हर कोई आपको Mutual Fund investement करने के लिए बोलता है, जो यह जानकारी रखता है कि Mutual Fund kya hai. अपने भी अनेकों बार इससे सम्बंधित विज्ञापनों को टीवी, अखबार या फिर ऑनलाइन देखा होगा। इस लेख में आप समझेंगे Mutual Fund के बारे में कि आखिर Mutual Fund kya hai और Mutual Fund का गठन कैसे हुआ और Mutual Fund ke prkaar.
Mutual Fund kya hai?
Mutual Fund विभिन्न निवेश के तरीकों में से एक है। Mutual Fund में रिस्क कम है और लाभ ज्यादा है। म्यूचुअल फंड में बहुत सारे निवेशकों के निवेश किये गए धन को इकट्ठा करके एक फंड बनाते बनाते हैं। फिर इस फंड को फंड मेनेजर द्वारा अलग – अलग स्कीमों या प्लानों में निवेश किया जाता है।
प्रत्येक निवेशक को उसके निवेश के बदले में उसके निवेश के अनुपात में यूनिट दी जाती हैं। इन यूनिटों को खरीदकर या बेचकर निवेशक लाभ कमा सकते हैं। Mutual Fund में बनाये गए फंड को निवेश करने के सब कार्य फंड मेनेजर करता है। फंड मेनेजर निवेशकों की प्राथमिकताओं के अनुसार उस फंड को निवेश करता है, और लाभ होने पर निवेशकों के निवेश के अनुपात में निवेशकों को दी गई यूनिटों के आधार पर उस लाभ को निवेशकों में बाँट देता है।
फंड में लाभ या हानि का हिसाब रखने का काम फंड मेनेजर का ही होता है। निवेशकों को निवेश के विषय में कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि निवेश कब करना है, कहाँ करना है, कब शेयर खरीदें कब बेचें ये सब कार्य फंड मेनेजर करता है। यूटीआई एएमसी (UTI AMC) भारत में सबसे पुरानी Mutual Fund company है।
Mutual Fund को एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) द्वारा प्रबंध किया जाता है। निवेशक को दिये जाने वाले लाभांश में से AMC शुल्क, एजेंट के कमीशन और प्रशासनिक खर्च इत्यादि शुल्क काट कर लाभांश निवेशक में बांटा जाता है।
Mutual Fund में निवेश करने के लिए योग्यता
प्रत्येक भारतीय निवासी और NRI भी इसमें निवेश कर सकते हैं। इसमें नाबालिक बच्चे (18 से कम आयु के बच्चे) के नाम से भी निवेश किया जा सकता है लेकिन उसके लिए निवेशक को अपनी जानकारी देनी होंगी, और बच्चे के नाम से उसके खाते का प्रबंध निवेशक ही करेगा जब तक वह बच्चा 18 वर्ष का नहीं हो जाता।
Mutual Fund में हम 500 रूपए जैसी न्यूनतम धन राशी भी निवेश कर सकते हैं। Mutual Fund में सिमित दायित्व साझेदारी (LLP, Limited Liability Partnership), हिन्दू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family), साझेदारी फर्म, कंपनी और ट्रस्ट सब निवेश कर सकते हैं।
Mutual Fund के प्रकार
Mutual Fund kya hai के साथ इसके प्रकार के बारे में जानना और समझना बहुत जरूरी है। यदि आप जानते हैं कि Mutual Fund kya hai और इसके कितने प्रकार हैं तो आप आसानी से म्युचुअल फंड में पैसा लगाकर पैसे बना सकते हैं।
म्यूचुअल फंड को हम निम्नलिखित तीन आधारों पर वर्गीकृत कर सकते हैं:
- एसेट क्लास के आधार पर
- संरचना के आधार पर
- फंड प्रबंध के आधार पर
एसेट क्लास के आधार पर फंड को एक या एक से अधिक जगहों या Assets में निवेश किया जाता है। एसेट क्लास के आधार पर म्यूचुअल फंड के तीन प्रकार हैं – Debt Mutual Fund, Equity Mutual Fund और Hybrid Mutual Fund।
- Debt Mutual Fund: इसमें फंड को Debt Instrument Fund में निवेश किया जाता है। Debt Instrument Fund में हम Debentures, Bonds और Certificate of Deposit जैसे Instrument को शामिल करते हैं। इनमे निवेश करने से Equity Mutual Fund की तुलना में रिस्क बहुत कम होता है, लाभ भी Equity की तुलना में कम होता है लेकिन लाभ की दर निश्चित होती है। इसमें रिस्क कम इसलिए होता हैं क्योंकि इन फंड वाले निवेशकों को कम्पनी के लाभांश में से भुगतान करने में प्राथमिकता दी जाती है।
- Junk Bond Scheme: इस स्कीम में कॉर्पोरेट बांड्स में निवेश किया जाता है। इस स्कीम में Gilt Fund Scheme कि तुलना में रिस्क बहुत ज्यादा होता है लेकिन लाभ भी बहुत ज्यादा होता है। यह लाभ रिस्क ज्यादा होने के कारण ही होता है।
- Gilt Fund: इस स्कीम में फंड को सरकार की प्रतिभूतियों (Government Securities) में ही निवेश किया जाता है। इस स्कीम में रिस्क ना के बराबर होता है। क्योंकि सरकार से ज्यादा भरोसेमंद कुछ नहीं होता। इस स्कीम में निवेश करने में फंड स्कीम को नुकसान हो या फायदा लेकिन निवेशक को लाभ अवश्य मिलता है।
- Fixed Maturity Plan: ये स्कीम किसी बैंक FD के जैसे ही होती है। इसमें स्कीम का परिपकव्ता समय पहले से ही निश्चित कर दिया जाता है। इस स्कीम में सामान्यतः बैंक FD से ज्यादा लाभ मिलता है। इस स्कीम में फंड को कोमर्सिअल पेपर, कॉर्पोरेट बांड्स और Certificate of Deposit इत्यादि में निवेश किया जाता है।
- Liquid Scheme: इस स्कीम में हम मुद्रा बाजार (Money Market Instrument) में निवेश करते हैं। इसमें हम जब चाहें तब अपना पैसा वापिस निकाल सकते हैं। इस स्कीम में अल्प समय के लिए निवेश (Short Term Investment) निवेश करना फायदेमंद रहता हैं। इसमें उपरोक्त वर्णित Debt Mutual Fund की तीनों स्कीमों से कम लाभ होता है लेकिन इसके साथ साथ जोखिम भी कम होता है। इस स्कीम में उन वित्तीय प्रतिभूतियों (Financial Instrument) को शामिल किया जाता है जिनके जरिए कम्पनियाँ अल्प समय के लिए पैसा उधार लेती हैं। इस स्कीम में हम चाहे तो मात्र 3 दिन के लिए भी निवेश कर सकते हैं। इसमें अधिकतम 91 दिन लिए निवेश कर सकते हैं। इसमें Term Deposit, Treasury Bill, Commercial Paper और Certificate of Deposit में निवेश किया जाता है।
- Equity Mutual Fund: इस प्रकार के म्यूचुअल फंड में Equity में निवेश किया जाता है। इसलिए यह Equity Mutual Fund कहलाता है। इसमें फंड मैनेजर फंड को Stock Market में निवेश करता है। इससे निवेशक को लाभ ज्यादा मिलता है लेकिन इसमें जोखिम भी उतना ही उठाना पड़ता है। अधिक लाभ के चक्कर में निवेशक यह जोखिम उठाता है और इसमें निवेश करता है। निवेश करने के लिए यह सबसे लोकप्रिय है।
- लार्ज कैप फंड। ब्लूचिप फंड (Large Cap Fund or Bluechip Fund): इस स्कीम में बड़ी कंपनियों में निवेश किया जाता है। ऐसी कंपनियों में निवेश किया जाता है जिनकी बाजार पूंजी 1 लाख करोड़ से अधिक होती है। ऐसी कंपनियों मिनी निवेश करने में जोखिम तो कम रहता है, लेकिन विकास की संभावनाएं नहीं होती क्योंकि ये कम्पनियाँ पहले से ही सफल कंपनिया होती हैं। इन कंपनियों का संगठन वित्तीय संकट के समय भी टिका रहता है, इस स्थिति में भी इन कंपनियों के पास पैसा उपलब्ध रहता है। ये कम्पनियाँ अपने सेक्टर की सबसे बड़ी कम्पनियाँ होती हैं। इन बड़ी प्रतिष्ठित कंपनियों में निवेश करने से लाभ निरंतर मिलता रहता है लेकिन लाभ में बढ़ोतरी नहीं होती है। जिन निवेशकों को जोखिम नहीं उठाना है उनके लिए इन कंपनियों की equity में निवेश करना बेहतर रहेगा। इन कंपनियों के उदाहरण हैं – रिलायंस, एचयुएल, ब्रितानिया इत्यादि।
- मिड कैप फंड (Mid Cap Fund): इस स्कीम में उन कंपनियों में निवेश किया जाता है जिनकी बाजार पूंजी 5 हजार करोड़ से ज्यादा होती है लेकिन 1 लाख करोड़ से कम होती है। ये वह कंपनी होती हैं जो बाजार में अच्छे से स्थापित हो चुकी होती हैं और विकास के लिए अग्रसर या प्रयासरत होती हैं। इन कंपनियों में निवेश करने से लाभ में निरंतरता तो बनी रहती है लेकिन लाभ में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होती है और रिस्क भी ज्यादा नहीं होता है।
- स्मॉल कैप फंड (Small Cap Fund): जिसमें स्मॉल बाजार पूंजी वाली कंपनी में निवेश किया जाये उसे स्मॉल कैप फंड कहते है। इसमें 5 हजार करोड़ तक की बाजार पूंजी वाली कंपनियों में निवेश किया जाता है। ये वह कम्पनियाँ होती हैं जो अपने विकास के शुरुआती दौर में होती हैं। इन कंपनियों के डूबने की सम्भावना भी रहती है। इसलिए इस फंड में निवेश करने में बहुत ज्यादा रिस्क होता है। इसके साथ साथ इन कंपनियों में निवेश करने से लाभ भी ज्यादा मिलता है क्योंकि ये कंपनिया खुद को स्थापित करने के लिए विकास के शुरूआती दौर में होती हैं और तेज गति से विकास करती हैं इसलिए लाभ में बढ़ोतरी बनी रहती हैं। इस फंड में निवेश करने के लिए हमें लम्बे समय तक निवेश करना पड़ता है।
- मल्टी कैप फंड (Multi Cap Fund): इस फंड में फंड मैनेजर निवेशक के पैसों को किसी निश्चित अनुपात में लार्ज कैप फंड, स्मॉल कैप फंड और मिड कैप फंड इन तीनों स्कीमों में निवेश करता है। इसमें निवेश करने से हमें संतुलित रिस्क उठाके संतुलित लाभ मिलता है। इसी विशेषता के कारण यह फंड निवेशकों को ज्यादा पसंद है। इस फंड का दूसरा नाम Diversify Equity Fund है। क्योंकि इसमें अलग अलग बाजार पूँजी वाली कंपनियों में निवेश किया जाता है।
- सेक्टर फंड (Sector Fund): इसमें फंड मैनेजर आपके फंड को किसी विशेष सेक्टर में ही निवेश करता है। इसमें निवेशक का रिस्क और लाभ दोनों ही उस सेक्टर के ऊपर निर्भर करते हैं जिस सेक्टर में निवेश किया गया है। अगर जिस विशेष सेक्टर में निवेश किया गया है वह नुकसान में हो तो निवेशक को भी नुक्सान उठाना पड़ेगा। विशेष सेक्टर से सम्बंधित कंपनियों के उदहारण हैं: Reliance Media & Entertainment Fund और SBI Pharma Fund
- फ्लेक्सी कैप फंड (Flexi Cap Fund): यह स्कीम भी मल्टी कैप फंड के आधार पर ही बनाई गई है। इसमें निवेशक अपने फंड को चुनने के लिए स्वतन्त्र या फ्लेक्सिबल होता है। इसमें 65 % हिस्सा equity या equity के बराबर फंड में रहता है। इसमें फंड मैनेजर की इच्छा के अनुसार लार्ज, मिड या स्मॉल किसी भी फंड में बिना किसी पूर्व निर्धारित सीमा के निवेश किया जा सकता है। इसमें मल्टी कैप फंड की तरह निश्चित आबंटन (Fixed Allocation) नियम नहीं हैं।
- ELSS Mutual Fund (Equity Linked Saving Scheme Mutual Fund): यह स्कीम एक equity आधारित स्कीम होती है। इसमें निवेशक को आय कर में बचत मिलती है। इस स्कीम में निवेशक का पैसा 3 साल तक के लिए लॉक हो जाता है। इस स्कीम में निवेशक को मिलने वाली आय पर आयकर अधिनियम के तहत 80C सेक्शन में 1.5 लाख तक की आय पर टैक्स से छूट मिलती है। टैक्स में छूट प्राप्त करने के लिए निवेशक इस स्कीम की तरफ आकर्षक होते हैं।
- लाभांश पैदावार स्कीम (Dividend Yield Scheme): इसमें फंड को सुरक्षित, स्थाई और कम परिवर्तित होने वाली कंपनियों में निवेश किया जाता है। कंपनी को लाभ होता है तो कंपनी लाभ का कुछ हिस्सा लाभांश के रूप में कंपनी के शेयर धारकों (Share। Stock Holders) को बाँट दिया जाता है। कंपनी यह लाभांश बांटने के लिए बाध्य नहीं है। लाभांश बांटने का निर्णय कंपनी का निदेशक मंडल (Board of Director) लेते हैं।
- Thematic फंड: इसमें फंड को किसी Theme में निवेश किया जाता है। जैसे HDFC Housing Opportunity Fund में निवेश करना। इस फंड में पेंट कंपनी, सीमेंट कंपनी और कंस्ट्रक्शन की कंपनी जैसी कम्पनियाँ जो की Theme से सम्बन्ध रखती हैं में निवेश किया जाता है।
- Hybrid Mutual Fund: इस फंड में equity और debt दोनों में निवेश किया जाता है। इस फंड में equity और debt दोनों का हिस्सा होता है। इस फंड का मुख्य काम निवेशक को संतुलित लाभ देना है। इस फंड में equity फंड की तुलना में कम जोखिम रहता है और debt फंड की तुलना में ज्यादा जोखिम रहता है।
- Debt Oriented Hybrid Fund: इस प्रकार के फंड में 60 % हिस्सा debt फंड में निवेश किया जाता है। बाकी हिस्सा equity में निवेश किया जाता है। Debt का हिस्सा अधिक होने की वजह से इस फंड में रिस्क थोडा कम होता है और लाभ भी कम ही होता है।
- Equity Oriented Hybrid Fund: इस फंड में 65 % धन राशि equity में निवेश की जाती है और शेष राशि debt में निवेश की जाती है। equity उन्मुखी होने की वजह से और equity का हिस्सा ज्यादा होने के कारण उस फंड से लाभ थोडा ज्यादा मिलता है लेकिन जोखिम भी इसमें ज्यादा होता है।
- Arbitrage fund: इसमें फंड को परिवर्तनीय बाजार में निवेश किया जाता है। इसमें स्टॉक को मुद्रा बाजार से कम मूल्य में खरीदकर derivative बाजार में अधिक मूल्य में बेच दिया जाता है। इस प्रकार इस फंड से पैसा कमाया जाता है। लेकिन इसमें लाभ की दर घटती बढती रहती है। और कई बारे इसमें जोखिम भी उठाना भी पड़ सकता है।
- Monthly Income Plan: इस योजना में फंड का 90 % हिस्सा debt में निवेश किया जाता है और शेष हिस्सा equity में निवेश किया जाता है। इसमें debt का हिस्सा ज्यादा होने के कारण इसमें फंड सुरक्षित तो रहता है लेकिन कुछ हिस्सा equity में भी निवेश होता है तो जोखिम इसमें भी होता है। लेकिन इसमें equity फंड की तुलना में जोखिम बहुत कम होता है।
- Balanced Fund: इसमें फंड को संतुलित रूप से निवेश किया जाता है। इसमें फंड को विभिन्न प्रकार की स्कीमों में निवेश किया जाता है। इसमें equity, बांड्स, debt और अन्य प्रकार की प्रतिभूतियों में संतुलित निवेश किया जाता है। इसलिए इस फंड में निवेशक को संतुलित जोखिम ही उठाना पड़ता है। लेकिन इसके नाम के जैसे फंड को 50 – 50 % debt और equity में निवेश नहीं किया जाता है। इसमें मुख्यतः equity का हिस्सा थोडा ज्यादा होता है इसलिए जोखिम भी सामान्य से थोडा ज्यादा रहता है।
Mutual Fund के प्रकार
संरचना के आधार पर Mutual Fund मुख्यतः 3 प्रकार का होता है जो निम्नलिखित है:
- Open Ended Fund: इसमें निवेशक कभी भी अपने फंड को खरीद और बेच सकता है। इसमें कंपनी बिना किसी सीमा के कितने भी यूनिट या शेयर जारी कर सकती है अर्थात इसमें यूनिट जारी करने की कोई सीमा नहीं होती है। बाजार में मुख्यतः इसी प्रकार के म्युचुअल फंड पाए जाते हैं।
- Close Ended Fund: इस प्रकार के फंड बहुत कम उपलब्ध हैं। क्योंकि ये फंड निवेशकों में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं। क्योंकि इस प्रकार के फंड को हम अपनी इच्छा के अनुसार कभी बेच और खरीद नहीं सकते हैं। इसमें निवेश करने के लिए हमें New Fund Offer (NFO) आने का इन्तेजार करना पड़ता है और इसी तरह इनको बेचने के लिए हमें इनकी परिपक्व्ता (Maturity) आने तक का इन्तेजार करना पड़ता है। इसमें यूनिट और शेयर्स की संख्या भी कंपनी अपनी इच्छा से जारी नहीं कर सकती क्योंकि इसमें यूनिट की संख्या पहले से ही निर्धारित कर दी जाती है जो की निश्चित होती है।
- Index Fund: इस प्रकार के फंड में स्टॉक बाजार के इंडेक्स में निवेश किया जाता है। इस प्रकार के फंड में निवेश करने के लिए फंड मैनेजर को ज्यादा कुछ सोचना नहीं पड़ता है। जिस अनुपात में स्टॉक इंडेक्स में होते हैं ठीक उसी अनुपात में फंड मैनेजर स्टॉक में फंड को निवेश करता है। HDFC Sensex Plan इस प्रकार के फंड का एक उदहारण है।
उपरोक्त वर्णित तीन प्रकार के फंडों के अलावा भी फंड हैं जो संरचना पर आधारित हैं, जैसे- सेक्टर फंड, इंटरवल फंड, सेक्टर फंड में किसी विशेष सेक्टर अच्छा प्रदर्शन करने वाले स्टॉक में निवेश किया जाता है जैसे – फार्मा सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर। Interval फंड बाजार में बहुत कम मिलते हैं या ना के बराबर मिलते हैं।
फंड प्रबंध के आधार पर मुख्यतः दो प्रकार के Mutual Fund हैं जो निम्नलिखित हैं :
- Actively Managed Fund: इस प्रकार में फंड से सम्बंधित सभी निर्णय फंड मैनेजर लेता है। कहा निवेश करना है, कब करना है, कितना करना है इस प्रकार के सब निर्णय फंड मैनेजर लेता है और इस प्रकार के फंड में फंड मैनेजर सक्रीय भूमिका निभाता है।
- Passively Managed Fund: इसमें फंड मैनेजर की कोई ख़ास भूमिका नहीं रहती है। इसमें फंड को किसी भी Index- SENSEX और nifty में निवेश कर दिया जाता है। उसके बाद इसमें निवेश पर लाभ पूर्ण रूप से उस इंडेक्स पर ही निर्भर रहता है।
Mutual Fund के फायदे
आज के समय में Mutual Fund में निवेश करना बहुत लोकप्रिय हो गया है। आज के भाग दौड़ के जीवन में किसी भी व्यक्ति के पास इतना समय या योग्यता या रुचि नहीं होती की वो अपने निवेश सम्बंधित कुछ सूचना इकट्ठी करे। Mutual Fund में AMC के Profesional fund मैनेजर होते हैं जो निवेशक के लिए कहा निवेश करना उचित रहेगा यह चुनाव करते हैं।
क्योंकि फंड मैनेजर की एक बड़ी टीम होती है जो निवेशक के लिए निवेश के अनेकों अवसरों की खोज करती है। जिसके माध्यम से निवेशक पैसे लगता है। Mutual में निवेश के लिए अनेकों स्कीम उपलब्ध होती हैं जिससे निवेशक को फंड का चुनाव करने में विविधता का सहयोग मिलता है।
- Mutual Fund में फंड मैनेजर के रूप में निवेशक को एक मार्ग दर्शक मिल जाता है। क्योंकि निवेश करने वाले व्यक्ति के पास पर्याप्त योग्यता, समय या रुचि में अभाव हो सकता है जिसके कारण वह अपने निवेश के सम्बन्ध में उचित निर्णय न ले सके। उस समय फंड मैनेजर निवेशक के पैसों को निवेशक की ज़रूरत के अनुसार निवेश करता है।
- Mutual Fund में निवेशक के लिए हर प्रकार की स्कीम, योजना या फंड उपलब्ध होते हैं जिससे की निवेशक को अपनी ज़रूरत के अनुसार स्कीम का चुनाव करने में आसानी होती है।
- Mutual Fund में हर प्रकार के फंड उपलब्ध होते हैं। अगर किसी को जोखिम नहीं उठाना हो तो यह Debt Mutual Fund में निवेश कर सकता है। अगर किसी को जोखिम उठाके ज्यादा लाभ प्राप्त करना है तो वो Equity Mutual Fund में निवेश कर सकता है।
- अगर किसी को कम समय के लिए निवेश करके लाभ लेना है तो वो Liquid Mutual Fund में निवेश कर सकता है और लम्बे समय के लिए निवेश के लिए भी बहुत योजनाएँ हैं जिनमें निवेशक निवेश कर सकता है
- टैक्स को बचने के लिए निवेशक ELSS (Equity Linked Saving Scheme) में निवेश कर सकता है।
- निवेश करने के बाद बहुत सारी वेबसाईट हैं जहां पर हम अपने निवेश पर नजर रख सकते हैं। हम अपने निवेश पर नजर रख के अपने फंड का प्रबंध कर सकते हैं। अगर किसी स्कीम में हमें नुक्सान हो रहा हो तो हम उसमे से पैसा निकालकर किसी दुसरे फायदेमंद स्कीम मैंने अपना निवेश कर सकते हैं।
- म्यूचुअल हमें निवेश के लिए विविधता प्रदान करता है।
- Mutual Fund में अगर फ्लेक्सिबल निवेश करना है तो निवेशक ओपन एंडेड फंड में निवेश कर सकता है। उसमें अपनी इच्छा के अनुसार कभी भी फंड को बेचा या ख़रीदा जा सकता है।
भारत में Mutual Fund
आज भी भारत में बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि Mutual Fund kya hai और किस प्रकार से इसमें निवेश किया जाता है। सभी देशों में अपनी एक अलग संस्था या बोर्ड होता है जो इसे संभालता है। भारत में SEBI और AMFI द्वारा Mutual Fund को विनियमित किया जाता है।
Mutual Fund को भारत में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Security and Exchange Board of India) और एसोसिएशन ऑफ Mutual Fund इन इंडिया (AMFI) द्वारा विनियमित होता है। भारत में अनेक Mutual Fund हैं जब कोई भी Mutual Fund कोई स्कीम या योजना लेके आता है बाजार में निवेश के लिए तो SEBI को Mutual Fund कंपनी या योजना को लेके आने वाले Fund House द्वारा उस योजना से सम्बंधित सब जानकारी उपलब्ध करवानी पड़ती हैं।
‘स्कीम ऑफ ऑफर डॉक्यूमेंट’ नाम के दस्तावेज द्वारा उस योजना से जुड़ी जानकारी SEBI को दी जाती हैं। इस दस्तावेज में जोखिम कारक, निवेश उद्देश्य, योजना सम्बंधित शुल्कों इत्यादि की जानकारी दी जाती है। योजना को संचालित करने के लिए ऑडिट ट्रान्सफर एजेंट, कस्टोडियन, एडवाइजरी, एजेंट कमीशन और ट्रस्टी शुल्क इत्यादि खर्चे लगते हैं जिनकी पूर्ण जानकारी ऑफर डॉक्यूमेंट में दी जाती है।
योजना में निवेश करने के लिए निवेश करने वाले को किस किस प्रकार के खर्चे करने पड़ेंगे उन सब खर्चों की जानकारी भी दी जाती है जैसे- एग्जिट लोड, एंट्री लोड, रेकरिंग व्यय और स्विचिंग व्यय इत्यादि। जिन योजनाओं में इस प्रकार के व्यय कम होंगे उस योजना में निवेशक के पास अधिक पैसा रहेगा और लाभ भी अधिक होगा।
Mutual Fund का गठन कैसे होता है?
एक ट्रस्ट के रूप में Mutual Fund को गठित किया जाता है, जो कि AMC (एस्सेट मैनेजमेंट कंपनी), प्रायोजक (Sponsar), ट्रस्टी और कस्टोडियन के अधीन रहती है। इस ट्रस्ट की स्थापना एक या एक से अधिक प्रायोजक कर सकते हैं। कंपनी में जो भूमिका प्रोमोटरों की होती है वही भूमिका Mutual Fund में प्रायोजकों की होती है।
निवेश करने वालों के लाभार्थ फंड की प्रॉपर्टी को Mutual Fund के ट्रस्टी धारण करके रखते हैं। अनेक प्रकार की प्रतिभूतियों में पूँजी निवेश द्वारा धन के प्रशासन का कार्य AMC करती है। विभिन्न स्कीमों की प्रतिभूतियों को कस्टोडियन अपने कब्जे में रखता है जो की SEBI द्वारा मान्य होता है। AMC पर नियंत्रण और निगरानी रखने का कार्य ट्रस्टियों का होता है।
ट्रस्टी ही फंड के कार्य का सुचारू रूप से संचालन करते हैं और सुनिश्चित करते हैं की सेबी के सब नियमों का अच्छे से पालन हो। सेबी के नियमों के अनुसार ट्रस्टी मंडल के दो तिहाई सदस्य अथवा ट्रस्टी कंपनी के निदेशक स्वतन्त्र होने चाहिए जिससे की वो प्रायोजक के साथ न जुड़ सकें। और इसके साथ साथ AMC के 50 % निदेशक स्वतन्त्र होने चाहिए। प्रत्येक Mutual Fund द्वारा कोई भी योजना या स्कीम निवेश के लिए खोलने से पहले सेबी में उसका पंजीकरण करवाना पड़ता है।
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