Prithviraj Chauhan/पृथ्वीराज चौहान ‘चौहान वंश’ के आखरी शासक थे और उन्हें राय पिथौरा के नाम से भी पुकारा जाता है। पृथ्वीराज चौहान ने 1170 से 1192 ईस्वी तक शासन किया और उनकी राजधानी अजमेर थी। पृथ्वीराज चौहान एक योद्धा और कुशल शासक थे लेकिन राजनीति का शिकार होने के कारण वह ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाए और अपनी रियासत गवा बैठे।
वह युद्ध कला में अति निपुण थे और उन्होंने बचपन से ही शब्दभेदी बाण विद्या का भी अभ्यास किया था। बचपन में ही पृथ्वीराज को राजा बना दिया गया और उन्हें वह राज्य विरासत में मिला था जिसकी सीमाएं उत्तर में थानेसर और दक्षिण में जहाजपुर तक फैली हुई थी।
इस लेख में हमने पृथ्वीराज चौहान की जीवनी और उनसे जुड़ा इतिहास लिखा है, इसके साथ साथ जो भी पृथ्वीराज चौहान के बारे में आपके सवाल हैं उनके जवाब आपको इस लेख में मिल जाएंगे। अगर आप पृथ्वीराज के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक पढ़ें।
पृथ्वीराज चौहान की जीवनी – Prithviraj Chauhan biography in Hindi language
पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1 जून 1163 को पाटन नामक जगह पर हुआ था। पाटन भारत के राज्य गुजरात में एक जगह का नाम है। पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम रामेश्वर और मां का नाम कर्पूरादेवी था।
पृथ्वीराज का बचपन अपने मामा के घर चालू के दरबार में बीता था। पृथ्वीराज एक शिक्षित राजा थे और उन्हें 6 भाषाओं में महारत हासिल थी। एक पाठ जिसका नाम पृथ्वीराज रासो है उसके तहत यह दावा किया जाता है कि उन्हें 6 भाषाएं नहीं बल्कि 14 भाषाओं में महारत हासिल थी। इसके साथ साथ नितीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज को इतिहास, चिकित्सा, गणित, सैन्य, चित्रकला और धर्मशास्त्र इत्यादि का अच्छा ज्ञान था।
युद्ध कला में भी पृथ्वीराज चौहान बहुत निपुण थे, खासकर तीरंदाजी में उन्हें महारत हासिल थी। बचपन में ही पृथ्वीराज चौहान के पिताजी की मृत्यु हो गई थी, चूँकि रामेश्वर एक राजा थे और पृथ्वीराज राजकुमार, तो पृथ्वीराज को उनका राज्य विरासत में मिला।
पृथ्वीराज चौहान को मारने के लिए अनेकों बार षड्यंत्र रचे गए लेकिन उनके दुश्मन इस काम में कामयाब नहीं हो पाए और वह उनके पिता की मृत्यु के पश्चात छोटी सी उम्र में ही राजा बन गए। इसके पश्चात उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाया और अन्य राजाओं को पराजित कर एक महान साम्राज्य स्थापित किया।
पृथ्वीराज चौहान के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
नाम | पृथ्वीराज चौहान |
जन्मतिथि | 1 जून 1163 |
जन्म स्थान | पाटन, गुजरात, भारत |
मृत्यु तिथि | 11 मार्च 1192 |
मृत्यु का कारण | मोहम्मद गोरी को शब्दभेदी बाण से मारने के पश्चात, दुर्गति से बचने के लिए पृथ्वीराज और उनके मित्र चंदबरदाई ने एक-दूसरे की जीवन लीला समाप्त की। |
मृत्यु का स्थान | अजमेर, राजस्थान, भारत |
पिता का नाम | रामेश्वर |
मां का नाम | कर्पूरादेवी |
धर्म | हिंदू |
वंश | चौहान वंश |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
भाई का नाम | हरी राज चौहान (उम्र में पृथ्वीराज से छोटे) |
बहन का नाम | पृथा (उम्र में पृथ्वीराज से छोटी) |
कुल पत्नी | कुल 13 पत्नियां थी |
बेटे का नाम | गोविंद चौहान |
पृथ्वीराज चौहान का शासनकाल
जब पृथ्वीराज द्वितीय की मृत्यु हुई थी उसके पश्चात पृथ्वीराज चौहान के पिता रामेश्वर को राजा का ताज पहनाया गया। राजकुमार पृथ्वीराज चौहान के बचपन में ही इनके पिताजी रामेश्वर का देहांत हो गया और इन्हें राजगद्दी संभालने पड़ी। राज गद्दी संभालने के पश्चात पृथ्वीराज चौहान ने सबसे पहली लड़ाई अपने चचेरे भाई नागार्जुन के साथ लड़ी थी।
नागार्जुन के साथ पृथ्वीराज चौहान का युद्ध
नागार्जुन, महाराज पृथ्वीराज चौहान के चचेरे भाई थे जो पृथ्वीराज चौहान के अधिकार क्षेत्र गुड़ापूरा क्षेत्र पर कब्जा करना चाहता था। गुडपुरा क्षेत्र को अब हम आधुनिक गुड़गांव के नाम से जानते हैं। यह क्षेत्र पृथ्वीराज चौहान के अधिकार में था।
पृथ्वीराज चौहान के चाचा का नाम विग्रहराज चतुर्थ था जिनके पुत्र नागार्जुन ने गुड़गुरा क्षेत्र पर कब्जा करना चाहा और नागार्जुन ने पृथ्वीराज के खिलाफ विद्रोह किया और गुड़गुरा किले पर कब्जा कर लिया। जब पृथ्वीराज को अपने चचेरे भाई की इस करतूत का पता चला तो पृथ्वीराज चौहान की पैदल सेना, हाथी सेना और घुड़सवार ओने इस किले को घेर लिया।
जब किला पृथ्वीराज चौहान की सेना से घिर चुका था तब नागार्जुन घबरा गए और वह किले से भाग खड़े हुए, लेकिन नागार्जुन के सेनापति जिनका नाम देव भट्ट था उन्होंने प्रतिरोध करने की ठानी और पृथ्वीराज की सेना के साथ युद्ध किया।
इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान विजई हुए और उन्होंने नागार्जुन की पत्नी, मां और उनके साथियों को बंदी बना लिया। पृथ्वीराज विजया में यह प्रमाण मिलता है कि उस युद्ध हारे गए सैनिकों के सिरों से एक माला बनाई गई थी जिसे अजमेर के किले के द्वार पर टांगा गया था।
पृथ्वीराज चौहान और चंदेल ओं के बीच युद्ध
पृथ्वीराज चौहान जब पदम सेन की बेटी से विवाह कर दिल्ली वापस लौट रहे थे तब उनकी टुकड़ी पर तुर्की सेना ने हमला कर दिया। पृथ्वीराज की टुकड़ी पर हुए इस हमले को उनकी टुकड़ी ने खारिज कर दिया लेकिन इस लड़ाई में वह गंभीर रूप से घायल हो गए।
इसके पश्चात वह रास्ता भटक गए और उन्होंने चंदेला की राजधानी महोबा में अपना डेरा डाल दिया। चंदेला की राजधानी महोबा में डेरा डालने पर चंदेल शाही माली ने आपत्ति जताई जिसके पश्चात चंदेल शाही माली की हत्या कर दी गई। चंदेल के राजा का नाम पर परमर्दी था और उनके जनरल का नाम उदल हुआ करता था।
राजा परमर्दी ने अपने वजीर उदल को पृथ्वीराज चौहान की टुकड़ी पर हमला करने के लिए कहा लेकिन उदल इस बात से सहमत नहीं थे और उन्होंने राजा को हमला ना करने की सलाह दी। राजा परमर्दी के बहनोई जिनका नाम महिल परिहार था उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की टुकड़ी पर हमला करने के लिए राजा को उकसाया और उनके उकसाने के पश्चात राजा ने उदल को पृथ्वीराज के शिविर पर हमला करने के लिए कहा, और उदल ने उनकी टुकड़ी पर हमला कर दिया।
परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई और उन्होंने उदल द्वारा किए गए इस हमले में उदल की टुकड़ी को हरा दिया। राजा परमर्दी और उनके बहनोई माहिल द्वारा बनाई गई इस योजना से उदल बहुत नाखुश थे और इस हार के पश्चात उदल और उनके भाई आल्हा ने चंदेल दरबार को छोड़ दिया।
जिसके पश्चात वह कन्नौज के शासक जयचंद की सेवा में लग गए। माहिल ने अपने गुप्त चोरों द्वारा पृथ्वीराज तक यह सूचना पहुंचाई की चंदेल साम्राज्य का मजबूत सेनापति अब चंदेल में नहीं है और वह राज्य छोड़कर जा चुका है। इसके पश्चात पृथ्वीराज ने चंदेल साम्राज्य पर आक्रमण किया और सिरसागढ़ क्षेत्र को घेर लिया। यह क्षेत्र उदल के चचेरे भाई मलखान के पास था।
पृथ्वीराज चौहान ने सिरसागढ़ किले पर कब्जा कर लिया, जिसके पश्चात चंदेल राज्य की तरफ से कन्नौज के शासक जयचंद को अपील की कि वह उनके सेनापति उदल व उनके भाई आल्हा को वापस भेज दें और उनकी मदद करें। परिणाम स्वरूप कन्नौज के शासक जयचंद ने अपने सबसे अच्छे सेनापतियों के नेतृत्व में एक सेना पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ भेजी जिसमें जयचंद के दोनों पुत्र भी शामिल थे।
जयचंद और चंदेल की सेना एक साथ पृथ्वीराज के खिलाफ लड़ी लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने इन्हें हरा दिया। पृथ्वीराज चौहान ने अपने सेनापति चावंड राय को राजा परमर्दी को पकड़ने के लिए भेजा, इसके पश्चात पौराणिक लेखों से पता चलता है कि राजा परमर्दी की मृत्यु हो गई या वह सेवानिवृत्त हो गए थे। इसके पश्चात पृथ्वीराज ने महोबा को इस राज्य का राज्यपाल चुना और दिल्ली वापस लौट गए।
लेकिन कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य से यह पता चलता है कि राजा परमर्दी की मृत्यु नहीं हुई थी और उन्होंने दोबारा से अपने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था।
चालुक्य सोलंकी राजा भीम द्वितीय और पृथ्वीराज के बीच गुजरात का युद्ध
एक लेख में चालुक्य सोलंकी राजा भीम द्वितीय और पृथ्वीराज चौहान के बीच संधि का उल्लेख है जिससे यह पता चलता है कि इन दोनों के बीच युद्ध लड़ा गया था और परिणाम स्वरूप दोनों के बीच संधि हुई।
एक उल्लेख से यह पता चलता है कि पृथ्वीराज के चाचा कान्हा देव ने भीम द्वितीय के चाचा सारंगदेव के 7 पुत्रों की हत्या कर दी थी और इसी का बदला लेने के लिए भीम ने चमन साम्राज्य पर हमला किया और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर को मार डाला। सोमेश्वर के मरने के पश्चात भीम ने नागौर पर अपना कब्जा जमा लिया था।
पृथ्वीराज चौहान ने नागौर पर वापस कब्जा करने के लिए भीम की सेना से युद्ध किया और नागौर पर दोबारा कब्जा कर लिया। भीम द्वितीय का शासन पृथ्वीराज की मृत्यु के पश्चात भी चला, जिसे भीम द्वितीय के पुत्र ने संभाला।
पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के बीच युद्ध
इस युद्ध को गढ़वाल युद्ध भी कहा जाता है, यह क्षेत्र राजा जयचंद के अधिकार में आता था और गढ़वाल साम्राज्य कन्नौज के आसपास केंद्रित एक क्षेत्र था। पृथ्वीराज को जयचंद की पुत्री संयोगिता के साथ प्रेम हो गया था और जयचंद की पुत्री ने पृथ्वीराज चौहान के साथ शादी की, इसके पश्चात इन दोनों राजाओं के बीच दुश्मनी हो गई।
एक लेख से यह पता चलता है कि राजा जयचंद ने राजसूय समारोह को आयोजित करने की घोषणा की लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने इस समारोह को ठुकरा दिया और इस में भाग नहीं लिया। पृथ्वीराज ने जयचंद को सर्वोच्च राजा मानने से इंकार कर दिया और इस समारोह का भाग नहीं बने। जयचंद की बेटी संयोगिता ने पृथ्वीराज के वीरता के किस्से सुने हुए थे जिसके पश्चात उन्हें पृथ्वीराज से प्यार हो गया और उन्होंने पृथ्वीराज चौहान से शादी करने की घोषणा कर दी।
पिता जयचंद ने अपनी बेटी संयोगिता के संवर के लिए एक समारोह का आयोजन किया लेकिन वहां पर पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रित नहीं किया। पृथ्वीराज ने अपने सौ योद्धाओं के साथ कन्नौज की तरफ कूच किया और उस समारोह से जयचंद की बेटी संयोगिता को अपने साथ ले गए।
इस संघर्ष में पृथ्वीराज के योद्धाओं ने गढ़वाल सेना के साथ लड़ाई की और दो-तिहाई योद्धाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। अब पृथ्वीराज अपनी नई पत्नी संयोगिता के साथ दिल्ली किले में अपना समय बिताते थे, और वह अपनी पत्नी संयोगिता पर इतने मंत्रमुग्ध हो गए कि उन्हें राज्य के अन्य मामलों में हस्तक्षेप करना छोड़ दिया।
वह राज्य के कामकाज और मामलों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे, यही आगे चलकर मोहम्मद गोरी से हार का कारण बना।
पृथ्वीराज का घुरीदों के साथ युद्ध
मुस्लिम राजवंशों घुरीदों ने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमा लिया था, और इन्होंने पृथ्वीराज पर कई आक्रमण किए। इन मुस्लिम राजवंशों घुरीदों ने सन 1175 में सिंधु नदी पार की और मुल्तान पर कब्जा कर लिया जिसके पश्चात सन 1178 में गुजरात पर आक्रमण किया और वहां पर मौजूद मंदिरों का विनाश किया।
गुजरात के रास्ते में घुरीदों ने नाडोल किले को घेर लिया जहां पर नडेला के चाहमानों का अधिकार था। सन 1178 में चालुक्यों ने मोहम्मद को हरा दिया और घुरीदों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा और यही कारण रहा कि चाहमानों पर घुरीदों ने तुरंत हमला नहीं किया।
आने वाले कुछ वर्षों में मोहम्मद ने पेशावर, सिंध और पंजाब पर अपना अधिकार जमा लिया और इन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। इन क्षेत्रों के विस्तार के लिए मोहम्मद ने अनेकों लड़ाई लड़ी जिस पर उसका सामना पृथ्वीराज से हुआ।
पृथ्वीराज चौहान के पास मोहम्मद ने एक राजदूत भेजा, और मोहम्मद को अपना राजा मानने के लिए कहा लेकिन पृथ्वीराज चौहान झुकने के लिए तैयार नहीं थे। परिणाम स्वरूप मोहम्मद ने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ युद्ध करने की ठान ली।
कुछ लेखों से हमें यह पता चलता है कि मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ 21 बार युद्ध किया था, और हर बार पृथ्वीराज, मोहम्मद गौरी को हरा देते थे और उन्हें माफ कर देते थे। लेकिन 21वीं बार ऐसा नहीं हुआ और पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी ने बंदी बना लिया।
जिसके पश्चात मोहम्मद गौरी के दरबार में ही शब्दभेदी बाण से पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया।
तराइन का प्रथम युद्ध
तराइन का प्रथम युद्ध सन 1191 में मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच सरहिंद किले के पास तराइन के मैदान में लड़ा गया था। इस युद्ध में बहादुर और निडर राजा पृथ्वीराज ने गजब का शक्ति प्रदर्शन किया और उनके नेतृत्व में मोहम्मद गौरी को बुरी तरह परास्त किया।
पृथ्वीराज अपने राज्य की सीमाओं को पंजाब तक फैलाना चाहते थे लेकिन पंजाब के इलाके पर मोहम्मद गौरी का अधिकार था। सन 1191 में पृथ्वीराज चौहान की सेना और मोहम्मद गौरी की सेना एक दूसरे के साथ भीड़ गई परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज चौहान ने सरस्वती नदी क्षेत्र और सरहिंद पर अपना कब्जा जमा लिया।
इस युद्ध में मोहम्मद गोरी बुरी तरह घायल हो गया और राजा पृथ्वीराज ने उसे माफ करने का फैसला किया और मोहम्मद गौरी मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ और इस तरह तराइन के प्रथम युद्ध में राजा पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई।
तराइन का द्वितीय युद्ध
तराइन का पहला युद्ध 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच लड़ा गया था। पृथ्वीराज चौहान हर बार मोहम्मद गोरी को बुरी तरह हराते और उन्हें जिंदा छोड़ देते थे। चंद 1191 में तराइन के प्रथम युद्ध के पश्चात 1192 में तराइन का द्वितीय युद्ध लड़ा गया।
मोहम्मद गौरी इतनी बार हार चुके थे कि वह प्रतिशोध की आग में जल रहा था। इसी बीच पृथ्वीराज चौहान ने राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता के साथ विवाह किया, जिसमें राजा जयचंद राजी नहीं थे। राजा जयचंद भी चौहान से इस बात का बदला लेना चाहते थे।
सन 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ राजा जयचंद ने एक षड्यंत्र रचा और मोहम्मद गोरी का साथ दिया। राजा जयचंद ने अपनी सेना भेजकर पृथ्वीराज का विश्वास जीता लेकिन साथ मोहम्मद गोरी का दिया परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज की इस युद्ध में हार हुई और मोहम्मद गौरी ने इनकी की आंखें निकाल ली।
एक लेख से हमें यह पता चलता है कि पृथ्वीराज चौहान को जब बंधक बनाकर मोहम्मद गौरी के दरबार में लेकर जाया गया तब पृथ्वीराज चौहान की आंखे निकाल ली गई थी और वह देखने में असमर्थ थे।
पृथ्वीराज और उनके दोस्त वहां पर बंदी बनाए गए थे और पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे और उनके दोस्त द्वारा बोले गए शब्दों को समझकर पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी की तरफ बाण चलाया जिसमें मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई।
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