दोस्तों, स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्ति के जीवन में क्या भूमिका निभाती है यह इसी विचार से समझ आ जाएगा की अगर हमें कोई बोलने ना दे, कहीं घूमने ना दे, अपनी संपत्ति का इस्तेमाल नहीं करने दे, व्यवसाय ना करने दे तो क्या होगा। ऐसे विचार करने मात्र से आप डरने या घबराने लगेंगे, क्योंकि ऐसी स्थिति में किसी भी व्यक्ति के लिए जीना संभव नहीं है।
भारतीय संविधान के भाग 3 के अंतर्गत, स्वतंत्रता का अधिकार। अनुच्छेद 19-22 (Right to freedom article 19-22) के तहत हमको अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक सभा करने की स्वतन्त्रता, संगठन बनाने की स्वतन्त्रता, व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, प्रारम्भिक शिक्षा का अधिकार आदि की गारंटी देता है, जिससे की देश के नागरिक अपने आप को स्वतंत्र महसूस कर सके।
स्वतंत्रता का अर्थ है किसी भी तरह से व्यक्ति पर प्रतिबंध ना होना। यह विचार पश्चिमी राजनीतिक विचारकों का है। उन्होने स्वतंत्रता को दो तरह से विभाजित किया है।
- नकारात्मक स्वतंत्रता
- सकारात्मक स्वतंत्रता
अगर व्यक्ति को ऐसी आजादी हो की बिना किसी प्रतिबंध के वह कुछ भी करे या ना करे ऐसी स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता कहा जाएगा और जो स्वतंत्रता व्यक्ति के सकारात्मक विचारों में निहित हो जिसको कोई दूसरा नियंत्रित या प्रतिबंधित ना कर सके ऐसी स्वतंत्रता को हम सकारात्मक स्वतंत्रता कहेंगे।
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अंग्रेजों से हर भारतवासी को इसलिए परेशानी या उनसे बैर था क्योंकि उन्होने हमारी स्वतंत्रता को हमसे छीन लिया था। खुलकर अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकते थे, अपनी संपत्ति का प्रयोग करने से पहले अंग्रेजों से आज्ञा लेनी पड़ती थी, अपनी पसंद का व्यवसाय करने की स्वतंत्रता इत्यादि नहीं थी। हमें हमारी स्वतंत्रता बहुत प्रिय होती है, इसलिए बहुत सारे लोग देश की आजादी के लिए शहीद हुए और उनकी शहादत के कारण हम आजादी से रह रहे हैं, कार्य कर रहे हैं, विचार व्यक्ति कर रहे हैं, घूम रहे हैं।
जीवन में स्वतंत्रता होती है तो व्यक्ति को अपनी कार्यशैली, नए विचार, कला और उत्पादन आदि की गुणवता में वृद्धि करने का मौका मिलता है। आजादी से रहने के कारण व्यक्ति खुद को समय दे पाता है और अपने बारे में विचार कर पाता है। यह स्वतन्त्रता व्यक्ति के जीवन में बहुत लाभदायक होता है।
आजादी के बाद हमारे देश ने बहुत प्रगति भी की और इसके साथ साथ संविधान में देश के नागरिकों के लिए स्वतंत्रता का प्रावधान भी किया। इस लेख में right to freedom article 19-22 in hindi संक्षिप्त में उल्लेख किया गया हैं।
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स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?
भारतीय संविधान के भाग 3 में 6 मौलिक अधिकार दिए गए हैं जिनमे से एक है स्वतंत्रता का अधिकार जो की अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 के अंतर्गत आता है। इस अधिकार के तहत हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक और स्वतंत्रता से जीने गारंटी दी जाती है।
इस अधिकार के तहत विचारों को व्यक्त करने, शांति पूर्वक सभा करने, संघ बनाने, भ्रमण करने, निवास करने और भेदभाव से मुक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। इस अधिकार से संविधान की प्रास्तावना में दिए गए स्वतंत्रता के आदर्शों को बढ़ावा मिलता है, जिससे की व्यक्तियों के बीच की असमानताओं को दूर करके उनको गौरवपूर्ण जीवन जीने की गारंटी दी जा सके।
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पढ़ें: मौलिक अधिकार – परिभाषा, इतिहास, विशेषताएँ, सम्पूर्ण जानकारी।
स्वतंत्रता के अधिकार का महत्व
स्वतंत्रता का व्यक्ति के जीवन में जो महत्व है उससे कहीं ज्यादा महत्व स्वतंत्रता के अधिकार का है, क्योंकि इस अधिकार के चलते ही व्यक्ति खुद को स्वतंत्र महसूस करता है। अगर यह अधिकार व्यक्ति को नहीं मिलता तो उसके जीवन में स्वतन्त्रता की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी। स्वतन्त्रता के अधिकार का महत्व निम्नलिखित है:-
- स्वतंत्रता का अधिकार, संविधान द्वारा दिए गए 6 मौलिक अधिकारों में से एक है।
- इस अधिकार के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाता है की प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
- यह अधिकार हमको राज्य के हस्तक्षेप के बिना विचारों को व्यक्त करने, शांति पूर्वक सभा करने, संघ बनाने, भ्रमण करने, निवास करने और भेदभाव से मुक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- नागरिकों के साथ शोषण ना हो सके इसके लिए इस अधिकार के तहत कुछ मामलों में व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी या हिरासत में लिए जाने के विरुद्ध अधिकार दिए गए हैं।
- इस अधिकार से शिक्षा को बढ़ावा मिलता है क्योंकि इसमें प्रारम्भिक शिक्षा का अधिकार दिया गया है।
- यह अधिकार संविधान की प्रास्तावना में दिए गए स्वतंत्रता के आदर्शों को बढ़ावा देता है।
- इस अधिकार से एक लोकतान्त्रिक समाज की रूपरेखा का मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत प्रावधान
26 नवंबर, 1949 को जब यह अधिकार लागू हुआ उस समय इस अधिकार के अनुच्छेद 19 के तहत 7 प्रावधान या 7 तरह की स्वतंत्रता दी गई थी, जिनमें से एक छठी ”संपत्ति की स्वतंत्रता” थी। इस स्वतन्त्रता को 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा समाप्त कर दिया गया इसके साथ साथ संपत्ति के मौलिक अधिकार को भी समाप्त कर दिया गया।
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लेकिन संपत्ति का अधिकार पूर्ण रूप से संविधान से नहीं हटाया गया है। संपत्ति का अधिकार अब भी संवैधानिक अधिकार है और भारतीय संविधान में अनुच्छेद 300 ए में वर्णित किया गया है। वर्तमान में स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत अनुच्छेद 19-22 के तहत निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ या प्रावधान शामिल हैं:-
1. अनुच्छेद 19:- इस अनुच्छेद के तहत वर्तमान समय में 6 तरह की स्वतंत्रताएँ प्राप्त हैं जिनका उल्लेख निम्न हैं:-
- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 खंड (1) (a)
- शांतिपूर्वक (अस्त्र-शस्त्र रहित) सभा करने की स्वतंत्रता 19 खंड (1) (b)
- संघ, संगठन, समुदाय, सहकारी समिति निर्माण करने की स्वतंत्रता 19 खंड (1) (c)
- भारत के राज्य क्षेत्र में कहीं भी भ्रमण करने की स्वतंत्रता 19 खंड (1) (d)
- भारत के राज्य क्षेत्र में कहीं भी निवास करने की स्वतंत्रता 19 खंड (1) (e)
- उपजीविका, पेशा, व्यवसाय, व्यापार और वृति करने की स्वतंत्रता 19 खंड (1) (g)
विचार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता अनुच्छेद 19 खंड (1)
इस स्वतंत्रता के तहत भारत के हर नागरिक को विचार करने, भाषण देने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। भारतीय नागरिकों को ना सिर्फ विचारों को व्यक्त करना, भाषण देना बल्कि उनका प्रचार करने की भी स्वतन्त्रता प्राप्त है। हम अपने विचारों या भाषणों को लिखित, मौखिक, चित्रों, प्रिंट या अन्य किसी माध्यम से भी प्रचार कर सकते हैं।
लेकिन यह स्वतंत्रता हमको असीमित रूप में नहीं मिली है। इसकी सीमा को तय करते हैं इस अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत किए गए क्रियाकलाप। इस स्वतंत्रता के क्रियाकलापों से किसी दूसरे नागरिक की स्वतंत्रता या मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। इसके अलावा कुछ निम्नलिखित मामलों में राज्य इस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकता है:-
- देश की संप्रभुता, एकता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए।
- अदालत की अवमानना करने से रोकने के लिए।
- सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए।
- कोई अपराध करने के लिए किसी को उकसाने के लिए आदि।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press) को भी शामिल किया गया है, क्योंकि प्रेस को भी विचारों के प्रसार और प्रचार का साधन माना गया है। सूचना का अधिकार भी इसी स्वतंत्रता में शामिल किया गया है, क्योंकि सूचना प्रदान करने, मांगने और प्राप्त करने को भी अभिव्यक्ति और विचार की स्वतन्त्रता के एक पहलू के रूप में माना गया है और इसके चलते ही बाद में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005) बनाया गया और उसमे इस स्वतंत्रता को शामिल किया गया। इसके अलावा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत चुप रहने के अधिकार को भी शामिल किया गया है।
शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) खंड b
इसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को सामूहिक रूप से इकट्ठा होकर शांतिपूर्ण सभा या बैठकें आयोजित करने की स्वतंत्रता है। यह स्वतंत्रता भी हमें असीमित रूप से नहीं मिली है। इस स्वतंत्रता की भी सीमाएं हैं। किसी सभा या बैठक से किसी दूसरे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों या स्वतंत्रता का हनन नहीं होना चाहिए। इस स्वतंत्रता की कुछ सीमाएं हैं जो निम्नलिखित हैं:-
- सभा या बैठक शांतिपूर्ण होनी चाहिए।
- सभा या बैठक निहत्थे होनी चाहिए अर्थात किसी के पास हथियार नहीं होना चाहिए।
- सभा या बैठक का उद्देश्य अवैध नहीं होना चाहिए अगर ऐसा हुआ तो यह सभा ipc की धारा 141 के अंतर्गत गैरकानूनी सभा मानी जाएगी और पाँच या पाँच से अधिक व्यक्तियों की ऐसी सभा अवैध मानी जाएगी।
अनुच्छेद 19 (1) (b) से संबन्धित प्रावधान:-
- राजद्रोह निवारण अधिनियम, 1911 (Sedition Prevention Act, 1911) के अंतर्गत किसी भी स्थान को ”घोषित स्थान” घोषित करने का अधिकार राज्य सरकार को है, अगर इस धोषित स्थान पर किसी को सभा करनी है तो उसके लिए मजिस्ट्रेट को सभा से 3 दिन पहले सूचना देनी अनिवार्य है।
- मेजिस्ट्रेट द्वारा धारा 144 के अंतर्गत आपात स्थिति में आदेश जारी करके सार्वजनिक सभा करने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 129 के अंतर्गत पुलिस अधिकारियों और मेजिस्ट्रेट को अधिकृत किया गया है की वह सार्वजनिक शांति को भंग करने के उद्देश्य से की जाने वाली गैरकानूनी सभाओं को खत्म किया जाए।
संघ/ संगठन/ समुदाय/ सहकारी समिति बनाने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 खंड (1) c
इस स्वतंत्रता के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को संघ/ संगठन/ समुदाय/ सहकारी समिति बनाने क अधिकार है। लेकिन इस स्वतंत्रता को भी कुछ प्रतिबंधों से सीमित किया हुआ है। अगर किसी संघ या संगठन आदि के निर्माण से किसी दूसरे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों या स्वतंत्रता का हनन होता है तो ऐसे संघ को गैर कानूनी माना जाएगा।
खंड 4 के अंतर्गत राज्य को यह अधिकार प्राप्त है की राष्ट्रीय हित, सार्वजनिक शांति और लौकतान्त्रिक व्यवस्था को भंग करने वाले किसी भी संघ या संगठन को प्रतिबंधित किया जा सकता है। ऐसी प्रतिबंधित संघ या संगठन में व्यक्ति के सिर्फ शामिल होने से ही वह अपराधी माना जाएगा चाहे उसने कोई अपराध किया हो या नहीं। समाज, कंपनियाँ, व्यापार यूनियन, राजनीतिक दल, क्लब आदि संघ या संगठन में शामिल हो सकते हैं।
पुलिस अधिकारियों को किसी भी ट्रेड यूनियन के निर्माण करने की अनुमति नहीं है।
भारतीय सीमा क्षेत्र में कहीं भी भ्रमण/ संचरण करने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 खंड (1) (d)
इसके अंतर्गत प्रत्येक भारतीय नागरिक को भारतीय सीमा क्षेत्र के किसी भी क्षेत्र में बिना किसी प्रतिबंध के भ्रमण करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। अगर कोई व्यक्ति या संस्था किसी भी नागरिक की इस स्वतंत्रता को छिनते हैं तो वह नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है। लेकिन खंड 5 के अंतर्गत अनुसूचित या आदिवासी जंजातियों के हितों की रक्षा के लिए उनके निवास क्षेत्र में प्रवेश पर राज्य इस स्वतन्त्रता पर प्रतिबंध लगा सकता है।
भारतीय सीमा क्षेत्र में कहीं भी बसने या रखने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) e
इसके अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को भारतीय सीमा क्षेत्र में कहीं भी रहने या बस जाने का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार भारतीय नागरिक को उनकी एकहरी नागरिकता के आधार पर दिया गया है। लेकिन अनुसूचित या आदिवासी जंजातियों के हितों की रक्षा के लिए उनके निवास क्षेत्र में बस जाने या रहने पर राज्य द्वारा प्रतिबंध लगाया जा सकता है। 5 अगस्त 2019 से पूर्व जम्मू और कश्मीर राज्य इस स्वतन्त्रता के दायरे से बाहर था। लेकिन सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को एक अधिनियम को पारित किया गया और धारा 370 को हटा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान समय में प्रत्येक नागरिक को जम्मू और कश्मीर में भी बस जाने या रहने की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है।
उपजीविका/ व्यवसाय/ व्यापार/ वृति करने की स्वतंत्रताअनुच्छेद 19 खंड (1) g
इस स्वतंत्रता के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को अपनी आजीविका के लिए कोई भी व्यवसाय, व्यापार, पेशा और उपजीविका अपनाने की स्वतंत्रता है। लेकिन आजीविका के लिए किया गया कोई गैर कानूनी व्यापार, पेशा या व्यवसाय नहीं किया जा सकता है। अगर यह व्यवसाय, व्यापार या पेशा असंवैधानिक पाया जाता है तो उसको चलाने वाले व्यक्ति के लिए उचित दंड का प्रावधान भी किया हुआ है।
इसके अंतर्गत राज्य द्वारा किसी भी नागरिक के किसी व्यवसाय, व्यापार या पेशा करने की राह में बाधा नहीं डालेगा और ना ही किसी नागरिक को कोई व्यवसाय करने के लिए बाध्य करेगा। लेकिन राज्य किसी व्यवसाय या पेशा करने के लिए आवश्यक योग्यता निर्धारित कर सकता है, जिससे की उस व्यवसाय के लिए अनुभवी और उस कार्य में निपुण व्यक्ति ही चुने जाए और कार्य सरलता, मितव्ययी और सुचारु रूप से हो सके।
2. अनुच्छेद 20: अपराधों में दोषसिद्धि के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार
इस अनुच्छेद के अंतर्गत दोषी या आरोपी के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी दी जाती है। इस अनुच्छेद के तहत निम्नलिखित 3 प्रकार से दोषियों य आरोपियों के अधिकारों की रक्षा की गारंटी दी गई है:-
- पूर्वव्यापी कानून अनुच्छेद 20 खंड (1) – Ex post facto law
- दोहरा दंड अनुच्छेद 20 खंड (2) – Double Jeopardy
- आत्म दोषारोपण के खिलाफ अधिकार अनुच्छेद 20 खंड (3) – Self Incrimination
पूर्वव्यापी कानून अनुच्छेद 20 (1) – ex post facto law
इसके अंतर्गत उन क़ानूनों से व्यक्तियों को सुरक्षा दी गई है, जिन क़ानूनों के तहत किसी ऐसे कार्य करने पर सजा दी गई हो जो कार्य उस समय (जब उस कार्य को किया गया हो) वैध था और जिसको बाद में अपराध घोषित किया गया हो। अर्थात राज्य कोई पूर्वव्यापी प्रभाव को प्रतिबंधित करने वाला कोई कानून नहीं बना सकता है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत किसी व्यक्ति को उस सजा से अधिक सजा नहीं दी जा सकती है जो सजा उस कानून के तहत थी जो उस कार्य करने के समय लागू था। इस अनुच्छेद के अंतर्गत इस प्रकार के पूर्वव्यापी आपराधिक कानून पर प्रतिबंध लगता है।
दोहरा दंड अनुच्छेद 20 (2) – double jeopardy
इस अनुच्छेद के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती है। इस अनुच्छेद के प्रावधान तभी लागू होंगे जब न्यायालय के समक्ष यह प्रस्तुत किया जाए की इस अपराध के लिए आरोपी को दंड दिया जा चुका है, जिस अपराध के लिए मुकदमा चल रहा है। अगर इस अपराध के लिए आरोपी को पहले दंड नहीं मिला है तो इस अनुच्छेद के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
आत्म दोषारोपण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 20 (3) – self incrimination
इसके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति खुद के खिलाफ बयान देने के लिए बाध्य या मजबूर नहीं किया जा सकता है। क्योंकि इस प्रकार बाध्य करके अगर आरोपी अपने खुद के खिलाफ बयान देता है तो उस बयान को अदालत में आरोपी के खिलाफ सबूत के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य को किसी भी व्यक्ति को खुद के खिलाफ दोषी साबित करने के योग्य सबूत प्रस्तुत करने पर मजबूर या बाध्य करने की अनुमति नहीं दी गई है।
3. अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार – protection of life and personal liberty in hindi
इस अनुच्छेद के तहत किसी भी व्यक्ति की जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए किसी के द्वारा भी नहीं छीना जा सकता है। यह अनुच्छेद बहुत व्यापक है। इसके अंतर्गत बहुत सारे अन्य निहित अधिकार भी शामिल किए गए हैं। इन निहित अधिकारों के कारण ही इस अनुच्छेद का विस्तार हुआ है और मानवाधिकार के विकास में योगदान मिला है।
निहित या अनुमानित अधिकार वो अधिकार हैं जिनका उल्लेख हमारे संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं किया गया है लेकिन हमारी न्यायपालिका की उदार व्याख्याओं की वजह से यह अधिकार गारंटीकृत अधिकारों के रूप में समझे गए हैं। इन अधिकारों के कारण विभिन्न राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को मान्यता प्रदान की है जिनको मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना आवश्यक था।
यह अधिकार सिर्फ राज्य (राज्य में सरकार, स्थानीय संगठन, विधायिका और सरकार द्वारा संचालित संस्था भी सम्मिलित हैं) के विरुद्ध किए दावों पर ही लागू होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मिले अधिकारों को ”मौलिक अधिकारों के हृदय” की संज्ञा दी है।
अनुच्छेद 21 के तहत निहित या अनुमानित अधिकार निम्नलिखित हैं:-
- निजता का अधिकार
- प्रारम्भिक शिक्षा का अधिकार
- आजीविका का अधिकार
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु का अधिकार
- यौन उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार
- पसंद के व्यक्ति से शादी का अधिकार
- प्रतिष्ठा का अधिकार
- स्वच्छ वातावरण का अधिकार
- विदेश यात्रा का अधिकार
- स्वास्थ्य का अधिकार
- हिरासत में हिंसा के विरुद्ध अधिकार
- त्वरित न्याय का अधिकार
- बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास का अधिकार
प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार (अनुच्छेद 21 अ)
4. अनुच्छेद 22: कुछ मामलों में हिरासत और गिरफ्तारी के विरुद्ध अधिकार – Protection against arrest and detention in certain cases
अनुच्छेद 22 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को पुलिस द्वारा मनमाने ढंग से गिरफ्तार करने के खिलाफ अधिकारों के लिए विभिन्न सुरक्षा उपाय प्रदान करता है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत निवारक निरोध कानून (Preventive detention law) बनाने के लिए विधायिका को अधिकृत भी किया गया है।
अनुच्छेद 22 के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार निम्नलिखित हैं:-
- गिरफ्तारी के आधार के विषय में जानने का अधिकार: इसके तहत प्रत्येक गिरफ्तार हुए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों के विषय में सूचित किया जाता चाहिए, जिससे की वह व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी के संबंध में कोई भ्रम ना रहे और वह व्यक्ति अपने बचाव के लिए तैयारी कर सके।
- अपनी पसंद के वकील के साथ परामर्श करने और कानूनी प्रतिनिधित्व करने का अधिकार: गिरफ्तार हुए व्यक्ति को अपने पसंद का वकील चुनने, उससे परामर्श करने और कानूनी प्रतिनिधित्व करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। अगर कोई वकील गिरफ्तार हुए व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए उपस्थित नहीं है तो उसके लिए न्याय मित्र की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके अलावा गिरफ्तार व्यक्ति को अगर कोई कानूनी प्रतिनिधित्व करने के लिए वकील नहीं मिलता है तो वह खुद भी अपने लिए पैरवी कर सकता है।
- गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने का अधिकार: इस अधिकार के अंतर्गत अगर पुलिस किसी मामले में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो उस व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर-अंदर (यात्रा के समय को छोडकर) निकटतम मेजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना पड़ता है। यह इसलिए किया जाता है जिससे की मेजिस्ट्रेट द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सके की व्यक्ति की गिरफ्तारी मनमाने ढंग से अवैध तरीके से ना की गई हो।
- उक्त अवधि के पश्चात हिरासत में नहीं रखे जाने का अधिकार: इस अधिकार के अंतर्गत गिरफ्तार हुए व्यक्ति को मेजिस्ट्रेट के अधिकार के बिना उस अवधि से ज्यादा समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है जो की मेजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित की गई हो।
अनुच्छेद 22 के अंतर्गत मिले हुए अधिकारों के कुछ अपवाद भी हैं जो निम्नलिखित हैं:-
- विदेशी दुश्मन
- निवारक निरोध कानून के तहत गिरफ्तार किया हुआ व्यक्ति
शिक्षा का अधिकार (Right to education or RTE)
शिक्षा का अधिकार अधिनियम, अगस्त 04, 2009 में पारित किया गया था और 1 अप्रैल, 2010 से यह पूरे भारत में लागू कर दिया गया था। यह अधिकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 अ के अंतर्गत शामिल किया गया है। इसके तहत गरीब बच्चों और 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों को प्रारम्भिक या मूल शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य किया गया है। इस अधिकार का मुख्य उद्देश्य बच्चों के शशक्तिकरण हेतु प्रोत्साहन देना है और गरीब बच्चों को मूल शिक्षा देना है। Right to education act की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-
- यह अधिनियम मानसिक उत्पीड़न और शारीरिक दंड का निषेध करता है।
- इस अधिनियम के तहत मुफ्त शिक्षा देने के नाम पर अगर किसी स्कूल ने बच्चों से फीस मांगी तो उस स्कूल से 10 गुना फीस वसूली जाएगी और उस स्कूल की मान्यता भी रद्द कर दी जाएगी।
- इस अधिनियम के तहत बिना मान्यता प्राप्त स्कूलों के संचालन पर रोक लगाई जाती है।
- इस अधिनियम के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त प्रारम्भिक शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है।
- इस अधिनियम के तहत अगर किसी स्कूल की मान्यता रद्द की गई है और उसके पश्चात भी उस स्कूल का संचालन किया जाता है तो उस स्कूल से 1,10,000 Rs. दंड के रूप में वसूले जाएंगे।
- इस अधिनियम के तहत अगर कोई बच्चों दिव्यांग है तो इस स्थिति में शिक्षा के लिए बच्चों की आयु सीमा को 14 से 18 वर्ष किया गया है।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 धारा (1) (c) के तहत निजी गैर अल्पसंख्यक स्कूल जिसको आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं होती है वह स्कूल आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए प्रवेश में कम से कम 25 % सीटों का आरक्षण देगा।
निष्कर्ष
स्वतंत्रता हमें कितनी प्रिय होती है यह बात तो सबको पता ही है, इसलिए ही संविधान में विशेष स्थान दिया है। यहाँ तक की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत अनुच्छेद 21 को तो सर्वोच्च न्यायालय ने ”मौलिक अधिकारों का हृदय” की संज्ञा दी है। इसलिए हमें कोई भी ऐसा कृत्य नहीं करना चाहिए जिससे किसी दूसरे व्यक्ति के स्वतन्त्रता के अधिकारों का हनन हो और संविधान के स्वतन्त्रता के आदर्शों के प्रोत्साहन में मदद करनी चाहिए।
स्वतंत्रता का अधिकार pdf
FAQ
मौलिक अधिकारों का हृदय किसे कहा जाता है?
अनुच्छेद 21 को मौलिक अधिकारों का हृदय कहा जाता है।
RTE Act, 2009 धारा (1) (c) के तहत गरीब बच्चों को स्कूल में प्रवेश के लिए कितने % सीटों का आरक्षण दिया गया है?
25 % सीटों का आरक्षण दिया गया है गैर अल्पसंख्यक स्कूलों में जिनको आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं होती है।
किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बाद बिना मेजिस्ट्रेट की आज्ञा के किस अवधि तक हिरासत में नहीं रख सकते हैं?
गिरफ्तार करने के बाद व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे (यात्रा समय को हटाकर) के अंदर निकटतम मेजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना पड़ता है, मेजिस्ट्रेट गिरफ्तार को वैध मानता है तो इस अवधि को बढ़ा सकता है।
राज्य द्वारा घोषित स्थान पर सभा करने के लिए क्या करना पड़ता है?
राज्य द्वारा घोषित स्थान पर सभा करने के लिए मेजिस्ट्रेट को सभा करने से 3 दिन पूर्व सूचना देनी अनिवार्य होती है।
सूचना का अधिकार (Right to Information or RTI) अधिनियम कब लागू हुआ?
RTI Act 2005 में लागू हुआ।