लोकतंत्र के प्रकार जानने से पहले इसका मतलब समझना आवश्यक है। लोकतंत्र शब्द, दो शब्दों के मेल से बना है “लोक+तंत्र”। लोक का शाब्दिक अर्थ होता है जनता या प्रजा एवं तंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है शासन। इसको हम प्रजातन्त्र के नाम से भी जानते हैं, जिसका अर्थ होता है प्रजा का शासन। इस शासन व्यवस्था से है शासन जनका के लिए, जनता के द्वारा, जनता का होता है। लोकतन्त्र में सब व्यक्ति एक सामान होते हैं और सब नागरिकों के एक सामान अधिकार प्राप्त होते हैं।
लोकतंत्र के प्रकार कितने हैं?
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र: ऐसी व्यवस्था है, जो कि बहुत समय पहले अपनाई जाती थी। इस व्यवस्था में लोग इकट्ठे होकर अपने लिए अपने आप ही कानून बनाते थे और उसे लागू करते थे। यह व्यवस्था उन्हीं जगहों पर हो सकती है, जहाँ पर जनसंख्या बहुत कम हो। आज के समय यह गिने चुने जगहों पर हाई देखने को मिलता है, क्योंकि आज के समय छोटे से छोटे देश की जनसंख्या लाखों में है। इसलिए, आज के समय यह संभव नहीं है।
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र: ऐसी व्यवस्था है, जिसमें लोग चुनाव द्वारा अपना प्रतिनिधि चुनते हैं और प्रतिनिधि फिर लोगों के लिए कानून बनता है और उसे लागू करता है। इसे शुद्ध लोकतंत्र भी कहा जा सकता है।
उपरोक्त वर्णित रूपों से भिन्न लोकतंत्र के प्रकार हो सकते हैं जैसे-
गुण क्या हैं?
लोकतंत्रात्मक व्यवस्था के में बहुत अधिक गुण निहित हैं, जो किसी राष्ट्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. किसी भी राष्ट्र के विकास में वहाँ की शासन व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ होता है। इसलिए उस शासन व्यवस्था में राष्ट्र के समाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक व मानवीय गुणों का होना अत्यंत आवश्यक है। लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में वो सब गुण मौजूद हैं, जो किसी राष्ट्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था के गुण निम्नलिखित हैं:
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- यह शासन व्यवस्था सार्वजनिक शिक्षण पर जोर देती है।
- इस व्यवस्था का आधार उच्च आदर्श हैं।
- जन कल्याण को सर्वोपरि होता है।
- यह शासन व्यवस्था देश में भ्रातृत्व और देश प्रेम की भावना पर जोर देती है।
- व्यवस्था परिवर्तनशील रहती है।
लोकतंत्र की सीमाएँ क्या हैं?
लोकतंत्र में बहुत से ऐसे गुण हैं, जो किसी राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक हैं, लेकिन उसके साथ साथ इसकी सीमाएँ भी हैं। जिन पर प्रकाश डालना भी आवश्यक है, जैसे-
- चुना हुआ प्रतिनिधि जनता अपने हित को देखकर चुनती है, और प्रत्येक व्यक्ति के हित सामान हों ये आवश्यक नहीं है।
- एक व्यक्ति दूसरों के लिए कोई निर्णय स्वतन्त्र रूप से लेना चाहे तो नहीं ले सकता है।
- जनता जब चाहे सरकार का तख्ता पलट कर सकती है और सरकार अपने हर निर्णय चाहे वो सफल हो या असफल जनता के लिए उत्तरदायी रहेगी।
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