पहाड़ों की तलहटी में एक बहुत ही सुंदर नगर हुआ करता था जहां पर एक बहुत धनी व्यापारी रहते थे, जिनका नाम सेठ ताराचंद था। उनका एक बेटा था जिसका नाम मोहन था, मोहन परिवार में सब का दुलारा था और सभी उसको बहुत प्यार करते थे।
सेठ ताराचंद भी अपने बेटे को बहुत अधिक प्यार करते थे और उसकी सभी इच्छाएं पूरी करते थे, सेठ ताराचंद और परिवार के प्यार ने मोहन को बहुत बिगाड़ दिया था। मोहन को समय पर सब कुछ मिल जाता था और घर में किसी भी चीज का अभाव नहीं होने के कारण उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती थी। यही कारण था कि मोहन को मेहनत का महत्व नहीं पता था और उसने अपनी जिंदगी में गरीबी नहीं देखी थी।
सेठ ताराचंद अपनी मेहनत से इतने अमीर बने थे और उन्हें मेहनत का महत्व पता था लेकिन बहुत ही जल्द उन्हें यह एहसास हो गया कि उनका बेटा मोहन मेहनत करने में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखता और उसे मेहनत के महत्व के बारे में कुछ नहीं पता। लेकिन सेठ ताराचंद ने यह ठान लिया था कि उसे अपने बेटे मोहन को मेहनत और उसके महत्व के बारे में सिखाना है, क्योंकि बिना मेहनत करें वह अपनी जिंदगी में आगे नहीं बढ़ सकता और अगर उसे समय से मेहनत के महत्व के बारे में नहीं पता चला दो वह उसके लिए सही नहीं होगा।
सेठ ताराचंद ने मोहन को अपना व्यापार संभालने के लिए कहा, और उसे अपने व्यापार के गुण सिखाएं। ताराचंद अपने बेटे मोहन को हर रोज समय पर दुकान पर पहुंचने के लिए कहते थे और उसे समझाते थे कि बिना मेहनत के व्यक्ति अपने जीवन में कुछ प्राप्त नहीं कर सकता। लेकिन मोहन यह बात समझने को तैयार नहीं था और उसका सोचना यह था कि उसका परिवार इतना अमीर है कि उसे मेहनत करने की जरूरत ही नहीं है।
मोहन अपने पिता जी के कहने पर दुकान पर जाता लेकिन वह वहां पर कोई काम नहीं करता और सारा दिन बैठकर शाम को घर वापस आ जाता। मोहन के पिता जी ताराचंद इस बात से बहुत परेशान थे लेकिन उन्होंने भी अपने बेटे मोहन को सुधारने के बारे में ठान लिया था।
एक दिन मोहन के पिता जी ने उसे अपने पास बुला कर उसे डांट कर कहा कि मोहन तुम्हारा इस परिवार में कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि तुम एक नाकारा व्यक्ति हो और तुमने मेरे कारोबार में भी कोई सहयोग नहीं किया इसीलिए तुम्हारा मेरे धन पर कोई हक नहीं है। सेठ ताराचंद ने साफ साफ शब्दों में मोहन को कहा की ” जो भी तुम अपनी मेहनत से धन कमाओगे उसी के मुताबिक तुम्हें दो वक्त का खाना दिया जाएगा और आज के बाद जो भी तुम्हें ऐसो आराम मिल रहा है वह नहीं मिलेगा”।
मोहन ने इस बात को ज्यादा गहराई से नहीं लिया और उसने हर रोज अपने पिताजी को पैसे देने की एक तरकीब सोची। मोहन हर रोज घर से जाता और अपने जानकार, दोस्तों इत्यादि से पैसे लाकर शाम को पिताजी को दे देता। जो भी पैसे मोहन शाम को घर लेकर आता सेठ ताराचंद तालाब में डालने के लिए बोल देते और मोहन ऐसा ही करता। मोहन को भरपेट भोजन मिल रहा था, लेकिन ऐसा ज्यादा समय तक नहीं चलने वाला था।
मोहन के जानकार बारी-बारी उससे दूर हटने लगे और अब मोहन को अपने जानकारों से पैसा नहीं मिलता था, धीरे-धीरे मोहन को मिलने वाला धन कम होने लगा। जब मोहन कम पैसे घर पर लेकर आने लगा तो उसे कम खाना दिया जाने लगा। 1 दिन मोहन बिना पैसे लिए घर पर आया और मोहन को बहुत भूख लगी हुई थी लेकिन सेठ ताराचंद ने मोहन को भोजन नहीं दिया।
अगले दिन मोहन सुबह उठा और नगर में जाकर काम ढूंढने लगा, किस्मत से मोहन को लकड़ी काटने का काम मिल गया। मोहन ने बहुत मेहनत से दिनभर लकड़ियां काटी और उसके बदले जो पैसे उसने कमाए उसे शाम को घर लाकर अपने पिताजी को दे दिया। सेठ ताराचंद ने उन पैसों को तालाब में डालने के लिए कहा, लेकिन ऐसा सुनकर मोहन को गुस्सा आया और उसने वह पैसे तालाब में नहीं डालें। मोहन ने अपने पिता जी ताराचंद को कहा कि “पिताजी मैं इतनी मेहनत से पैसे कमा कर लाया हूं और आप इन पैसों को तालाब में डालने के लिए बोल रहे हैं”, यह बात कहते हुए मोहन को बहुत गुस्सा आया हुआ था।
मोहन के पिता जी यह पहले से ही जानते थे कि मोहन हर रोज जानकारों से और दोस्तों से पैसे लाकर घर पर देता है, और उनको पता था कि किसी ना किसी दिन उसे वह पैसे मिलने बंद हो जाएंगे। लेकिन जब मोहन ने यह बात कही तो सेठ ताराचंद को समझ आ गया कि मोहन आज अपनी मेहनत से और पसीना बहा कर धन कमा कर लाया है।
मोहन के पिता जी सेठ ताराचंद ने मोहन को गले लगा लिया और उसे समझाया कि अगर जिंदगी में कुछ बनना है और आगे बढ़ना है तो मेहनत करना बहुत जरूरी है। बिना मेहनत के आप कुछ समय तो व्यतीत कर सकते हैं, लेकिन अगर आप मेहनत नहीं करेंगे तो आप जिंदगी में आगे नहीं बढ़ सकते। अब मोहन भी मेहनत के महत्व के बारे में समझ गया था। सेठ ताराचंद ने अपना व्यापार मोहन को सौंप दिया, और मोहन ने अपनी मेहनत से पिताजी के व्यापार को आगे बढ़ाया।
“मेहनत का महत्त्व” कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
आज के समय में अमीर परिवारों के ऐसे अनगिनत बच्चे हैं जिन्हें मेहनत के महत्व के बारे में नहीं पता, और उनका यह सोचना है कि उनके माता-पिता ने जो कमाया है उसी से वह अपनी जिंदगी व्यतीत कर लेंगे। ऐसे बच्चों को पैसों का महत्व नहीं पता होता लेकिन वास्तविकता यह है कि लक्ष्मी उसी घर में आती है जहां पर उसका सम्मान किया जाता है।
आप चाहे किसी भी परिस्थिति में हो लेकिन यदि आप मेहनती हैं तो आप किसी भी परिस्थिति से बाहर आ सकते हैं। जैसे इस कहानी में हमने पढ़ा की सेठ ताराचंद के पास इतना पैसा था कि मोहन अपनी जिंदगी आसानी से बिता सकता था, लेकिन अगर मोहन को मेहनत के महत्व के बारे में नहीं पता चलता तो उसकी आगे आने वाली पीढ़ियां मोहन को कोसती। क्योंकि धन अपने आप नहीं बढ़ता उसे मेहनत करके कमाया जाता है। क्योंकि आपके पास चाहे जितना भी धन हो यदि आप मेहनत नहीं करते हैं और सिर्फ उस धन को खर्च करना जानते हैं तो किसी ना किसी समय वह समाप्त हो जाएगा।
हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति मेहनत नहीं करता उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता।