DRDO जिस की फुल फॉर्म है defence research and development Organisation हिंदी में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन।
DRDO एक ऐसी एजेंसी है जो भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आती है, यह एजेंसी सेना के अनुसंधान और विकास का काम करती है। डीआरडीओ द्वारा सेना के लिए नए नए उपकरण और तकनीक इत्यादि बनाए जाते हैं और इसके लिए देश में DRDO के कई कारखाने हैं।
आज के समय में DRDO की लगभग 52 प्रयोगशाला आए हैं जो अलग-अलग तरह के प्रौद्योगिकी विकास में लगे हुए हैं जैसे कि मिसाइल, विमान, इलेक्ट्रॉनिक्स, भूमि युद्ध इंजीनियरिंग, जीवन विज्ञान, नौसेना प्रणाली इत्यादि।
DRDO में लगभग 5000 से ज्यादा वैज्ञानिक और 25 हजार से ज्यादा उनके सहायक वैज्ञानिक काम करते हैं। डीआरडीओ ने सेना के उपकरणों के विकास और आधुनिकरण में बहुत अधिक योगदान दिया है और हमारे देश की सेनाओं को और अधिक मजबूत करने का काम किया है।
DRDO क्या है?
भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का अनुसंधान और विकास एजेंसी है, जो भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकी आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने में अपना अनूठा योगदान दे रहा है।
DRDO यानि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन का कार्य हमारे सशस्त्र बलों के लिए उपकरणों और हथियार का विकास और निर्माण करना है। आज के समय में भारत अपने रक्षा उपकरण खुद ही बना रहा है जिसमें डीआरडीओ का बहुत बड़ा योगदान है।
DRDO ने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों का सफल निर्माण किया और इसके साथ साथ तेजस लड़ाकू विमान, मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, वायु रक्षा प्रणाली, रेडा, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली इत्यादि से भारत की सैन्य ताकत को एक अलग ऊंचाई प्रदान की है।
DRDO की स्थापना
DRDO की स्थापना सन 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन और तकनीकी विकास प्रतिष्ठानों ने मिलकर की थी। सन 1960 में डीआरडीओ ने अपनी पहली और एक बड़ी परियोजना शुरू की जिसका नाम इंडिगो परियोजना था इस परियोजना के तहत DRDO का उद्देश्य सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का निर्माण करना था।
DRDO ने अनेकों प्रकार के रक्षा उपकरण इत्यादि का निर्माण किया है और मिसाइल टेक्नोलॉजी डिवेलप की है जिनमें से मुख्यतः अग्नि मिसाइल, पृथ्वी बैलेस्टिक मिसाइल, आकाश मिसाइल, त्रिशूल मिसाइल और नाग मिसाइल है।
DRDO की परियोजनाएं
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन की अनेकों परियोजनाएं हैं जिनमें से कुछ प्रमुख परियोजनाओं को हमने इस लेख में रखा है।
विमान तकनीक (Aeronautics)
एयरोनॉटिक्स परियोजना के तहत DRDO का उद्देश्य भारत में विमान उद्योग का विकास करना है, इसके साथ साथ भारतीय वायु सेना को आधुनिक और मल्टीरोल फाइटर प्रदान करना भी इस परियोजना का हिस्सा है।
इस परियोजना के तहत DRDO ने एलसीए तेजस का डिजाइन और विकास के साथ-साथ विमान प्रमोधन, उड़ान नियंत्रण प्रणाली और एवियोनिक्स इत्यादि में बढ़त हासिल की है।
DRDO ने एयरोनॉटिक्स परियोजना के तहत और भी अन्य कार्य किए हैं और डीआरडीओ भविष्य में और अधिक इस तरह के कार्य करने के लिए तत्पर है। DRDO ने सुखोई विमान के लिए एवियोनिक्स, रेड और चेतावनी रिसीवर और डिस्प्ले कंप्यूटर आदि प्रदान किए हैं। इसके अलावा डीआरडीओ के रडार कंप्यूटर भी हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड द्वारा निर्मित किए गए जो मलेशियाई sukhoi-30 में लगाए गए।
भारतीय वायु सेना के लिए पांचवी पीढ़ी के विमान का डिजाइन और विकास की जिम्मेदारी भी DRDO के पास है और इस परियोजना पर भी डीआरडीओ के कर्मचारी और वैज्ञानिक काम कर रहे हैं।
इसके अलावा कुछ और एयरोनॉटिक्स कार्यक्रम है जिन पर DRDO ने काम करके उन्हें विकसित किया है या कर रहे हैं, इनका विवरण नीचे दिया गया है।
- एचकेएल ध्रुव हेलीकॉप्टर और एचसीएल एसजीडी 36 पूर्वजों और उपकरणों का स्वदेशी करण।
- मानवरहित हवाई वाहन का निर्माण और विकास, इन विमानों में पायलट की जरूरत नहीं है और बिना पायलट के ही यह विमान एक खोजी विमान और हमलावर विमान की तरह कार्य कर रहे हैं।
- आज के समय में ड्रोन से हमला किया जाता है, इसीलिए डीआरडीओ ने ड्रोन विरोधी प्रणाली का निर्माण किया है।
- ड्रोन ट्रैकिंग सिस्टम का निर्माण किया गया है जिसके तहत दुश्मन ड्रोन का पता लगाया जा सकता है।
युद्ध सामग्री
DRDO, युद्ध सामग्री फैक्ट्री बोर्ड के साथ मिलकर काम करता है, जिसमें सेना के लिए नए हथियार बनाए जाते हैं और उनका विकास किया जाता है। इसके तहत छोटे हथियारों का निर्माण किया जाता है जैसे राइफल, कवच, छोटे हथियार, विस्फोटक, गोला बारूद इत्यादि।
डीआरडीओ दूसरी युद्ध सामग्री बनाने वाली कंपनियों के साथ मिलकर काम करती है और भिन्न भिन्न प्रकार के युद्ध सामग्री का निर्माण किया जाता है। इन सभी युद्ध सामग्रियों का विवरण नीचे दिया गया है।
- कम वजन वाले और एक्सट्रीम वेदर के लिए वाटर प्रूफ कपड़ों का विकास और निर्माण।
- हल्के वजन के बुलेट प्रूफ शारीरिक कवच।
- आधुनिक छोटे हथियार जैसे राइफल, कार्बाइन मशीन, आधुनिक लाइट मशीन गन इत्यादि।
- हलके एटीजीएम लांचर का विकास।
- विस्फोटकों का पता लगाने के लिए किट का डिजाइन और निर्माण।
- रॉकेट लांचर का विकास और गोला बारूद का निर्माण के साथ-साथ उन की मारक क्षमता को बढ़ाना।
- टैंक की मुख्य बंदूक का विकास और टी 72 टैंक का अपग्रेडेशन।
कंप्यूटर विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स
किसी भी सेना के लिए संचार और रेड आराधी प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण होती हैं और भारतीय सेना ने भी अपने सिग्नल कोर के डिजाइन और विकास में डीआरडीओ को योगदान देने के लिए कहा है। इसके साथ-साथ DRDO में इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- संचार ट्रांस शिविरों को जाम करने और सटीक दिशा खोजने के लिए ईएसएम प्रणाली।
- अर्धसैनिक बलों और सेना के लिए सफारी आईडी दमन प्रणाली।
- भारतीय वायु सेना के लिए रेडार चेतावनी रिसीवर।
- सेना के लिए हवाई निगरानी से लेकर अग्नि नियंत्रण रेडर इत्यादि का विकास व निर्माण।
- वायु सेना के लिए 2D व 3D लेबल रेडार।
- नौसेना के लिए रोटरी बैनक्रॉफ्ट में लगने वाला मैरिटाइम पेट्रोल रडार, समुंद्री गस्ती रडार वह यूएवी के लिए मैरिटाइम पेट्रोल एयरबोर्न रडार का विकास इत्यादि।
- सेना के कमांड व नियंत्रण के लिए सॉफ्टवेयर का निर्माण।
- लेजर आधारित हथियारों को विकसित करना।
नौसेना के उपकरण
DRDO ने नौसेना के लिए बहुत सारे उपकरण इत्यादि में काफी विकास किया है और उनका आधुनिक स्तर पर उत्पादन किया है। नौसेना के आधुनिकरण में डीआरडीओ की बहुत बड़ी भूमिका रही है और अभी भी DRDO लगातार नौसेना को आधुनिक बनाने में कार्यरत हैं।
नौसेना के लिए DRDO द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण विकास और उत्पादन नीचे दिए गए हैं।
- नौसेना के लड़ाकू जहाजों के लिए सोनार और उनसे संबंधित प्रणालियों का विकास और उत्पादन।
- टारपीडो के डिजाइन में बदलाव और उनको विकसित करना।
- सूचना कमान और नियंत्रण प्रणाली का विकास।
- का विकास और छोटे, मध्यम और लंबी दूरी की चैफ रॉकेट का विकास।
सेना के लिए लड़ाकू वाहन
सेना को लड़ाई के लिए लड़ाकू वाहनों की आवश्यकता होती है जैसे कि टैंक, इसका एक अच्छा उदाहरण है। इसके साथ-साथ अन्य तरह के वाहनों की भी सेना को जरूरत होती है और उनमें बख्तरबंद गाड़ियां सम्मिलित हैं।
DRDO ने भारतीय 10 को के आधुनिकरण और बख्तरबंद गाड़ियों के निर्माण में ही अपनी भूमिका निभाई है और भारत को टैंक व बख्तरबंद गाड़ियों के निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने में अपना सहयोग दिया है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण बिंदु है जो डीआरडीओ ने लड़ाकू वाहनों के निर्माण और विकास के लिए किए गए कार्यों के बारे में हैं।
- अजय 72 टैंक का आधुनिकरण
- T-72 टैंक के लिए एंटी टैंक गोला बारूद का निर्माण व विकास
- टैंक के लिए कवच का निर्माण
- बख्तरबंद गाड़ियां और टोही वाहनों में डाटा रिकॉर्ड करने की क्षमता का विकास
- पानी में जमीन की बाधाओं को पार करने के लिए मल्टी स्पैन ब्रिज सिस्टम
मिसाइल
DRDO ने भारतीय सेनाओं के लिए मिसाइल श्रृंखला का निर्माण उनका विकास किया है और अग्नि मिसाइल व पृथ्वी मिसाइल इनकी सफलता का एक उदाहरण है। इन मिसाइल श्रृंखलाओं के अलावा भी अन्य मिसाइल श्रंखला ऊपर भी डीआरडीओ ने काम किया है वह उनका विकास व निर्माण का कार्य पूरा किया है और इन सभी मिसाइलों को भारतीय सेना द्वारा उपयोग किया जाता है।
नीचे कुछ बेहतरीन मिसाइल की लिस्ट दी गई है जिसमें DRDO ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- अग्नि मिसाइल
- पृथ्वी मिसाइल
- आकाश मिसाइल
- त्रिशूल मिसाइल
- नाग मिसाइल
- सूर्य मिसाइल
- एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल
- ब्रह्मोस मिसाइल (इस मिसाइल का निर्माण DRDO और रूसी एनपीओ ने मिलकर किया है)
- निर्भय मिसाइल
- शौर्य मिसाइल
- प्रहार मिसाइल
- प्रलय मिसाइल
यह कुछ महत्वपूर्ण मिसाइलों के नाम है जो DRDO द्वारा बनाए गए हैं इसके अलावा बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा सिस्टम, उपग्रह विरोधी हथियार, पनडुब्बी से छोड़े जाने वाली बैलेस्टिक मिसाइल जिनमें सागरिका, के 4 मिसाइल, के 5 मिसाइल, के 6 मिसाइल इत्यादि प्रमुख हैं।
लेजर आधारित युद्ध सामग्री
आज के समय में हथियारों का आधुनिकरण बहुत तेजी से हुआ है, और लेजर आधारित युद्ध सामग्री उसी आधुनिकरण का एक हिस्सा है। लेजर की मदद से किसी भी टारगेट पर सटीक वार किया जा सकता है और DRDO ने इस तकनीक पर काम करके सटीक मार करने वाली लेजर आधारित युद्ध सामग्री तैयार की है।
नीचे कुछ ऐसे लेजर आधारित युद्ध सामग्री की लिस्ट दी गई है।
- सुदर्शन – यह भारत का सबसे पहला लेजर निर्देशित बम है और इसे स्वदेशी रूप से तैयार किया गया है।
- गरुड़ व गरूथमा – यह दोनों बम लेजर गाइडेड बम है जो DRDO ने तैयार किए हैं, 30 किलोमीटर से 100 किलोमीटर तक की इस बम की रेंज है जिसे भारत में स्वदेशी रूप से तैयार किया गया है। कम दूरी की क्षमता यानी 30 किलोमीटर तक की क्षमता वाले बम को गरुड़ वह 100 किलोमीटर तक की सीमा तक मार करने वाले बम को गरूथमा में कहा जाता है।
- एंटी एयरफील्ड वेपन – यह एक ऐसा हथियार है जो 100 किलोमीटर की सीमा तक सटीक वार करता है और किसी भी जमीनी लक्ष्य को भेज सकता है।
इसी तरह डीआरडीओ अलग-अलग परियोजनाओं पर काम कर रहा है और भविष्य में और भी अधिक खतरनाक हथियारों का निर्माण DRDO द्वारा किया जाएगा।
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