दोस्तों, हरित क्रांति के बारे में जानने के लिए हरित क्रांति का इतिहास, हरित क्रांति के जनक और इससे संबंधित जानकारी होना ज़रूरी है, इन सभी जानकारियों के साथ आप समझ सकते हैं कि ‘हरित क्रांति क्या है’ और इसके क्या प्रभाव हुए।
हरित क्रांति क्या है?
हरित क्रांति के बारे में जानने के लिए हमें बहुत साल पीछे जाना पड़ेगा। दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अमेरिकी सेना उस वक़्त जापान में थी उसी समय कृषि अनुसन्धान सेवा में ‘के एस सिसिल सैल्मन’ भी थे। जापान की हालत देखते हुए यह सोचा जाने लगा था की जापान का पुनर्निर्माण कैसे किया जाये/ सैल्मन का विचार कृषि की उपज पर था, उन्हें काफी बड़े दाने वाली गेहूं की नोरीन नाम की एक किस्म मिली। सैल्मन ने इसके और अच्छे परिणाम के लिए इसे शोध हेतु अमरीका भेजा। 13 वर्ष के प्रयोगों के बाद वर्ष 1959 में गेन्स नाम की किस्म तैयार गयी।
इसके बाद नोरमन बोरलौग ने इसका मेक्सिको की सबसे अच्छी किस्म के साथ संकरण कर एक नयी किस्म का निर्माण किया, जिसके उपरांत हरित क्रांति का आरम्भ हुआ।
हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू किया गया था। हरित क्रांति का जनक नॉर्मन बोरलॉग को ही कहा जाता है। वर्ष 1970 में इनको ज्यादा उपज देने वाली किस्मों के विकास के लिए नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
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पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका विकास एजेंसी (USAID) के निदेशक विलियम गौड़ ने हरित क्रांति शब्द को सर्वप्रथम 1968 में प्रयोग किया था उन्होंने ही इस नयी तकनीक के प्रभाव के बारे में बताया। हरित क्रांति से अभिप्राय देश के ऐसे सिंचित एवं अ-सिंचित कृषि क्षेत्रों में ज्यादा उपज करके संकर तथा बौने बीजों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि करना है।
हरित क्रांति कृषि क्षेत्र में हुए शोध, तकनीकी परिवर्तन एवं अन्य कदमों को संदर्भित करता है जिसके परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। उच्च उत्पादक क्षमता वाले पर-संसाधित बीजों का प्रयोग, आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल, सिंचाई की व्यवस्था , कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से संभव हुई इस क्रांति को लाखों लोगों की भुखमरी से रक्षा करने का श्रेय दिया जाता है।
हरित क्रांति का प्रभाव क्या है?
हरित क्रांति के कारण सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हुए हैं, परंतु इससे ज्यादातर हमें अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।
सकारात्मक प्रभाव
भारत वर्ष में हरित क्रांति का प्रभाव काफ़ी सकारात्मक रहा हैं, जैसे – रोज़गार में बढ़वा, भारत का विदेशी व्यापार बढ़ना, किसानों को ज़्यादा लाभ, फसल के उत्पादन में वृद्धि, और औद्योगिक विकास कुछ ऐसे सकारात्मक प्रभाव हैं।
• रोजगार में वृद्धि: दोहरी फसल और उर्वरकों के उपयोग के कारण कृषि श्रमिकों की मांग बढ़ी और साथ साथ औद्योगिक श्रमिकों की मांग में भी वृद्धि हुई। पन-बिजली स्टेशन पर भी रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए।
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• विदेशी व्यापार में वृद्धि: भारत खाद्यान में आत्मनिर्भर हो गया और केंद्र के पास पर्याप्त भंडार था, यही नहीं बल्कि भारत खाद्यान आयत करने की जगह पर निर्यात करने की स्थिति में था/ खाद्यान की प्रति व्यक्ति शुद्ध उपलब्धता में भी वृद्धि हुई।
• कृषक वर्ग को लाभ: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, जिसकी वजह से किसानों की आय में भी वृद्धि हुई। किसानों की आय में वृद्धि होने के कारण वो सब अपनी अधिशेष आय को पुनः निवेश करने लगे जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई, जिससे पूंजीवादी कृषि को बढ़ावा मिला।
• उत्पादन में वृद्धि: इसके परिणामस्वरूप भारत विश्व के एक बड़े कृषि उत्पादक देश के रूप में स्थापित हुआ। हरित क्रांति के दौरान गेहूं और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों के तहत फसल क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई।
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• औद्योगिक विकास: हरित क्रांति के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर कृषि के नए उपकरणों की मांग उत्पन्न हुई। कृषि के लिए ट्रेक्टर, कंबाइन, मोटर पम्प, थ्रेशर इत्यादि मशीनों तथा खरपतवार-नाशी कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों की भी मान होने लगी जिससे औद्योगिक विकास में वृद्धि हुई।
नकारात्मक प्रभाव
• मिट्टी और फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव: फसल उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए बार बार एक ही फसल चक्र को अपनाने से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इन नए प्रकार के बीजों की आवश्यकताओं के हिसाब से किसानों द्वारा उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग किया गया। इन क्षारीय रसायनों के उपयोग से मिट्टी के PH स्तर में वृद्धि हुई। मृदा में जहरीले रसायनों के उपयोग से लाभकारी फसल रोग-जनक बन गयी, और मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से उपज में भी गिरावट आई।
• बेरोज़गारी: पंजाब को छोड़कर और कुछ हद तक हरियाणा में हरित क्रांति के तहत कृषि मशीनी-करण ने ग्रामीण क्षेत्रों में खेतिहर मजदूरों के मध्य व्यापक स्तर पर बेरोज़गारी में वृद्धि हुई। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब और भूमिहीन मजदूर पर देखा गया।
• पानी की खपत: हरित क्रांति में शामिल की गई फसलें जल-प्रधान थी। इन फसलों में अधिकांश अनाज खाद्दान थीं जिन्हें लगभग 50 प्रतिशत जल आपूर्ति की ज़रूरत होती है। नहर प्रणाली को शुरु किया गया, इसके अलावा सिंचाई पम्पों के उपयोग में भी वृद्धि हुई, जिसने भूजल के स्तर को और भी नीचे ला दिया जैसे-गन्ना और चावल जैसी अधिक जल आपूर्ति की ज़रूरत वाली फसलों में गहन सिंचाई के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई।
• स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे- फोस्फामिदोंन, मेथोमाइल, त्र्रायजोफोस और मोनोक्रोटोफोस का बड़े पैमाने पर उपयोग के फलस्वरूप कैन्सर, गुर्दे का फेल होना, मृत शिशुओं और जन्म दोष जैसी कई गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न हुई।
• HYVP का सीमित कवरेज: अधिक उपज देने वाला किस्म कार्यक्रम केवल पांच फसलों: गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का तक ही सीमित था। इसलिए गैर खाद्यानों को नयी रणनीति के दायरे से बाहर रखा गया। गैर खाद्य फसलों में HYV बीज या तो अभी तक विकसित नहीं हुए थे या किसान उनके प्रयोग हेतु जोखिम उठाने हेतु तैयार नहीं थे।
• गैर खाद्य अनाज शामिल नहीं: हालाँकि गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का सहित सभी खाद्यान का उत्पादन क्रांति स्तर पर हुआ परन्तु अन्य फसलों जैसे-मोटे अनाज, दलहन और तिलहन को हरित क्रांति के दायरे से बाहर रखा गया था। कपास, जुट, चाय और गन्ना जैसी प्रमुख व्यावसायिक फसलें भी हरित क्रांति से लगभग अछूती रहीं।
• रासायनिकों के उपयोग से नुकसान: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप उन्नत फसल किस्मों के लिए सिंथेटिक नाइट्रोजन, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों इत्यादि के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण कृषि भूमि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और मिट्टी का प्रदूषण भी होता है/ किसानों को रासायनिकों का फसल के लिए उपयोग से सम्बंधित शिक्षा नहीं दी गयी।
सम्बंधित योजनाएँ
• वर्ष 2005 में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने कृषि की उन्नति के लिए योजना की शुरुआत की। इसमें एक अम्ब्रेला योजना के तहत 11 योजनाएँ शामिल हैं जो निम्नलिखित हैं:
- पौध संरक्षण एवं पौध संग-रोधक से सम्बंधित उप मिशन
- कृषि जनगणना, अर्थशास्त्र और सांख्यिकी पर एकीकृत योजना
- कृषि सहयोग पर एकीकृत योजना
- कृषि विपणन पर एकीकृत योजना
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्स योजना
- एककृत बाग़बानी विकास मिशन
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन
- कृषि विस्तार का प्रस्तुतीकरण
- बीज और पौधारोपण सामग्री पर उप मिशन
- कृषि मशीनी-करण पर उप मिशन
निष्कर्ष
कुल मिलाकर हरित क्रांति कई विकासशील देशों, विशेषकर भारत में हरित क्रांति एक सौगात लेकर आई थी, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध हुई। यह कृषि में उस वैज्ञानिक क्रांति के सफल अनुकूलन और हस्तांतरण का प्रतिनिधित्व करती है जिसे औद्योगिक देशों ने पहले ही अपने यहाँ विनियोजित कर लिया था।