पानीपत को यहाँ हुए तीन प्रसिद्ध युद्धों के कारण पूरे भारत देश और दुनिया में जाना जाता है। पानीपत में 3 बार युद्ध हुए हैं, पानीपत का प्रथम, द्वितीय और तृतीय युद्ध। इस लेख में आपको पानीपत के द्वितीय युद्ध के विषय जानने को मिलेगा।
पानीपत का द्वितीय युद्ध
बाबर ने पानीपत का प्रथम युद्ध जीतकर मुग़ल साम्राज्य को स्थापित तो कर लिया, लेकिन यह ज्यादा दिन तक अपने पैर नहीं जमा पाया और मात्र 4 साल शासन करने के बाद 1530 में बाबर की मृत्यु हो गई। बाबर की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य की बागडोर बाबर के पुत्र हुमांयू के पास आ गई।
हुमांयू एक डगमगाता हुआ शासक था, क्योंकि वह अपने पिता के द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य को अपने ही सेना के सेनापति शेरशाह सूरी से हारकर भाग गया था। 1540 में हुमायूँ को हराकर शेरशाह सूरी, सूरी वंश के संस्थापक बने। लेकिन 5 साल बाद ही शेरशाह सूरी चंदेल राजपूतों से हार गए और उनकी मृत्यु हो गई।
उसके बाद सूरी साम्राज्य के चौथे शासक आदिल शाह एक अयोग्य शासक थे। आदिल शाह के हिन्दू मंत्री हेमचन्द्र विक्रमादित्य जो की हेमू के नाम से जाने जाते थे। जब हेमू को हुमांयू की मृत्यु की खबर लगी तो उसने उस बात का फायदा उठाना चाहा।
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इस बात की भनक काबुल में बैठे हुमांयू के पुत्र अकबर और उसके संरक्षक बैरम खान को लगी और काबुल से अकबर अपनी सेना को लेकर भारत की तरफ रवाना हुआ। दूसरी तरफ हेमू भी आक्रमणकारियों का सामना करने को तैयार बैठा था।
9 नवम्बर 1556 को दोनों सेना पानीपत के द्वितीय युद्ध के लिए मैदान में आमने सामने खड़ी थी।
हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) रेवाड़ी ( हरियाणा) का एक हिंदू राजा था। उन्होंने 1553 से 1556 तक पंजाब से लेकर बंगाल तक सेना के प्रधान मंत्री व मुख्यमंत्री के रूप में बहुत से युद्ध जीते। इन युद्धों में विजय होने से उसका हौंसला बढ़ता गया और उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ गई।
हेमू का दिल्ली पर हमला
हुमांयू की मृत्यु के बाद पंजाब के कलानौर में अकबर का राज्याभिषेक हुआ और राजगद्दी पर बैठाया। उस समय मुग़ल साम्राज्य कंधार, दिल्ली, पंजाब और काबुल के कुछ हिस्सों तक ही सीमित था। उधर जैसे ही हेमू को हुमायूँ की मृत्यु के बारे जानकारी हुई, तभी उसने दिल्ली पर क़ब्ज़ा करने के लिए भारत की तरफ़ कूच कर दिया।
दिल्ली की तरफ़ कूच करते हुए रास्ते में आने वाले क्षेत्रों पर भी हेमू ने हमला किया और जीत हासिल की। इन क्षेत्रों को जीतते हुए हैं मोदी आगरा तक पहुँच चुका था। हेमू की सेना को देखकर मुगलों के सेनानायक युद्ध छोड़कर वहाँ से भाग खड़े हुए और हेमू ने आगरा पर क़ब्ज़ा कर लिया।
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अब हेमू आगरा के बाद दिल्ली पर भी क़ब्ज़ा करना चाहता था, इसलिए हेमू ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी और तुग़लक़ाबाद नामक जगह पर मुगलों की सेना से भिड़ गए, और मुग़ल सेना को हराकर दिल्ली पर क़ब्ज़ा हर लिया। अब दिल्ली पर हेमु का राज था, लेकिन हेमू ज्यादा दिन दिल्ली की गद्दी पर नहीं टिक पाया।
पानीपत में मुग़लों व हेमू का युद्ध
कलानौर में बैठे मुग़ल दिल्ली को वापस पाना चाहते थे, और मुग़लों ने दिल्ली पर चढ़ाई शुरू कर दी। दोनो सेनाएँ पानीपत में एक दूसरे के आमने सामने खड़ी थी और 9 नवम्बर 1556 को हेमू और अकबर के बीच पानीपत का द्वितीय युद्ध शुरू हुआ।
उस समय।मुग़ल सेना के सेनापति बैरम ख़ान है और उस समय राजा अक़बर की आयु केवल 13 वर्ष थी। बैरम ख़ान राजा अक़बर को युद्ध के मैदान में उतारने के पक्ष में नहीं थे, इसीलिए उन्होंने राजा अक़बर को युद्ध के मैदान से कुछ दूरी पर रखा।
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क्योंकि हेमू की सेना मुग़लों की सेना से तीन गुना थी इसलिए बैरम ख़ान ने राजा और उनके वफ़ादार और कुशल सैनिकों को ये हिदायत भी दे रखी थी कि अगर मुग़ल सेना इस युद्ध में हार जाए या ऐसी कोई स्थिति बनने तो वो सभी राजा अक़बर को लेकर काबुल की तरफ़ चले जाएं।
हेमू की सेना में 1500 हाथी और बेहतरीन तोपख़ाने भी विद्यमान थे। युद्ध के दौरान लग रहा था की हेमू ही ये लड़ाई जीतेगा लेकिन एक समय ऐसा आया जब लड़ाई का रुख ही बदल गया। युद्ध के दौरान मुग़ल सेना की तरफ से आया एक तीर हेमू की आँख में आकर लगा और हेमू ज़मीन पर गिर पड़ा।
हेमू को इस हालत में देखकर हेमू की सेना में भगदड़ मच गई, जिसका फायदा उठाकर मुग़ल सेना ने कत्लेआम करना शुरू कर दिया। इस स्थिति को देखकर हेमू की सेना तीतर-बितर हो गई और पीछे हटने लगी। इस प्रकार दोनों सेनाओं के बीच इतना अंतर होने के बावजूद भी मुग़ल सेना की फ़तह हुई।
परिणाम
- पानीपत के द्वितीय युद्ध में मुग़लों की जीत हुई और पानीपत के प्रथम युद्ध की तरह ही भारत में मुग़ल साम्राज्य स्थापित करने में नींव बनी। पानीपत का द्वितीय युद्ध जीतने के बाद मुग़ल साम्राज्य लगभग 300 सालों तक शासन करता रहा।
- यह युद्ध ख़त्म होने के बाद हेमू के शव को काबुल के दिल्ली दरवाजे पर प्रदर्शन के लिए भेजा गया और हेमू के शरीर को दिल्ली के पुराने किले के बाहर लटका दिया गया ताकि लोगों में डर पैदा हो।
- हेमू के सब रिश्तेदारों और संबंधितों को पकड़-पकड़ के कत्लेआम किया गया। अब दिल्ली की गद्दी राजा अकबर की थी, इसके साथ-साथ हेमु ने जितने भी क्षेत्र जीते थे उन पर अब मुग़लों का राज था।