भारत में अलग-अलग फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अलग-अलग प्रकार की क्रांतियों की शुरुआत की गई जिनके परिणाम स्वरूप भारत देश ने इनसे संबंधित कई प्रकार की सफलताएं प्राप्त की है। इसी प्रकार से गोल क्रांति की शुरुआत की गई।
गोल क्रांति क्या है?
आलू के उत्पादन में बढ़ावा और आलू की रोग रोधक किस्मों को विकसित करना आलू की क्रांति या गोल क्रांति कहलाती है। शिमला में मौजूद केंद्रीय अनुसंधान संस्थान द्वारा गोल क्रांति की शुरुआत की गई थी। वर्ष 1971 में अखिल भारतीय समन्वित आलू सुधार परियोजना की शुरुआत हुई जिसके अंतर्गत एक संस्था मेरठ में शुरू की गई। यह आलू अनुसंधान मोदीपुरम मेरठ में मौजूद है जिसे CPRS के नाम से जाना जाता है।
गोल क्रांति के कारण भारत में आलम का उत्पादन कई गुना बड़ा है और इसकी शुरुआत केंद्रीय अनुसंधान संस्थान शिमला द्वारा किया गया था। आज के समय में चीन, भारत और रूस विश्व के सबसे बड़े आलू उत्पादक देश हैं।
भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक आलू का उत्पादन किया जाता है और केंद्रीय अनुसंधान संस्थान ने आलू की कई किस्म विकसित की है जिनसे भारत में आलू का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ा है।
आलू की किस्म:
- कुफरी
- कुफरी जयाती
- कुफरी लव कार
- कुफरी चिप्सोना
- कुफरी स्वर्ग
- कुफरी बादशाह
- चंद्रमुखी
यह कुछ ऐसी आलू की किस्में है जिन का उत्पादन भारत के उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश में किया जाता है। इसके अलावा आलू का उत्पादन पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी किया जाता है परंतु उनकी भागीदारी इसके उत्पादन में बहुत कम है।
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गोल क्रांति की शुरुआत क्यों हुई?
गोल क्रांति को आलू की क्रांति भी कहा जाता है और जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है इसकी शुरुआत आलू के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए की गयी थी। सबसे पुर्तगाल से 16वीं सदी में आलू को भारत लाया गया, और पुर्तगाल में इसे गर्मी के समय में उगाया जाता है।
भारत में आलू को सर्दियों के मौसम में उगाया जाता है, और यह बदलाव केंद्रीय अनुसंधान संस्थान शिमला के प्रयासों से ही सफल हो पाया है।
गोल क्रांति का उद्देश्य
- भारत में आलू के उत्पादन को बढ़ाना।
- आलू की किस्म को बेहतर बनाना और उनमें सुधार करना।
- आलू की बढ़ती हुई मांग को पूरा करना।
- किसानों को आलू की फसल द्वारा आर्थिक समृद्धि में बढ़ोतरी।
गोल क्रांति से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
आलू एक मुख्य भोजन का हिस्सा है इसीलिए देश और पूरे विश्व में आलू को समान रूप से खाया जाता है। इस क्रांति का कारण भारत देश में सभी नागरिकों तक आलू को पहुंचाना था। आलू के उत्पादन से यह सभी लोगों तक पहुंचा और इस क्रांति से इसका उत्पादन बड़ा और इसकी कीमतों में भी कई गुना की कमी आई।
आलू के उत्पादन में कमी के कारण आलू की कीमत बहुत अधिक थी। आलू का सेवन गरीब और अमीर दोनों तरह के लोग खाते हैं परंतु इसकी अधिक कीमत होने के कारण गरीब लोग इसे नहीं खरीद पाते थे। इसीलिए गोल क्रांति को शुरू करने का निर्णय लिया गया और कई प्रकार के किसानों को तैयार किया गया।
इस क्रांति से आलू के उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई और लोगों तक आलू को आसानी से पहुंचाया गया। सन 1935 में इंपीरियल एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट ने आलू पर शोध करने का आदेश दिया। जिसके बाद इस पर बहुत सारे शोध हुए और 1971 में केंद्रीय अनुसंधान संस्थान शिमला द्वारा इस क्रांति की शुरुआत की गई।
आलू को नगदी की फसल भी कहा जाता है और यह स्टार और विटामिन b1 से भरपूर होता है। भारत में हुए शोधों के कारण इस फसल को शरद ऋतु में होने योग्य बनाया गया। और इस क्रांति के दौरान ऐसे बीजों का उत्पादन किया गया जो आलू के गुणों को और अधिक बढ़ाएं और जल्दी खराब ना हो।
इसके परिणाम स्वरूप तेजी से उत्पादन बढ़ा और बहुत ही कम कीमत पर आम लोगों तक आलू की पहुंची हुई।
निष्कर्ष
भारत में गोल क्रांति का उद्देश्य ना केवल आलू के उत्पादन में बढ़ोतरी बल्कि आलू की किस्मों में सुधार करना भी था। जिसके परिणाम स्वरूप भारत में किसानों द्वारा अधिक मात्रा में आलू को गाया गया और आज के समय में उत्तर प्रदेश सबसे अधिक आलू उत्पादक राज्य है।
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