पानीपत में तृतीय युद्ध के पहले हुए दो युद्धों ने मुगलों को भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी। इनके बाद 1761 में पानीपत की धरती पर एक और लड़ाई हुई अहमद शाह आबदाली और मराठों के बीच। इस लेख में आपको पानीपत के तृतीय युद्ध के विषय में संक्षिप्त में जानकारी दी गई है।
पानीपत का तृतीय युद्ध
पानीपत का तृतीय युद्ध पढ़ने से पहले हमें ये जानना होगा की पानीपत की तृतीय लड़ाई का कारण क्या था और यह युद्ध क्यों हुआ।
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद भारत की जमीन पर मुगलों का साम्राज्य धीरे धीरे दम तोड़ रहा था। वहीं दूसरी तरफ मराठों का परचम बुलंदी पर था, और राजपुताना, गुजरात और मालवा के राजा पेशवा बाजीराव की नेतृत्व वाली मराठा सेना में शामिल हो गए थे। मराठों की बढती हुई ताकत से मुगलों की हालत खराब हो रही थी। लगभग संपूर्ण हिंदुस्तान पर मराठों का परचम लहरा रहा था। उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों पर मराठों का आधिपत्य था। मुग़ल साम्राज्य सिर्फ नाम मात्र का रह गया था। मराठा साम्राज्य विस्तृत होता ही जा रहा था।
1758 में पेशवा बाजिराव के पुत्र बालाजी बाजीराव ने पंजाब पर भी कब्ज़ा कर लिया और अब मराठा साम्राज्य अफगान की सीमा पर सीना ताने खड़ा था। अहमद शाह अब्दाली ने इस बात को चुनौती की तरह देखा। मराठा सेना ने पंजाब व लाहौर से तैमुर शाह दुर्रानी को भी खदेड़ दिया, जो अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था। उस समय मराठा सेना की कमान बालाजी बाजीराव के हाथ में थी और उनकी नजर पूरे हिंदुस्तान से विदेशी हुकूमतों को बाहर निकलने पर थी। बंगाल में अंग्रेजों के बढ़ते हुए अधिकार को भी ख़त्म कर देना चाहते थे। मुगलों ने भी उनके सहयोग देना उचित समझा लेकिन मुगलों को भी मराठा शक्ति का विस्तार पसंद नही था।
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मराठों की शक्ति बढ़ने के साथ साथ उनके दुश्मनों की संख्या भी बढ़ रही थी। लाहौर से तैमुर शाह दुर्रानी को खदेड़ने के कारण अहमद शाह अब्दाली ने इसे चुनौती समझा और उसे ये बात नागवार गुजरी उसने अपनी विशाल सेना को लेकर भारत पर आक्रमण का मन बना लिया। पहले अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब में मराठा क्षेत्र के अधीन क्षेत्रों को जीता। उसके बाद उसने कश्मीर को भी जित लिया। उसके बाद वो दिल्ली में आकर रुक गया।
अहमद शाह अब्दाली के दिल्ली में आकर रुकने के कारण मराठा सरदार बौखला उठे और उन्होंने ने न केवल अहमद शाह अब्दाली को हारने की योजना बनाई बल्कि बंगाल में बढ़ रही अंग्रेजी ताकत को भी ख़त्म करने का मन बना लिया। मराठा सरदार अब पुरे हिंदुस्तान को विदेशी ताकतों से मुक्त करने की सोच रहे थे। असल में अहमद शाह अब्दाली मुग़ल वजीर नजीबुदौला के भारत आने के न्योते पर भारत आया था और वो मुगलों की जगह लेकर भारत पर हुकूमत चाहता था।
लड़ाई की शुरुआत
सदाशिव राव पेशवा के नेतृत्व में पुणे से मराठा सेना दिल्ली की तरफ चली। प्रारंभ में मराठा सेना में तक़रीबन पचास हजार सैनिक थे लेकिन आगे बढ़ते हुए दुसरे राजाओं की सेना उनके साथ जुडती गई और पानीपत पहुचते पहुँचते उनकी सेना लगभग दो लाख तक हो गई। इसके साथ ही इब्राहीम खान गार्दी भी अपने लगभग 8000 ऐसे सैनिकों के साथ मराठा सेना में मिल गया जो फ्रांस से प्रशिक्षित थे।
इब्राहीम गार्दी के पास फ्रांस की राइफल और फ्रांस की तोपें भी थी जिससे मराठा सेना को बहुत सहयोग मिला। दूसरी तरफ अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली के आस पास बसे हुए अफगानियों को अपनी तरफ कर लिया था जो फायदेमंद साबित हुआ।
14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेना के बीच पानीपत का तृतीय युद्ध शुरू हुआ और इस युद्ध में मराठों को हार का सामना करना पड़ा।
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पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की हार क्यों हुई ?
हुआ ऐसा था की युद्ध के दौरान विश्वासराव भाऊ को गोली लग गई थी, जो सदाशिव राव के अत्यंत प्रिय थे। उनको देखकर सदाशिव राव हाथी से उतरकर एक घोड़े पर सवार होकर उसके पास चले गए। मराठा सैनिकों ने जब सहशिव राव को हाथी पर नहीं देखा तो उन्हें लगा की वो मर गए, इसलिए मराठा सेना भयभीत हो गई।
मराठा सेना स्थिति को देखकर लगभग हार की कगार पर खड़ी अफगान सेना में नया जोश आ गया और वो फिर से दोगुने जोश के साथ लड़ने के लिए उठ खड़े हुए। और एक बात यह भी थी की मराठों का पुणे से संपर्क कट गया था और अफगान सेना का काबुल से, इसलिए यह युद्ध इस बात पर भी निर्भर करता था की किस सेना को खाने की आपूर्ति मिल रही है और किसे नहीं।
मराठों की हार का मुख्य कारण यह भी हो सकता है की उनके पास खाना ख़त्म हो चूका था। इस तरह इस लड़ाई में अफगान सेना की जीत हुई। यह लड़ाई इतिहास की बड़ी लड़ियों में से एक थी। क्योंकि इस लड़ाई में एक दिन में तक़रीबन 4000 सैनिकों की मृत्यु हुई थी, ये संख्या किसी भी युद्ध में मरने वाले सैनिकों की संख्या से बहुत अधिक थी।
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मराठों की हार के मुख्य कारण
- मराठा सेना का खाना ख़त्म हो चूका था
- मराठा सरदारों को पानीपत के मौसम का अंदाजा नहीं था और वो एक पतली धोती और कुर्ते में लड़ाई के लिए निकल पड़े थे और पानीपत में उस समय बहुत सर्दी थी
- मराठा सेना में सदा-शिव राव की मृत्यु होने की गलतफहमी फ़ैल गई थी
- प्रारंभ में मराठों के रिश्ते जाटों और राजपूतों से बहुत गहरे थे लेकिन 1950 तक आते आते इनके रिश्तों में दरार आ गई थी
- मुग़ल सेना भी मराठों के साथ थी लेकिन वो मराठों के बढ़ते वर्चस्व से खुश नहीं थे
- बालाजी बाजीराव ने सदा-शिव राव को मल्हार राव होलकर, महंत जी सिंधिया और रघुनाथ राव की जगह पर सेनापति बनाया, जबकि उत्तर भारत में ये तीनों नेतृत्व सम्भालने में सक्षम थे
परिणाम
पानीपत के प्रथम युद्ध के कारण मुग़ल साम्राज्य की भारत में नींव रखी और पानीपत के द्वितीय युद्ध से अकबर के लगभग पांच दशक के शासन की नींव पड़ी। लेकिन पानीपत के तृतीय युद्ध होने से भारत में अंग्रेजों के रस्ते खुल गए। इस लड़ाई से मराठों की दुर्गति हुई तथा मुगलों की दुर्दशा और दूसरी तरफ अंग्रेजों के प्रभाव में वृद्धि हुई।
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