1857 की क्रांति पूरे देश में फैली हुई थी, लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे थे जहां यह क्रांति बहुत जोर शोर और उग्र रूप से फैली थी। अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग व्यक्तियों द्वारा इस क्रांति की अगुवाई की जा रही थी। इस लेख में इस क्रांति से प्रभावित क्षेत्रों और इस क्रांति का नेतृत्व किन व्यक्तियों के हाथों में था की संक्षिप्त में जानकारी दी गई है।
1857 की क्रांति से प्रभावित क्षेत्र
इस क्रांति का केंद्र दिल्ली और उत्तर प्रदेश थे लेकिन इसके साथ साथ यह पूरे भारत में फैली हुई थी। अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति को दबाने के लिए, गलत धारणाएँ फैलाने के प्रयास किए। उन्होंने इस क्रांति को सिर्फ एक सैन्य विद्रोह बताया। लेकिन असलियत यह नहीं थी, यह क्रांति सम्पूर्ण भारत में फैली हुई थी और अनेक वर्गों की जनता ने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
उत्तर भारत में मुख्यतः बनारस, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, दिल्ली, इलाहाबाद, बरेली, झांसी, बुंदेलखंड और बैरकपुर आदि स्थानों पर यह क्रांति चरम सीमा पर थी। उत्तर प्रदेश इस क्रांति के मुख्य केंद्र में से एक था।
कलकत्ता प्रेजिडेंसी के अंतर्गत आने वाला बंगाल और अवध के क्षेत्र के राजाओं और जनता ने भी इस क्रांति में बढ़ चढ़कर भाग लिया। बिहार में यह विद्रोह जगदीशपुर, दानापुर और पटना के क्षेत्रों में फैला हुआ था। हरियाणा का भी इस विद्रोह में योगदान रहा। हरियाणा के बहादुरगढ़, झज्जर, मेवात, हिसार, गुडगाँव और नारनौल के क्षेत्र में भी यह क्रांति परवान पर थी। पंजाब में भी यह क्रांति भड़की हुई हुई थी। पंजाब के रावलपिंडी, अमृतसर, फिरोजपुर, जालंधर, अम्बाला, झेलम इत्यादि क्षेत्रों भी यह क्रांति व्यापक रूप से फैली हुई थी।
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मध्य भारत में भी यह संग्राम फैला हुआ था। मध्य भारत में बुंदेलखंड, ग्वालियर, इंदौर और रायपुर क्षेत्र में भी यह संग्राम पैर पसार चुका था। अंग्रेजों ने इस बात की अफवाह भी फैलाई की यह विद्रोह सिर्फ उत्तर भारत में फैला है जबकि दक्षिण भारत के भी बहुत से क्षेत्रों के राजाओं और जनता और विभिन्न वर्ग के लोगों ने इस क्रांति में शामिल होकर इसको आगे बढ़ाया था।
महाराष्ट्र में यह संग्राम पूना, मुंबई, अहमदनगर, बीजापुर, नासिक, कोल्हापुर और सतारा क्षेत्रों में यह संग्राम मुख्य रूप से फैला था। केरल में कालीकट, कोचीन, तमिलनाडु में आरी, मद्रास और मदुरै, आन्ध्र प्रदेश में हैदराबाद और राजमुडी क्षेत्रों में किसानों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। कर्नाटक के मैसूर और बैंगलोर क्षेत्रों में भी लोगों ने इस क्रांति में शामिल होकर अपनी आहुति दी। यहाँ तक की गोवा की पुर्तगाल की बस्तियों में भी लोगों ने विद्रोह किया।
अतः उपरोक्त वर्णित इस संग्राम के प्रभावित क्षेत्रों को देखते हुए हम कह सकते हैं की यह कोई सीमित क्षेत्रीय सैन्य विद्रोह नहीं था अपितु पूरे भारत में फैला हुआ एक राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम था जिससे भारतीय जनता को प्रेरणा मिलती है।
1857 की क्रांति का नेतृत्व
बहादुर शाह द्वितीय और जनरल बख्त खां
क्रांतिकारियों ने दिल्ली में बहादुर शाह को अपने विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए सौंपा। बहादुर शाह इस क्रांति में शामिल नहीं होना चाहता था लेकिन क्रांतिकारियों के बहुत आग्रह करने के बाद उसने नेता बनना स्वीकार किया। लेकिन वो इसके लिए सक्षम नहीं था और बूढ़ा हो चुका था। अंग्रेजों ने उसे पकड़ लिया और बंदी बनाकर रंगून में जेल में भेज दिया।
मंगल पाण्डेय
बैरकपुर में मंगल पाण्डेय ने इस क्रांति में अपनी पहली आहुति दी। सबसे पहले विद्रोह की शुरुआत इन्होने ही की थी लेकिन उनके प्रभाव को जल्दी ही दबा दिया गया था और उनको फाँसी दे दी गई थी।
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रानी लक्ष्मी बाई
झांसी में रानी लक्ष्मी बाई ने इस क्रांति की बागडौर को सम्भाला। अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने के इरादे से हमला किया तो रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों से जमकर टक्कर ली लेकिन झांसी को असुरक्षित जान कर उसको झांसी छोड़कर जाना पड़ा। तात्या टोपे के साथ रानी लक्ष्मी बाई ग्वालियर पहुँच गई। वहां उन्होंने सिंधिया जो विद्रोहियों के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दे रहा था को हराकर ग्वालियर पर कब्जा कर लिया लेकिन अंग्रेजों ने वह पर भी हमला किया। अंग्रेजों से लड़ते लड़ते रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु हो गई। रानी लक्ष्मी बाई की वीरता के लिए उनको देश की एक वीरांगना के रूप में जानते हैं। अंग्रेजों ने तात्या टोपे को फांसी पर लटका दिया।
कुंवर सिंह व अमर सिंह
कुंवर सिंह व अमर सिंह ने बिहार के जगदीशपुरा क्षेत्र में विद्रोहियों का नेतृत्व किया। वैसे तो कुंवर सिंह जमींदार थे लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और वो दिवालिया हो चुके थे। दानापुर के क्रांतिकारियों द्वारा आग्रह करने पर उन्होंने इस क्रांति का नेतृत्व सम्भाला।
नाना साहिब और तात्या टोपे
इन दोनों के हाथ में कानपुर क्षेत्र की क्रांति की बागडोर थी। नाना साहिब बाजीराव II के गोद लिए पुत्र थे। बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद नाना साहिब की पेंशन अंग्रेजों ने बंद कर दी जिसकी वजह से नाना साहिब अंग्रेजों से गुस्सा थे और उनसे बदला लेना चाहते थे। मेरठ में क्रांति फैलने के दौरान ही नाना साहिब ने कानपुर पर क़ब्ज़ा कर लिया और खुद को वह का पेशवा घोषित कर दिया। क्रांति का नेतृत्व करते समय उनकी अंग्रेजों से टक्कर हुई और वो हार गए और नेपाल के जंगलों में कहीं छुप गए और बाद में मिले नहीं।
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बेगम हजरतमहल
बेगम हजरतमहल को अवध के सिपाहियों, किसानों और जनता का भरपूर सहयोग मिला और उन्होंने अवध में क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया।
उपरोक्त वर्णित मुख्य नेताओं के अलावा भी निम्नलिखित व्यक्तियों ने भिन्न भिन्न क्षेत्रों में इस क्रांति का नेतृत्व किया:
- मौलवी लियाकत अली: बनारस
- हाकिम अहसान उल्लाह: दिल्ली
- मौलवी अहमद उल्लाह: फ़ैजाबाद
- मोहम्मद खान: बिजनौर
- खान बहादुर खान: बरेली
- राजा प्रताप सिंह: ओडिशा
- मनिराम: असम
- गजाधर सिंह: राजस्थान
- कदम सिंह, सेवी सिंह: मथुरा, गोरखपुर
- अजीमुल्लाह: फतेहपुर
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