गुरूवार, मार्च 30, 2023

पानीपत का प्रथम, द्वितीय, व तृतीय युद्ध।

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भारत में इतिहास में अनेकों युद्ध हुए हैं, परंतु Panipat ka Yudh इतिहास में हुए युद्धों में एक विशेष स्थान रखता है। Panipat में 3 बार panipat ki ladai हुई हैं, जो panipat ka pratham yuddh, Panipat ki dusri ladai और panipat ki teesri ladai हैं।

पानीपत का युद्ध – Panipat ki Ladai kab hui thi

Panipat ki Ladai ने ही भारत में मुगलों की नींव रखी थी। Panipat ki Ladai नहीं हुई होती तो आज भारत में अकबर जैसे शासक का नाम सुनने को मिलता, और ना भारत में लाल किला होता और ना ही ताजमहल। पानीपत की लड़ाई शुरू होने से पहले एक तरफ भारत में इब्राहीम लोदी दिल्ली की गद्दी पर आसीन था। और दूसरी तरफ जहिरुद्दीन मोहम्मद बाबर जिसने काबुल को फ़तह किया था।

भारत में इब्राहीम लोदी का भाई सिकंदर लोदी जो की बहुत महत्वकांक्षी के दिल्ली की गद्दी पर बैठना चाहता था, उसने अपने कुछ राजपूत सहयोगी मित्रों के साथ मिलकर इब्राहीम लोदी के विरूद्ध जंग छेड़ दी। इस वजह से इब्राहीम लोदी अपने भाई सिकंदर लोदी पर क्रोधित हुआ और उसको हरा दिया, जिसके बाद सिकंदर लोदी दिल्ली से भाग गया।

बाबर जो की महज 13 वर्ष की आयु में उसके पिता के मरने के बाद फरगना जो की उज्बेकिस्तान में है का शासक बना। लेकिन उसके बाद भी बाबर को फरगना पर क़ब्ज़ा करने के लिए कई लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी, क्योंकि उसके पिता के भाइयों को भी फरगना पर क़ब्ज़ा करना था जिसके लिए वो बार बार बाबर के साथ जंग छेड़ देते थे।

आखिरकार 1504 में बाबर काबुल पर क़ब्ज़ा करने में सफल हो गया। लेकिन काबुल पर क़ब्ज़ा करके वो संतुष्ट नहीं था।

1523 में इब्राहीम लोदी के भाई सिकंदर लोदी ने बाबर को भारत आने का न्योता दिया जिससे बाबर की नजर भारत पर पड़ी और उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ गयी। उसके बाद बाबर ने भारत की तरफ रुख किया और उसने पहले लाहौर पर क़ब्ज़ा किया और आगे बढ़ता बढ़ता वो Panipat तक आ गया जहाँ उसका सामना इब्राहीम लोदी से हुआ।

चलिए जानते हैं कि panipat ka yuddh kab hua tha और तीनों युद्ध को सरल भाषा में समझते हैं।

1. पानीपत का प्रथम युद्ध – Panipat Ka Pratham Yuddh

पानीपत (वर्तमान हरियाणा में स्थित) की पहली लड़ाई 21 अप्रैल 1526 को जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच हुई थी। बाबर की सेना इब्राहीम लोदी की सेना के मुकाबले बहुत छोटी थी।

बाबर की सेना में तक़रीबन 13,000 से 25,000 और इब्राहीम लोदी के पास 1,00,000 के करीब सैनिक थे। इब्राहीम लोदी की सेना में हाथी भी थे। लेकिन बाबर की सेना में सिर्फ लड़ाकू सैनिक ही थे, जबकि इब्राहीम लोदी की लाखों की सेना में नौसिखियों की भीड़ ज्यादा थी और सैनिक कम थे।

इसके अलावा बाबर के पास एक ख़ास चीज तोपखाना था और उसकी युद्ध की तकनीक तुलुगमा थी। वैसे तो Panipat ki Ladai में हिन्दू राजा या राजपूत दूर थे लेकिन इब्राहीम लोदी का साथ कुछ तोमर राजपूतों ने दिया था।

बाबर अपनी छोटी सेना होने के बावजूद भी अपने युद्ध तकनीक का इस्तेमाल करके इब्राहीम लोदी को परस्त करने में सफल हुआ, और panipat ki pehli ladai में सफल हुआ। panipat ka pratham yuddh ही भारत में मुग़ल साम्राज्य के लिए नींव का पठार साबित हुई।

बाबर ने दिल्ली में लोदी वंश का अंत करके मुग़ल वंश स्थापित कर दिया, जिसकी पहुँच दिल्ली और आगरा तक हो गई थी।

panipat ka pratham yuddh

पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी की हार के कारण

  • सैनिकों में युद्ध कौशल की कमी।
  • सेना संयुक्त नहीं थी, अर्थात् पूरी सेना में कुछ सैनिक अलग अलग सहयोगी राजाओं के भी थे।
  • बाबर की युद्ध तकनीक लोदी से बहुत बेहतर थी।
  • बाबर की सेना में तोपें थी, जिससे लोदी की सेना में खलबली मच गयी थी।
  • बाबर के सैनिक अनुभवी थे, उन्होंने बाबर के नेतृत्व में बहुत से युद्ध लड़े थे।

पानीपत की प्रथम लड़ाई का नतीजा

पानीपत में लड़ी गई panipat ki pehli ladai का परिणाम यह था की इस लड़ाई से भारत में एक नए साम्राज्य का उदय हुआ। Panipat ki Ladai में बाबर ने लोदी को परस्त कर दिया और साथ ही लोदी वंश को भी ख़त्म कर दिया। यह लड़ाई मुग़ल साम्राज्य को भारत में स्थापित करने में नींव का पत्थर साबित हुई।

2. पानीपत का द्वितीय युद्ध – Panipat ki dusri ladai kab hui ?

बाबर ने panipat ki pehli ladai जीतकर मुग़ल साम्राज्य को स्थापित तो कर लिया, लेकिन यह ज्यादा दिन तक अपने पैर नहीं जमा पाया और मात्र 4 साल शासन करने के बाद 1530 में बाबर की मृत्यु हो गई। बाबर की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य की बागडोर बाबर के पुत्र हुमांयू के पास आ गई।

हुमांयू एक डगमगाता हुआ शासक था, क्योंकि वह अपने पिता के द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य को अपने ही सेना के सेनापति शेरशाह सूरी से हारकर भाग गया था। 1540 में हुमायूँ को हराकर शेरशाह सूरी, सूरी वंश के संस्थापक बने। लेकिन 5 साल बाद ही शेरशाह सूरी चंदेल राजपूतों से हार गए और उनकी मृत्यु हो गई।

उसके बाद सूरी साम्राज्य के चौथे शासक आदिल शाह एक अयोग्य शासक थे। आदिल शाह के हिन्दू मंत्री हेमचन्द्र विक्रमादित्य जो की हेमू के नाम से जाने जाते थे। जब हेमू को हुमांयू की मृत्यु की खबर लगी तो उसने उस बात का फायदा उठाना चाहा।

इस बात की भनक काबुल में बैठे हुमांयू के पुत्र अकबर और उसके संरक्षक बैरम खान को लगी और काबुल से अकबर अपनी सेना को लेकर भारत की तरफ रवाना हुआ। दूसरी तरफ हेमू भी आक्रमणकारियों का सामना करने को तैयार बैठा था।

9 नवम्बर 1556 को दोनों सेना panipat ki dusri ladai के लिए मैदान में आमने सामने खड़ी थी।

Panipat ka dwitiya yuddh
Panipat ka dwitiya yuddh

पानीपत का द्वितीय युद्ध – Panipat ka dwitiya yuddh

हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) रेवाड़ी ( हरियाणा) का एक हिंदू राजा था। उन्होंने 1553 से 1556 तक पंजाब से लेकर बंगाल तक सेना के प्रधान मंत्री व मुख्यमंत्री के रूप में बहुत से युद्ध जीते। इन युद्धों में विजय होने से उसका हौंसला बढ़ता गया और उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ गई।

हेमू का दिल्ली पर हमला

हुमांयू की मृत्यु के बाद पंजाब के कलानौर में अकबर का राज्याभिषेक हुआ और राजगद्दी पर बैठाया। उस समय मुग़ल साम्राज्य कंधार, दिल्ली, पंजाब और काबुल के कुछ हिस्सों तक ही सीमित था। उधर जैसे ही हेमू को हुमायूँ की मृत्यु के बारे जानकारी हुई, तभी उसने दिल्ली पर क़ब्ज़ा करने के लिए भारत की तरफ़ कूच कर दिया।

दिल्ली की तरफ़ कूच करते हुए रास्ते में आने वाले क्षेत्रों पर भी हेमू ने हमला किया और जीत हासिल की। इन क्षेत्रों को जीतते हुए हैं मोदी आगरा तक पहुँच चुका था। हेमू की सेना को देखकर मुगलों के सेनानायक युद्ध छोड़कर वहाँ से भाग खड़े हुए और हेमू ने आगरा पर क़ब्ज़ा कर लिया।

अब हेमू आगरा के बाद दिल्ली पर भी क़ब्ज़ा करना चाहता था, इसलिए हेमू ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी और तुग़लक़ाबाद नामक जगह पर मुगलों की सेना से भिड़ गए, और मुग़ल सेना को हराकर दिल्ली पर क़ब्ज़ा हर लिया। अब दिल्ली पर हेमु का राज था, लेकिन हेमू ज्यादा दिन दिल्ली की गद्दी पर नहीं टिक पाया।

पानीपत में मुग़लों व हेमू का युद्ध

कलानौर में बैठे मुग़ल दिल्ली को वापस पाना चाहते थे, और मुग़लों ने दिल्ली पर चढ़ाई शुरू कर दी। दोनो सेनाएँ पानीपत में एक दूसरे के आमने सामने खड़ी थी और 9 नवम्बर 1556 को हेमू और अकबर के बीच पानीपत का दूसरा युद्ध शुरू हुआ।

उस समय।मुग़ल सेना के सेनापति बैरम ख़ान है और उस समय राजा अक़बर की आयु केवल 13 वर्ष थी। बैरम ख़ान राजा अक़बर को युद्ध के मैदान में उतारने के पक्ष में नहीं थे, इसीलिए उन्होंने राजा अक़बर को युद्ध के मैदान से कुछ दूरी पर रखा।

क्योंकि हेमू की सेना मुग़लों की सेना से तीन गुना थी इसलिए बैरम ख़ान ने राजा और उनके वफ़ादार और कुशल सैनिकों को ये हिदायत भी दे रखी थी कि अगर मुग़ल सेना इस युद्ध में हार जाए या ऐसी कोई स्थिति बनने तो वो सभी राजा अक़बर को लेकर काबुल की तरफ़ चले जाएं।

हेमू की सेना में 1500 हाथी और बेहतरीन तोपख़ाने भी विद्यमान थे। युद्ध के दौरान लग रहा था की हेमू ही ये लड़ाई जीतेगा लेकिन एक समय ऐसा आया जब लड़ाई का रुख ही बदल गया। युद्ध के दौरान मुग़ल सेना की तरफ से आया एक तीर हेमू की आँख में आकर लगा और हेमू ज़मीन पर गिर पड़ा।

हेमू को इस हालत में देखकर हेमू की सेना में भगदड़ मच गई, जिसका फायदा उठाकर मुग़ल सेना ने कत्लेआम करना शुरू कर दिया। इस स्थिति को देखकर हेमू की सेना तीतर-बितर हो गई और पीछे हटने लगी। इस प्रकार दोनों सेनाओं के बीच इतना अंतर होने के बावजूद भी मुग़ल सेना की फ़तह हुई।

पानीपत का द्वितीय युद्ध का परिणाम

  • Panipat ka dwitiya yuddh में मुग़लों की जीत हुई और Panipat ki pehli ladai की तरह ही भारत में मुग़ल साम्राज्य स्थापित करने में नींव बनी। Panipat ka dwitiya yuddh जीतने के बाद मुग़ल साम्राज्य लगभग 300 सालों तक शासन करता रहा।
  • Panipat ki Ladai के ख़त्म होने के बाद हेमू के शव को काबुल के दिल्ली दरवाजे पर प्रदर्शन के लिए भेजा गया और हेमू के शरीर को दिल्ली के पुराने किले के बाहर लटका दिया गया ताकि लोगों में डर पैदा हो।
  • हेमू के सब रिश्तेदारों और संबंधितों को पकड़-पकड़ के कत्लेआम किया गया। अब दिल्ली की गद्दी राजा अकबर की थी, इसके साथ-साथ हेमु ने जितने भी क्षेत्र जीते थे उन पर अब मुग़लों का राज था।

3. पानीपत की तीसरी लड़ाई – Panipat ki teesri ladai

panipat ka tritiya yuddh पढ़ने से पहले हमें ये जाना होगा की पानीपत की तृतीय लड़ाई का कारण क्या था और पानीपत का तृतीय युद्ध क्यों हुआ।

panipat ki teesri ladai
panipat ki teesri ladai

पानीपत का तृतीय युद्ध क्यों हुआ ? panipat ka tritiya yuddh kyon Hua?

औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद भारत की जमीन पर मुगलों का साम्राज्य धीरे धीरे दम तोड़ रहा था। वहीं दूसरी तरफ मराठों का परचम बुलंदी पर था, और राजपुताना, गुजरात और मालवा के राजा पेशवा बाजीराव की नेतृत्व वाली मराठा सेना में शामिल हो गए थे।

मराठों की बढती हुई ताकत से मुगलों की हालत खराब हो रही थी। लगभग संपूर्ण हिंदुस्तान पर मराठों का परचम लहरा रहा था। उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों पर मराठों का आधिपत्य था। मुग़ल साम्राज्य सिर्फ नाम मात्र का रह गया था। मराठा साम्राज्य विस्तृत होता ही जा रहा था।

1758 में पेशवा बाजिराव के पुत्र बालाजी बाजीराव ने पंजाब पर भी कब्ज़ा कर लिया और अब मराठा साम्राज्य अफगान की सीमा पर सीना ताने खड़ा था। अहमद शाह अब्दाली ने इस बात को चुनौती की तरह देखा। मराठा सेना ने पंजाब व लाहौर से तैमुर शाह दुर्रानी को भी खदेड़ दिया, जो अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था।

उस समय मराठा सेना की कमान बालाजी बाजीराव के हाथ में थी और उनकी नजर पूरे हिंदुस्तान से विदेशी हुकूमतों को बाहर निकलने पर थी। बंगाल में अंग्रेजों के बढ़ते हुए अधिकार को भी ख़त्म कर देना चाहते थे। मुगलों ने भी उनके सहयोग देना उचित समझा लेकिन मुगलों को भी मराठा शक्ति का विस्तार पसंद नही था।

मराठों की शक्ति बढ़ने के साथ साथ उनके दुश्मनों की संख्या भी बढ़ रही थी। लाहौर से तैमुर शाह  दुर्रानी को खदेड़ने के कारण अहमद शाह अब्दाली ने इसे चुनौती समझा और उसे ये बात नागवार गुजरी उसने अपनी विशाल सेना को लेकर भारत पर आक्रमण का मन बना लिया।

पहले अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब में मराठा क्षेत्र के अधीन क्षेत्रों को जीता। उसके बाद उसने कश्मीर को भी जित लिया। उसके बाद वो दिल्ली में आकर रुक गया।

अहमद शाह अब्दाली के दिल्ली में आकर रुकने के कारण मराठा सरदार बौखला उठे और उन्होंने ने न केवल अहमद शाह अब्दाली को हारने की योजना बने बल्कि बंगाल में बढ़ रही अंग्रेजी ताकत को भी ख़त्म करने का मन बना लिया। मराठा सरदार अब पुरे हिंदुस्तान को विदेशी ताकतों से मुक्त करने की सोच रहे थे।

असल में अहमद शाह अब्दाली मुग़ल वजीर नजीबुदौला के भारत आने के न्योते पर भारत आया था और वो मुगलों की जगह लेकर भारत पर हुकूमत चाहता था।

पानीपत की तीसरी लड़ाई की शुरुआत – Panipat ka tritiya yuddh

सदाशिव राव पेशवा के नेतृत्व में पुणे से मराठा सेना दिल्ली की तरफ चली। प्रारंभ में मराठा सेना में तक़रीबन पचास हजार सैनिक थे लेकिन आगे बढ़ते हुए दुसरे राजाओं की सेना उनके साथ जुडती गई और पानीपत पहुचते पहुँचते उनकी सेना लगभग दो लाख तक हो गई। इसके साथ ही इब्राहीम खान गार्दी भी अपने लगभग 8000 ऐसे सैनिकों के साथ मराठा सेना में मिल गया जो फ्रांस से प्रशिक्षित थे।

इब्राहीम गार्दी के पास फ्रांस की राइफल और फ्रांस की तोपें भी थी जिससे मराठा सेना को बहुत सहयोग मिला। दूसरी तरफ अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली के आस पास बसे हुए अफगानियों को अपनी तरफ कर लिया था जो फायदेमंद साबित हुआ।

14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेना के बीच panipat ka tritiya yuddh शुरू हुआ और Panipat ki teesri ladai में मराठों को हार का सामना करना पड़ा।

Panipat ki teesri ladai में मराठों की हार क्यों हुई ?

हुआ ऐसा था की युद्ध के दौरान विश्वासराव भाऊ को गोली लग गई थी, जो सदाशिव राव के अत्यंत प्रिय थे। उनको देखकर सदाशिव राव हाथी से उतरकर एक घोड़े पर सवार होकर उसके पास चले गए। मराठा सैनिकों ने जब सहशिव राव को हाथी पर नहीं देखा तो उन्हें लगा की वो मर गए, इसलिए मराठा सेना भयभीत हो गई।

मराठा सेना स्थिति को देखकर लगभग हार की कगार पर खड़ी अफगान सेना में नया जोश आ गया और वो फिर से दोगुने जोश के साथ लड़ने के लिए उठ खड़े हुए। और एक बात यह भी थी की मराठों का पुणे से संपर्क कट गया था और अफगान सेना का काबुल से, इसलिए यह युद्ध इस बात पर भी निर्भर करता था की किस सेना को खाने की आपूर्ति मिल रही है और किसे नहीं।

मराठों की हार का मुख्य कारण यह भी हो सकता है की उनके पास खाना ख़त्म हो चूका था। इस तरह इस लड़ाई में अफगान सेना की जीत हुई। यह लड़ाई इतिहास की बड़ी लड़ियों में से एक थी। क्योंकि इस लड़ाई में एक दिन में तक़रीबन 4000 सैनिकों की मृत्यु हुई थी, ये संख्या किसी भी युद्ध में मरने वाले सैनिकों की संख्या से बहुत अधिक थी।

panipat ka tritiya yuddh में मराठों की हार के कारण

  • मराठा सेना का खाना ख़त्म हो चूका था
  • मराठा सरदारों को पानीपत के मौसम का अंदाजा नहीं था और वो एक पतली धोती और कुर्ते में लड़ाई के लिए निकल पड़े थे और पानीपत में उस समय बहुत सर्दी थी
  • मराठा सेना में सदा-शिव राव की मृत्यु होने की गलतफहमी फ़ैल गई थी
  • प्रारंभ में मराठों के रिश्ते जाटों और राजपूतों से बहुत गहरे थे लेकिन 1950 तक आते आते इनके रिश्तों में दरार आ गई थी
  • मुग़ल सेना भी मराठों के साथ थी लेकिन वो मराठों के बढ़ते वर्चस्व से खुश नहीं थे
  • बालाजी बाजीराव ने सदा-शिव राव को मल्हार राव होलकर, महंत जी सिंधिया और रघुनाथ राव की जगह पर सेनापति बनाया, जबकि उत्तर भारत में ये तीनों नेतृत्व सम्भालने में सक्षम थे

Panipat ki teesri ladai का परिणाम

panipat ka pratham yuddh के कारण मुग़ल साम्राज्य की भारत में नींव रखी और panipat ka dwitiya yuddh से अकबर के लगभग पांच दशक के शासन की नींव पड़ी। लेकिन panipat ka tritiya yuddh होने से भारत में अंग्रेजों के रस्ते खुल गए। इस लड़ाई से मराठों की दुर्गति हुई तथा मुगलों की दुर्दशा और दूसरी तरफ अंग्रेजों के प्रभाव में वृद्धि हुई।

ज़रूर पढ़ें: 1857 की क्रांति की संक्षिप्त जानकारी।


Panipat ki ladai – प्रश्नोत्तरी

पानीपत की लड़ाई कब हुई थी? Panipat ki ladai kab hui thi ?

पानीपत की ३ लड़ाइयाँ हुई हैं जिनका विवरण नीचे है :

पानीपत की पहली लड़ाई : 21 अप्रैल 1526
पानीपत की दूसरी लड़ाई : 9 नवम्बर 1556
पानीपत की तीसरी लड़ाई : 14 जनवरी 1761

पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था ?

पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 को हुआ था।

पानीपत का प्रथम युद्ध किसके बीच हुआ ?

पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर और सुल्तान इब्राहीम लोदी के बीच लड़ा गया था।

बाबर का पूरा नाम क्या था ?

बाबर का पूरा नाम जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर था।

बाबर और इब्राहिम लोदी की सेना कितनी बड़ी थी ?

बाबर की सेना में तक़रीबन 13000 से 25000 और इब्राहीम लोदी के पास 100000 के करीब सैनिक थे ।

पानीपत के प्रथम युद्ध का परिणाम।

पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर ने जीता था और इब्राहिम लोदी की हार हुई थी।

पानीपत का द्वितीय युद्ध कब हुआ था ?

9 नवम्बर 1556 को हेमू और अकबर के बीच पानीपत का द्वितीय युद्ध हुआ था। जिसमें हेमु की हार और मुग़लों की जीत हुई थी।

पानीपत का तृतीय युद्ध कब हुआ था ?

14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेना के बीच पानीपत की तृतीय लड़ाई हुई थी।

पानीपत का तृतीय युद्ध किसके बीच हुआ था ?

14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेना के बीच पानीपत की तीसरी लड़ाई शुरू हुई और पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हार का सामना करना पड़ा।

मुग़ल साम्राज्य की स्थापना किसने की थी? Mughal samrajya ki sthapna kisne ki ?

जहीरुद्दीन बाबर ने पानीपत का प्रथम युद्ध जीतकर 21 अप्रैल 1526 को मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की थी।

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