मौलिक का मतलब मूल, वास्तविक, या असली होता है। इसलिए जो अधिकार किसी भी व्यक्ति की मूलभूत सुविधाओं से जुड़े होते हैं, उन्हें मौलिक अधिकार कहते हैं।
मौलिक अधिकार वो मूलभूत अधिकार होते हैं, जो व्यक्ति के सम्मान-पूर्वक जीवन का आधार हैं। यह संविधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं। व्यक्ति के इन अधिकारों में कोई भी दखलअंदाजी नहीं कर सकता, यहाँ तक की राज्य भी नहीं। इनमें सिर्फ संविधान संसोधन के द्वारा ही बदलाव किया जा सकता है।
इनके संरक्षण के लिए संविधान में प्रावधान बनाये गए हैं। सरकार का कोई भी ऐसा अंग नहीं है, जो इन अधिकारों के विरूद्ध कोई भी कदम उठा सके।
मौलिक अधिकार क्या है?
यह व्यक्ति की उन आवश्यकताओं से सम्बंधित हैं जो की मूलभूत हैं, जिनके बिना व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति के कुछ मूलभूत अधिकार होते हैं, जिनके बिना व्यक्ति के सम्मान-पूर्वक जीवन व उसके विकसित व्यक्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसलिए ही इन अधिकारों को मौलिक या आधारभूत अधिकार कहा गया है।
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- इन अधिकारों को संविधान में शामिल किया गया है तथा इनमें परिवर्तन सिर्फ संविधान में संसोधन करने की प्रक्रिया के तहत ही किया जा सकता है और किसी भी तरह से मौलिक अधिकार बदले नहीं किए जा सकते हैं।
- इन्हें देश के संविधान द्वारा ही लागू किया जाता है और इनकी रक्षा करना भी संविधान की जिम्मेदारी है।
- ये अधिकार समाज के हर व्यक्ति को सामान मिलते हैं।
- इनका उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान है।
- मौलिक अधिकार व्यक्ति के राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक सब पक्षों के विकास के लिए ज़रूरी है, इनके अभाव से व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में रुकावट पैदा होती है।
- यह संवैधानिक अधिकार होते हैं, इनके हनन होने की स्थिति में व्यक्ति न्यायालय की शरण में जा सकता है, क्योंकि मौलिक अधिकार को न्यायिक सुरक्षा प्राप्त है।
मौलिक अधिकार का इतिहास
आज के समय में मौलिक अधिकार को संविधान में शामिल करके लिखित रूप दे दिया गया है, और संविधान द्वारा ही इन्हें संरक्षण दिया जाता है। लेकिन पहले के समय में इन अधिकारों को प्राकृतिक या जन्मजात अधिकार कहा जाता था।
उदाहरण के लिए समझें तो जैसे समान व्यवहार का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और बाक़ी सब मौलिक अधिकार ऐसे हैं, जिनपे नजर डालें तो हम पायेंगे की व्यक्ति को जन्म लेते ही यह अधिकार मिल जाने चाहिए। इसलिए ही इनको पहले हम प्राकृतिक या जन्मजात अधिकार के कहते थे।
सर्वप्रथम अमेरिका ने मौलिक अधिकार को संविधान में शामिल किया, उसके बाद जर्मनी ने 1919 में तथा इसी प्रकार आयरलैंड ने 1922 और रूस ने 1936 में इनको अपनाया था। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद भारत में भी संविधान सभा ने 1928 में आई नेहरु कमेटी की मांगों पर ध्यान देते हुए कुछ अधिकारों को संविधान में शामिल किया गया। इनकी रक्षा सुनिश्चित करके इन अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा गया।
मौलिक अधिकारों की विशेषताएं
- यह अधिकार देश में समानता का प्रसार करते हैं।
- सभी मौलिक अधिकार राज्य के विरुद्ध मिलते हैं, लेकिन इनमें से कुछ अधिकार व्यक्तियों के विरुद्ध भी मिले हुए हैं। जैसे-अस्पृश्यता पर रोक, लिंग, जन्म, जाति या धर्म के आधार पर पक्षपात पर रोक, बाल मज़दूरी पर रोक, आदि।
- व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष (राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक या आर्थिक आदि) में समानता को बढ़ावा देना है।
- अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा इनमें निहित है।
- किसी भी व्यक्ति, वर्ग या सरकार के किसी भी अंग द्वारा इनमें हस्तक्षेप करना संभव नहीं है।
- संविधान द्वारा सुरक्षा प्राप्त है।
- इन्हें, कुछ समय के लिए निलंबन किया जा सकता है (आपातकाल की स्थिति में) लेकिन इनको समाप्त नहीं किया जा सकता।
- आपात काल के दौरान बोलने की स्वतन्त्रता जैसे कुछ अधिकार अपने आप ही स्थगित हो जाते हैं जबकि अन्य मौलिक-अधिकार राष्ट्रपति के आदेश से स्थगित होते हैं। आपात काल के दौरान भी अपराधों हेतु दोष सिद्धि के विषय में संरक्षण तथा प्राण और शारीरिक स्वतन्त्रता का संरक्षण वाले ये दो अधिकार व्यक्ति को मिलते हैं।
- मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण में जा सकते हैं।
साधारण और मौलिक अधिकारों में अंतर
- साधारण अधिकार अधिनियमों द्वारा राज्य लागू करता है जबकि मौलिक अधिकारों को संविधान लागू करता है, तथा संरक्षित करता है
- साधारण अधिकारों को समाप्त किया जा सकता है और इनको कम भी किया जा सकता है, जबकि इनको समाप्त या कम नहीं किया जा सकता
- साधारण अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्राप्त नहीं है जबकि मौलिक अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्रदान किया गया है
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन या हनन होने पर व्यक्ति उच्चतम या उच्च न्यायालय में याचिका दर्ज कर सकता है। जबकि साधारण अधिकारों की स्थिति में व्यक्ति निम्न स्तर के न्यायालय में ही जा सकता है
- मौलिक अधिकारों को संविधान की आत्मा कहा गया है, इसलिए ये अधिकार साधारण की अपेक्षा सर्वोच्च हैं
मौलिक अधिकार का महत्व
किसी भी देश के नागरिक का जीवन उस देश के मौलिक अधिकार पर काफी हद तक निर्भर करता है। इसी कारण इनका महत्व बहुत अधिक है, और इसे मासिक और नैतिक विकास के लिए भी बहुत जरूरी माना जाता है। भारत के संविधान में मौलिक अधिकार का महत्व अधिक है, और यह भारत के नागरिक का विकास करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है।
संबंधित कुछ बिंदु:-
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- अल्पसंख्यकों का विकास: पुराने समय से भारत देश में अल्पसंख्यकों का किसी न किसी प्रकार से अनादर किया जाता था। परंतु मौलिक अधिकार के कारण अल्पसंख्यकों का विकास हुआ है, और उनके शोषण में कमी आई है। इस प्रकार की सामाजिक बुराइयों को दूर करने और अल्पसंख्यकों का विकास करने में इनका महत्व बहुत महत्वपूर्ण रहा है।
- लोकतंत्र की सफलता: सभी नागरिकों को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार लोकतंत्र देश का एक जरूरी और आधारभूत स्तंभ होता है। मौलिक अधिकार किसी भी देश के लोकतंत्र को सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था को देश में बनाए रखने में मदद मिलती है।
- एक समान न्याय: इनके कारण देश में सभी नागरिकों को एक समान देखा जाता है, और यदि देश के किसी नागरिक को एक अधिकार है तो वह अधिकार देश के सभी नागरिकों को मिलता है। इससे देश की न्याय प्रणाली मजबूत होती है और सभी नागरिकों को एक समान न्याय मिलता है।
- विदेशी नागरिक के अधिकार में अंतर: भारतीय संविधान में इन अधिकारों को सिर्फ भारतीय नागरिक के लिए रखा गया है, जो भारतीय नागरिक को भारत देश में एक विशेष स्थान प्रदान करता है। भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय नागरिक और विदेशी नागरिक के अधिकार में अंतर मौजूद है।
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