शनिवार, सितम्बर 23, 2023

पर्यावरण क्या है? पर्यावरण प्रदूषण – परिभाषा, महत्व।

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पर्यावरण शब्द दो शब्दों के मेल से बना है “परि” और “आवरण” परि का मतलब चारों ओर और आवरण का मतलब चारों तरफ़ से घिरा हुआ।

पर्यावरण भौतिक रसायन और जैविक कारकों का मेल है और यह सभी जीवों और जीवन तन्त्र को प्रभावित करता है। यह पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव से जुड़ा हुआ है और उनके रूप, अस्तित्व और जीवन को भी निर्धारित करता है। दूसरे शब्दों में पर्यावरण हमारे और सभी जीवों, और अजैविक तत्वों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाली इकाई है जो हमारे चारों ओर मौजूद है।

हम जो भी कार्य करते हैं वो पर्यावरण को प्रभावित करता है, और इस तरह जीव और पर्यावरण एक दूसरे के साथ सम्बंध रखते हैं। कीड़े-मकोड़े, जानवर, पेड़-पौधे, और हर तरह का जीव पर्यावरण के जैविक घटकों में शामिल है, इसी तरह अजैविक घटकों में चट्टानें, पहाड़, हवा, नदियाँ, और अनेकों तरह की अजीवित चीजें शामिल हैं।

पर्यावरण की परिभाषा

environment, पर्यावरण

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पृथ्वी पर जो भी भूमि, वायु, वृक्ष, पौधे, जीव जंतु और जानवरों का समूह जो हमें चारों तरफ़ से घेरता है और जीवित और अजीवित सभी एक दूसरे के साथ क्रिया करते हैं जो एक व्यवस्था बनाते हैं। इस व्यवस्था को हम पारिस्थितिकी तंत्र ( Ecosystem) कहते हैं।

आम तौर पर पर्यावरण को मानव से अलग परिभाषित किया जाता है, मानव को अलग और आस पास की सभी चीजों को मानव के पर्यावरण के रूप में माना जाता है। लेकिन ऐसी बहुत सी मानव सभ्यताएँ मौजूद हैं, जो अपने को प्रकृति से अलग नहीं मानती और उन सभ्यताओं की नज़र में जो भी पृथ्वी पर मौजूद है, चाहे वो इंसान हो या जानवर, पहाड़ हों या नदियाँ जो भी यहाँ मौजूद है वो सब पर्यावरण है।

जो मानव को पर्यावरण को से अलग मानते हैं, वो लोग वो हैं जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्राकृतिक परिस्थितियों में बदलाव लाने में सक्षम है। इस आधार पर पर्यावरण को दो तरह से परिभाषित किया जा सकता है।

  • प्राकृतिक पर्यावरण
  • मानव निर्मित पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण का सम्बंध उस पर्यावरण से है, जिसमें मानव का हस्तक्षेप नहीं है। क्योंकि आधुनिक मानव अपने आस पास के पर्यावरण को नष्ट करने पर तुला है इसीलिए जहां पर मनुष्य का हस्तक्षेप नहीं है उसे प्राकृतिक पर्यावरण कहा गया है।

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मानव निर्मित पर्यावरण

मानव निर्मित पर्यावरण का सम्बंध उस पर्यावरण से है जहां मानव का हस्तक्षेप है, और जहाँ मनुष्य ने प्राकृतिक संतुलन को नष्ट किया है। मनुष्य की पर्यावरण से साथ छेड़-छाड़ के कारण अनेक तरह की पर्यावरण समस्याएँ सामने आ रही है जिनमें प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन आदि मुख्य हैं।

पर्यावरण के प्रकार

भौतिक पर्यावरण और अभौतिक पर्यावरण दो पर्यावरण के प्रकार है।

  • भौतिक पर्यावरण – जो भी हमारे चारों तरफ़ मौजूद है जो हम हमारी आँखों से देख सकते हैं उसे भौतिक पर्यावरण कहते हैं। कोई भी ऐसी वस्तु जिन्हें हम हाथों से छूकर उनका आभास कर सकते हैं वह भी भौतिक पर्यावरण का ही हिस्सा हैं। उदाहरण के तौर पर जब हम किसी पर्यटन स्थल पर जाते हैं और वहाँ की सुंदरता हमें मोह लेती है और वहाँ के सुंदर दृश्य हम अपनी आँखों से देखते हैं और महसूस करते हैं वह भौतिक पर्यावरण है।
  • अभौतिक पर्यावरण – जो हमें आँखों से नहीं देता, और जिसका हम सिर्फ़ आभास कर पाते हैं। अभौतिक पर्यावरण भी हमारे चारों तरफ़ है जो हमें हमारे रीति-रिवाज, धर्म, विश्वास और आस्था में दिखाई देता है।

पर्यावरण की समस्याएँ

ज़्यादातर पर्यावरण की समस्याओं का कारण मनुष्य की जनसंख्या में वृद्धि और मनुष्य द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले संसाधन हैं। पर्यावरण में परिवर्तन किसी भी क्षेत्र या पृथ्वी पर रहने वाले जीव जन्तुओं और ख़ुद मानव के लिए ख़तरा है। और इस प्रकार पर्यावरण की समस्याओं में प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता में कमी और प्राकृतिक आपदाएँ आदि शामिल हैं।

मानव जाति की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण जो पर्यावरण में बदलाव आ रहे हैं वो सबसे घातक है और मनुष्य ही पर्यावरण की समस्याओं का सबसे मूल कारण है।

पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण में विषैले ठोस पदार्थ तरल या गैस या फिर ऊर्जा जैसे गर्मी ध्वनि और रेडियोधर्मिता आदि का होना ही पर्यावरण प्रदूषण है। मानव जाति ने इन विषैली चीज़ों को पर्यावरण में इतनी तेज़ी से फैलाया है कि पर्यावरण का पुनर्निर्माण करना बहुत कठिन बन गया है।

पर्यावरण प्रदूषण को आप इस तरीक़े से भी समझ सकते हैं कि किसी भी पदार्थ या ऊर्जा का वातावरण में या प्रकृति में प्रवेश करना जो प्रकृति के लिए और पर्यावरण के लिए हानिकारक है वह है पर्यावरण प्रदूषण है।

वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रेडियोधर्मिता प्रदूषण, आदि इसके कुछ उदाहरण है।

प्राकृतिक संसाधनों की कमी

मानव जाति अपने लाभ के लिए बहुत तेज़ी से प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर रहा है। पृथ्वी पर जो भी प्राकृतिक संसाधन मौजूद है वो एक सीमित मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन जिस प्रकार से मानव जाति की जनसंख्या बढ़ रही है उतनी ही तेज़ी से इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग भी बढ़ रहा है जिसके कारण प्राकृतिक संसाधनों में कमी आ रही है।

वैसे तो प्राकृतिक संसाधनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. अनवीकरणीय संसाधन
  2. नवीकरणीय संसाधन

अनवीकरणीय संसाधन:  अनवीकरणीय संसाधन वो संसाधन होते हैं जिन्हें दोबारा नहीं बनाया जा सकता। दूसरे शब्दों में हम इसे ऐसे समझ सकते हैं कि ऐसे संसाधन जिनका भंडार सीमित मात्रा में पृथ्वी पर मौजूद है उन्हें अनवीकरणीय संसाधन संसाधन कहते हैं।

पेट्रोल, डीज़ल कोयला पृथ्वी पर पाने वाले खनिज पदार्थ आदि अनवीकरणीय संसाधन के उदाहरण हैं।

नवीकरणीय संसाधन: नवीकरणीय संसाधन से तात्पर्य यह है की ऐसे संसाधन जिन्हें हम दोबारा भी बना सकते हैं और अगर यह समाप्त हो जाएं तो मानव इन्हें दोबारा से बनाकर अपनी ज़रूर पूरी कर सकता है।

उदाहरण के तौर पर पेड़ पौधे नवीकरणीय संसाधनों में आते हैं जिनका उपयोग मनुष्य द्वारा किया जाता है लेकिन मनुष्य पेडों और पौधों को उगाकर इस समस्या से छुटकारा पा सकता है।

जीवों की विविधता में कमी

आधुनिक मानव जाति ने ही अपने सामने अनेकों प्रकार की जीव प्रजातियों को विलुप्त होते देखा है जिसका मुख्य कारण हमारी जनसंख्या का बढ़ना और हमारी ज़रूरतों के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना है।

मानव जाति की आधुनिकता के कारण अनेकों प्रकार की वनस्पतियों और पर जातियों की विविधता में कमी आयी है और किये हैं पर्यावरण की समस्याओं में से एक है।

जलवायु में परिवर्तन

मानव जाति अपने लाभ के लिए अनेकों प्रकार के औद्योगिक क्षेत्र बना रहा है और जलवायु को प्रदूषित कर रहा है। जब मानव द्वारा निर्मित गैस और प्रदूषण हमारी जलवायु में फैलता है तो उस से पृथ्वी के मौसम पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

आज के दौर में जलवायु परिवर्तन के कारण मानने को जीवन और ख़ुद मनुष्य भी अलग अलग समस्याओं से जूझ रहा है। शुद्ध जलवायु में अनेकों प्रकार की वनस्पतियों पनपते हैं और जीव जन्तु आसानी से रह सकते हैं।जलवायु परिवर्तन के कारण सभी जीव जंतुओं और पेड़ पौधों को काफ़ी हानि पहुँचती है।

प्राकृतिक आपदाएँ

प्राकृतिक आपदाएँ भी पर्यावरण की मुख्य समस्या है। जैसे ज्वालामुखी का फटना, अत्याधिक बारिश, सूखा पड़ना, तेज़ तूफ़ान या भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं में शामिल है।

उदाहरण के तौर पर यदि एक ज्वालामुखी फट जाए तो उसमें से निकलने वाली गैस, धूल और राख पर्यावरण को प्रदूषित करती है और उस पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

पर्यावरण संरक्षण

आधुनिक मानव जाति अपनी आविष्कारों और विज्ञान के बलबूते प्रकृति पर अपनी पकड़ मज़बूत करना चाहती है उतना जिस कारण हमारी पृथ्वी का संतुलन बिगड़ गया है। वैसे तो मानव अब प्राकृतिक संतुलन को ठीक करने के लिए वैज्ञानिक तरीक़ों से कोशिश कर रहा है, लेकिन पृथ्वी पर मानव जाति की बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के साथ साथ हरे भरे एक क्षेत्रों को भी समाप्ति की ओर ले जा रहा है।

पर्यावरण का संरक्षण पृथ्वी पर मौजूद सभी जीवों और प्राणियों और उनके प्राकृतिक परिवेश से सम्बंधित है। मानव जाति द्वारा फैलाए गए प्रदूषण के कारण पर्यावरण दूषित हो रहा है जो संभवत मानव जाती के अंत का कारण है।

Rashvinder
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मैं Rashvinder Narwal टेक्निकल फील्ड में एक्सपर्ट हूं और कंटेंट राइटिंग के साथ-साथ SEO में भी एक्सपर्टीज रखता हूं। मैं हमेशा जनरल नॉलेज और ज्ञानवर्धक टॉपिक्स के साथ ट्रेंडिंग टॉपिक्स पर भी रिसर्च करता रहता हूं और उससे संबंधित लेख इस वेबसाइट पर पब्लिश करता हूं। मेरा मकसद हिंदी डाटा वेबसाइट पर सही जानकारी को लोगों तक पहुंचाना है।
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