भारत देश में खाद्य तेल का आयात वर्ष 1980 के आसपास बहुत ज्यादा बढ़ गया था जो एक चिंता का विषय था। उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खाद्य तेल के आयात को घटाने के लिए एक मिशन शुरू किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य तिलहन की फसलों को बढ़ावा देना था। इस मिशन को पीली क्रांति का नाम दिया गया और इस लेख में पीली क्रांति क्या है, पीली क्रांति कब शुरू हुई, पीली क्रांति के जनक कौन थे, पीली क्रांति किससे संबंधित है और पीली क्रांति के परिणाम इत्यादि सवालों के जवाब यहां पर मिलेंगे।
भारत देश और यहां के नागरिक हजारों सालों से कृषि करते आए हैं और आज के समय में भी भारत की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिस्सा कृषि से जुड़ा हुआ है। परंतु 1980 के दशक में खाद्य तेल के आयात ने भारत की चिंता को बढ़ा दिया था। पीली क्रांति शुरू करने का उद्देश्य तिलहन की पैदावार को बढ़ाना और खाद्य तेल के आयात को कम करना था।
पीली क्रांति क्या है?
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी जिसका मुख्य कार्य कृषि को बढ़ावा देना और ज्यादा से ज्यादा फसलों की पैदावार करना था। और इसी प्रकार से पीली क्रांति को हरित क्रांति की अगली कड़ी या उसके दूसरा चरण के रूप में देखा गया है।
तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए 1980 के दशक में भारत सरकार द्वारा पीली क्रांति की शुरुआत की गई। पीली क्रांति का मुख्य उद्देश्य तिलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भरता और सरसों, दिल, असली, को संभल ग्राम सोयाबीन, सूरजमुखी, अलसी, और अरंडी इत्यादि प्रमुख तिलहन फसलों की पैदावार को बढ़ाना था।
भारत में 1986 में तेल प्रौद्योगिकी मिशन के साथ पीली क्रांति की शुरुआत हुई और भारत में खाद्य तेल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरसों और तेल जैसी तिलहन फसलों के कई संकर बीज लगाए गए।
पीली क्रांति से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
- इस क्रांति से भारत देश में तेल उत्पादन के लिए नई तकनीक का विकास हुआ।
- पीली क्रांति की शुरुआत के बाद भारत खाद्य तेल उत्पादन में वृद्धि करने में सक्षम रहा और तेल उत्पादन की दर अगले 10 से 12 वर्षों में ही दुगनी से ज्यादा हो गई।
- किसानों ने तिलहन की फसलों को गाना शुरू किया जिससे लगभग 26 मिलियन है भूमि की वृद्धि हुई जिसमें संकर तिलहनी के बीज बोए गए।
- तिलहन की फसलों को बोलने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया जिससे इनका उत्पादन और तेजी से बढ़ा।
- कृषि भूमि में भर्ती हुई और किसानों ने अधिक तिलहन फसलों को उगाना शुरू किया जिससे भारत की खाद्य तेल की समस्या दूर हुई।
पीली क्रांति की शुरुआत कब और कैसे हुई?
1980 के दशक में भारत में खाद्य तेल बहुत बड़ी मात्रा में आयात किया जाता था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस चिंताजनक विषय में हस्तक्षेप किया और उन्होंने तिलहन पर एक तकनीकी मिशन को शुरू कराया।
पीली क्रांति की शुरुआत वर्ष 1986 से 1987 में हुई और इसके पश्चात भारत ने बहुत तेजी से तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की और इसके परिणाम स्वरूप भारत देश खाद्य तेलों और तिलहन उत्पादन में आगे बढ़ा।
पीली क्रांति के जनक
सैम पित्रोदा को पीली क्रांति का जनक माना जाता है और इनका पूरा नाम सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा था। सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा का जन्म भारत के उड़ीसा राज्य में 17 नवंबर 1942 को हुआ और वह डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनके सलाहकार और संयुक्त राष्ट्र के सलाहकार भी रह चुके हैं।
भारत की पीली क्रांति का जनक सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा को ही माना जाता है क्योंकि इन्होंने सन 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सलाहकार के रूप में तिलहन से से संबंधित प्रौद्योगिकी मिशनओं का नेतृत्व किया था।
पीली क्रांति किससे संबंधित है?
पीली क्रांति का सीधा संबंध में तिलहन से है और तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए विशेष रुप से तिलहन की फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पीली क्रांति को सन 1986 डेस्क 1987 में शुरू किया गया।
कुछ तिलहन की प्रमुख फसलें नीचे दी गई है:
- सरसों
- तिल
- सोयाबीन
- अरंडी
- सूरजमुखी
- अलसी
- मूंगफली
- नाइजर
- कुसुम्ब
पीली क्रांति के परिणाम
- इस क्रांति से कृषि क्षेत्र में वृद्धि हुई और तेजी से तिलहन का उत्पादन बढ़ा।
- भारत देश में ही खाद्य तेल का उत्पादन तेजी से होने से भारत की आत्मनिर्भरता खाद्य तेल के लिए दूसरे देशों से घटी।
- भारत की तेल की मांग भारत से 100% पूरी नहीं होती है परंतु पिछले कुछ दशकों में तेल का उत्पादन बढ़ा है।
- तिलहन की फसलों से किसानों की आर्थिक मदद भी हुई है और गली से सारा प्रभु आ जाता है तो आर्थिक लाभ गेहूं के समान है किसान को प्राप्त होता है।
- तिलहन की नई-नई किस्मों के बीज विकसित हुए हैं जिन्हें किसान प्राप्त कर सकते हैं।
भारत में तिलहन उत्पादन कम होने के कारण
- भारत में कुल कृषि भूमि में तिलहन उत्पादन के लिए कम क्षेत्रफल उपलब्ध है।
- भारत में तिलहन उत्पाद के लिए घरेलू चीजों का उपयोग ज्यादा किया जाता है जिससे कंडेल की प्राप्ति और कम गुणवत्ता वाले तेल की प्राप्ति होती है।
- सही तकनीक और जानकारी के बिना ही खाद्य एवं पूर्व का उपयोग किया जाता है।
- फसलों की सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग नहीं किया जाता जिस कारण फसल बर्बाद भी होती है।
- केवल मिश्रित खेती में ही इनका उत्पादन ज्यादा प्राथमिकता के साथ किया जाता है।
तिलहन उत्पादन को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
- भारत सरकार तिलहन फसलों को उगाने के लिए विशेष जानकारी किसानों को पहुंचा कर इनका उत्पादन बढ़ा सकती है।
- किसानों को तिलहन और तेल के उत्पादन के लिए अच्छा मूल्य देकर इनकी उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
- उन्नत तिलहन के बीजों का विकास करके अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
- भारत सरकार द्वारा सरसों, तिल आदि की खेती करने वाले किसानों के लिए अलग से स्कीम चलाई जा सकती है जिससे किसान सरसों और तिल जैसे तिलहन फसलों की पैदावार पर ज्यादा ध्यान दें।
निष्कर्ष
भारत देश में खाद्य तेल और तिलहन पर आतम निर्भरता के लिए पीली क्रांति की शुरुआत की जिसे भारत में खाद्य तेल का उत्पादन बढ़ा है। परंतु अभी भी भारत की जरूरत इससे पूर्ण नहीं होती और बाहर देशों के तेल को आयात किया जाता है। इसके लिए भारत सरकार को तिलहन की फसलों के लिए कोई विशेष मिशन चलाने की आवश्यकता है जिससे भारत की जरूरत है भारत के किसानों द्वारा ही पूरी की जा सके।
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