जीरो का मतलब है कि “कुछ भी नहीं”, आज इस पोस्ट में हम यह जानेंगे कि जीरो की खोज किसने की और इसके अलावा भी बहुत सारी रोचक जानकारियां जीरो के बारे में जानेंगे।
दोस्तों बात जब जीरो की हो रही हो और भारत का नाम ना आए ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि जीरो की खोज भारत में ही हुई थी। जीरो की खोज करने वाले महान गणितज्ञ और खगोल विद आचार्य आर्यभट्ट थे, आचार्य आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम जीरो को पांचवी सदी में एक संख्या के रूप में इस्तेमाल किया था।
आज पूरा विश्व यह जानता है कि शून्य की खोज भारत में हुई थी। वर्णमाला यानी अल्फाबेट के अविष्कार के बाद जीरो का आविष्कार सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है जिसे विश्व में मौजूद गणितज्ञों ने स्वीकारा है। इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि जीरो का आविष्कार क्रांतिकारी था।
0 का इतिहास
मौजूदा जीरो जो आज के समय हम देखते हैं उसका विकास भारत में हुआ है, दूसरे शब्दों में कहें तो जीरो की खोज भारत में पांचवी शताब्दी से ही पहले हुई थी। भारत में लगभग तीसरी या चौथी शताब्दी में पांडुलिपि में 0 का उल्लेख मिलता है।
सन् 1881 में पेशावर में ( मौजूदा पाकिस्तान का शहर ) एक किसान को खुदाई के दौरान यह दस्तावेज मिले थे, जिनको रडीयो-कार्बन डेटिंग तकनीक के द्वारा जाँचा गया और पाया की इस दस्तावेज का एक हिस्सा तीसरी, दूसरा 7वीं और नया हिस्सा 9वीं और 10वीं शताब्दी के हैं। इस पांडुलिपि में शून्य को बिंदु के रूप में दर्शाया गया है।
उस समय बिंदु का उपयोग सुनने की तरह संख्यात्मक रूप में नहीं होता था, बल्कि बिंदु का उपयोग स्थान निर्धारक अंक यानी प्लेसहोल्डर के रूप में बड़ी संख्याएं जैसे 101, 1100 आदि में किया जाता था। इस बिंदु की मदद से व्यापारियों आदि को गणना करने में सहायता होती थी और वह आसानी से बिंदु की मदद से गणना करते थे।
प्राचीन सभ्यताओं में “कुछ भी नहीं” यानी जीरो की अवधारणा पता थी लेकिन इसे दर्शाने के लिए प्रतीक मौजूद नहीं था। सबसे पहले भारत के गणितज्ञ समीकरणों को कविता की तरह गाया करते थे और उन कविताओं में “कुछ भी नहीं” यानी जीरो को अंतरिक्ष और आकाश शब्दों द्वारा वर्णित करते थे।
भारत के महान विद्वान पिंगला ने सबसे पहले जीरो के लिए “शून्य” शब्द का प्रयोग किया था।
जीरो की खोज – 0 ki khoj kisne ki ?
भारत के एक महान विद्वान और गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने जीरो और उसके सिद्धांतों को परिभाषित किया था जिसके लिए उन्होंने बिंदु के रूप में जीरो को दर्शाया। इसके अलावा उन्होंने संख्याओं को जोड़ने और घटाने में जीरो के प्रयोग से संबंधित नियम भी लिखें।
इसके बाद भारत के ही महान खगोल विद और गणितज्ञ आचार्य आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली में सबसे पहले 0 का उपयोग किया था। और आधुनिक जो जीरो हम देखते हैं उसकी खोज आर्यभट्ट ने की थी। जिसका उपयोग उन्होंने सर्वप्रथम दशमलव प्रणाली में किया था।
आचार्य आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक आर्यभटिय में जीरो को कुछ इस प्रकार दर्शाया है।
एक (1), दश (10), शत (100), सहस्र (1000), अयुत (10000), नियुत (100000), प्रयुत (1000000), कोटि (10000000), अर्बुद (100000000)
जीरो की खोज से पहले बड़ी संख्याओं को कैसे लिखा जाता था?
वैदिक काल में भी बड़ी संख्याओं का उल्लेख हमें मिलता है और यजुर्वेद में भी परार्थ संख्याओं तक का वर्णन हमें मिलता है, इसके अलावा बोध सूची के ग्रंथ ललित विस्तार में सबसे बड़ी संख्या “तल्लक्ष्णा” मिलती है।
- परार्थ = 1012
- तल्लक्ष्णा = 1053
जीरो की खोज से पहले अगर किसी संख्या में जीरो का उपयोग होना होता तो संख्या की शुरुआत में ही खाली जगह छोड़ दी जाती थी। लेकिन 300 ईसवी पूर्व बेबीलोन सभ्यता में जीरो के उपयोग के तथ्य मिलते हैं, जहां वह जीरो की जगह दो तिरछी पट्टियों का प्रयोग करते थे। लेकिन इन दो तिरछी पार्टियों को पूरी तरह से जीरो की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सका। या यह कहें कि वर्तमान में जीरो की तरह तिरछी पट्टियां वह कमाल नहीं दिखा सके जो भारतीय जीरो ने दिखाया।
इसके अलावा चीनी सभ्यता में भी जीरो के लिए कोई अलग अंक नहीं मिलता बल्कि चीनी सभ्यता में भी जीरो के लिए खाली स्थान छोड़ दिया जाता था।
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जीरो को किन नामों से पुकारा जाता है?
- प्राचीन काल में हिंदी हस्त लिपियों में जीरो के लिए “शून्यम” शब्द का उपयोग किया जाता था।
- प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने जीरो का इस्तेमाल सबसे पहले बिंदु के रूप में किया था और उस समय बिंदु को ‘पूज्यम’ नाम से पुकारा जाता था।
- डाइनो सीएस जो एक मिस्र के राजदूत थे उन्होंने 0 शब्द के लिए “नल्ला” शब्द का उपयोग किया था।
- भारत से जीरो अलग-अलग देशों में पहुंचा और जब जीरो शब्द अरब में पहुंचा तो इसे “सिफ़्र” कहा गया।
- उर्दू में “सिफ़्र” को यानी 0 शब्द को “सिफर” कहा गया।
- 11वीं शताब्दी में लिखी गई पुस्तकों में भी “गलगल” शब्द का उपयोग जीरो के लिए किया गया, इब्राहिम बिन मीर इब्न इजरा की किताबों में इसका वर्णन मिलता है।
- इटली के एक गणितज्ञ फिबोनैकी ने अपनी पुस्तक में 0 शब्द को “जेफीरम” कहां, इसके बाद इटली में ही इसे “जेफिरो” कहा जाने लगा। “Zero” शब्द का उपयोग वेनेटियन किया गया जो वर्तमान समय में जीरो के लिए इंग्लिश शब्द माना जाता है।
- इसके अलावा जीरो के लिए यानी “कुछ भी नहीं” के लिए अंग्रेजी में “Nill” शब्द का भी उपयोग होता है।
0 ki khoj kisne ki से जुड़े कुछ सवाल
जीरो की खोज किसने की?
जीरो की खोज भारत के महान गणितज्ञ और खगोल विद आचार्य आर्यभट्ट ने की थी।
0 की खोज कब हुई?
जीरो और उसके सिद्धांतों को गणितज्ञ ब्रह्मा गुप्त ने परिभाषित किया था जिसके बाद आचार्य आर्यभट्ट ने पांचवीं शताब्दी ने जीरो की खोज की।
0 की शुरुआत कब हुई?
जीरो का साक्ष्य भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त की रचना में बिंदु के रूप में मिलता है, बिंदु को सबसे पहले जीरो के प्रतीकात्मक रूप की तरह उपयोग किया जाता था। जिसके बाद आर्यभट्ट ने आधुनिक जीरो की खोज की।
बेबीलोन सभ्यता में 0 का उपयोग।
बेबीलोन सभ्यता में 0 को तिरछी धारियों द्वारा दर्शाया जाता था। लेकिन तिरछी धारियों द्वारा जीरो को दर्शाना ज्यादा प्रचलित नहीं हुआ।
0 का आविष्कार किस देश में हुआ?
0 का आविष्कार सर्वप्रथम भारत में हुआ, जिसकी खोज आर्यभट्ट ने की थी।
प्राचीन काल में गिनती कैसे होती थी।
प्राचीन काल में 10, 100, 1000 आधी संख्या को संस्कृत में लिखा जाता था जैसे 10 के लिए दशम, 100 के लिए शतम और हजार के लिए सहस्त्र आदि।
रावण के 10 सिर कैसे गिने जाते थे?
प्राचीन काल में भी 10 की संख्या को समझा जाता था, जिसके लिए संस्कृत में दशम शब्द का उपयोग होता था। आज के समय में हम 10 को 1 और 0 को मिलाकर लिखते हैं। लेकिन यह सिर्फ हमारा लिखने का तरीका है, जबकि 10 की संख्या को प्राचीन काल में भी समझा जाता था।