चार वेद संसार के पहले ऐसे धर्म ग्रंथ हैं जिनसे सब धर्मों या मजहबों की उत्पत्ति हुई है। सरल शब्दों में वेद का अर्थ होता है ‘‘ज्ञान’‘। वेदों को श्रुति भी कहते हैं क्योंकि वेदों का आधार है भगवान के माध्यम से ऋषियों को सुनाया गया ज्ञान। प्रत्येक धर्म में चार वेद के ज्ञान को अलग – अलग भाषा में प्रचारित किया है। वेद में पुरातन ज्ञान और विज्ञान का भंडार होता है।
वेदों में भूगोल, ब्रह्मांड, गणित, रीति – रिवाज, धर्म, देव, नियम, रसायन, ज्योतिष ज्ञान इत्यादि सब विषयों का ज्ञान होता है। वेद हमारी सबसे प्राचीन पुस्तक हैं जिनमे सब ज्ञान सिमटा हुआ है, इसलिए किस स्थान या व्यक्ति का नाम वेदों में उल्लेखित नाम के आधार पर रखा जाए तो यह स्वाभाविक ही होगा। चार वेद के ज्ञान से मनुष्य का मार्गदर्शन होता है।
वेद मानव सभ्यता के सबसे प्राचीन लिखित पुस्तक हैं। हमारे वेदों की 28000 पांडुलिपियाँ ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट‘ जो की पुणे में है, वहाँ राखी हुई हैं। इन सब पाण्डुलिपियों में से 1800 से 1500 ई. पू. की ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में भी शामिल हैं, जो की महत्वपूर्ण हैं। एक बात ध्यान रखने लायक यह है की भारत की 38 महत्वपूर्ण पांडुलिपियाँ यूनेस्को की 158 सूची में शामिल हैं।
चार वेद किसने लिखे?
दरअसल वेदों के रचियता के बारे में कोई नहीं जानता, क्योंकि चार वेद रचना मनुष्य द्वारा की ही नहीं गई है। ऐसा माना जाता है की वेद ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाया गया ज्ञान होता है। इसलिए हम वेदों को ‘‘श्रुति” भी कहते हैं। श्रुति का शाब्दिक अर्थ होता है ‘सुना हुआ‘।
भगवान द्वारा यह ज्ञान ऋषियों को तब सुनाया गया जब वो ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहन तपस्या में लीन थे। उसके पश्चात ऋषियों ने वह वेदों का ज्ञान अपने शिष्यों को सुनाया, और उसके बाद इन शिष्यों ने अपने शिष्यों को यह ज्ञान सुनाया। इस तरह ऋषियों ने मनुष्य जाति के कल्याण के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी इस ज्ञान को सुनाया। इसलिए यह भी कहा जाता है की वेदों का ना आदि है ना अंत, और वेद नित्य हैं इनको किसी ने नहीं बनाया है।
ऐसा भी माना जाता है की वेद ब्रह्मा देव के चार मुखों से उत्पन्न हुए हैं। चारों वेदों की रचना के विषय के संबंध में यह भी कहा जाता है की सम्पूर्ण वेदों के ज्ञान को ऋषि वेदव्यास ने 4 भागों में विभाजित किया था। कहा जाता है की ऋषि वेदव्यास द्वारा वेदों को सिर्फ लिपिबद्ध ही किया गया है। असल में जब द्वापर में श्री कृष्ण भगवान का जन्म हुआ तभी ऋषि कृष्ण द्वैपायन का भी जन्म हुआ था।
जब द्वापर युग समाप्त हो रहा था और कलयुग शुरू हो रहा था तब एक समस्या हो रही थी, वो यह की द्वापर युग में तो एक व्यक्ति वेद के सम्पूर्ण ज्ञान को याद रख लेता था। लेकिन चारों वेदों का सम्पूर्ण ज्ञान को कलयुग में एक मनुष्य याद नहीं रख पा रहा था। तब ऋषि कृष्ण द्वैपायन ने अन्य ऋषियों की आज्ञा लेकर वेदों को चार भागों में विभाजित किया था।
इसलिए ही ऋषि कृष्ण द्वैपायन को ऋषि वेदव्यास के नाम से जाना जाने लगा था। वेदव्यास का अर्थ होता है वेदों को विभाजन करने वाला। वेद हमेशा से ही संसार में रहे हैं चार वेदों रचना किसी व्यक्ति ने नहीं की है इसलिए इनको ”अपौरुषेय” भी कहा गया है।
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वेद के कितने प्रकार हैं?
कलयुग शुरू हो रहा था तब सम्पूर्ण वेद के ज्ञान को एक व्यक्ति याद नहीं रख पा रहा था, इसलिए ऋषि कृष्ण द्वैपायन ने वेदों को ऋषियों की आज्ञा लेकर 4 भागों में विभाजित किया था। चार वेद के नाम और उनका वर्णन नीचे दिए गये हैं।
चार वेदों के नाम:
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद
ऋग्वेद:- चार वेद में से ऋग्वेद सबसे प्राचीनतम वेद है। ऐसा माना जाता है की ”सप्त सैन्धव क्षेत्र” में इसकी रचना हुई थी। ऋग अर्थात स्थिति। इस वेद में इन्द्र, सूर्य, अग्नि और वरुण देव की प्रार्थनाओं का उल्लेख मिलता है। इस वेद 10 मण्डल, 1028 श्लोक और 10600 मंत्र संकलित हैं। ऋग्वेद में ही हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण मंत्र ”गायत्री मंत्र” का उल्लेख है।
गायत्री मंत्र विशेष रूप से सूर्य देव की प्रार्थना के लिए होता है। हमारे समाज में प्रचलित वर्णों की उत्पत्ति और चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) का वर्णन ऋग्वेद के ‘‘दसवें मण्डल” में है।
ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ हैं:- वास्कल, शाकल्प, शांखायन, मंडूकायन और अश्वलायन। इस वेद में हमको मानस चिकित्सा, जल चिकित्सा, सौर चिकित्सा, वायु चिकित्सा और हवन चिकित्सा का उल्लेख भी मिलता है। इसमे लगभग 125 औषधियों की संख्या का वर्णन है, जो 107 जगहों पर मिल जाती हैं।
इस वेद में च्यवनऋषि को दोबारा जवान करने की कथा का वर्णन भी है। यह भी माना जाता है की ऋग्वेद की रचना किसी एक ऋषि ने नहीं बल्कि कुछ अलग – अलग ऋषियों ने मिलकर की थी, जिनमे प्रजापति, अनिल, दीर्घतमा, अघमर्षण, नारायण, और विश्वकर्मा मुख्य हैं।
यजुर्वेद:- इस वेद में यज्ञ करने की विधियों और नियमों का वर्णन किया गया है। यदु का शाब्दिक अर्थ भी ”यज्ञ” ही होता है, और विस्तार पूर्वक समझें तो यत्त+जु से मिलके बनता है यजु, इसमें यत्त का अर्थ है गतिशील और जु का अर्थ होता है आकाश। यजु शब्द का अर्थ रूपान्तरण भी होता है।
इस वेद के अंदर यज्ञ के सिवाय तत्वज्ञान का भी उल्लेख मिलता है। इस वेद को हम ‘‘कर्मकांड प्रधान ग्रंथ’‘ की संज्ञा भी दे सकते हैं। यजुर्वेद का पाठ करने वालों को ‘‘अध्वर्यू” कहते हैं। यह वेद गद्य और पद्य दोनों प्रकार से लिखा गया है।
यजुर्वेद दो भागों में बटा हुआ है:-
- कृष्ण यजुर्वेद (गद्य)
- शुक्ल यजुर्वेद (पद्य)
ऐसी भी मान्यता है की चार वेद में से यजुर्वेद की रचना स्वामी दयानन्द ने की थी।
सामवेद:- इस वेद में ऋग्वेद की रिचाओं का संगीतमय वर्णन किया गया है। साम का शाब्दिक अर्थ होता है ”संगीत’‘। साम का अर्थ सौम्यता और उपासना भी होता है। यह वेद गीत के रूप में वर्णन किया गया है। संगीत शास्त्र का मूल सामवेद को ही माना जाता है। भारतीय संगीत का जनक सामवेद को ही माना जाता है।
इस वेद का पाठ करने वालों को हम ”उद्राता’‘ कहते हैं। सामवेद की रिचाओं को हम ”सामयोति” के नाम से जानते हैं। सामवेद में कुल 1824 मंत्र हैं जिनमें से 75 मंत्रों को छोडकर सब मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। इस वेद की मुख्य रूप से 3 शाखाएँ और 75 ऋचाएं हैं।
अथर्ववेद:- अथर्व शब्द का अर्थ होता है ”जादू”। अथर्व का अर्थ ”जड़” भी होता है। इस वेद में हमें अंधविश्वासों, विवाह, रोग-निवारण, प्रणयगीत और राजभक्ति इत्यादि का वर्णन मिलता है। इस वेद में ”कुरुओं का राजा” राजा परीक्षित को कहा गया है।इस वेद में जड़ी बूटियों, आयुर्वेद, रहस्यमयी विद्याओं और चमत्कार इत्यादि का उल्लेख मिलता है। इस वेद में 20 अध्याय हैं और 5687 मंत्र संकलित हैं। ऐसा कहा जाता है की इस वेद की रचना अंगिरा ऋषि ने की थी।
उपरोक्त वर्णित वेदों में ऋग को धर्म, यजु को मोक्ष, साम को काम और अर्थव को हम अर्थ भी कह सकते हैं। इन चार वेद के आधार पर ही धर्मशास्त्र, कामशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई थी।
वेदों का महत्व
वेदों का हमारे जीवन में अति महत्व है। भारतवर्ष में प्राचीन समय से ही वेदों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की परंपरा थी। प्राचीन समय में बड़े बड़े ऋषि वेदव्यास, जैमिनी और ब्रह्मा ने भी ज्ञान और शिक्षा के रूप में वेदों को ही आधार माना है, और चार वेद के आधार पर ही अन्य ग्रन्थों की रचना की है।
रामायण, महाभारत और अन्य ग्रंथ और पुराण सब वेदों के ज्ञान के व्यखान के लिए रचे गए थे। प्राचीन समय में शास्त्रार्थ के आधार यह वेद ही होते थे। महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुसार ज्ञान-विज्ञान, उपासना, संगीत, कर्म-कांड यह सब वेदों के ही विषय हैं।
वर्तमान समय में चिकित्सा, संगीत, विज्ञान, कर्मकांड, तंत्र-मंत्र सब वेदों की ही देन है। वेदों को दर्शन का श्त्रोत भी कहा गया है। धार्मिक विषय के अलावा ऐतिहासिक दृष्टि से भी वेदों का बहुत महत्व है। आर्यों और वैदिक युग की सभ्यता और संस्कृति के विषय में जानने का एकमात्र स्त्रोत वेद ही हैं। मानव जाति ने किस तरह समाज और धर्म का विकास किया इसकी जानकारी हमें वेदों से ही मिलती है। भारतवर्ष की लगभग सभी भाषाओं का मूलस्वरूप निर्धारित करने की राह में वेदों में वर्णित वैदिक भाषा बहुत सहायक रही है।
वेद मनुष्य के जीवन में धार्मिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक सब प्रकार से मार्गदर्शन करते हैं। वेदों के महत्व के बिना आज के समाज की रचना के विषय में सोच पाना भी मुश्किल ह
वेदों के मुख्य उपवेद और प्रणेता
- ऋग्वेद:- उपवेद – आयुर्वेद, प्रणेता – धन्वन्तरी
- यजुर्वेद:- उपवेद – धनुर्वेद, प्रणेता – विश्वामित्र
- सामवेद:- उपवेद – गंधर्ववेद, प्रणेता – भरतमुनि
- अथर्ववेद:- उपवेद – शिल्पवेद या स्थापत्यवेद, प्रणेता – विश्वकर्मा
वेदांग क्या होते हैं?
वेदों को समझाने, उनका उचित और सही उच्चारण और उनका अर्थ बताने के लिए वेदांग की रचना हुई थी। वेदों का अर्थ समझाने के लिए निम्नलिखित 6 वेदांगों की रचना हुई है:
- कल्प:- इसमें जो वैदिक कर्मकांड होते हैं उनको सही और उचित तरीके से करने के लिए नियमों और विधियों का वर्णन किया गया है।
- निरुक्त:- यह वेदांग भाषा ज्ञान से संबन्धित है। इसमें शब्दों की उत्पत्ति के नियमों का वर्णन है। इस वेदांग को ही भाषा शास्त्र का पहला ग्रंथ माना जाता है।
- शिक्षा:- इस वेदांग में वैदिक शब्दों और वाक्यों के सही तरीके से उच्चारण के विषय में वर्णन किया गया है।
- व्याकरण:- इसमें धातुओं और नामों की रचना, प्रत्यय और उपसर्ग के इस्तेमाल करने के नियमों का वर्णन किया गया है।
- ज्योतिष:- आचार्य लगथ मुनि इसके प्राचीनतम आचार्य थे। इस वेदांग में ज्योतिष शास्त्र के विषय में बताया गया है।
- छंद:- इस वेदांग में साहित्य के जगती, त्रिश्टुप, गायत्री और वृहती का उपयोग के विषय में बताया गया है।
चार वेदों के ब्राह्मण ग्रन्थों के नाम क्या हैं?
ब्राह्मण ग्रंथ वह ग्रंथ होते हैं, जिनमे वेदों की गद्य रचना होती है। हमारे चार वेदों के ब्राह्मण ग्रन्थों के नाम निम्नलिखित हैं
- ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ का नाम कोषीतकी या ऐतरेय है।
- यजुर्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ का नाम तैतिरीय या शतपथ है।
- सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ का नाम पंचविश या जैमिनीय है।
- अथर्ववेद के ब्राह्मण ग्रंथ का नाम गौपथ ब्राह्मण है।
भगवान और वेदों का संबंध
लगभग हर इंसान यह समझता है की भगवान कृष्ण, राम, विष्णु, शंकर के विषय में वेदों से पता चलता है या फिर भगवानों ने ही चारों वेदों की रचना की है। लेकिन ऐसा नहीं है वेदों की रचना तो सृष्टि के आदिकाल से ही हो गई थी। उस दौरान तो उपरोक्त वर्णित भगवान का जन्म भी नहीं हुआ था। बहुत से लोग वेदों में भगवानों का नाम तलाशने की कोशिश करते हैं।
लेकिन वेदों में भगवान हनुमान, राम, माता सीता, कृष्ण, शंकर भगवान और विष्णु इत्यादि किसी भगवान का जिक्र नहीं मिलता है। परंतु वेदों में गंगा और सरस्वती नदी का जिक्र है, और वेदों में भी इन नदियों को भगवान के रूप में वर्णित किया गया है। इसलिए ही हम वर्तमान समय में भी इन नदियों की पुजा करते हैं।