Uniform Civil Code का अर्थ है कि भारत में रहने वाले सभी नागरिक एक समान हैं और उनके लिए कानून भी एक समान है चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो। Uniform Civil Code में जो अलग-अलग धर्म में शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंटवारे में ऐसा मानता है वह खत्म हो जाती है, और सभी धर्मों के लिए एक कानून होता है।
सन 1840 में पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत इस समान नागरिक संहिता का जिक्र आया था और उस समय से ही Uniform Civil Code बहस का मुद्दा बना हुआ है। सवतंत्रता के बाद भारत में हिंदू सिविल कोड की माँग उठी थी, जिसका विरोध हुआ और यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने का मुद्दा उठाया गया, जिसमें सभी धर्मों के पर्सनल लॉ विलय हो सके। Uniform Civil Code को हिंदी में समान नागरिक संहिता कहा जाता है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून होता है जिसमें सभी धर्मों के लोगों को एक समान रूप से देखा जाता है। यह लागू होने के पश्चात सभी धर्मों के लोगों के लिए मजहब का कोई भी कानून लागू नहीं होगा जबकि देश में सभी धर्मों के लोगों पर एक समान रूप से कानून लागू होंगे।
जिस प्रकार से धर्मों में शादी तलाक या जमीन के बंटवारे इत्यादि के लिए अलग-अलग कानून है वह सभी Uniform Civil Code होने पर समाप्त हो जाते हैं। जिस प्रकार से मुस्लिम धर्म में तीन तलाक का मुद्दा, या एक से ज़्यादा शादी इत्यादि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत होता है। वहीं ईसाई और पारसी का अपना पर्सनल लॉ है, जबकि जैन, बौद्ध, सिख और हिंदू सभी सिविल लॉ के अंतर्गत आते हैं।
अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की ज़िम्मेदारी बनती है की Uniform Civil Code को लागू किया जाए। परंतु अभी तक यह एक बहस का मुद्दा बना हुआ है, और यह देश में लागू नहीं हो पाया है। परंतु यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के प्रयास अभी जारी है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या है?
भारत देश के सभी मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत ही मुस्लिम पुरुष और महिलाएँ शादी करते हैं, और तलाक़ जैसे मामले भी इसी पर्सनल लॉ बोर्ड से निपटाए जाते हैं। इसके तहत हलाला जैसी बुरी कृति सा सामना भी मुस्लिम महिलाओं को करना पड़ता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत जब तलाक़ दिया जाता है तो उसके गुजरे भत्ते के लिए कोई भी नियम नहीं है। इस लॉ के तहत पुरुष को सभी प्रकार की छूट दी गयी है, जबकि महिलाओं के अधिकारों को दबाया जाता है। इसीलिए कुछ मुस्लिम विद्वान भी इसका विरोध करते हैं। जबकि कुछ मुस्लिम व्यक्ति इसका समर्थन करते हैं।
हिंदू पर्सनल लॉ क्या है?
भारत में हिंदू धर्म के लिए भी पर्सनल लॉ लाया गया था, जिसका विरोध हुआ और उसे 4 हिस्सों में बाँट दिया गया। इस क़ानून ने महिलाओं को मज़बूत बनाया है और इसी क़ानून के तहत महिला को पति और पिता की सम्पत्ति का अधिकार मिलता है।
हिंदू पर्सनल लॉ के 4 हिस्से:
- हिन्दू मैरिज एक्ट
- हिंदू सक्सेशन एक्ट
- हिन्दू एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट
- हिन्दू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट
इस लॉ में एक जाति के व्यक्ति या महिला को दूसरी जाति के व्यक्ति या महिला से शादी करने का अधिकार है। हिंदू लॉ के तहत कोई भी व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के प्रभाव
देश में सिविल राइट दल कई बार भारत सरकार से यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की माँग कर चुके हैं। जिनका मक़सद यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करके धार्मिक रूढ़िवाद को ख़त्म किया जा सके और जो धार्मिक पर्सनल लॉ की वजह से बहुत सारी ज़िंदगी कुचली हुई है, उन्हें भी इंसाफ़ मिल सके।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने पर धार्मिक पर्सनल लॉ का कोई महत्व नहीं रहेगा।
- एक से ज़्यादा विवाह पर रोक लगेगी और तीन तलाक़ जैसी कुप्रथा पर रोक लगेगा।
- हलाला जैसी कुरीति समाप्त होंगी और मुस्लिम महिलाओं को इस से छुटकारा मिलेगा।
- महिलाओं को भी पुरुषों की तरह अपने पिता की सम्पत्ति पर समान अधिकार मिलेगा, यह अभी हिंदू लव के तहत होता है परंतु मुस्लिम महिलाएँ इस अधिकार से वंचित हैं।
- मुस्लिम महिला तलाक़ के बाद पति की सम्पत्ति पर जो अधिकार नहीं मिल रहा है, वह मिलना शुरू होगा।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने पर सभी धर्मों के लोगों पर क़ानून समान रूप से लागू होगा।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना सब पर हिंदू धर्म लॉ लागू करने जैसा बताया जा रहा है, जिसका दूसरे धर्म के लोग विरोध कर रहे हैं।
यूनिफॉर्म सिविल कोड के फ़ायदे और विशेषताएँ
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने पर देश के सभी नागरिकों पर यह निष्पक्ष और समान रूप से लागू होगा जिसके कुछ फायदे और विशेषताएं नीचे दी गई हैं।
- यह पूर्ण रूप से धर्मनिरपेक्ष है और निष्पक्ष कानून है जो देश के नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है।
- धर्म के नाम पर फैली हुई कुप्रथा पर रोक लगेगी और रूढ़िवादी विचारधाराओं से दबी कुचली जिंदगी यों को इंसाफ मिलेगा।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने पर देश में सामाजिक परिवर्तन होगा और सभी लोग एक समान रूप से इस कानून का पालन करेंगे।
- अलग-अलग धर्मों के नियम और कानून की वजह से न्यायपालिका पर पड़ने वाला बोझ समाप्त होगा और न्यायपालिका अपने फैसले और तेजी से ले सकेगी।
- धर्मों के अलग-अलग कानून समाप्त होंगे जिससे देश में एकता और अखंडता को बढ़ावा मिलेगा और देश का कानून और अधिक मजबूत होगा।
- सामाजिक कुरीतियों का खात्मा होने पर समाज में फैली बुराइयों का भी खात्मा होगा।
- धर्म के नाम पर महिलाओं के अधिकारों की कमी को दूर किया जाएगा।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने पर देश का नागरिक समान रूप से अपनी बात रख सकता है और न्यायालय से एक समान न्याय पा सकता है।
- लड़कियों की शादी करने की उम्र में बढ़ोतरी होगी, जिस प्रकार से अभी धर्मों के पर्सनल लॉ की वजह से शादी में उम्र में अंतर है वह अंतर ख़त्म होगा।
- मुस्लिम महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार प्राप्त होगा।
- लिव इन में रहने वाले पुरुष और महिलाओं को डिक्लेरेशन देने की आवश्यकता नहीं होगी।
- पंजीकरण के बिना शादी मान्य नहीं होगी।
- पुरुष और महिला को समान रूप से तलाक़ और शादी के अधिकार प्राप्त होंगे।
- एक से अधिक शादी पर पूर्ण रूप से रोक लगेगी।
भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड क़ानून की क्या आवश्यकता है?
आज के समय में न्यायपालिका पर धर्मों के अलग क़ानून की वजह से अतिरिक्त बोझ पड़ता है। जब Uniform Civil Code लागू होगा तो न्यायपालिका पर पड़ने वाला यह अतिरिक्त बोझ ख़त्म होगा और जो लम्बे समय से इन सभी से सम्बंधित मामले न्यायलय में लम्बित है उनके फ़ैसले जल्दी से निपटेंगे।
सभी धर्मों के लोगों के लिए शादी, तलाक़, ज़मीन का बँटवारा और गोद लेने का क़ानून एक समान होगा। आज के समय में इस तरह के फ़ैसले सभी धर्मों के पर्सनल लॉ द्वारा किए जाते हैं। जो भी धर्मों के पर्सनल लॉ की वजह महिलाएँ दबाई जाती है वह सब समाप्त होगा और यह न्यायिक फ़ैसले सिर्फ़ एक क़ानून के तहत होंगे।
समान नागरिक संहिता लागू होने से महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा और पुरुष के समान उनको अधिकार मिलेगा, चाहे वह किसी भी धर्म से सम्बंध रखते हों। इसके साथ जो भी शादी, तलाक़ और गोद लेने आदि के मामले हैं वह सभी के लिए एक समान होंगे।
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भारत में UCC लागू ना होने का कारण
भारत में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग रहते हैं, जिनकी वजह से यह अब तक लागू नहीं हो पाया है। इसके कुछ कारण नीचे दिए गये हैं।
- अलग अलग समुदायों की अलग अलग मान्यता है। जिसके कारण इसका विरोध किया जा रहा है।
- किसी विशेष धर्म में महिलाओं की आज़ादी और हक़ को पुरुषों के बराबर नहीं बताया गया है, इसीलिए रूढ़िवादी लोगों ने इसका विरोध किया है और इसके लागू होने के बीच में रोड़ा बने हैं।
- कुछ विशेष सोच के व्यक्तियों अपनी रूढ़िवादी सोच को आगे रख कर, इस क़ानून का विरोध कर रहे हैं।
- अलग धर्म के लोग इस समान नागरिक संहिता क़ानून को हिंदू धर्म में मिली महिला को आज़ादी से जोड़ कर देख रहे हैं, और इसका विरोध करते हैं।