वीरापांड्या कट्टाबोम्मन एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की संप्रभुता को स्वीकार नहीं किया और उनके खिलाफ युद्ध, वीरापांड्या कट्टाबोम्मन द्वारा किए गए इस युद्ध को पॉलीगर का पहला युद्ध कहा जाता है।
वीरापांड्या कट्टाबोम्मन कौन थे ?
वीरापांड्या कट्टाबोम्मन 18 वीं शताब्दी में तमिलनाडु के पंचलांकुरीचि और पलायककर के सरदार थे। वीरापांड्या कट्टाबोम्मन ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध किया जिसमें ब्रिटिश इंडिया का साथ पुदुकोट्टाई और विजया रघुनाथ टोंडाइमन राज्य के शासक ने दिया।
इस युद्ध के पश्चात् वीरापांड्या कट्टाबोम्मन को 16 अक्टूबर 1799 को कायथार नामक जगह पर फांसी दी गयी।
वीरापांड्या कट्टाबोम्मन की जीवनी
वीरापांड्या कट्टाबोम्मन का जन्म 3 जनवरी 1760 को पांचालांकुरिचि, तामिलनाडु, भारत में हुआ। वह एक वटुका थे, जिसका मतलब उत्तरी होता है। वटुका शब्द तमिल में नीचा माना जाता है।
सन 1565 में विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद वे उत्तर से तिरुनेलवेली क्षेत्र में बसने के लिए दक्षिण भारत में आये। तिरुनेलवेली क्षेत्र में तिरुनेलवेली के अच्छे क्षेत्रों में वहां के प्रमुख समुदायों ने कब्ज़ा कर लिया था। जिसके पश्चात् विजयनगर साम्राज्य से आये कंबलटर जाति के लोगों के लिए अच्छी जगह नहीं बची, जिस वजह से उन्हें शुष्क इलाकों में पनाह लेनी पड़ी।
इतिहासकारों का मानना है कि स्थानीय लोक कथाओं में वीरापांड्या कट्टाबोम्मन को रोबिन हुड्ड की तरह बताया जाता है, और कई कविता रूप में और कथाओं में इसका जिक्र है।
कट्टाबोम्मन स्मारक किला
कट्टाबोम्मन स्मारक किले को पांचालंकुरिची किले के नाम से भी जाना जाता है, जो वर्तमान तमिलनाडु में स्थित है। यह कट्टाबोम्मन किला थुथुकुड़ी से 18 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है।
यह स्मारक वीरापांड्या कट्टाबोम्मन योद्धा का ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी या नहीं अंग्रेजो के खिलाफ उनके संघर्ष को याद दिलाता है। वर्तमान में जो कट्टाबोम्मन किला तमिलनाडु में स्थित है यह सन 1974 में मूल संरचना के अवशेषों पर बनाया गया था। इस स्थान पर कट्टाबोम्मन का सैन्य अड्डा हुआ करता था।
पॉलीगारों का अंग्रेजों के साथ संघर्ष
जब विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ उसके पश्चात मदुरई के नायक्कर राज्यपालों के अधीन तमिल क्षेत्र में स्थित पांड्य राज्य आ गया था। नायक्कर राज्यपालों ने अपने प्रशासनिक कार्यों के लिए पॉलीगारों को नियुक्त किया।
प्रशासनिक कार्य जैसे कर एक करना, गांव के समूह में सैनिकों को बनाए रखना जिसे पलायम कहा जाता था आदि पॉलीगारों द्वारा किया जाता था। कर्नाटक में हुए युद्धों के पश्चात इस क्षेत्र का नियंत्रण और आर्कोट के नवाब के पास चला गया जिसके पश्चात पॉलीगारों ने और आर्कोट के नवाब के अधिकार को नहीं माना।
आर्कोट के नवाब ने अंग्रेजों से भारी मात्रा में धन उधार लिया था लेकिन वह इस धन को नहीं चुका पाया जिसके बदले आर्कोट के नवाब ने अंग्रेजों को इस क्षेत्र से कर वसूलने का अधिकार दे दिया था। पॉलीगार, आर्कोट कि नवाब का अधिकार इस क्षेत्र पर नहीं मानते थे और जब उसने अंग्रेजों को कर वसूलने का अधिकार दिया है तो यह अंग्रेजों के साथ संघर्ष का कारण बना।
वीरापांड्या कट्टाबोम्मन जो एक पॉलीगार थे उन्होंने अंग्रेजों को कर देने से इंकार कर दिया। उस समय इस क्षेत्र में भारी सूखे की स्थिति बनी हुई थी जिस कारण वीरापांड्या कट्टाबोम्मन ने अंग्रेज अधिकारी से इस क्षेत्र का कर्ज माफ करने की मांग की।
तत्कालीन अधिकारी मेजर जॉन बैनर मैन ने यह मांग ठुकरा दी और वीरापांड्या कट्टाबोम्मन ने इसका विरोध किया जिसके फलस्वरूप अंग्रेज अधिकारी मेजर जॉन बैनर मैन ने वीरा पांडिया कट्टाबोम्मन के निवास स्थान पंचालनकुरीची किले पर अपनी सेना हमला करने के लिए भेज दी।
जब अंग्रेजी सेना वीरा पांडिया कट्टाबोम्मन के निवास स्थान पर पहुंची तो कट्टाबोम्मन ने अंग्रेजी सेना के साथ लड़ाई की जिसके फलस्वरूप अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। मेजर जॉन बैनर मैंन को यह पता लग चुका था कि वीरा पांडिया कट्टाबोम्मन से ऐसे नहीं जीता जा सकता है तो उसने भारी तोपों से हमला किया।
तोपों द्वारा किए गए हमले से किला क्षतिग्रस्त हो गया और कट्टाबोम्मन वहां से भागकर तिरुकलमपुर के जंगलों में चले गए जिसके कुछ समय बाद अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया।
ऐसा माना जाता है कि एट्टयापुरम पॉलीगर ने उनका छिपने का ठिकाना अंग्रेजों को बताया था, कट्टाबोम्मन के साथ की गई इस गद्दारी ने लोगों के ऊपर इतना गहरा असर छोड़ा कि आज भी तमिल भाषा में गद्दार के लिए एट्टपा शब्द प्रचलित है।
वीरा पांडिया कट्टाबोम्मन की मृत्यु
जब अंग्रेजों ने जंगल से कट्टाबोम्मन को हिरासत में लिया तो उन पर मुकदमा चलाया गया जिसके पश्चात उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। वीरा पांडिया कट्टाबोम्मन को 16 अक्टूबर 1799 को कायथार नामक जगह पर फांसी दी गई थी।
वीरापांडिया कट्टाबोम्मन को फांसी देने के पश्चात उनके पंचालनकुरीची किले को ढहा दिया गया। अंग्रेज अधिकारी बैनर मैन ने कट्टाबोम्मन को फांसी देने के पश्चात एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि कट्टाबोम्मन फांसी की ओर जाते समय बिल्कुल निडर थे।
पढ़ें: पानीपत का प्रथम, द्वितीय, व तृतीय युद्ध।
वीरापांडिया कट्टाबोम्मन के बारे में आवश्यक जानकारी
नाम | वीरापांडिया कट्टाबोम्मन |
जन्म तिथि | 3 जनवरी 1760 |
जन्म स्थान | पांचालांकुरिचि, तामिलनाडु, भारत |
मृत्यु तिथि | 16 अक्टूबर 1799 |
मृत्यु स्थान | कायथार |
मृत्यु का कारण | अंग्रेजों द्वारा फांसी |
फांसी का कारण | अंग्रेजों के खिलाफ पॉलीगर का युद्ध |