इस लेख में `शीलं परम भूषणं` श्लोक का अर्थ समझाया जाएगा जोकि इंसान के चरित्र के विषय में ही है।
चरित्र, एक ऐसा शब्द जो बोलने में और लिखने मैं तो छोटा लगता है लेकिन यह शब्द मनुष्य की सब योग्यता और उपलब्धियों से ऊपर है। चरित्र निर्माण से ही इंसान के श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इंसान का चरित्र, स्वभाव, व्यवहार, चाल चलन जैसी विशेषताएं ही इंसान के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देती हैं। मनुष्य कितनी ही उपलब्धियां हासिल कर ले या फिर कितनी ही उसकी योग्यता हो लेकिन अगर उसका चरित्र खराब होगा तो वह सब योग्यताएं और उपलब्धियां किसी काम की नहीं।
ऐश्वर्यस्य विभूषणम सुजनता शौर्यस्य वाक्संयमो।
ज्ञानस्योपशमः श्रुतस्य विनयो वितस्य पात्रे व्ययः।।
अक्रोधस्तपसः क्षमा प्रभावितुर्धर्मस्य निर्व्याजता।
सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं शीलं परम भूषणं।।
उपरोक्त वर्णित `शीलं परम भूषणं` श्लोक का अर्थ – ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है, शुरता का आभूषण अभिमान रहित बातें करना है, ज्ञान का आभूषण शांति है, विद्या का आभूषण विनय है, धन का आभूषण किसी सुपात्र को दान देना है, तप का आभूषण क्रोधहीनता है, समर्थ का आभूषण क्षमा है और धर्म का आभूषण पाखंड और दिखावे से दूर रहना है। फिर भी इन सब गुणों का श्रेष्ठ आभूषण और कारण शीलता अर्थात शील है।
जो भी मनुष्य चरित्रवान, सदाचारी, अच्छे स्वभाव और अच्छे व्यवहार वाला होगा तो वही सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति होगा, चाहे उसमें अन्य गुण हो या ना हो। क्योंकि यह जगजाहिर है कि ऐसा मनुष्य कभी कुछ गलत काम नहीं करता है।
उपरोक्त वर्णित श्लोक उज्जैन के राजा भर्तृहरि द्वारा रचित शतकत्रय नामक ग्रंथ से लिया गया है। भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे जिन्होंने बाद में वैराग्य धारण किया और सन्यासी बन गए।
इस ग्रंथ के तीन खंड हैं- श्रृंगार शतकम, नीतिशतकम् और वैराग्य शतकम। इन तीनों खंडों में सो – सो श्लोक हैं। यह श्लोक नीतिशतकम् वाले खंड से लिया गया है।
संख्या | श्लोक | श्लोक का अर्थ |
---|---|---|
1 | ऐश्वर्यस्य विभूषणम सुजनताऐश्वर्यस्य विभूषणम सुजनता शौर्यस्य वाक्संयमो। | ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है, शौर्य का आभूषण अभिमान रहित बातें करना है। |
2 | ज्ञानस्योपशमः श्रुतस्य विनयो वितस्य पात्रे व्ययः।। | ज्ञान का आभूषण शांति है, विद्या का आभूषण विनय है, धन का आभूषण किसी सुपात्र को दान देना है। |
3 | अक्रोधस्तपसः क्षमा प्रभावितुर्धर्मस्य निर्व्याजता। | तप का आभूषण क्रोधहीनता है, समर्थ का आभूषण क्षमा है और धर्म का आभूषण पाखंड और दिखावे से दूर रहना है। |
4 | सर्वेषामपि सर्वकारणमिदं शीलं परम भूषणं।। | इन सब गुणों से श्रेष्ठ आभूषण शीलता है। |
शीलं परम भूषणं श्लोक का अर्थ (Sheelam Param Bhushanam meaning in hindi)
शील का अर्थ है चरित्र, परम का अर्थ है सर्वोच्च या श्रेष्ठ और भूषणम् का अर्थ है आभूषण। इन तीनों संस्कृत के शब्दों को मिलाकर इनका संपूर्ण हिंदी अर्थ है – चरित्र ही मनुष्य का सबसे श्रेष्ठ आभूषण है या फिर चरित्र ही सर्वोच्च गुण है
मनुष्य का व्यवहार, आचरण, चाल – चलन, बोलने का तरीका आदि गुणों से ही मनुष्य में शीलता आती है। यह शीलता ही मनुष्य के व्यक्तित्व को श्रेष्ठ बनाती है। मनुष्य के पास कितना ही धन हो या फिर कितने ही सोने चांदी के गहने हो, यह सब व्यर्थ होंगे अगर मनुष्य विनम्र नहीं होगा, शिष्टाचारी नहीं होगा, चरित्रहीन होगा, बोल में मिठास नहीं होगी, अच्छा व्यवहार नहीं होगा। जिस मनुष्य का चरित्र अच्छा होगा वह अपने स्वभाव और व्यवहार से सबका दिल जीत सकता है।
आपने कभी किसी बड़े अधिकारी को यह श्लोक बोलते हुआ सुना भी हो सकता है, क्योंकि भारत में सबसे बड़ी सेवा अर्थात सिविल सेवा (Civil Service) को उत्तीर्ण करने के बाद जब अभ्यर्थी प्रशिक्षण (Training) करने के लिए LSBNAA जाते हैं तो प्रवेश करते समय ही यह श्लोक प्रवेश द्वार पर लिखा हुआ है, इस सेवा का ध्येय वाक्य ही शीलं परम भूषणं है
पंचतंत्र में भी चरित्र के विषय में उल्लेख किया गया है – विभूषणं शीलसमं न चान्यत् जिसका अर्थ है की चरित्र के समान और कोई आभूषण नहीं है
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