भारत के इतिहास में अनेकों युद्ध हुए हैं, परंतु पानीपत का युद्ध इतिहास में हुए युद्धों में एक विशेष स्थान रखता है। पानीपत में 3 बार युद्ध हुए हैं, जिनको पानीपत का प्रथम युद्ध, पानीपत का द्वितीय युद्ध और पानीपत का तृतीय युद्ध के नाम से पढ़ा और जाना जाता है। इस लेख में आपको पानीपत के प्रथम युद्ध की जानकारी दी गई है।
प्रथम युद्ध की पृष्ठभूमि
पानीपत की लड़ाई ने ही भारत में मुगलों की नींव रखी थी। पानीपत की लड़ाई नहीं हुई होती तो आज भारत में ना ही अकबर जैसे शासक का नाम सुनने को मिलता, और ना ही भारत में लाल किला होता और ना ही ताजमहल अस्तित्व में होते। पानीपत की लड़ाई शुरू होने से पहले एक तरफ भारत में इब्राहीम लोदी दिल्ली की गद्दी पर आसीन था और दूसरी तरफ जहिरुद्दीन मोहम्मद बाबर जिसने काबुल को फ़तह किया था।
भारत में इब्राहीम लोदी का भाई सिकंदर लोदी जो की बहुत महत्वकांक्षी था और दिल्ली की गद्दी पर बैठना चाहता था, उसने अपने कुछ राजपूत सहयोगी मित्रों के साथ मिलकर इब्राहीम लोदी के विरूद्ध जंग छेड़ दी। इस वजह से इब्राहीम लोदी अपने भाई सिकंदर लोदी पर क्रोधित हुआ और उसको हरा दिया, जिसके बाद सिकंदर लोदी दिल्ली से भाग गया।
बाबर जो की महज 13 वर्ष की आयु में उसके पिता के मरने के बाद फरगना जो की उज्बेकिस्तान में है का शासक बना। लेकिन उसके बाद भी बाबर को फरगना पर क़ब्ज़ा करने के लिए कई लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी, क्योंकि उसके पिता के भाइयों को भी फरगना पर क़ब्ज़ा करना था जिसके लिए वो बार बार बाबर के साथ जंग छेड़ देते थे। आखिरकार 1504 में बाबर काबुल पर क़ब्ज़ा करने में सफल हो गया। लेकिन काबुल पर क़ब्ज़ा करके वो संतुष्ट नहीं था।
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1523 में इब्राहीम लोदी के भाई सिकंदर लोदी ने बाबर को भारत आने का न्योता दिया जिससे बाबर की नजर भारत पर पड़ी और उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ गयी। उसके बाद बाबर ने भारत की तरफ रुख किया और उसने पहले लाहौर पर क़ब्ज़ा किया और आगे बढ़ता बढ़ता वो पानीपत तक आ गया जहाँ उसका सामना इब्राहीम लोदी से हुआ।
चलिए जानते हैं कि पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ और उसमें किसकी विजय हुई।
पानीपत का प्रथम युद्ध
पानीपत (वर्तमान हरियाणा में स्थित) की पहली लड़ाई 21 अप्रैल 1526 को जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर और इब्राहीम लोदी के बीच हुई थी। बाबर की सेना इब्राहीम लोदी की सेना के मुकाबले बहुत छोटी थी। बाबर की सेना में तक़रीबन 13,000 से 25,000 और इब्राहीम लोदी के पास 1,00,000 के करीब सैनिक थे। इब्राहीम लोदी की सेना में हाथी भी थे। लेकिन बाबर की सेना में सिर्फ लड़ाकू सैनिक ही थे, जबकि इब्राहीम लोदी की लाखों की सेना में नौसिखियों की भीड़ ज्यादा थी और सैनिक कम थे।
इसके अलावा बाबर के पास एक ख़ास चीज तोपखाना था और उसकी युद्ध की तकनीक तुलुगमा थी। वैसे तो पानीपत की लड़ाई में हिन्दू राजा या राजपूत दूर थे, लेकिन इब्राहीम लोदी का साथ कुछ तोमर राजपूतों ने दिया था।
बाबर अपनी छोटी सेना होने के बावजूद भी अपने युद्ध तकनीक का इस्तेमाल करके इब्राहीम लोदी को परास्त करने में सफल हुआ, और पानीपत की पहली लड़ाई में सफल हुआ। पानीपत का प्रथम युद्ध ही भारत में मुग़ल साम्राज्य के लिए नींव का पत्थर साबित हुई।
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बाबर ने दिल्ली में लोदी वंश का अंत करके मुग़ल वंश स्थापित कर दिया, जिसकी पहुँच दिल्ली और आगरा तक हो गई थी।
पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी की हार के कारण
- सैनिकों में युद्ध कौशल की कमी।
- सेना संयुक्त नहीं थी, अर्थात् पूरी सेना में कुछ सैनिक अलग अलग सहयोगी राजाओं के भी थे।
- बाबर की युद्ध तकनीक लोदी से बहुत बेहतर थी।
- बाबर की सेना में तोपें थी, जिससे लोदी की सेना में खलबली मच गयी थी।
- बाबर के सैनिक अनुभवी थे, उन्होंने बाबर के नेतृत्व में बहुत से युद्ध लड़े थे।
पानीपत की प्रथम लड़ाई का नतीजा
पानीपत की प्रथम लड़ाई का परिणाम यह था की इस लड़ाई से भारत में एक नए साम्राज्य का उदय हुआ। इसमें बाबर ने लोदी को परास्त कर दिया और साथ ही लोदी वंश को भी ख़त्म कर दिया। यह लड़ाई मुग़ल साम्राज्य को भारत में स्थापित करने में नींव का पत्थर साबित हुई।
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bahot achha content hai panipat ke bare me
aapne bahot detail se samjhya hai panipat ke yuddh ke bare me
thanks