मकर संक्रांति (makar sankranti) का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को पूरे विश्व भर में मनाया जाता है लेकिन इस त्यौहार के अलग-अलग देशों में अलग-अलग नाम हैं। मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहारों है, और भारत के अलग-अलग राज्यों में इस त्यौहार को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।
मकर संक्रांति कब होता है ? Makar Sankranti kab hai?
हिंदू धर्म में बहुत से त्यौहार ऐसे हैं जो सूर्य देवता से जुड़े हुए हैं इन्हीं त्योहारों में से एक मकर संक्रांति का पर्व भी है। यह पर्व शरद ऋतु के पौस माह में जब सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं उस समय जो सूर्य की संक्रांति होती है उसी के रूप में यह पर्व मनाया जाता है।
यह पर्व हर वर्ष 14 जनवरी को आता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों की गणना में परिवर्तन के कारण यह पर्व 12,13 या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है। यह पर्व अलग-अलग नामों से पूरे भारत में मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के दिन का निर्धारण मुख्य रूप से सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करना ही होता है।
जिस तरह महीने को कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के दो भागों में बांटा गया है वैसे ही वर्ष को भी उत्तरायण और दक्षिणायन भागों में बांटा गया है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं अर्थात उत्तरायण गति शुरू होती है इसलिए इस पर्व को उत्तरायण भी कहा जाता है।
मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है? Why is Makar Sankranti celebrated in Hindi?
सूर्य की कुल 12 संक्रांति हैं परंतु उनमें से कर्क, तुला, मेष और मकर यह चार संक्रांति ही ज्यादा महत्वपूर्ण है। इन चारों में से भी मकर संक्रांति को बहुत शुभ माना जाता है और इसका विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के दिन को एक पर्व के रूप में मनाया जाता है।
मकर सक्रांति के पर्व को मनाने का एक वैज्ञानिक कारण भी है। सूर्यदेव के उत्तरायण होने के बाद प्राकृतिक वातावरण में भी बदलाव की शुरुआत हो जाती है। लोगों को सर्दी से कुछ राहत मिलती है। इस समय किसान खरीफ की फसल की कटाई करते हैं और अनाज घर लेकर आते हैं। इस के कारण भी यह पर्व मनाया जाता है।
क्योंकि इस दिन कुछ विशेष घटनाएं घटित हुई थी और इस दिन से जुड़ी हुई लोगों की कुछ मान्यताएं भी हैं जिसके कारण इस दिन को पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को पूरे कुछ प्रमुख मान्यताओं और घटनाओं के कारण इस दिन को एक पर्व के रूप में मनाया जाता है वह निम्नलिखित है:
- देवी पुराण और श्रीमद भगवत गीता के अनुसार शनि महाराज का अपने पिता सूर्य देव से वैभव था क्योंकि सूर्य देव ने शनि की माता छाया को यमराज (सूर्य देव की दूसरी पत्नी का पुत्र) से भेदभाव करते हुए देख लिया था। इसलिए सूर्य देव ने शनि और उनकी माता छाया को खुद से अलग कर दिया था।इस कारण सूर्य देव को पोस्ट के रोग का श्राप शनि और छाया द्वारा दिया गया। सूर्य देव को कुष्ठ रोग से ग्रसित देखकर यमराज ने उनको रोग मुक्त करने के लिए तपस्या की। परंतु सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि की राशि कुंभ को जला दिया। जिससे शनि और उसकी माता छाया को कष्ट झेलना पड़ा। यमराज के बहुत समझाने के बाद सूर्य शनि की राशि कुंभ में पहुंचे। वहां पहुंच कर पाया कि इस राशि में सब कुछ जल गया था।
शनि के पास उस समय काले तिलों के सिवाय और कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने सूर्य देव की पूजा काले तिलों से की। इससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि मेरे आने से तुम्हारा दूसरा घर (मकर राशि) धन-धान्य से भर जाएगी। इस वजह से ही मकर संक्रांति के दिन को मनाया जाने लगा और इस दिन काले तिलों से सूर्य एवं शनि की पूजा होने लगी।
- इस दिन ही विष्णु भगवान के अंगूठे से निकलने वाली गंगा जी भागीरथ के पीछे चलते हुए कपिल मुनि के आश्रम से होकर समुद्र में जाकर मिल गई थी और इसके साथ ही भागीरथ के पूर्वज सगर के बेटों को मुक्ति मिली थी। इसलिए बंगाल के गंगासागर में इस दिन कपिल मुनि के आश्रम पर एक बड़ा मेला लगता है।
- ऐसा बताया जाता है कि श्री कृष्ण भगवान नेवी बताया है कि जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तब उत्तरायण के 6 महीने बहुत शुभ माने जाते हैं और उत्तरायण के दिनों में अगर कोई शरीर का परित्याग करता है तो उस व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है। वह व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त हो जाता है और सीधे ब्रह्मा को प्राप्त हो जाता है। सूर्य के उत्तरायण होने से पृथ्वी प्रकाश में रहती है।
- ऐसा माना जाता है कि महाभारत में पितामह भीष्म ने भी अपने शरीर का परित्याग सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से किया था। क्योंकि उत्तरायण में शरीर का परित्याग करने से आत्माएं सीधे देवलोक में जाती हैं और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाती हैं।
- किसी धार्मिक मान्यता के अनुसार यह कहा गया है कि इस दिन देवता धरती पर अवतरित होते हैं।
- हिन्दू धरम में यह मान्यता भी है की इस दिन ही विष्णु भगवान ने असुरों का सिर काटकर मंदार पर्वत में दबा दिया था और युद्ध समाप्ती की घोषणा कर दी थी। इसलिए इस दिन को बुराई और नकारात्मकता को खत्म करने के लिए मनाया जाता है।
मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है? How Celebrate Makar Sankranti?
इस पर्व को पूरे भारत वर्ष में बड़ी धूमधाम और हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है। पूरे भारत वर्ष में यह पर्व अलग – अलग रूप में मनाया जाता है अलग – अलग रीति रिवाजों से मनाया जाता है।
लेकिन गुजरात या सौराष्ट्र में बाकी राज्यों की तुलना में यह पर्व ज्यादा विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन यहाँ पर पतंग उड़ाई जाती हैं। सब लोग अपनी छतों पर छड़कर पतंगबाजी करते हैं और इस दिन यहाँ पर पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है। मकर संक्रांति के पर्व को निम्नलिखित प्रकार से मनाया जाता है:
- इस दिन सब सुबह जल्दी उठते हैं। फिर किसी तीर्थ स्थल पर स्नान करते हैं। अगर तीर्थ स्थल नजदीक ना हो तो पानी में गंगा जल मिलाकर पवित्र जल से स्नान करते हैं।
- स्नान के बाद सूर्य और शनि देव के साथ सब अपने इष्ट देवों की पुजा करते हैं।
- घर में अलग अलग तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। मुख्य रूप से तिल और गुड के लड्डू अवश्य बनाए जाते हैं और देवताओं को पुजा के समय भोग लगाया जाता है।
- सब लोग एक दूसरे को मिठाइयाँ और घर में बने व्यंजन बांटते हैं और दान भी करते हैं।
- कहा जाता है की इस दिन दिया हुआ दान 100 गुना होकर वापिस होकर मिलता है इसलिए इस दिन लोग अपनी क्षमता अनुसार कंबल, गरम वस्त्र, घी, तेल, तिल, गुड या धन का दान करते हैं।
- इस दिन पतंग उड़ाकर भी इस पर्व को मनाया जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है की इस दिन भगवान श्री राम ने भी पतंग उड़ाई थी।
- तिल और गुड के लड्डू विशेष रूप से बनाए जाते हैं।
देवताओं के दिन और रात
सूर्य देव जब दक्षिणायन होते है तो उन 6 महीनों की रात्रि देवताओं की रात्रि होती हैं और जब सूर्य जब उत्तरायण होते हैं तो उन 6 महीनों के दिन देवताओं के दिन होते हैं।
सूर्य के उत्तरायण होने को सकारात्मकता और प्रकाश का प्रतीक माना जाता है और सूर्य के दक्षिणायन होने को अंधकार और नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए उत्तरायण के दिनों में देह त्यागने और दान पुण्य करने को बहुत लाभकारी माना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन क्या करें और क्या नहीं करें
- सुबह जल्दी उठकर, पवित्र जल से स्नान करें।
- स्नान करके भगवान का ध्यान करने और देवताओं की पुजा करें।
- कंबल, वस्त्र, धन, खाना – पीना, घी, तेल, तिल, गुड इत्यादि यथा संभव दान करें।
- अगर संभव हो और कोई तीर्थ स्थल नजदीक हो तो उसमें स्नान करें, जैसे गंगा, यमुना और नर्मदा आदि नदी में स्नान करें।
- एक दूसरे को उपहार भेंट करें, मिठाई सांझा करें, एक दूसरे की भलाई की मनोकामना करें।
- पतंग उड़ाएँ, नाच – गाना करें और खुशी – खुशी इस पर्व को मनाएँ।
क्या ना करें
- सुबह मंजन नहीं करना चाहिए इस दिन।
- इस दिन कोई कटु और कठोर वचन नहीं बोलने चाहिए।
- भैंस का दूध नहीं निकालना चाहिए।
- इस दिन मैथुन काम नहीं करना चाहिए।
मकर संक्रांति को कहाँ, किस रूप में मनाया जाता है? Makar Sankranti in different state.
यह पर्व पूरे भारत में एक साथ ही मनाया जाता है लेकिन अलग – अलग राज्यों में अलग – अलग रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। इस पर्व को कहाँ पर कैसे मनाया जाता है निम्नलिखित है:
- उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में यह पर्व खिचड़ी पर्व के नाम से भी मनाया जाता है। यहाँ पर इस दिन दाल चावल की खिचड़ी बनती है और सब खिचड़ी को एक दूसरे के साथ सांझा करते हैं। यहाँ पर इस पर्व को दान का पर्व भी माना जाता है और इस दिन अधिक से अधिक दान दिया जाता है।
- असम: असम में यह पर्व माघ बीहू के नाम से मनाया जाता है।
- राजस्थान: राजस्थान में मकर संक्रांति को सांस और बहू के रिश्ते को मजबूत करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन राजस्थान में बहू अपनी सांस को चूड़ियाँ और गरम वस्त्र भेंट स्वरूप देती हैं।
- गुजरात: गुजरात में इस पर्व को उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है। इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने का रिवाज ज्यादा प्रचलित है और यहाँ पर इस दिन पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
- आंध्र प्रदेश और कर्नाटका: इन दोनों राज्यों में इस पर्व को मकर संक्रमामा के नाम से मनाया जाता है। यहाँ पर इसे बड़े उत्सव के रूप में ‘पेंडा पादूगा’ नाम से मनाया जाता है। जिसका अर्थ होता है बड़ा उत्सव।
- बिहार: बिहार में भी इस पर्व को खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहाँ पर सब खिचड़ी बनाते हैं और दान करते हैं।
- कश्मीर: कश्मीर में मकर संक्रांति को शिशुर सेंक्रांत के नाम से मनाया जाता है।
- उड़ीसा: उड़ीसा में इस दिन भूया आदिवासियों द्वारा माघ यात्रा को इस पर्व में शामिल किया जाता है। इस दिन यहाँ पर लोग एक साथ नाच गाने का आयोजन करते हैं और घरों में बनी हुयी वस्तुओं की बिक्री करते हैं।
- पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल में इस पर्व के दिन गंगा सागर में एक बड़े मेले का आयोजन हर वर्ष किया जाता है और गंगा नदी में डुबकी लगाकर यहा इस पर्व को मनाया जाता है।
- तमिलनाडु: तमिलनाडु में इस पर्व को पौंगल के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पर यह पर्व 4 दिन तक मनाया जाता है।
- पंजाब और हरियाणा: यहाँ पर यह पर्व लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सब तिल और गुड के बने लड्डू खाते हैं और लोहड़ी बनाकर उसकी पुजा करते हैं और लोहड़ी को जलाकर उसमें चावल, तिल, गुड और भुने हुए मकके की आहुती देते हैं।
- महाराष्ट्र: यहाँ पर मकर संक्रांति के मौके पर हलवा बनाने, तिल और गुड के लड्डू बनाने और दान करें की प्रथा प्रचलित है।
विदेश में मकर संक्रांति – Makar Sankranti in World
भारत के साथ साथ इस पर्व को विदेशों में भी मनाया जाता है। विदेशों में मकर संक्रांति को किस रूप में मनाया जाता है वो निम्नलिखित है:
- पाकिस्तान: पाकिस्तान में इस पर्व को तिरमुरी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन यहाँ पर सब लोग अपने माँ – बाप को वस्त्र और मिठाई भेंट करते हैं।
- नेपाल: नेपाल में इस पर्व को माघे संक्रांति के नाम से मनाते हैं। नेपाल के कुछ क्षेत्रों में इसे मगही के रूप में भी मनाया जाता है।
- म्यांमार: म्यांमार में मकर संक्रांति को थींग्ज्ञान के रूप में मनाया जाता है।
- लाओस: यहा पर मकर संक्रांति को पी मा लाओ के नाम से मनाया जाता है।
- कंबोडिया: कंबोडिया में इस पर्व को मोहा संगक्रण के नाम से मनाया जाता है।
- थायलैंड: यहा पर इस पर्व को सोंगक्रण के नाम से मनाया जाता है।
- श्री लंका: श्री लंका में मकर संक्रांति को उलावार थिरुनाल के नाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का सेहत से संबंध
पौष माह की सर्दियों के कारण हमारी देह कई सारे ऐसे रोगों से ग्रसित हो जाती है जिसके बारे में हमें पता भी नहीं होता है। इसलिए जब सूर्य उत्तरायण होता है तो हमारी देह सूर्य की किरणों के संपर्क में आती है और हमें सर्दी से राहत मिलती है और इसके साथ साथ वो रोग भी दूर हो जाते हैं। इसके साथ साथ सर्दियों की वजह से रूखी हुई हमारी त्वचा भी ठीक हो जाती है।
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