1857 की क्रांति पूरे भारत वर्ष में फैली हुई थी और पूरे ज़ोर शोर से भड़की हुई थी। लेकिन कुछ कारणों के चलते यह क्रांति सफल नहीं हो सकी। इस लेख में 1857 की क्रांति की असफलता के कारण के विषय में संक्षिप्त जानकारी दी गई है।
1857 की क्रांति के असफल होने के कारण
- इस विद्रोह को राष्ट्रीय आंदोलन की संज्ञा भी दी गई थी लेकिन विभिन्न क्षेत्रों के बहुत से हिस्से इस विद्रोह से नहीं जुड़ पाये थे और इस विद्रोह का पूर्ण रूप से देशव्यापी स्तर पर प्रसार नहीं हो पाया था।
- इस विद्रोह के असफल होने का एक कारण यह भी था की यह विद्रोह योजनाबद्ध तरीके से नहीं हो पाया। यह विद्रोह अलग अलग क्षेत्रों में फैला था लेकिन अलग अलग समय पर। अगर जीतने लोग इस विद्रोह में शामिल हुए थे वो सब एक समय और योजनाबद्ध तरीके से विद्रोह करते तो इस विद्रोह के परिणाम ही कुछ और होते।
- इस विद्रोह में प्रभावी नेताओं का अभाव रहा। इस विद्रोह का नेतृत्व करने वाले ज़्यादातर नेता ऐसे थे जिन्होंने क्रांतिकारियों द्वारा बहुत आग्रह करने के बाद इस विद्रोह की बागडोर को सम्भाला। केवल रानी लक्ष्मी बाई, नाना साहिब और तात्या टोपे जैसे नेता ही कुशलता से इस विद्रोह को सम्भाल रहे थे। कुछ नेता तो अपनी वृद्ध अवस्था में थे। प्रभावी नेतृत्व न होने के कारण कार्य करने में कुशलता और संगठन का भी अभाव था।
- मराठों, सिक्खों और गौरखों की रेजीमेंट ने बहादुर शाह के खिलाफ खड़े होकर अंग्रेजों का साथ दिया। क्योंकि इनको अंग्रेजों ने बहादुर शाह के खिलाफ भड़काया था। अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमान के बीच धार्मिक हिंसा के बीज बोए लेकिन वो उसमे कामयाब न हो सके लेकिन उन्होंने इन तीन रेजीमेंट को अपनी तरफ कर लिया की अगर बहादुर शाह जीत गया और शासक बना तो वो फिर उन पर अत्याचार करेगा। सिक्खों को अंग्रेजों की बात मानने के कारण था अंग्रेजों द्वारा फैलाया हुआ झूठा फरमान। अंग्रेजों ने बहादुर शाह के नाम फरमान निकाला था की अगर बहादुर शाह जीत गया तो सिक्खों को मारा जाएगा और उनका क़त्ले आम किया जाएगा।
- अंग्रेजों के पास लड़ने के लिए आधुनिक हथियार अत्याधिक मात्रा में थे जबकि क्रांतिकारियों के पास सिर्फ तीर-कमान, भाले, तलवार जैसे परंपरागत इत्यादि हथियार ही थे।
- इस विद्रोह में किसी क्षेत्र के सामंतों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया तो किसी क्षेत्र के सामंतों ने अंग्रेजों का साथ दिया इस विद्रोह को रोकने में। उत्तरी भारत के सामंतों ने अंग्रेजों के खिलाफ इस विद्रोह में हिस्सा लिया जबकि पटियाला, हैदराबाद, ग्वालियर और जींद के सामंतों ने अंग्रेजों का साथ दिया।
- इस विद्रोह में समयबँध तरीके से योजना का अभाव था। यह विद्रोह समय से पहले भड़क गया। अगर इस विद्रोह का कोई समय अनुसार निर्धारित कार्यक्रम होता तो अवश्य ही यह विद्रोह सफल होता।
- इस विद्रोह में सब वर्गों का पूर्ण रूप से जुड़ाव नहीं पाया। क्योंकि इसमें सब वर्गों के विद्रोह के कारण अलग अलग थे। किसान, साहूकारों और जमींदारों से विद्रोह कर रहा था। कामगार वर्ग पूँजीपतियों से, सैनिक ब्रिटिश सेना के अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे तो धार्मिक नेता ईसाई मिशनरियों के खिलाफ। इसलिए इस विद्रोह में स्थानीय उद्देश्य की वजह से यह विद्रोह असफल रहा।
- एक राष्ट्रीय भाषा के अभाव के कारण भी यह विद्रोह असफल रहा। क्योंकि अंग्रेजों के पास एक भाषा अंग्रेजी थी लेकिन भारत में भिन्न भिन्न क्षेत्रों की भाषाएँ अलग-अलग थी जिसे सूचना एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने में उसका स्वरूप बादल जाता था। यह भाषीय कारण भी इस विद्रोह के असफल होने के मुख्य कारणों में से एक था।
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