कर्मन्ये वधिकारस्ते श्लोक: अध्यात्म एक बहुत ही गहन विषय है हमारा जीवन अध्यात्म से जुड़ा हुआ है। हर एक व्यक्ति का कदम सच्ची राह और प्रगति की ओर हो उसी को अध्यात्म कहेंगे। अध्यात्म को अपने आचरण और व्यवहार में लाना ही कर्म योग है। अध्यात्म युवाओं के लिए भी उतना ही उपयोगी है जितना कि वृद्धों के लिए।
आज हम अपने लेख में कर्म के लिए प्रेरित करने वाले कर्मन्ये वधिकारस्ते श्लोक का अर्थ (karmanye vadhikaraste) समझाएंगे। कौरवों और पांडवों का युद्ध जब कुरुक्षेत्र की भूमि पर होता है तो अर्जुन वहां पर उपस्थित अपने सगे संबंधियों को और अपने बड़ों को और छोटों को देखते हैं तो वह युद्ध छोड़ देने का निर्णय करते हैं। उस समय भगवान श्री कृष्ण उन को गीता का उपदेश देते हैं।उस गीता के उपदेश में श्रीकृष्ण भगवान एक श्लोक सुनाते हैं जो कि संपूर्ण भगवत गीता का सार है।
इस श्लोक का शाब्दिक अर्थ क्या है उसी के विषय में यह लेख है।
कर्मन्ये वधिकारस्ते श्लोक का अर्थ
कर्मन्ये वधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।।
Karmanye Vadhikaraste Maa Faleshu Kadaachan
Maa Karmfalheturbhurmaa Te Sangostvakarmani
karmanye vadhikaraste – कर्मन्ये वधिकारस्ते श्लोक भगवद गीता के अध्याय 2 में 47वाँ श्लोक है। भगवद गीता के इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म के विषय में बताया था। भगवान कृष्ण ने कहा था कि खुद पर भरोसा रखो, अपना कर्म करते रहो और फल की चिंता मत करो। कर्म करते रहोगे तो सफलता अपने आप तुम्हारे पीछे आएगी। सिर्फ कर्म करना हमारे अधिकार में है, हम सिर्फ कर्म कर सकते हैं कर्मफल हमारे हाथ में नहीं होता। भगवान श्री कृष्ण ने कर्म के विषय में यह बात इस श्लोक के रूप में कही है।
कर्मन्ये वधिकारस्ते श्लोक का शाब्दिक अर्थ नीचे दिया गया है:
तेरा कर्म करना ही अधिकार है कर्मफल में नहीं
इसलिए तू कर्म फल के बारे में सोचने वाला मत हो
और तेरी कर्म ना करने में भी आसक्ति नहीं होनी चाहिए
इस श्लोक में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति बार-बार कर्म के फल के बारे में सोचता रहता है कि उसे उसके द्वारा किए गए कर्म का फल कब मिलेगा, कैसे मिलेगा, कितना मिलेगा तो उसका ध्यान कर्म की तरफ नहीं रह पाता है। और वह हमेशा कर्म फल के बारे में ही सोचता रहेगा। हमें कर्म में ही आनंद ढूंढना चाहिए, कर्म में ही प्रसन्नता तलाशनी चाहिए और कर्म के फल के बारे में नहीं सोचना चाहिए।
इस श्लोक के अर्थ से हम यह भी कह सकते हैं कि जब इंसान कर्म फल के बारे में अधिक सोचता है तो वह दूसरों के साथ तुलना भी करता है। अगर दूसरे व्यक्ति को कर्म का फल जल्दी या अधिक मिल गया हो तो वह सोचने लग जाता है कि उसे कर्म का फल कब मिलेगा या कितना मिलेगा और वह यह सब दूसरे व्यक्ति को मिले कर्मफल से तुलना करके सोचता है।
ऐसे में अगर दूसरे व्यक्ति से कम अगर कर्म फल उसको मिलता है या उसे दूसरे व्यक्ति की तुलना में अब तक कर्मफल नहीं मिला है तो वह कर्म करना ही छोड़ देता है। कर्म फल पाने की तीव्र इच्छा हमसे गलत कर्म भी करवा सकती है। कर्म फल जल्दी से मिल जाए ऐसी सोच हमें गलत कर्मों की तरफ ले जाती है और ऐसा करने से हम कर्म फल को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
कम शब्दों में बताए तो हम यह कह सकते हैं कि इस कर्मन्ये वधिकारस्ते श्लोक का अर्थ है कर्म करते रहना चाहिए उसके फल के बारे में हमें ज्यादा नहीं सोचना चाहिए कर्म करना हमारे हाथ में है कर्मफल हमारे हाथ में नहीं है। कर्म के सिद्धांत को इस श्लोक के आधार पर हम अच्छे से समझ सकते हैं।
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