प्रदूषण के बढ़ने के कारण आज के समय में अम्लीय वर्षा एक मानव जीवन और अन्य जीवों के लिए समस्या बन गई है। जिस प्रकार से मानव जाति पूरी पृथ्वी को प्रदूषित कर रही है उससे अम्लीय वर्षा और अधिक हुई है और यदि ऐसा ही चलता रहता है तो यह बहुत हानिकारक साबित हो सकती है।
यह जानना चाहते हैं कि अम्लीय वर्षा क्या है और किन कारणों से यह अम्लीय वर्षा होती है तो इसके बारे में यहां पर विस्तार से जान सकते हैं।
अम्लीय वर्षा क्या है? – Acid Rain in Hindi
साधारण शब्दों में कहें तो बारिश के पानी के साथ अम्ल या एसिड का धरती पर गिरना ही अम्लीय वर्षा कहलाता है। अम्ल वर्षा धरती पर मौजूद सब जीव जंतुओं, पेड़ पौधों और प्राणियों के लिए बहुत खतरनाक होती है। मानसून के आने से पहले होने वाली बारिश को भी हम अम्लीय वर्षा कह सकते हैं।
जब मानसून की पहली बरसात होती है तो हमारे वातावरण में उपस्थित अनेक प्रकार के कीटाणु, धूल, बैक्टीरिया और विभिन्न प्रकार की वातावरण में घुली हुई गैसें बारिश के पानी के साथ नीचे आती है। आज के समय प्रदूषण ज्यादा होने की वजह से बारिश का पानी भी साफ नहीं रह गया है। नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे केमिकल वातावरण में उपस्थित रहते हैं जोकि बारिश के पानी के साथ धरती पर आते हैं।
अम्लीय वर्षा की खोज रॉबर्ट एंगस स्मिथ ने 1872 में की थी।
अम्ल वर्षा कैसे होती है?
किसी भी तरल पदार्थ की क्षारीयता और अम्लीयता को मापने के लिए मानक पीएच स्तर होता है। अगर पीएच स्तर 7 से कम हो तो वह तरल अम्लीय होगा और अगर पीएच स्तर 7 से ज्यादा हो तो वह क्षारीय होगा। अगर पीएच स्तर किसी तरल का 7 होता है तो उसको हम न्यूट्रल कहेंगे।
वातावरण में मौजूद प्रदूषण, धूल के कणों और घुली हुई गैसों के कारण हवा का पीएच स्तर कम हो जाता है जिसके कारण बारिश होने पर बारिश के पानी का भी पीएच स्तर 7 से कम हो जाता है, इससे बारिश का पानी एसिडिक लगने लगता है। इसलिए हम इसे एसिड रेन या फिर अम्लीय वर्षा कहते हैं। अम्लीय वर्षा का पीएच स्तर 5.3 तक होता है।
यह वर्षा प्राकृतिक रूप से ही होती है। हमारी पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड बारिश के पानी के साथ क्रिया करती है जिससे कार्बनिक एसिड बनता है। अम्लीय वर्षा मुख्यतः दो प्रकार के प्रदूषकों से होती है। एक है सल्फर डाइऑक्साइड और दूसरा है नाइट्रोजन ऑक्साइड।
यह दोनों प्रकार के प्रदूषक कार, बस या इसी प्रकार के कोई भी वाहन को चलाने से और कारखानों की चिमनीओ से उत्पन्न होकर वातावरण में घुल जाते हैं। अम्लीय वर्षा होने के कारणों में 30% योगदान नाइट्रोजन ऑक्साइड का रहता है और 70% योगदान सल्फर डाइऑक्साइड का। अम्ल वर्षा की समस्या आज के समय में केवल किसी एक देश कि ना रहकर एक अंतरराष्ट्रीय समस्या बन चुकी है।
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अम्ल वर्षा के प्रकार (Types of Acid Rain)
अम्लीय वर्षा मुख्यतः दो प्रकार की होती है, जो की निम्नलिखित हैं :
- शुष्क (सुखी) अम्ल वर्षा : जब अम्लीय प्रदूषक जैसे सल्फेट या नाइट्रेट, पर्यावरण में मौजूद धूल के कणों पर जमकर धरती पर गिरते हैं, तो इसे हम शुष्क अम्ल वर्षा कहते हैं।
- गीली (नम) अम्ल वर्षा: जब हाइड्रोक्लोरिक, सल्फुरिक और नाईट्रिक अम्ल बरसात के पानी के साथ मिलकर उसको अम्लीय बना देते हैं तो, उस बारिश को हम गीली अम्ल वर्षा कहते हैं।
अम्ल वर्षा के कारण (Reasons of Acid Rain)
- ओजोन परत पर एसिटिक एसिड और फार्मिक एसिड जैसे कुछ कार्बनिक अम्ल होते हैं जो अम्ल वर्षा में योगदान करते हैं।
- अम्लीय वर्षा होने का मुख्य कारण है वायु प्रदूषण।
- वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की मौजूदगी के कारण बारिश के पानी में सल्फ्यूरिक अम्ल और सल्फेट निर्मित हो जाता है जिसकी वजह से अम्ल वर्षा होती है।
- जलाने के लिए उपयोग होने वाले जीवाश्म इंधन के कारण भी अम्ल वर्षा होती है। क्योंकि जीवाश्म ईंधन को जलाने से सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं।
- वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति के कारण बारिश के पानी के साथ कार्बन डाइऑक्साइड प्रतिक्रिया करती है, इसके कारण भी अम्ल वर्षा होती है।
- ईंधन के रूप में कोयले और डीजल का उपयोग करने से भी अम्लीय वर्षा होती है।
अम्ल वर्षा के प्रभाव (Effects of Acid Rain)
अम्लीय वर्षा का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे पेड़ पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। इसके अलावा जिव जंतुओं और प्राणियों को भी इससे बहुत नुकसान होता है। आजकल आपने किसी के मुंह से यह जरुर सुना होगा की ‘अब बारिश में वो बात नहीं रही, जो पहले होती थी’ इसका मुख्य कारण है वातावरण में प्रदुषण का ज्यादा होना। इसी कारण ही बारिश के पानी में अम्ल घुल जाता है और यह अम्लीय वर्षा हमारे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
अम्लीय वर्षा के निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं:
- अम्ल वर्षा से मिट्टी की अम्लीयता में भी वृद्धि हो जाती है जिसके कारण मिट्टी की उत्पादक क्षमता घट जाती है। इसके अलावा जलीय जीव जंतुओं और मानव पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
- अम्लीय वर्षा के कारण फसलों और पेड़ पौधों की वृद्धि में भी रुकावट आती है जिसके कारण वातावरण अशुद्ध या प्रदूषित हो जाता है।
- मिट्टी की उर्वरता में कमी आने से किसानों को भी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ जाता है।
- संगमरमर और लाइमस्टोन से बनी इमारतों और स्मारकों का अम्लीय वर्षा के कारण क्षरण होने का नुकसान झेलना पड़ता है। सफेद मार्बल के अंदर मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट अम्ल वर्षा के पानी के साथ प्रतिक्रिया करता है जिसकी वजह से उसका क्षरण होता है। इस स्थिति को हम स्टोन कैंसर के नाम से भी जानते हैं। वर्तमान के समय में आगरा के ताजमहल के रंग का पीला पड़ना अम्लीय वर्षा के कारण ही है।
- अम्ल वर्षा से जलीय निकायों में भी शीशा और तांबे जैसे खतरनाक तत्व घुल जाते हैं जिससे जलीय जीवन प्रभावित होता है और जलीय प्राणियों को इसके खतरनाक परिणामों को झेलना पड़ता है।
- सीमेंट, लकड़ी, स्टील और पत्थरों द्वारा बने हुए स्मारकों, भवनों और इमारतों पर भी अम्लीय वर्षा का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- अम्लीय वर्षा से मनुष्यों में भी कैंसर, अस्थमा, सांस की बीमारी और शरीर वह आंखों में जलन जैसे रोग हो सकते हैं।
अम्ल वर्षा पर नियंत्रण
अम्लीय वर्षा एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। इसलिए इस पर नियंत्रण करना बहुत जरुरी हो चुका है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो प्रकृति को इसका भरी नुक्सान झेलना पड़ सकता है। अगर प्रकृति को नुक्सान होता है तो, पेड़ पौधों, जिव जंतुओं और प्राणियों का जीवन भी खतरे में पड़ सकता है। अम्लीय वर्षा के खतरनाक दुष्परिणामों को देखते हुए हमें इस पर नियंत्रण करने की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। मुख्यतः हमें वातावरण को प्रदूषित करने वाले प्रदूषकों को उत्पन्न होने से रोकना चाहिए, क्योंकि यह अम्लीय वर्षा का मुख्य कारण है।
अम्लीय वर्षा पर निम्नलिखित तरीके से नियंत्रण कर सकते हैं:
- वायु प्रदूषण पर नियंत्रण करना चाहिए।
- ऊर्जा के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
- कारखानों की चिमनीयों से बाहर निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड पर नियंत्रण करना चाहिए।
- हर प्रकार की तकनीकी का प्रयोग करके पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखना चाहिए।
- जीवाश्म ईंधन के अलावा ऊर्जा के और दूसरे स्रोत खोज कर उनका उपयोग करना चाहिए।
- अम्लीय वर्षा से होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने के लिए नवीन तकनीक का विकास किया जाना चाहिए।
- अधिकतर पवन या सौर ऊर्जा का उपयोग किया जाना चाहिए।
- इंधन के लिए हमें प्राकृतिक गैस का उपयोग करना चाहिए।
- मोटर वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैस जो हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करती है को नियंत्रण करने के लिए वाहनों को गैस से चलाना चाहिए।
- चुना बहुत अधिक क्षारीय प्रकृति का होता है इसलिए इसका उपयोग झीलों और नदियों की स्वच्छता के लिए किया जाना चाहिए क्योंकि इससे जल निकायों में मौजूद अम्लीयता नष्ट हो जाती है।
- वाहनों से निकलने वाली खतरनाक जहरीली गैसों को शुद्ध हवा में बदलने के लिए उत्प्रेरक कनवर्टर की सहायता ली जानी चाहिए।
- अधिकतर गंधक मुक्त इंधन का उपयोग किया जाना चाहिए।
- ऐसे वैकल्पिक ऊर्जा और इंधन के स्त्रोतों की खोज या विकास करना चाहिए जिससे पर्यावरण प्रदूषित ना हो।
अम्लीय वर्षा से अत्याधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्र
अम्लीय वर्षा ने सबसे ज्यादा प्रभावित जिन क्षेत्रों को किया है उनमें यूरोप, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, पोलैंड, स्केंडिनेविया और ताइवान का दक्षिण पूर्वी तट को शामिल किया जा सकता है।
सर्वाधिक अम्लीय वर्षा वाला देश उत्तर- नार्वे !
भारत में अम्लीय वर्षा
भारत में अभी अम्ल वर्षा ने खतरनाक रूप धारण नहीं किया है, इसका कारण है वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड से उत्पन्न अम्लीयता का न्यूट्रलाइजेशन हो जाना। भारत में अधिक मात्रा में वायु अपरदन की वजह से क्षारीय धूल उड़कर वातावरण में घुल जाती है जिससे वातावरण में अम्लीयता का न्यूट्रलाइजेशन काला हो जाता है
भारत में अम्लीय वर्षा होती भी है तो उसका कारण होता है शुष्क so2 का अवशोषित होना ना कि सल्फ्यूरिक अम्ल।