शुक्रवार, मार्च 24, 2023

Rajniti Shastra – राजनीति शास्त्र का पिता, अर्थ, उद्देश्य।

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राजनीति शास्त्र या राजनीति (Rajniti Shastra/Politics) शब्द जा जन्म यूनान के ‘Polis’ शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है नगर या राज्य। राजनीति शास्त्र की उत्पत्ति बहुत प्राचीन है। राजनीति का अध्ययन बहुत जटिल भी और बहुत महत्वपूर्ण भी है। शुरुआत में यह अलग विषय नहीं था इसको समाश शास्त्र के अन्य विषयों के सन्दर्भ में ही अध्ययन किया जाता था। लेकिन आज के युग में इसका एक अलग विषय के रूप में अध्ययन किया जाता है।

राजनीति शास्त्र का अर्थ

राजनीति शास्त्र एक वृहत विषय है। राजनीति शास्त्र विषय का पितामह, पिता या जन्मदाता अरस्तु को माना जाता है। अरस्तु यूनान के एक महान चिन्तक थे। मनुष्य के राजनीतिक जीवन का सम्बन्ध समाज या राज्य से है। इन्हीं के द्वारा मनुष्य अपनी सभी जरूरतों को पूरा करता है। मनुष्य की इन जरूरतों का सम्बन्ध समाज से है। इस सम्बन्ध के कारण ही अनेक समाज शास्त्रों का निर्माण हुआ। इन सभी समाज शास्त्रों में राजनीति शास्त्र भी शामिल है।

समाज शास्त्र में मनुष्य से जुड़े हर पहलू के विषय में अध्ययन नहीं किया जाता बल्कि किसी एक पहलू का ही अध्ययन किया जाता है। राजनीति शास्त्र में भी ऐसे ही मनुष्य के राजनीतिक जीवन से सम्बंधित सभी राजनीतिक पहलुओं का अध्ययन करते हैं। एक नागरिक कोशिश करता है की उसका राज्य में रहकर विकास हो। इस तथ्य से हमें ज्ञात होता है की हमें नैतिक कल्याण के लिए क्या कदम उठाने चाहिए। इसके साथ साथ एक नागरिक राजनीति समाज का भी सदस्य है, जो अपने व्यक्तिगत या सामूहिक अधिकारों के संरक्षण के लिए किसी सरकार का निर्माण करते हैं।

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Aristotle (अरस्तु)

राजनीति शास्त्र के जन्मदाता (Aristotle)अरस्तु को माना जाता है।

राजनीति शास्त्र की हमारे पास दो परिभाषाएँ हैं। एक परिभाषा है परंपरागत परिभाषा और दूसरी है आधुनिक परिभाषा। इन दोनों परिभाषाओं में मतभेद हैं। इसलिए हम राजनीति के अर्थ को इन दोनों ही परिभाषाओं के अनुसार ही समझेंगे।

राजनीति शास्त्र की परिभाषा – Definition of Rajniti Shastra

1.परम्परागत परिभाषा

परंपरागत परिभाषा में अलग – अलग विद्वानों ने राजनीति शास्त्र को अलग – अलग अर्थों में परिभाषित किया है। कुछ विद्वान मानते हैं की राजनीति शास्त्र में हम राज्य का अध्ययन करते हैं, कुछ विद्वान मानते हैं की हम सरकार का अध्ययन करते हैं और कुछ राजनीति शास्त्र को राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन बताते हैं।

केवल राज्य के अध्ययन तक सीमित राजनीति शास्त्र की परिभाषा देने वालों में गार्नर, गेरिज, लेविस, जेलिनेक नामक शामिल हैं। केवल सरकार के अध्ययन के रूप में राजनीति को परिभाषित करने वालों में सिले, लीकौक और स्टीफेन नामक विद्वान शामिल हैं। राजनीति शास्त्र को राज्य और सरकार दोनों के अध्ययन के रूप में परिभाषित करने वालों में लास्की, गेटेल, पालजेनेट और गिलक्रिष्ट नामक विद्वान शामिल हैं।

परंपरागत दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति शास्त्र की परिभाषा निम्नलिखित सन्दर्भों में की जा सकती है:

  1. सिर्फ सरकार के अध्ययन का विषय: कुछ विचारकों का मत है की राजनीति में सिर्फ सरकार का अध्ययन किया जाना सर्वोत्तम रहेगा। उनका मानना है की राज्य तो खुद मनुष्यों का ही एक संगठन है जबकि सरकार उस राज्य को चलाने के लिए एक तंत्र है। सरकार का कोई स्वरूप है अर्थात् सरकार एक मूर्त संस्था है जो राज्य के सभी कार्यकलापों को पूर्ण करती है। राज्य के सब कार्य सरकार के माध्यम से ही पूर्ण होते हैं। अतः सरकार का अध्ययन करना ही राजनीति में होना चाहिए।
  2. सिर्फ राज्य के अध्ययन का विषय: कुछ विचारकों का मत है की राजनीति शास्त्र एक राज्य के अध्ययन का विषय है। क्योंकि हर कार्य राज्य के आधार पर ही किया जाता है। राज्य मनुष्यों से मिलकर बना है, और हर राजनीतिक संस्था का मुख्य कार्य मनुष्यों या राज्य के कल्याण के लिए ही होता है। राजनीति राज्य से प्रारंभ होकर राज्य पर ही अंत हो जाता है। राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध राज्य से ही है, इसमें यह समझने का प्रयास किया जाता है की राज्य के आधारभूत तत्त्व क्या हैं, राज्य के वित्तीय पहलू क्या हैं, राज्य के मूर्त पहलू (जमीन, निवासी), आर्थिक स्थिति क्या है तथा इसके उद्देश्य इत्यादि के बारे में अध्ययन किया जाता है। इसलिए राजनीति को राज्य के अध्ययन के रूप में देखा जाना चाहिए।
  3. राज्य और सरकार दोनों के अध्ययन का विषय: कुछ विद्वानों और विचारकों ने राजनीति शास्त्र को राज्य और सरकार दोनों के ही अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है। यह एक व्यापक दृष्टिकोण है। उनका मानना था की राज्य और सरकार दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राज्य और सरकार दोनों एक दुसरे पर निर्भर करते हैं। अगर राज्य एक अमूर्त धारणा है तो सरकार राज्य को एक रूप प्रदान करती है। राज्य को चलाने के लिए सरकार जैसे किसी तंत्र की आवश्यकता है तो सरकार जैसे तंत्र का महत्व तभी संभव है जब कोई राज्य हो। राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों का अध्ययन करना राजनीति में शामिल है।
  4. मानवीय तत्त्व के अध्ययन का विषय: कुछ विचारकों ने उपरोक्त वर्णित परिभाषाओं की आलोचना करते हुआ कहा है की मानव तत्त्व के बिना राज्य और सरकार दोनों ही महत्वहीन और उद्देश्यहीन हैं। उन्होंने कहा है की उपरोक्त वर्णित धारणाओं में मानव तत्त्व की उपेक्षा की गई है। मानव तत्त्व है तभी किसी राज्य के निर्माण के विषय में सोचा जा सकता है क्योंकि राज्य मानवों का ही संगठन है। और सरकार का प्रत्येक कार्य मानव तत्वों के कल्याण के लिए ही होता है। इसलिए उन्होंने राजनीति को मानवीय तत्त्व के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है। क्योंकि सरकार द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय मावन तत्त्व के सन्दर्भ में ही होता है।

2. आधुनिक परिभाषा

आधुनिक दृष्टिकोण में भी राजनीति (Rajniti Shastra) को अलग – अलग सन्दर्भों में परिभाषित किया गया है। किसी ने राजनीति शास्त्र को शक्ति का अध्ययन कहा तो किसी ने मानव क्रियाओं का अध्ययन, किसी ने इसे निर्णय प्रकिया का अध्ययन बोला तो किसी ने राजनीति शास्त्र को राज व्यवस्थाओं का अध्ययन कहा।

आधुनिक दृष्टिकोण के आधार पर राजनीति शास्त्र (Rajniti Shastra) की परिभाषा निम्नलिखित सन्दर्भों में की जा सकती है:

  1. शक्ति के अध्ययन के रूप में: इस धारणा पर कैटलीन और लास्वेल नामक विचारकों ने ज्यादा जोर दिया है। इनका मानना है की अपने नियंत्रण और प्रभाव की भावनाओं के आधार पर जिस संस्था, राज्य या सरकार का निर्माण किया जाता है उसका अध्ययन ही राजनीति शास्त्र है। मनुष्य की प्रभावशील बनने की इच्छा में शक्ति भाव निहित होता है। उन्होंने कहा है की राजनीति एक संघर्ष है जिसकी मनुष्य अपने नियंत्रण और प्रभाव स्थापित करने के लिए करता है। इस संघर्ष का आधारभूत श्रोत है मनुष्य की यह इच्छा की हर आदमी उसके नियंत्रण और प्रभाव को स्वीकार करे।
  2. एक राज व्यवस्थाओं के अध्ययन के रूप में: आर केगन, आमंड नामक विचारक इस धारणा पर जोर देते हैं की राजनीति शास्त्र एक राज व्यवस्थाओं का अध्ययन है। उनका मानना है की राज व्यवस्था, समाज व्यवस्था की ही एक उप-व्यवस्था है, जिसके विभिन्न अंग होते है। राज व्यवस्था में अलग – अलग विभिन्न संरचनाएँ या संस्थाएँ होते हैं, जो इस राज व्यवस्था का अभिन्न अंग होती हैं जिनमें संविधान, सरकार, न्याय प्रणाली, लोकमत, दबाव समूह, निर्वाचन, राजनीतिक दल इत्यादि संस्थाएँ होती है। इन सभी संस्थाओं या संरचनाओं का मानवीय राजनीतिक जीवन से सम्बन्ध के सन्दर्भ में ही हम राजनीति शास्त्र का अध्ययन करते हैं।
  3. मानवीय क्रियाओं के अध्ययन के रूप में: इस दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति मानव के राजनीति जीवन, उसके राजनीतिक व्यवहार एवं राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययन है। मानवीय व्यवहार को गैर राजनीतिक तत्त्व भी प्रभावित करते हैं, जिनका अध्ययन हम राजनीति शास्त्र में करते हैं। इसलिए मानवीय व्यवहार को महत्व देते हुए उन्होंने मत दिया है की राजनीति शास्त्र को मानवीय क्रियाओं के अध्ययन के रूप में देखा जाना चाहिए।
  4. निर्णय प्रक्रिया के अध्ययन के रूप में: कुछ विचारकों ने राजनीति को निर्णय निर्माण या निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन बताया है। मनुष्य के राजनीतिक जीवन में शासन के माध्यम से निर्णय लेने का कार्य खुद व्यक्ति ही करता है। व्यक्ति की निर्णय लेने की प्रक्रिया पर व्यक्ति के व्यक्तित्व, राजनीतिक विचारों, धर्म, जाति, व्यक्ति का मानसिक स्तर, संस्कृति इत्यादि तत्वों का बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए राजनीति शास्त्र में निर्णय लेने की प्रक्रिया या निर्णय निर्माण का अध्ययन शामिल होना चाहिए।

उपरोक्त वर्णित विचारधाराओं के आधार में कह सकते हैं की राजनीति शास्त्र एक राज्य, सरकार, मानवीय क्रियाओं, शक्ति, राजनीतिक संस्थाओं, व्यक्ति के निर्णय लेने की प्रक्रिया के अध्ययन का एक व्यापक विषय है।

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राजनीति शास्त्र की विचारधाराएँ – Ideologies of Rajniti Shastra

राजनीति शास्त्र सर्व व्यापक है और इन्सान के सामाजिक जीवन ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत जीवन को भी राजनीति शास्त्र प्रभावित करता है। उपरोक्त वर्णित विचारधाराओं के अलावा भी कुछ निम्नलिखित विचारधाराएँ हैं जिनको हमें ध्यान में रखना चाहिए:

  • विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन: शक्ति, निर्णय प्रक्रिया, प्रभाव, महत्व, सत्ता और नियंत्रण ये कुछ ऐसे अवधारणाएँ है जिनके आधार पर ही राजनीतिक संस्थाएँ कार्य करती हैं। इन अवधारणाओं के सन्दर्भ में ही राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।
  • मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन: व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले राजनीतिक तत्त्व तो हैं ही लेकिन साथ ही कुछ ऐसे गैर राजनीतिक तत्त्व भी हैं जो व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। इन गैर राजनीतिक तत्वों का अध्ययन भी राजनीति शास्त्र में होना चाहिए क्योंकि ये तत्त्व भी व्यक्ति के राजनीतिक जीवन पर और उसके राजनीतिक व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं।
  • सर्वसम्मति के अध्ययन के रूप में: राजनीति शास्त्र हमारी सार्वजनिक समस्याओं के लिए सार्वजनिक सहमती का अध्ययन है। किस भी समस्या को सुलझाने के लिए वार्ता, तर्क वितर्क, शक्ति प्रयोग और विचार विमर्श का प्रयोग करने के अध्ययन को राजनीति में शामिल किया जाना चाहिए।
  • संघर्षों और समस्याओं के अध्ययन के रूप में: राजनीति में संघर्षों और समस्याओं के अध्ययन को शामिल करना चाहिए। क्योंकि हमारे पास साधनों का अभाव है इसलिए उनके वितरण के लिए समस्या पैदा होती है और परस्पर विरोधी इच्छाओं वाले व्यक्ति या संस्थाओं में वितरण को लेकर संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है। इसलिए इन संघर्षों और समस्याओं के अध्ययन को राजनीति शास्त्र में शामिल किया जाना चाहिए।

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