मंगल ग्रह को लाल ग्रह के नाम से भी जाना जाता है। यह हमारे सौरमंडल का क्रम में चौथा ग्रह है। यह माना जाता है कि कभी मंगल ग्रह पर जीवन हुआ करता था परंतु वहां के वायु मंडल के लुप्त होने के कारण वह समाप्त हो गया। इस लेख में मंगल ग्रह और उसकी संरचना के साथ-साथ मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाएं और मंगल के चंद्रमाओं की संख्या आदि के बारे में जानने को मिलेगा।
मंगल ग्रह
सौरमंडल में सूर्य की उत्पत्ति और बाकी ग्रहों के जन्म की प्रक्रिया के समय ही मंगल ग्रह का निर्माण हुआ था। तक़रीबन 4.8 अरब वर्ष पहले हमारे सौरमंडल का निर्माण प्रारंभ हुआ। ब्रह्मांड में उस समय अन्धकार के सिवाय सिर्फ धूल के कण और गैस ही मौजूद थी। धीरे धीरे ये धूल कण समीप आकर गुरुत्वाकर्षण के कारण जुड़ने लगे।
इसी तरह इन धूल के कणों ने पत्थर और फिर चट्टानों का आकर ले लिया और गैस के बादल भी गुरुत्वाकर्षण के कारण इसके चारों तरफ घूम रही थी। चारों तरफ घुमती हुई गैस किसी डिस्क के आकार में थी जिससे नेब्युला कहते हैं। अब ये धूल के कण जुड़कर ठोस रूप ले चुके थे और इनकी घुमने की गति बहुत तेज थी। गैस के बादल चारों तरफ तीव्र गति से घूम रहे थे जिस कारण ठोस केंद्र पर गैस का दाब बढ़ रहा था। दाब और ताप बढ़ने के कारण उस ठोस केंद्र में ऊर्जा उत्पन्न होने लगी और वो एक आग के गोले में बदल गया।
फिर एक समय ऐसा आया की नेब्युला में विस्कोट हुआ और ठोस वाला केंद्र जो की किसी आग के गोले के समान था वो अलग हो गया और बाकी अवशेष अन्तरिक्ष में ही बिखर गए लेकिन ये अवशेष गुरुत्वाकर्षण के कारण उस केंद्र वाले ठोस भाग के चरों तरफ ही घुमने लगे जिसे हम सूर्य कहते हैं। धीरे धीरे ये अवशेष गुरुत्वाकर्षण के कारण एक दुसरे से जुड़ने लगे और विशाल रूप लेने लगे जो आगे चलकर ग्रहों में बदल गए।
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गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों वाले या ठोस सतह वाले ग्रह सूर्य के नजदीक थे और गैसीय ग्रहों को सौर वायु द्वारा उनको दूर हटा दिया गया जिस कारण ये गैसीय ग्रह ठन्डे भी हैं। इस तरह नेब्युला विस्फोट के सिद्धांत के आधार पर सौरमंडल और मंगल ग्रह का भी जन्म हुआ।
मंगल ग्रह को इंग्लिश में मार्स (Mars) कहते हैं। मंगल की सूर्य से दूरी लगभग औसतन 225 मिलियन किलोमीटर है। मंगल अपने अक्ष पर 25.19 डिग्री झुका हुआ है। इसका अपने अक्ष पर घूर्णन काल 24 घंटे, 39 मिनट, 35 सेकंड है। मंगल पर एक वर्ष 687 दिनों का होता है अर्थात मंगल सूर्य की एक परिक्रमा 687 दिनों में पूरी करता है।
मंगल का रंग लाल है। मंगल सूर्य से दुरी के आधार पर चौथे स्थान पर है और ग्रहों के आकार के आधार पर मंगल दूसरा सबसे छोटा ग्रह है। यह पृथ्वी की तरह एक स्थलीय ग्रह है। इस ग्रह पर सतह के साथ साथ बर्फीले पहाड़, रेगिस्तान, ज्वालामुखी इत्यादि भी हैं जिनको देखने से पृथ्वी का आभास होता है।
मंगल का लाल रंग मंगल पर उपलब्ध भरपूर मात्र में लौह खनिज है। इस लौह खनिज पर जंग लगने के कारण मंगल का वातावरण और उसकी मिटटी का रंग लाल दिखाई देता है। पहले माना जाता था की मंगल की सतह पर जल तरल अवस्था में है लेकिन मंगल के अध्ययन के लिए भेजे गए अन्तरिक्ष यान द्वारा इस बात के प्रमाण नहीं मिले और यह बात सिद्ध नहीं हो पाई। लेकिन मंगल को अब भी पृथ्वी के विकल्प के रूप में देख जाता है।
वैज्ञानिकों का मानना है की प्रारंभ में मंगल पर पानी उपस्थित था लेकिन किसी क्षुद्र ग्रह के मंगल के साथ टकराने से मंगल के वातावरण में उथल-पुथल हुई और पानी भांप बनकर अन्तरिक्ष में उड़ गया। और कुछ पानी मंगल की क्रस्ट में चला गया जो ज्वालामुखी के द्वारा बाहर आ रहा है।
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मंगल पर पानी गरम फँवारों के रूप में फूट रहा है और दक्षिण ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ कम हो रही है यह पुष्टि भी भेजे गए अन्तरिक्ष यानों द्वारा की गई है। क्षुद्र ग्रह के टकराने से मंगल की सतह में एक विशालकाय गद्दा या खाई बन गई है। इस खाई को मंगल की सतह पर साफ़ साफ़ देखा जा सकता है। यह पृथ्वी की सबसे बड़ी खाई से भी अत्यधिक बड़ी है।
सौरमंडल का सबसे ऊँचा पर्वत जिसका नाम ओलम्पस मोंस है मंगल ग्रह पर ही स्थित है। मंगल ग्रह की भौतिक विशेषताओं के अलावा मंगल पर मौसम परिवर्तन और उसका घूर्णन पृथ्वी के समान है इसलिए मंगल पर जीवन संभव होने की कल्पना हमेशा की जाती हैं इस पृथ्वी का श्रेष्ठ विकल्प माना जाता है। मंगल पर पूरे ग्रह को ढक देने वाले विशाल तूफ़ान उठते रहते हैं।
माना जाता है की मंगल पर मौजूद ज्वालामुखी निष्क्रिय हैं। मंगल ग्रह को हम धरती से नंगी आँखों से भी देख सकते हैं।
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संरचना
मंगल ग्रह का लाल रंग मंगल पर मौजूद लौह ऑक्साइड (फेरिक ऑक्साइड) की वजह से है जिसे हेमेटाईट या जंग लगे लोहे के रूप में जाना जाता है। इसका मतलब है मंगल पर लौह धातु प्रचुर मात्र में है।
इसके साथ साथ मंगल पर और भी बहुत धातुएं हैं। मंगल पर ऑक्सीजन और सिलिकॉन युक्त खनिज पदार्थ, धातु व् अन्य बहुत तत्त्व मौजूद हैं। ये सब मंगल ग्रह की ऊपरी चट्टान बनाते हैं। मंगल की सतह सिलिका से संपन्न थोलेइतीक बेसाल्ट से बनी हुई है। लौह ऑक्साइड के धूल के कणों ने मंगल की ज्यादातर सतह को ढँक रखा है।
नासा का भेजा हुआ इनसाइट लेंडर जिसको मंगल ग्रह का अध्ययन करने के लिए भेजा था, उसने मंगल पर आने वाले भूकम्पों का अध्ययन किया और मंगल की क्रस्ट, मेंटल और कोर की जानकारी दी। इनसाइट लेंडर ने मंगल की सतह के 41 मील नीचे तक की परतों के सबूत प्राप्त किये।
मंगल पर आने वाले भूकम्पों के आँकड़ो की सहायता से मंगल की भू-पर्पटी पर मौजूद खनिजों और धातुओं का पता चला। मंगल की पर्पटी पर प्रचुर मात्र में पोटेशियम, मेगनीसियम, कैल्शियम, एल्युमीनियम और लोहा मौजूद है। सौरमंडल में मंगल ग्रह की विशेष स्थिति के कारण मंगल की और भी बहुत रासायनिक विशेषताएँ हैं। फोस्फोरस, सल्फर और क्लोरिन जैसे कम क्वथनांक बिंदु वाले तत्व भी मंगल ग्रह पर बहुतायत में पाए जाते हैं।
फिनिक्स लेंडर के प्रमाणों के आधार पर मंगल की मिट्टी में सोडियम, क्लोराइड, पोटासियम और मेगनीसियम शामिल हैं जिससे मंगल की मिट्टी के क्षारीय होने का पता चलता है। मंगल की सतह पर जल नहीं है जिसका मुख्य कारण है निम्न वायु दाब लेकिन दो ध्रुवीय चोटियाँ ऐसे दिखती हैं जैसे जल से बनी हों।
अगर दक्षिण ध्रुव की बर्फीली छोटी की बर्फ़ पिघल जाये तो मंगल की 11 प्रतिशत सतह को ढँक लेगी। फिनिक्स लेंडर ने मंगल की उथली भूमि का सीधा निरीक्षण किया जिससे पता लगा की किसी समय में मंगल की सतह पर जल विद्यमान रहा है।
मंगल पर जीवन की सम्भावनाएँ
मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं में सबसे पहले यही सवाल उठता है की, क्या मंगल ग्रह पर पानी है। कहने को तो मंगल ग्रह पर जीवन की सम्भावनाएँ होने के लिए पृथ्वी के विकल्प के रूप में देखा गया है, लेकिन मंगल ग्रह पर ऑक्सिजन और जल के होने की बात से अभी हम अनजान हैं।
इसके साथ साथ मंगल पर तीव्र गति वाले तूफ़ान समय समय पर आते रहते हैं। मंगल पर ज्वालामुखियों भी बहुत आते रहते हैं। मुख्यतः जहाँ पानी होता है वही पर जीवन संभव होता है। मंगल पर पानी को तरल रूप में रखने के लिए मंगल का वायुमंडलीय दाब अपर्याप्त है। मंगल पर चुम्बकीय क्षेत्र की कमी है और मंगल के वायुमंडल में सघनता की कमी है जिसके कारण सौर वायु का अवरोध नहीं हो पाता।
वैज्ञानिकों का सुझाव है की कभी पहले मंगल पर जीवन संभव था, लेकिन इस बात को स्पष्ट और निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस बात के कोई प्रमाण अब तक मिले नहीं हैं सिर्फ आशंकाएँ बताई जा रही हैं। रहने के लिए आधार के रूप में मिट्टी के पोषक तत्त्व मंगल पर हैं लेकिन पैरा-बैंगनी किरणों को रोकना भी बहुत आवश्यक है जो मंगल पर संभव नहीं है।
मंगल ग्रह के चंद्रमा की संख्या कितनी है ?
फोबोस और डिमोज नाम के दो प्राकृतिक उपग्रह हैं मंगल ग्रह के। इन उपग्रहों की कक्षा मंगल के बहुत करीब है इसलिए इनको ऐसे क्षुद्र ग्रह भी कहा गया है जिनको मंगल ने पकड़ के रखा हुआ है।
इन दोनों उपग्रहों में से फोबोस ज्यादा नज़दीक है और डिमोज से बड़ा है। यूनानी की पुरानी कथाओं में एरेस (युद्ध का देवता) के पुत्रों फोबोस और डायमाज के नाम पर इन उपग्रहों का नाम रखा गया है। इन उपग्रहों का शाब्दिक अर्थ भय है। चंद्रमा की अपेक्षा इनकी कक्षा कुछ अलग दिखाई देती है।
फोबोस पश्चिम में उदय होकर, पूर्व में अस्त हो जाता है। उसके बाद केवल 11 घंटे पश्चात फिर से उदय होता है। डायमोज फोबोस के विपरीत पूर्व में उदय होता है धीरे धीरे और 2.7 दिन लगाकर पश्चिम में अस्त हो जाता है। इसकी भ्रमण और घूर्णन अवधि आपस में मिलती हैं।
मंगल की घूर्णन दिशा की तरफ ही घूमते हुए यह धीरे धीरे अस्त हो जाता है उसके पश्चात फिर उदय होने में ज्यादा समय लेता है। मंगल ग्रह के ज्वारीय बल के कारण फोबोस की कक्षा छोटी होती जा रही है जिसके कारण माना जा रहा है की तक़रीबन 5 करोड़ वर्ष बाद फोबोस या तो छल्लों के रूप में मंगल के चारों तरफ बिखर जायेगा या मंगल से टकराकर नष्ट हो जायेगा।
मंगल ग्रह के 2 उपग्रह हैं। इसकी दूरी मंगल ग्रह से बहुत कम है इसलिए इन्हें क्षुद्र ग्रह भी कहा जाता है।