भारत देश की आजादी में 1857 की क्रांति ने एक अहम भूमिका निभाई है। 1857 की क्रांति के पश्चात स्वतंत्रता संग्राम और अधिक तेजी से बढा जिस कारण भारत को आजादी मिली।1857 की क्रांति पूरी तरह से एक फौजी आंदोलन था। 1857 की क्रांति का पूरा श्रेय मंगल पांडे को जाता है।
यहां पर हम 1857 की क्रांति और इसके कारणों का वर्णन करेंगे, जिसमें हम 1857 की क्रांति के सामाजिक कारण, आर्थिक कारण, राजनीतिक कारण आदि के बारे में भी चर्चा करेंगे।
1857 की क्रांति के कारण
1857 की क्रांति को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है। इस क्रांति से पहले भी देश के विभिन्न क्षेत्रों में विद्रोह हुए थे जिनमें मुख्य हैं सन्यासी आन्दोलन उत्तरी बंगाल में, चुआड़ आन्दोलन बिहार और बंगाल में, फरैजी आंदोलन जो की एक किसान आन्दोलन था। लेकिन इन आन्दोलनों का क्षेत्र बहुत सीमित था।
19वीं सदी के शुरुआती दौर में ही ब्रिटिश राज बहुत फैल चुका था। ब्रिटिश शासन का भारत के एक बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा हो चुका था। ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों का शोषण करने वाले कानून बनाये गए। किसानों का शोषण हुआ, मज़दूर वर्ग से ज़बरदस्ती काम करवाया गया, भारतीय राजाओं से उनके राज्य छीन लिए गए, भारतीय संस्कृति और धरम को नष्ट करने के प्रयास किये गए।
- Advertisement -
ब्रिटिश शासन मनमाने कानूनों, दमन-कारी नीतियों और अन्यायपूर्ण शासन के कारण भारतीयों में रोष पनपने लगा और धीरे धीरे वो रोष बढ़ने लगा। भारतीयों में यह रोष की भावना बढती गई और इस असंतोष की भावना ने विद्रोह को जन्म दिया जिसने भारत में ब्रिटिश शासन की ईंट से ईंट बजा दी।
प्लासी के युद्ध के सौ साल बाद 1857 में एक सैन्य विद्रोह के कारण शुरू हुए इस विद्रोह में भारतीयों के अन्दर पनप रही असंतोष की भावना ने आग में घी जैसे काम किया। प्रारंभ में एक सैन्य विद्रोह के रूप में शुरू हुए और इसने एक क्रांति का रूप धारण कर लिया। देश के लगभग हर क्षेत्र में यह क्रांति फैल गई। 1857 की क्रांति की शुरुआत सेना में उपयोग के लिए चर्बी वाले कारतूस के कारण भड़के सैन्य विद्रोह से हुई थी, लेकिन इस क्रांति के और भी अहम कारण थे।
1857 की क्रांति के निम्नलिखित कारण हैं:-
- सामाजिक कारण
- राजनीतिक कारण
- आर्थिक कारण
- धार्मिक कारण
- सैन्य कारण
- तत्कालीन कारण
सामाजिक कारण
ब्रिटिश राज्य का अत्याधिक विस्तार होने के कारण अंग्रेज अपने आप को श्रेष्ठ समझने लगे और हम भारतीयों को असभ्य कहने लगे। भारतीयों में असंतोष की भावना बढ़ रही थी क्योंकि अंग्रेज भारत में पश्चिमी सभ्यता का प्रसार प्रचार कर रहे थे। अंग्रेजों ने भारतीय प्रथाओं को ख़त्म करने का प्रयास किया।
अंग्रेजों ने सती प्रथा के अंत, विधवा पुनर्विवाह और बाल विवाह के विरोध का प्रयास किया जिसके कारण भारतीय समाज में असंतोष फैल गया। अंग्रेज खुल्लम खुल्ला गोर काले का भेद करने लग गए थे। इस सब कारणों से भारतीय समाज में असंतोष की भावना बढ़ गई थी।
- Advertisement -
राजनीतिक कारण
1857 की क्रांति का मुख्य राजनितिक कारण था लॉर्ड डलहोजी की गोद निषेध प्रथा या हड़प निति (Doctrine of Lapse) इस निति के अंतर्गत जिन राजाओं की कोई संतान नहीं होती थी उनके राज्यों को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया जाता था। इस निति के कारण भारतीय राजाओं में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष फ़ैल गया था।
इस नीति के अंतर्गत ब्रिटिश शासन ने रानी लक्ष्मी बाई के गोद लिए पुत्र को झांसी की गद्दी पर बैठने से रोका और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया। झांसी के साथ साथ नागपुर और सतारा को भी हड़प नीति के अंतर्गत ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया। इसके अलावा नाना साहेब की पेंशन भी रोक दी गई।
बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई और अवध जो की एक ब्रिटिश शासन का वफादार राज्य हुआ करता था कुशासन का नाम लेकर लॉर्ड डलहोजी द्वारा इस राज्य को भी ब्रिटिश राज्य में विलय कर लिया गया जिससे अवध राज्य में असंतोष फैल गया और वह भी ब्रिटिश शासन का विद्रोही बन गया।
- Advertisement -
आर्थिक कारण
अंग्रेजों ने भारी कर नीति के जरिए भारतीय किसानों को शोषित किया। भारी कर ना चुका पाने के कारण किसान साहूकारों के कर्जदार बन गए और उनको अपनी जमीं से हाथ धोना पड़ा जो की उनकी आजीविका का इकलौता साधन थी। अंग्रेजी राज में किसानों की स्थिति बहुत दयनीय हो गई थी।
इसके साथ साथ अंग्रेजों ने भारतीय कपडा उद्योग को भी बर्बाद कर दिया। अंग्रेज भारत से कच्चा माल लेके जाते थे और मशीनों से बना तैयार माल भारत लाकर बेचते थे। भारतीय हस्तशिल्प और करघा जैसे छोटे उद्योग अंग्रेजों के मशीनों से बने सस्ते सामान का मुकाबला नहीं कर पाए और ये कुटीर उद्योग भी बर्बाद हो गए। इसी कारण किसानों और उद्योग वर्ग की जनता में असंतोष फैल गया।
धार्मिक कारण
अंग्रेजों को अपने राज्य का क्षेत्रीय विस्तार करने के साथ साथ अपने धर्म का विस्तार करने का भी विचार आने लगा। अंग्रेजों ने अपने धर्म के विस्तार के लिए ईसाई मिशनरियों को भारत में ईसाई धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए खुली छूट दे दी। अंग्रेजों ने भारतीय उत्तराधिकार क़ानून में बदलाव करके भारतीय जनता की धार्मिक भावना पर आघात किया।
बदले हुए उत्तराधिकार क़ानून के अंतर्गत क्रिश्चियन धर्म में परिवर्तित होने वाले हिन्दुओं को ही अपने पूर्वजों की संपत्ति में हक़ मिल सकता था। ईसाई मिशनरियों ने हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन के लिए लोभ, लालच, आतंक और चालाकी सब तरह के प्रयास किए। बहुत जगहों पर इन्होंने अपनी संस्थाएँ स्थापित की। इससे भारतीय जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध असंतोष की भावना फैल गई।
सैन्य कारण
अंग्रेजों की सेना में भारतीय सैनिकों की संख्या ज्यादा थी लेकिन फिर भी उनको अंग्रेज महत्व नहीं देते थे। एक समान पद पर होने के बावजूद भी भारतीय सैनिक को कम वेतन मिलता था और अंग्रेज सैनिक को ज्यादा। इसके अलावा भारतीय सैनिक को उच्च पदों पर पदोन्नति नहीं दी जाती थी।
अंग्रेजों ने बंगाल की सेना में उच्च जाती के लोगों को शामिल किया जो अवध के थे। वो समुंदर पार जाना अपनी मान्यताओं के विरुद्ध मानते थे फिर भी उन सैनिकों को भेजा गया। भारतीय सैनिकों को अपने घरों से बहुत दूर दूर अपनी सेवाएँ देनी होती थी। इसके अलावा लॉर्ड कैनिंग के समवर्ती क़ानून के अंतर्गत भारतीय सैनिकों को भारत के बाहर भी भेजा जा सकता था। इन सब दमन-कारी नीतियों और भारतीय सैनिकों के शोषण के कारण सैनिकों में असंतोष पनप गया था।
तत्कालीन कारण
1857 की क्रांति का तत्कालीन कारण था सूअर और गाय की चर्बी लगे हुए कारतूस। उपयोग करने से पहले इन कारतूसों को दांतों से काटकर उपयोग में लिया जाता था। जब भारतीय सैनिकों को इस बात की भनक हुई की इन कारतूसों पर गाय व सूअर की चर्बी लगी है तो सैनिकों में विद्रोह की आग भड़क उठी।
1857 में क्रांति शुरू होने से पहले मार्च 29, 1857 को बैरकपूर छावनी के मंगल पाण्डेय नामक सैनिक ने उत्तेजना में कई ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों को मार डाला। मंगल पाण्डेय को बंदी बनाकर अप्रैल 8, 1857 को फाँसी पर लटका दिया गया। मंगल पाण्डेय की फांसी इस क्रांति की आग के लिए पहली आहुति थी।
उसके बाद 3 एल सी परेड मेरठ में 90 घुड़सवार सैनिकों को ये कारतूस दी गई लेकिन उनमें से 85 सैनिकों ने उनका उपयोग करने से मना कर दिया जिसके कारण उनका कोर्ट मार्शल करके उनको कारावास में डाल दिया गया। उसके बाद और भी सैन्य टुकड़ियों द्वारा विरोध किया गया। सबसे पहले 20 एन-आई टुकड़ी द्वारा विद्रोह की शुरुआत की गई और रविवार के दिन 10 मई को शाम के 5 या 6 बजे के आस पास यह विद्रोह शुरू हो गया।
यह भी पढ़ें:
1857 ki kranti ko kafi deep me samjhaya hai bahot achha laga read kar ke. as i am preparing for Competitive Exams i can esily understand the value of this topic.
Thanks for sharing this useful content with us.