गुरूवार, मार्च 16, 2023

मौलिक अधिकार – परिभाषा, इतिहास, विशेषताएँ, सम्पूर्ण जानकारी।

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मौलिक का मतलब मूल, वास्तविक, या असली होता है। इसलिए जो अधिकार किसी भी व्यक्ति की मूलभूत सुविधाओं से जुड़े होते हैं, उन्हें मौलिक अधिकार कहते हैं। ‘Maulik adhikar kise kahate hain‘ विषय पर ज़्यादा जानकारी के लिए आप नीचे पढ़ सकते हैं।

मौलिक अधिकार – Maulik Adhikar

मौलिक अधिकार व्यक्ति की उन आवश्यकताओं से सम्बंधित हैं जो की मूलभूत हैं, जिनके बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति के कुछ आधारभूत अधिकार होते हैं जिनके बिना व्यक्ति के सम्मान-पूर्वक जीवन व उसके विकसित व्यक्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसलिए ही इन अधिकारों को मौलिक  या आधारभूत अधिकार कहा गया है।

  • इन अधिकारों को संविधान में शामिल किया गया है तथा इनमें परिवर्तन सिर्फ संविधान में संसोधन करने की प्रक्रिया के तहत ही किया जा सकता है और किसी भी तरह इनमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता है
  • मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा ही लागू किया जाता है और इन अधिकारों की रक्षा करना भी संविधान का ही उत्तरदायित्व है
  • ये अधिकार समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सामान मिलते हैं
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान है
  • मौलिक अधिकार व्यक्ति के राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक सब पक्षों के विकास के लिए आवश्यक है, इनके अभाव से व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधा उत्पन्न हो जाती है
  • मौलिक-अधिकार संवैधानिक अधिकार हैं, इनके हनन होने की स्थिति में व्यक्ति न्यायालय की शरण में जा सकता है क्योंकि मौलिक-अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्राप्त है

पढ़ें: मौलिक कर्तव्य

मौलिक अधिकार की परिभाषा – maulik adhikar kise kahate hain

अधिकार की परिभाषा
मौलिक अधिकार की परिभाषा

मौलिक अधिकार की परिभाषा: मौलिक अधिकार वो आधारभूत या मूलभूत अधिकार होते हैं जो व्यक्ति के सम्मान-पूर्वक जीवन के लिए आधारभूत या मूल अधिकार हैं, जिनको संविधान द्वारा प्रदान किया जाता है और व्यक्ति के इन अधिकारों में कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता यहाँ तक की राज्य भी नहीं। इनमें सिर्फ संविधान संसोधन के द्वारा ही परिवर्तन किया जा सकता है इसके अलावा और कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है जिससे मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप किया जा सके।

मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान में प्रावधान बनाये गए हैं, सरकार का कोई भी ऐसा अंग नहीं है जो इन अधिकारों के विरूद्ध कोई भी कदम उठा सके।

मौलिक अधिकारों का इतिहास – History of Molik adhikar

आज के समय में मौलिक-अधिकारों को संविधान में शामिल करके लिखित रूप दे दिया गया है, और संविधान द्वारा ही मौलिक अधिकारों को संरक्षण दिया जाता है। लेकिन पहले के समय में इन अधिकारों को प्राकृतिक या जन्मजात अधिकार कहा जाता था।

उदाहरण के लिए समझें तो जैसे समान व्यवहार का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और बाक़ी सब मौलिक-अधिकार ऐसे हैं जिनपे नजर डालें तो हम पायेंगे की व्यक्ति को जन्म लेते ये अधिकार मिल जाने चाहिए. इसलिए ही इनको पहले हम प्राकृतिक या जन्मजात अधिकार के कहते थे।

सर्वप्रथम अमेरिका ने मौलिक-अधिकारों को संविधान में शामिल किया, उसके बाद जर्मनी ने 1919 में तथा इसी प्रकार आयरलैंड ने 1922 और रूस ने 1936 में मौलिक-अधिकारों को अपनाया। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद भारत में भी संविधान सभा ने 1928 में आई नेहरु कमेटी की मांगों पर ध्यान देते हुए कुछ मूलभूत अधिकारों को संविधान में शामिल किया और उनकी रक्षा सुनिश्चित करके इन अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा गया।

Emblem of India

भारत में मौलिक अधिकारों पर एक नजर

दुनिया के सभी आधुनिक संविधानों में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। लेकिन जितना विस्तृत रूप से भारत के संविधान में मौलिक संविधान का उल्लेख किया है उतना दुनिया के किसी भी संविधान में नहीं मिलता है। इसलिए ही भारतीय संविधान के अध्याय 3 को हम भारत का अधिकार पत्र कहते हैं। यह अधिकार पत्र ही मौलिक अधिकारों के संदर्भ में प्रथम लिखा हुआ दस्तावेज़ है। इस अधिकार पत्र को इनका का जनक भी कहा जा सकता है।

इस पत्र से ही अंग्रेजों ने 1215 ईसवी में इंग्लैंड सम्राट जॉन से वहाँ के नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों की सुरक्षा मिली थी। इस अधिकार पत्र के बाद बिल ऑफ राइट्स ( Bill of Rights) नाम का दस्तावेज़ जो की 1689 में लिखा गया जिसमें व्यक्तियों को दिये सब अधिकारों को शामिल किया गया।

भारतीय संविधान को तैयार करने के समय इन अधिकारों के विषय में पहले से ही एक पृष्ठभूमि उपलब्ध थी। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से ही संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों को संविधान में शामिल किया। भारत के संविधान में इन अधिकारों की कोई परिभाषा नहीं दी है।

भारतीय संविधान में अधिकतर प्रावधान, कानून या विधि दूसरे देशों के संविधान से लिए गए हैं, इसी तरह मौलिक अधिकारों को भी भारतीय संविधान में संयुक्त राज्य अमेरिका से लिया गया है।

मौलिक अधिकारों की विशेषताएं – Maulik Adhikar ki Visheshta

9 मुख्य मौलिक अधिकार की विशेषता हैं और Maulik adhikaron ki visheshtaon ka varnan नीचे दिया गया है:-

  • मौलिक-अधिकार देश में समानता का प्रसार करते हैं।
  • सभी मौलिक-अधिकार राज्य के विरुद्ध मिलते हैं, लेकिन इनमें से कुछ अधिकार व्यक्तियों के विरुद्ध भी मिले हुए हैं। जैसे-अस्पृश्यता पर रोक, लिंग, जन्म, जाति या धर्म के आधार पर पक्षपात पर रोक, बाल मज़दूरी पर रोक, आदि।
  • व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष (राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक या आर्थिक आदि) में समानता को बढ़ावा देना
  • अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा मौलिक-अधिकारों में निहित है
  • किसी भी व्यक्ति, वर्ग या सरकार के किसी भी अंग द्वारा मौलिक-अधिकारों में हस्तक्षेप करना संभव नहीं
  • मौलिक-अधिकारों का संविधान द्वारा संरक्षण
  • मौलिक-अधिकारों को कुछ समय के लिए निलंबन किया जा सकता है (आपातकाल की स्थिति में) लेकिन इनको समाप्त नहीं किया जा सकता
  • आपात काल के दौरान बोलने की स्वतन्त्रता जैसे कुछ अधिकार अपने आप ही स्थगित हो जाते हैं जबकि अन्य मौलिक-अधिकार राष्ट्रपति के आदेश से स्थगित होते हैं। आपात काल के दौरान भी अपराधों हेतु दोष सिद्धि के विषय में संरक्षण तथा प्राण और शारीरिक स्वतन्त्रता का संरक्षण वाले ये दो अधिकार व्यक्ति को मिलते हैं
  • मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण में जा सकते हैं

भारत में मौलिक अधिकार – Bharat me Maulik Adhikar

भारतीय संविधान जो की दुनिया का सबसे बड़ा लिखित और बड़ा संविधान है, इसमें जब मौलिक-अधिकारों को शामिल किया गया तब शुरुआत में मौलिक-अधिकारों की संख्या 7 थी। भारतीय संविधान में मौलिक-अधिकारों का उल्लेख संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक मिलता है। सन 1978 में 44वें संविधान संसोधन द्वारा “संपत्ति का अधिकार” को मौलिक-अधिकारों में से हटा दिया गया, तब से लेकर अब तक भारत में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 हैं।

fundamental rights in hindi

6 मौलिक अधिकार – 6 Maulik Adhikar

  1. समानता का अधिकार
    • कानूनके समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
    • लिंग, धर्म, जाति, मूल-वंश या जन्म के आधार पर भेदभाव के समक्ष समानता (अनुच्छेद 15)
    • सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16)
    • अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद 17)
    • उपाधियोंका अंत (अनुच्छेद 18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
    • अभिव्यक्ति आवागमन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)
    • अपराधों के लिए दोष सिद्धि सम्बंधित संरक्षण (अनुच्छेद 20)
    • जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)
    • गिरफ़्तारी नज़रबंदी के विरूद्ध संरक्षण (अनुच्छेद 22)
  3. शोषणके विरूद्ध अधिकार
    • तस्करी व जबरन श्रम के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23)
    • बाल-श्रम पर प्रतिबन्ध (अनुच्छेद 24)
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
    • अपने धर्म अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)
    • अपने धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26)
    • धार्मिक प्रचार के लिए कराधान नहीं (अनुच्छेद 27)
    • संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में हाजिर होने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28)
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
    • अल्पसंख्यकोंकी रक्षा और संरक्षण (अनुच्छेद 29)
    • शैक्षणिक संस्थानों में अल्पसंख्यकों को प्रशासन का अधिकार (अनुच्छेद 30)
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
    • मौलिक-अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायालय (अदालत) में जाने का अधिकार।

साधारण और मौलिक अधिकारों में अंतर

  • साधारण अधिकार अधिनियमों द्वारा राज्य लागू करता है जबकि मौलिक-अधिकारों को संविधान लागू करता है तथा संरक्षित करता है
  • साधारण अधिकारों को समाप्त किया जा सकता है और इनको कम भी किया जा सकता है जबकि मौलिक-अधिकारों को समाप्त या कम नहीं किया जा सकता
  • साधारण अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्राप्त नहीं है जबकि मौलिक-अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्रदान किया गया है
  • मौलिक-अधिकारों का उल्लंघन या हनन होने पर व्यक्ति उच्चतम या उच्च न्यायालय में याचिका दर्ज कर सकता है जबकि साधारण अधिकारों की स्थिति में व्यक्ति निम्न स्तर के न्यायालय में ही जा सकता है
  • मौलिक-अधिकारों को संविधान की आत्मा कहा गया है इसलिए ये अधिकार साधारण अधिकारों की अपेक्षा सर्वोच्च हैं

मौलिक अधिकारों का रक्षक कौन होता है? – maulik adhikaron ka rakshak kise kaha jata hai?

स्पष्ट शब्दों में हम मौलिक-अधिकारों का रक्षक उच्चतम या उच्च न्यायालय को कह सकते हैं। संविधान और संविधान की प्रभुता की रक्षा का उत्तरदायित्व उच्चतम न्यायालय का है। उच्चतम न्यायालय के पास संविधान की रक्षा के लिए वो सब सर्वोच्च शक्तियां हैं जिनसे वो संविधान और संविधान में प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक-अधिकारों की रक्षा कर सके।

यदि सरकार और प्रशासन या सरकार का कोई भी अंग मौलिक-अधिकारों का हनन करता है तो व्यक्ति आर्टिकल 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय तथा आर्टिकल 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में जा सकता है।

इसलिए मौलिक-अधिकारों का रक्षक उच्चतम और उच्च न्यायालय दोनों ही हैं। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय, संसद के किसी भी सदन या राज्यों के किसी भी सदन द्वारा निर्मित कोई भी विधि अगर संविधान के विरूद्ध होगी तो उसको अवैध घोषित कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

हमें उम्मीद है कि आप यह अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि ‘maulik adhikar kise kahate hain‘ इस लेख में हमने आपको 6 Maulik Adhikar के बारे में बताया। इसके साथ-साथ साधारण और मौलिक अधिकारों में अंतर और मौलिक अधिकारों की विशेषताएं इत्यादि अच्छी प्रकार से समझाई गई हैं। भारत में 6 मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों को दिए जाते हैं। यदि आपका इससे संबंधित कोई सवाल है तो आप हमें लिख सकते हैं।

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