम, 2019 में अवैध प्रवासियों के लिए क्या प्रावधान हैं?

  • इस अधिनियम के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत में आए सिक्ख, हिन्दू, जैन, क्रिस्चियन, पारसी और बौद्ध धर्म के प्रवासियों को नागरिकता प्रदान की जायेगी।
  • 31 दिसम्बर, 2014 या इससे पहले के अवैध रूप से आए हुए प्रवासी अब भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगें।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत यदि उपरोक्त वर्णित भारत के तीनों पडोसी और मुस्लिम बहुसंख्यक देशों से आए प्रवासी 5 वर्षों से भारत में रह रहे हैं तो वो अब भारत की नागरिकता ले सकते हैं, इस अधिनियम से पहले भारतीय नागरिकता के लिए भारत में 11 वर्षों तक रहना अनिवार्य था।

CAA के अनुसार कौन हैं अवैध प्रवासी

वह प्रवासी जो बिना किसी वैध दस्तावेज या पासपोर्ट के यात्रा करके भारत में घुस गया है, उसे अवैध प्रवासी कहेंगे। इसके अलावा वो प्रवासी जो पासपोर्ट या वैध दस्तावेज के आधार पर भारत में आया हो, लेकिन दस्तावेज में उल्लिखित अवधि से ज्यादा समय तक भारत में रुका हो, उसे भी अवैध प्रवासी मन जाएगा।

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पढ़ें: लोकतंत्र क्या है, लोकतंत्र की परिभाषा, संक्षिप्त जानकारी।

CAA की चुनोतियाँ या CAA के विरोध में दिए गए तर्क

  • पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्र के लोगों का यह मानना है कि अगर यह अधिनियम लागू किया गया तो पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहने वाले लोगों के सामने आजीविका और उनकी पहचान का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
  • कुछ लोगों द्वारा यह आशंकाएं भी जताई जा रही है कि यह अधिनियम किसी विशेष समुदाय को लक्षित करने के लिए बनाया गया है। यह अधिनियम लागू होने के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens, NRC) का पूरे देश में संकलन होगा जिससे गैर मुसलमानों को लाभ मिलेगा और दूसरी तरफ बहिष्कृत किए गए मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ेगी।
  • इस अधिनियम के विरोध में यह भी तर्क दिया जाता है कि यह अधिनियम 1985 के असम समझौते का खंडन करता है, जिसके अंतर्गत 25 मार्च 1971 के पश्चात बांग्लादेश से आने वाले किसी भी धर्म के अवैध प्रवासियों को भारत में निर्वासित किया जाएगा।
  • इस अधिनियम की आलोचना करने वाले कुछ आलोचकों का तर्क यह भी है कि यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जिसमें समानता के अधिकार की गारंटी दी जाती है जो कि विदेशियों और भारत के नागरिक को दोनों पर लागू होती है।
  • इस अधिनियम को लागू करने के पश्चात सरकार के लिए इस अधिनियम से प्रभावित लोगों और अवैध प्रवासियों के बीच अंतर करना बहुत बड़ा मुश्किल कार्य होगा।
  • इस अधिनियम में म्यांमार के हिंदू रोहिंग्या और श्रीलंका के तमिल शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया है।
  • अगर अंतरराष्ट्रीय संबंधों की तरफ नजर डालें तो इस अधिनियम से द्विपक्षीय संबंधों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। क्योंकि यह अधिनियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मैं हुए या हो रहे धार्मिक उत्पीड़न की तरफ प्रकाश डालता है।

नागरिकता (संसोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) चर्चा का विषय क्यों बना?

  • CAA, 2019 की स्पष्टता और इससे संबंधित चिंताओं के लिए राज्यसभा और लोकसभा में दो संसदीय समितियों (कानून संबंधी अधीनस्थ समितियां) ने ऐसे नियमों के निर्माण की मांग उठाई थी जिनसे इस अधिनियम को नियंत्रित किया जा सके।
  • अगर सरकार किसी कानून को नियंत्रित करने के लिए नियम नहीं बनाती है तो उस कानून या उसके किसी हिस्से को लागू नहीं किया जा सकता। बेनामी लेन-देन अधिनियम, 1988 एक उदाहरण है ऐसे कानून का जो नियमों की कमी की वजह से लागू नहीं किया गया।
Rashvinder
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मैं Rashvinder Narwal टेक्निकल फील्ड में एक्सपर्ट हूं और कंटेंट राइटिंग के साथ-साथ SEO में भी एक्सपर्टीज रखता हूं। मैं हमेशा जनरल नॉलेज और ज्ञानवर्धक टॉपिक्स के साथ ट्रेंडिंग टॉपिक्स पर भी रिसर्च करता रहता हूं और उससे संबंधित लेख इस वेबसाइट पर पब्लिश करता हूं। मेरा मकसद हिंदी डाटा वेबसाइट पर सही जानकारी को लोगों तक पहुंचाना है।
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