दोस्तों, हरित क्रांति के बारे में जानने के लिए हरित क्रांति का इतिहास, हरित क्रांति के जनक और इससे संबंधित जानकारी होना important है, इन सभी जानकारियों के साथ आप समझ सकते हैं कि ‘Harit kranti kya hai‘ और Harit kranti के क्या प्रभाव हुए।
- हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai)- परिचय
- भारत में हरित क्रांति – Green revolution in hindi
- हरित क्रांति की चार विशेषताएं – harit kranti ki char visheshtaen
- हरित क्रांति का प्रभाव क्या है -Harit kranti ka prabhav kya hai?
- हरित क्रांति से सम्बंधित योजनाएँ
- हरित क्रांति में महत्वपूर्ण फसलें
- भारत की महत्वपूर्ण कृषि क्रांतियाँ
- निष्कर्ष
हरित क्रांति क्या है (Harit Kranti Kya Hai)- परिचय
हरित क्रांति के बारे में जानने के लिए हमें बहुत साल पीछे जाना पड़ेगा। दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अमेरिकी सेना उस वक़्त जापान में थी उसी समय कृषि अनुसन्धान सेवा में ‘के एस सिसिल सैल्मन’ भी थे। जापान की हालत देखते हुए यह सोचा जाने लगा था की जापान का पुनर्निर्माण कैसे किया जाये/ सैल्मन का विचार कृषि की उपज पर था, उन्हें काफी बड़े दाने वाली गेहूं की नोरीन नाम की एक किस्म मिली। सैल्मन ने इसके और अच्छे परिणाम के लिए इसे शोध हेतु अमरीका भेजा। 13 वर्ष के प्रयोगों के बाद वर्ष 1959 में गेन्स नाम की किस्म तैयार गयी।
इसके बाद नोरमन बोरलौग ने इसका मेक्सिको की सबसे अच्छी किस्म के साथ संकरण कर एक नयी किस्म का निर्माण किया, जिसके उपरांत हरित क्रांति का आरम्भ हुआ।
हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू किया गया था। हरित क्रांति का जनक नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) को ही कहा जाता है। वर्ष 1970 में इनको ज्यादा उपज देने वाली किस्मों के विकास के लिए नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
हरित क्रांति के जनक = नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug)
पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका विकास एजेंसी (USAID) के निदेशक विलियम गौड़ ने हरित क्रांति शब्द को सर्वप्रथम 1968 में प्रयोग किया था उन्होंने ही इस नयी तकनीक के प्रभाव के बारे में बताया। हरित क्रांति से अभिप्राय देश के ऐसे सिंचित एवं अ-सिंचित कृषि क्षेत्रों में ज्यादा उपज करके संकर तथा बौने बीजों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि करना है।
हरित क्रांति कृषि क्षेत्र में हुए शोध, तकनीकी परिवर्तन एवं अन्य कदमों को संदर्भित करता है जिसके परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। उच्च उत्पादक क्षमता वाले पर-संसाधित बीजों का प्रयोग, आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल, सिंचाई की व्यवस्था , कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से संभव हुई इस क्रांति को लाखों लोगों की भुखमरी से रक्षा करने का श्रेय दिया जाता है।
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भारत में हरित क्रांति – Green revolution in hindi
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत सन 1966-67 के मध्य हुई। इस हरित क्रांति का पूरा श्रेय नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नॉर्मन बोरलॉग को दिया जाता है लेकिन भारतीय हरित क्रांति के जनक MS स्वामीनाथन हैं। भारत में कृषि एवं खाद्य मंत्री बाबू जगजीवन राम को हरित क्रांति में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, उन्होंने MS स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को कार्यान्वित और हरित क्रांति का सफल संचालन किया, जिसका भविष्य में संतोषजनक प्रभाव भी देखने को मिला।
भारत में हरित क्रांति के जनक = एम एस स्वामीनाथन
भारत में हरित क्रांति कृषि में होने वाले विकासशील प्रयोग का परिणाम है, जो की 1960 के दशक में परंपरागत कृषि को और आधुनिक कर तकनीकी द्वारा प्रतिस्थापित किये जाने के रूप जाना गया। उस समय यह तकनीक कृषि क्षेत्र में तेज़ी से आई, इस तकनीक का इतनी तेज़ी से विकास हुआ की इसने थोड़े ही समय में कृषि के क्षेत्र में इतने आश्चर्यजनक परिणाम दिए की देश के कृषि विशेषज्ञों, योजना बनाने वालों तथा राजनीतिज्ञों ने इस अप्रत्याशित प्रगति को ही ‘ हरित क्रांति ’ कह दिया। इसे हरित क्रांति की संज्ञा इसलिए भी दी गयी, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप भारतीय कृषि निर्वाह स्तर से ऊपर उठकर आधिक्य स्तर पर पहुँच गयी।
कृषि क्षेत्र में वृद्धि
हरित क्रांति के कारण ही भारत के कृषि क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई, तथा कृषि में हुए सुधारों के चलते देश में कृषि के उत्पादन में वृद्धि हुई। देश के खाद्यानों में आत्मनिर्भरता देखने को मिली, व्यावसायिक कृषि की भी उन्नति हुई। क्षेत्र-जिवियों के नजरिये में परिवर्तन हुए हैं, और कृषि गहनता में भी वृद्धि हुई है। देश में हरित क्रांति के फलस्वरूप गेहूं, गन्ना, मक्का, तथा बाजरे आदि की फसलों में प्रति हेक्टेयर व कुल उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई है। कृषि से मिली उपलब्धियों में तकनीकी एवं संस्थागत परिवर्तन तथा उत्पादन में हुई वृद्धि के लिए हरित क्रांति को अनुगामी रूप में देखा जाता है।
हरित क्रांति के फलस्वरूप खाद्यान (विशेषकर गेहूं और चावल) के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई, जिसकी शुरुआत 20वीं शताब्दी के मध्य में विकासशील देशों में नए, उच्च उपज देने वाले किस्म के बीजों के प्रयोग के कारण हुई। वर्ष 1967-68 तथा वर्ष 1977-78 की अवधि में हुई हरित क्रांति भारत को खाद्यान की कमी वाले देश की श्रेणी से निकालकर विश्व के अग्रणी कृषि देशों की श्रेणी में परिवर्तित कर दिया।
ऐसी दिशा में उठाये गए कुछ महत्वपूर्ण कदमों ने सुखा, बाढ़, चक्रवात, आग तथा फसल की बीमारियों के लिए फसल बीमा के प्रावधान और किसानों को कामदार पर सुविधाएँ देने के लिए ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियों और बैंकों की स्थापना करना शामिल है। किसानों के लाभ के लिए भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड और दुर्घटना बीमा योजना (PAIS) की भी शुरू की।
हरित क्रांति की चार विशेषताएं – harit kranti ki char visheshtaen
Harit Kranti ने खाद्य उत्पाद को बहुत तेजी से बढ़ाया, परंतु यदि आप जानना चाहते हैं कि ‘हरित क्रांति की विशेषता क्या है‘ तो नीचे दी गई हरित क्रांति की चार विशेषताएं आपको इस बारे में और अच्छे से समझने में मदद करेंगी।
- वर्ष 1947 में आज़ादी के बाद वर्ष 1967 तक, सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर कृषि क्षेत्रों के विस्तार पर ध्यान दिया गया। लेकिन देश की जनसंख्या वृद्धि खाद्य उत्पादन की तुलना में बहुत तेज गति से बढ़ रही थी।
- भारत में हरित क्रांति मोटे तौर पर गेहूं क्रांति है क्योंकि वर्ष 1967-68 और वर्ष 2003-04 के मध्य गेहूं के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई, जबकि बाक़ी अनाजों के उत्पादन में अपेक्षाकृत गेहूं से कम वृद्धि हुई।
- तेज गति से बढती जनसंख्या ने खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए तत्काल और कड़ी करवाई करने की आवश्यकता पर जोर लगाया जिसका परिणाम हरित क्रांति के रूप में उभरकर सामने आया।
- भारत सरकार और अमेरिका की फ़ोर्ड एंड फाउंडेशन द्वारा हरित क्रांति की वित्त की जरूरतों को पूरा किया गया था।
यह हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएं हैं, जिसने खाद्य उत्पाद को आगे बढ़ाने में बहुत मदद की है।
हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम
- हरित क्रांति से खेती को बढ़ावा मिला और विश्व की खाद्य पूर्ति की समस्या दूर हुई।
- गेहूं के उत्पाद में बढ़ोतरी हुई जिससे गेहूं का उत्पाद बहुत तेजी से बढ़ा।
हरित क्रांति के उद्देश्य
- रोजगार: कृषि और औद्योगिक दोनों क्षेत्र के श्रमिकों को रोजगार प्रदान करना।
- कृषक वर्ग की स्थिति में सुधार: हरित क्रांति के द्वारा कृषि उत्पादन को बढ़ाना जिससे किसानों की स्थिति को सुधरने में सहायता मिल सके।
- वैज्ञानिक अध्ययन: स्वस्थ पौधों का उत्पादन करना, जो अनुकूल। विषम जलवायु और रोगों का सामना करने में सक्षम हो।
- कृषि का वैश्वीकरण: गैर-औद्योगिक राष्ट्रों में प्रौद्योगिकी का प्रसार करना तथा मुख्य कृषि क्षेत्रों में निगमों की स्थापना की स्थापना को प्रोत्साहन देना।
- दीर्घ अवधि के लिए: दीर्घकालिक उद्देश्यों में ग्रामीण विकास, औद्योगिक विकास पर आधारित समग्र कृषि का आधुनिकीकरण, बुनियादी ढांचे का विकास, कच्चे माल की आपूर्ति आदि शामिल थे।
- विश्व व्यापार: देश के कृषि आयत को कम करना तथा निर्यात को बढ़ाना।
हरित क्रांति के मुख्य पहलू
• जल की आपूर्ति: जल की आपूर्ति के लिए बड़ी सिंचाई परियोजनाओं का निर्णय लिया गया, इसके साथ साथ सिंचाई की नयी तकनीक के विकास पर भी ध्यान दिया गया। सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण किया गया।
• उन्नत बीजों का उपयोग: श्रेष्ठ बीजों का उपयोग करना हरित क्रांति का प्रारंभिक पहलू था/ भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) द्वारा उच्च उपज देने वाले बीज, मुख्य रूप से गेहूं, चावल, मक्का और बाजरा के बीजों की नयी किस्मों को विकास किया गया।
• कृषि क्षेत्र का विस्तार: यद्यपि वर्ष 1947 से ही कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल को विस्तृत किया जा रहा था परन्तु यह खाद्यान की बढती मांग को पूरा करने हेतु पर्याप्त नहीं था।
• दो फसल: दो फसल, हरित क्रांति की एक मुख्य विशेषता थी। इसके तहत यह निर्णय लिया गया की वर्ष में एक नहीं बल्कि दो फसल प्राप्त की जाये। हर वर्ष एक ही फसल उगाई जाती थी क्योंकि वर्ष में एक ही बार बारिश का मौसम आता था।
हरित क्रांति के मुख्य तत्व
harit kranti ke mukhya tatva तीन हैं:
- कृषि का विस्तार
- कृषि में औद्योगिक विकास
- खाद्य उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
हरित क्रांति का प्रभाव क्या है -Harit kranti ka prabhav kya hai?
Harit Karanti के कारण Positive और Negative प्रभाव हुए हैं परंतु इससे ज्यादातर हमें अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं। नीचे Positive और negative प्रभाव के बारे में बताया है जिससे आप समझ सकते हैं कि ‘Harit kranti ka prabhav kya hai‘-
हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव ( Harit kranti ka prabhav – Positive )
भारत वर्ष में हरित क्रांति का प्रभाव काफ़ी सकारात्मक रहा हैं, जैसे – रोज़गार में बढ़वा, भारत का विदेशी व्यापार बढ़ना, किसानों को ज़्यादा लाभ, फसल के उत्पादन में वृद्धि, और औद्योगिक विकास कुछ ऐसे सकारात्मक (Positive) प्रभाव हैं।
• रोजगार में वृद्धि: दोहरी फसल और उर्वरकों के उपयोग के कारण कृषि श्रमिकों की मांग बढ़ी और साथ साथ औद्योगिक श्रमिकों की मांग में भी वृद्धि हुई। पन-बिजली स्टेशन पर भी रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए।
• विदेशी व्यापार में वृद्धि: भारत खाद्यान में आत्मनिर्भर हो गया और केंद्र के पास पर्याप्त भंडार था, यही नहीं बल्कि भारत खाद्यान आयत करने की जगह पर निर्यात करने की स्थिति में था/ खाद्यान की प्रति व्यक्ति शुद्ध उपलब्धता में भी वृद्धि हुई।
• कृषक वर्ग को लाभ: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, जिसकी वजह से किसानों की आय में भी वृद्धि हुई। किसानों की आय में वृद्धि होने के कारण वो सब अपनी अधिशेष आय को पुनः निवेश करने लगे जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई, जिससे पूंजीवादी कृषि को बढ़ावा मिला।
• उत्पादन में वृद्धि: इसके परिणामस्वरूप भारत विश्व के एक बड़े कृषि उत्पादक देश के रूप में स्थापित हुआ/ हरित क्रांति के दौरान गेहूं और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों के तहत फसल क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई।
• औद्योगिक विकास: हरित क्रांति के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर कृषि के नए उपकरणों की मांग उत्पन्न हुई। कृषि के लिए ट्रेक्टर, कंबाइन, मोटर पम्प, थ्रेशर इत्यादि मशीनों तथा खरपतवार-नाशी कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों की भी मान होने लगी जिससे औद्योगिक विकास में वृद्धि हुई।
नकारात्मक प्रभाव ( Harit kranti ka prabhav – Negative )
• मिट्टी और फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव: फसल उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए बार बार एक ही फसल चक्र को अपनाने से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इन नए प्रकार के बीजों की आवश्यकताओं के हिसाब से किसानों द्वारा उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग किया गया। इन क्षारीय रसायनों के उपयोग से मिट्टी के PH स्तर में वृद्धि हुई। मृदा में जहरीले रसायनों के उपयोग से लाभकारी फसल रोग-जनक बन गयी, और मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से उपज में भी गिरावट आई।
• बेरोज़गारी: पंजाब को छोड़कर और कुछ हद तक हरियाणा में हरित क्रांति के तहत कृषि मशीनी-करण ने ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मजदूरों के मध्य व्यापक स्तर पर बेरोज़गारी में वृद्धि हुई। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और भूमिहीन मजदूर पर देखा गया।
• पानी की खपत: हरित क्रांति में शामिल की गई फसलें जल-प्रधान थी। इन फसलों में अधिकांश अनाज खाद्दान थीं जिन्हें लगभग 50 प्रतिशत जल आपूर्ति की ज़रूरत होती है। नहर प्रणाली को शुरु किया गया, इसके अलावा सिंचाई पम्पों के उपयोग में भी वृद्धि हुई, जिसने भूजल के स्तर को और भी नीचे ला दिया जैसे-गन्ना और चावल जैसी अधिक जल आपूर्ति की ज़रूरत वाली फसलों में गहन सिंचाई के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई।
• स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे- फोस्फामिदोंन, मेथोमाइल, त्र्रायजोफोस और मोनोक्रोटोफोस का बड़े पैमाने पर उपयोग के फलस्वरूप कैन्सर, गुर्दे का फेल होना, मृत शिशुओं और जन्म दोष जैसी कई गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न हुई।
• HYVP का सीमित कवरेज: अधिक उपज देने वाला किस्म कार्यक्रम केवल पांच फसलों: गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का तक ही सीमित था। इसलिए गैर खाद्यानों को नयी रणनीति के दायरे से बाहर रखा गया। गैर खाद्य फसलों में HYV बीज या तो अभी तक विकसित नहीं हुए थे या किसान उनके प्रयोग हेतु जोखिम उठाने हेतु तैयार नहीं थे।
• गैर खाद्य अनाज शामिल नहीं: हालाँकि गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का सहित सभी खाद्यान का उत्पादन क्रांति स्तर पर हुआ परन्तु अन्य फसलों जैसे-मोटे अनाज, दलहन और तिलहन को हरित क्रांति के दायरे से बाहर रखा गया था। कपास, जुट, चाय और गन्ना जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति से लगभग अछूती रहीं।
• रासायनिकों के उपयोग से नुकसान: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप उन्नत फसल किस्मों के लिए सिंथेटिक नाइट्रोजन, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों इत्यादि के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण कृषि भूमि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और मिट्टी का प्रदूषण भी होता है/ किसानों को रासायनिकों का फसल के लिए उपयोग से सम्बंधित शिक्षा नहीं दी गयी।
हरित क्रांति से सम्बंधित योजनाएँ
• वर्ष 2005 में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने कृषि की उन्नति के लिए योजना की शुरुआत की। इसमें एक अम्ब्रेला योजना के तहत 11 योजनाएँ शामिल हैं जो निम्नलिखित हैं:
- पौध संरक्षण एवं पौध संग-रोधक से सम्बंधित उप मिशन
- कृषि जनगणना, अर्थशास्त्र और सांख्यिकी पर एकीकृत योजना
- कृषि सहयोग पर एकीकृत योजना
- कृषि विपणन पर एकीकृत योजना
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्स योजना
- एककृत बाग़बानी विकास मिशन
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन
- कृषि विस्तार का प्रस्तुतीकरण
- बीज और पौधारोपण सामग्री पर उप मिशन
- कृषि मशीनी-करण पर उप मिशन
हरित क्रांति में महत्वपूर्ण फसलें
- मुख्य फसलें गेहूं, चावल, ज्वार, मक्का और बाजरा।
- गैर खाद्यानों फसलों को नयी रणनीति के दायरे से शामिल नहीं थी।
- गेहूं बहुत सालों तक इसका मुख्य आधार बना रहा।
कुछ महत्व पूर्ण Key-points
harit kranti shabd kisne gadha tha | विलियम गौड़ |
हरित क्रांति शब्द किसने दिया? | विलियम गौड़ |
भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई थी? | 1967-1968 |
हरित क्रांति कब हुई? | 1960 (अमेरिका) |
भारत की महत्वपूर्ण कृषि क्रांतियाँ
दरअसल इस लेख में वर्णित हरित क्रांति के अलावा भी भारत में कृषि क्रांति हुई हैं, जिससे की कृषि क्षेत्र में नई खोज, अनुसन्धानों और आविष्कारों को बढ़ावा दिया जा सके। हरित क्रांति के अलावा भारत की महत्वपूर्ण कृषि क्रांतियाँ निम्नलिखित हैं:-
कृषि क्रांति का नाम | कृषि क्षेत्र से संबंध |
श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ़्लड) | दुग्ध उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
पीली क्रांति | तिलहन फसलों से संबन्धित |
नीली क्रांति | मछली पालन एवं समुद्री उत्पादों में वृद्धि से संबन्धित |
लाल क्रांति | टमाटर और मांस में उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
गोल क्रांति | आलू के उत्पादन से संबन्धित |
रजत क्रांति | अंडे और मुर्गी पालन में वृद्धि से संबन्धित |
हरित सोना क्रांति | बांस के उत्पादन से संबन्धित |
भूरी क्रांति | कृषि उर्वरक व रसायनों से संबन्धित |
गुलाबी क्रांति | झींगा मछ्ली उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
बादामी क्रांति | मसाला उत्पादन से संबन्धित |
सुनहरी क्रांति | फलों के उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
सफ़ेद सोना क्रांति (व्हाइट गोल्ड क्रांति) | कपास के उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
स्वर्ण क्रांति | फलों और शहद के उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
स्वर्ण रेशा क्रांति | जूट के उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
परामनी क्रांति | भिंडी के उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
सेफ़रोन क्रांति | केसर के उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
हरा सोना क्रांति (ग्रीन गोल्ड क्रांति) | चाय के उत्पादन में वृद्धि से संबन्धित |
इंद्रधनुषी क्रांति | हरित, लाल, हरी, नीली, पीली, गुलाबी और सब कृषि क्रांतियों से संबन्धित |
निष्कर्ष
कुल मिलाकर हरित क्रांति कई विकासशील देशों, विशेषकर भारत के लिए एक सौगात लेकर आई थी जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध हुई। यह कृषि में उस वैज्ञानिक क्रांति के सफल अनुकूलन और हस्तांतरण का प्रतिनिधित्व करती है जिसे औद्योगिक देशों ने पहले ही अपने यहाँ विनियोजित कर लिया था।
भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई थी ?
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1967-1968 में हुई थी। जिसका उद्देश्य भारत में कृषि उत्पादन में वृद्धि करना था।
हरित क्रांति के जनक ?
हरित क्रांति का जनक नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) को ही कहा जाता है।
भारत में हरित क्रांति के जनक कौन थे?
भारतीय हरित क्रांति के जनक MS स्वामीनाथन हैं और इसके साथ-साथ भारत में कृषि एवं खाद्य मंत्री बाबू जगजीवन राम को हरित क्रांति में उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
हरित क्रांति के प्रभाव ?
Positive ( सकारात्मक ) प्रभाव:
- रोज़गार में बढ़वा
- भारत का विदेशी व्यापार बढ़ना
- किसानों को ज़्यादा लाभ
- फसल के उत्पादन में वृद्धि
- औद्योगिक विकास
Negative ( नकारात्मक ) प्रभाव:
- मिट्टी और फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव
- ज़्यादा पानी की खपत
- स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव
- HYVP का सीमित कवरेज
- गैर खाद्य अनाज शामिल नहीं
- रसायनों के उपयोग के नुक़सान