प्रिय पाठकों इस लेख में आपको Sindhu Ghati Sabhyata in hindi के विषय में विस्तृत जानकारी दी जाएगी। इस लेख में इस सभ्यता के विषय में निम्नलिखित जानकारी दी गई हैं:-
सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में जानकारी (Indus Valley Civilization in Hindi)
सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की सभी खोजी गई सभ्यताओं में से सबसे विकसित सभ्यता है। इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। इस सभ्यता को सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानते हैं। यह सभ्यता 2500 ई.सा. पहले दक्षिण एशिया में फैली हुई थी, जो की इस समय पाकिस्तान और पश्चिम भारत में है। यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटेमिया जैसे सबसे प्राचीन सभ्यताओं से भी ज्यादा विकसित सभ्यता थी। सन्न 1920 ईस्वी में भारतीय पुरातात्विक विभाग द्वारा किए गए उत्खनन से प्राप्त अवशेषों के आधार पर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक दो नगरों की खोज हुई।
सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई
वैसे तो सन्न 1826 से ही इस सभ्यता के होने के प्रमाण मिलने लगे थे, लेकिन उस समय जी व्यक्ति को इसके प्रमाण मिले या तो उन्होंने किसी प्राचीन सभ्यता के होने के विषय में सोचा या फिर वह सब ज्यादा कुछ इस सभ्यता के विषय में नहीं बता पाए। उसके पश्चात सन्न 1921 में आधिकारिक रूप से भारतीय पुरातात्विक विभाग के प्रमुख जॉन मार्शल के नेतृत्व में सिन्धु घटी सभ्यता के स्थलों की खुदाई और खोज कार्य शुरू किया गया और सन्न 1921 में इस सभ्यता के प्रथम स्थल हड़प्पा की खोज हुई। इसलिए हम कह सकते हैं की सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज 1921 में हुई थी।
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सिन्धु घटी सभ्यता की खोज किसने की
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता की खोज का श्रेय दयाराम साहनी और राखलदास बनर्जी को दिया जाता है। वैसे तो इस सभ्यता के मौजूद होने के अवशेष पहले भी कुछ व्यक्तियों को मिले थे, लेकिन उनको इस सभ्यता से संबन्धित ज्यादा कुछ हाथ नहीं लग पाया था और कुछ व्यक्तियों को इस सभ्यता के अवशेष मिले भी तो उन्होने इस पर खास ध्यान नहीं दिया की यहाँ कोई प्राचीन सभ्यता भी हो सकती है।
इस सभ्यता की खोज की शुरुआत होती है चार्ल्स मेसन से, जो की ब्रिटिश नागरिक थे और 1826 में पाकिस्तान (वर्तमान नाम) की यात्रा पर गए थे। उनको वहाँ पर हड़प्पा सभ्यता के कुछ क्षेत्र मिले, लेकिन स्पष्ट रूप से उनके द्वारा कुछ ज्यादा उस सभ्यता के विषय में बताया नहीं गया। उसके पश्चात उन्होने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था ‘नैरेटिव ऑफ जर्निस’, जिसमें उन्होने इस सभ्यता के विषय में लिखा था, इसके पश्चात यह बात फैलनी शुरू हो गई थी।
उसके बाद 1856 में विलियम बर्टन और जेम्स बर्टन नामक दो इंजीनियर जे नेतृत्व में लाहौर से कराची के बीच में रेल्वे लाइन के निर्माण का काम किया जा रहा था। तब इन बर्टन बंधुओं को वहाँ पर खुदाई करने पर कुछ ईंटें प्राप्त हुई जिनका इस्तेमाल उन्होने रेल्वे लाइन के निर्माण में कर लिया। तब उन बर्टन बंधुओं को लगा की शायद यहाँ पहले कोई इमारत रही होगी जिसकी यह ईंटें निकाल रही है, लेकिन उन्होने यह सोचा ही नहीं की यह कोई प्राचीन सभ्यता भी रही होगी और इसलिए उन्होने इस सभ्यता को ढूँढने की कोशिश ही नहीं की।
सर्वप्रथम अलेक्जेंडर कनिंघम नामक व्यक्ति ने इस सभ्यता को ढूँढने का प्रयास किया। उन्होने 1853 से लेकर 1856 तक इन क्षेत्रों का दौरा किया, लेकिन इनके हाथ भी कोई ठोस प्रमाण हाथ नहीं लगे। अलेक्जेंडर कनिंघम को हम भारतीय पुरातात्विक विभाग के जनक के नाम से भी जानते हैं।
सन्न 1921 में जॉन मार्शल के नेतृत्व में इस सभ्यता को खोजने के लिए खुदाई का कार्य प्रारम्भ हुआ। जॉन मार्शल उस समय भारतीय पुरातात्विक विभाग के प्रमुख थे। उन्होने इन क्षेत्रों की खुदाई का नेतृत्व दयाराम साहनी और राखलदास बनर्जी को सौंपा। दयाराम साहनी के द्वारा हड़प्पा क्षेत्र की खुदाई और राखलदास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो क्षेत्र की खुदाई का कार्य शुरू किया गया था। इसलिए ही सिंधु घाटी सभ्यता के खोजकर्ता का श्रेय दयाराम साहनी और राखलदास बनर्जी को दिया जाता है।
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सिन्धु घाटी सभ्यता का नामकरण
इस सभ्यता को 3 नामों से जाना जाता है, जिनका वर्णन निम्नलिखित है:-
- सिन्धु घाटी सभ्यता:- इस सभ्यता का यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इस सभ्यता के अधिकतर स्थल सिन्धु नदी के तट पर मिले थे।
- हड़प्पा सभ्यता:- अक्सर किसी भी सभ्यता की खोज होने पर उसके नामकरण के सम्बन्ध में कोई दिक्कत आती है तब उस सभ्यता के सबसे पहले खोजे गए स्थल के नाम पर ही उस सभ्यता का नाम रख दिया जाता है। इसलिए इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, क्योंकि हड़प्पा स्थल की खोज सबसे पहले हुई थी। सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है।
- सिन्धु और सरस्वती सभ्यता:- सर्वप्रथम इस सभ्यता के स्थल सिन्धु नदी के तट पर खोजे गए थे, लेकिन बाद में कुछ स्थल सरस्वती नदी के किनारे भी मिले थे। इसलिए इस सभ्यता को सिन्धु और सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस सभ्यता का यह नाम ज्यादा प्रचलित नहीं है।
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएं
- शांत सभ्यता:इस सभ्यता में सब लोग शांतिपूर्वक और प्यार प्रेम से रहने वाले थे, क्योंकि इस सभ्यता की खोज के दौरान किसी भी युद्ध या अस्त्र, शस्त्र के प्रमाण नहीं मिले हैं। जबकि इतिहास को पढ़ें तो पता लगता है की पहले सामाजिक, राजनितिक और धार्मिक विषय पर अपनी बात को मनवाने के लिए युद्ध ही एक विकल्प हुआ करता था।
- नगरीय व्यवस्था का विकास: भारतवर्ष में सिन्धु घटी सभ्यता को ही पहली नगरीय व्यवस्था वाली सभ्यता माना जाता है। इस सभ्यता के आधार पर ही भारत में नगरीय व्यवस्था का विकास शुरू हुआ है। इस सभ्यता की नगरीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताए थी, यहाँ के पक्के मकान, ग्रिड प्रणाली और जल निकासी प्रबंधन और यहाँ व्यापार की नजर से नगर प्रमुख होते थे।
- कांस्य का उपयोग: इस सभ्यता को खोज के दौरान पाया गया की इस सभ्यता में लोग कांस्य का उपयोग करते थे। इसलिए इस सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता कहते हैं।
- व्यापार प्रमुख: इस सभ्यता में व्यापार को अधिक महत्व दिया गया था। इससे पहले की दूसरी सभ्यताओं में यह पाया गया था की वह सब कृषि प्रधान होती थी। लेकिन इस सभ्यता में नगर बहुत विकसित थे और यह सब नगर व्यापार प्रमुख होते थे।
- आद्य-ऐतिहासिक सभ्यता: यह सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल की सभ्यता है। अर्थात इस सभ्यता के विषय में सब जानकारी हमें पुरातात्विक स्त्रोत और लिखित व साहित्यिक स्त्रोत से प्राप्त हुई है, लेकिन इस सभ्यता के लिखित व साहित्यिक स्त्रोत को अब तक पढ़ा नहीं जा सका है। इस सभ्यता के विषय में चित्र लिपियाँ भी मिली हैं, लेकिन इन लिपियों को भी नहीं पढ़ा गया है।
- विस्तृत क्षेत्रफल: इस सभ्यता के बहुत सारे स्थल खोजे गए है, जो की ज्यादा क्षेत्रफल में फैले हुए थे। विश्व की अन्य सभ्यताओं को मिला दें तब भी सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल इन सभ्यताओं के क्षेत्रफल से बहुत ज्यादा है।
सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
क्रम संख्या | स्थल का नाम | खोजकर्ता | खोज कब हुई | कहाँ पर स्थित है | विशेषता |
1 | हड़प्पा | दयाराम साहनी | 1921 | पाकिस्तान के पंजाब में मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के किनारे पर स्थित है | 1. यहाँ पर एक बहुत बड़ा अन्नागार मिला है।
2. यहाँ पर बैलगाड़ी के भी निशान और अवशेष मिले हैं। 3. बलुआ पत्थर से निर्मित इंसान के शरीर की मूर्तियों के प्रमाण भी यहाँ से मिले हैं। |
2 | मोहनजोदड़ो | राखलदास बनर्जी | 1922 | पाकिस्तान के सिंध के लरकाना जिले में सिंधु नदी के किनारे स्थित है | 1. इसको मृतकों का टीला भी कहते हैं।
2. यहाँ पर विशाल स्नानागार और अन्नागार के अवशेष भी मिले हैं। 3. यहाँ पर निम्नलिखित वस्तुएँ पाई गई हैं:-
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3 | बनावली | आर. एस. विष्ट | 1974 | हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है | 1. यहाँ पर हड़प्पा सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।
2. यहाँ पर जौ और मनके के भी प्रमाण मिले हैं। |
4 | लोथल | आर. राव | 1953 | गुजरात में भोगवा नदी के तट पर स्थित है | 1. इस स्थल पर मानव निर्मित बन्दरगाह होने के प्रमाण मिले हैं।
2. यहाँ पर अग्नि वेदिकायों, चावल की भूसी और शतरंज के खेल के होने के प्रमाण मिले हैं। |
5 | चन्हुदड़ो | एन. जी. मजूमदार | 1931 | पाकिस्तान के सिंध राज्य में सिंधु नदी के तट पर | 1. यहाँ पर कुत्ते के बिल्ली का पीछा करते हुए के पदचिन्न मिले हैं।
2. यहाँ पर मनके बनाने की दुकानों के होने के प्रमाण मिले हैं। |
6 | कालीबंगा | घोष | 1953 | राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्गर नदी के तट पर स्थित है | 1. यहाँ पर लकड़ी का हल और ऊंट की हड्डियाँ मिली हैं।
2. यहाँ पर चूड़ियों के निर्माण होने के प्रमाण भी मिले हैं। 3. यहाँ पर अग्नि की वेदिकाओं के भी प्रमाण मिले हैं। |
7 | आलमगीरपुर | यज्ञ दत्त शर्मा | 1958 | मेरठ, उत्तर प्रदेश में हिंडन नदी के तट पर स्थित | 1. यहाँ पर हड़प्पा सभ्यता के होने के प्रमाण मिले हैं।
2. इस स्थल को परसराम का खेड़ा के नाम से भी जाना जाता है। 3. यहा पर मिट्टी के बर्तन बनाने की कार्यशाला के होने के साक्ष्य मिले हैं। 4. यहाँ पर सांप और एक कूबड़ वाले बैल की मूर्तियाँ भी मिली थी। 5.यहाँ पर टूटा हुआ ब्लेड जो की तांबे से बना हुआ था, वो पाया गया था। |
8 | सुरकोतदा | जे. पी. जोशी | 1964 | गुजरात के कच्छ में | यहाँ पर मनके और घोड़े की हड्डियों के अवशेष और प्रमाण मिले हैं। |
9 | सुतका गेंडोर | स्टीन | 1929 | बलूचिस्तान राज्य, जो की पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम में स्थित है, उसमें दाश्त नदी के तट पर स्थित है | इसके व्यापार का केंद्र बिन्दु होने के प्रमाण मिलते हैं। माना जाता है की यह स्थल हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार का केंद्र बिन्दु था। |
10 | धौलावीरा | आर. एस. विष्ट | 1985 | गुजरात के कच्छ में | 1. यहाँ पर जल कुंड होने के प्रमाण मिले हैं।
2. यहा पर जल निकासी के प्रबंधन के भी साक्ष्य मिले हैं। |
सिन्धु घाटी सभ्यता में नगर योजना
जैसा की आपको उपरोक्त बता दिया गया है की यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटेमिया की सभ्यताओं से ज्यादा विकसित थी, इसके साथ – साथ इस सभ्यता में नगर योजना बहुत ही बहतरीन ढंग से की हुई थी। सिंधु घाटी सभ्यता में नगर योजना की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-
- यहाँ पर ग्रिड प्रणाली का इस्तेमाल किया हुआ था। अर्थात यहाँ पर सड़कों का निर्माण ऐसे किया गया था की यहाँ पर सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी, जिससे की नगर बहुत सारे आयताकार भागों में बंट जाता था। इसके अलावा यहाँ पर सड़कें दो प्रकार की होती थी। एक मुख्य सड़क होती थी, जो की चौड़ाई में लगभग 10 मीटर होती थी और इसके अलावा गलियों की छोटी – छोटी सड़कें होती थी, जो की चौड़ाई में लगभग 3 से 4 मीटर होती थी।
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में ऊंचे – ऊंचे दुर्ग थे। ऐसा माना जाता है की इन ऊंचे दुर्गों में उच्च वर्ग के लोग रहते थे। दुर्ग से नीचे के क्षेत्रों में सामान्य ईंटों से निर्मित किए गए नगर थे, जिनको देखकर लगता है की वहाँ पर सामान्य वर्ग के लोग रहते थे। ऐसा माना जाता है की सिंधु घाटी सभ्यता में नगर दो भागों – पूर्वी नगर और पश्चिम नगर में विभक्त थे। पूर्वी नगर कम ऊंचाई पर थे जिनमे सामान्य वर्ग के व्यक्ति रहते थे, जबकि पश्चिम नगर में ऊंचाई पर स्थित दुर्ग थे, जहां पर धनाड्य और उच्च वर्ग के लोग रहते थे।
- मोहनजोदड़ो में विशाल स्नानागार मिला था। माना जाता है की यह एक सामूहिक और सार्वजनिक स्नानागार था, जिसमें दो तरफ से सीढ़ियाँ बनाई हुई थी। इसके साथ – साथ इस स्नानागार में कपड़े बदलने के लिए अलग से कमरे भी बनाए गए थे।
- मोहनजोदड़ो में जल निकासी के बहुत अच्छी व्यवस्था थी। यहाँ पर लगभग हर घर में एक आँगन और स्नानागार होता था। घरों का पानी निकालकर सड़कों पर आता था, जहां पर मोरियाँ बनी होती थी। इन मोरियों को पत्थर की शिलियों से ढाका हुआ होता था। इन मोरियों के बीच – बीच में होज भी बनाए हुए थे, जिनमें मोरियों या नालियों का कचरा जमा हो जाता था और मोरियों का पानी आगे चलकर नगर से बाहर चला जाता था। लेकिन धौलावीरा में यह मोरियाँ लकड़ी की बनी हुई मिली हैं। ऐसी मोरियों के अवशेष बनावली से भी मिले हैं। यहाँ की जल निकासी व्यवस्था इतनी बेहतर थी की आज वर्तमान में भी इंजीनियर उस जल निकासी की व्यवस्था को देखकर सोच में पड़ जाते हैं की आज से 2500 ईस्वी पूर्व की सभ्यता में ऐसी व्यवस्था कैसे हो सकती है।
- हड़प्पा नगर अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिए जाना जाता है।
- अन्नागार या अन्न के कोठारों के निर्माण के लिए हड़प्पा को विशेष रूप से जाना जाता है, लेकिन ऐसे अन्न के कोठार मोहनजोदड़ो में भी पाये गए हैं। इन अन्न के कोठारों को ईंटों के चबूतरों पर बनाया जाता था। इन अन्न के कोठारों की लंबाई 15.23 मीटर और चौड़ाई 6.09 मीटर होती थी।
- यहाँ निर्माण कार्यों के लिए जली हुई ईंटों का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि मिस्र में धूप से पकाई हुई ईंटों का इस्तेमाल होता था।
- कालीबंगा के लगभग हर घर में एक कुआं होता था।
- नगरों को दीवारों द्वारा अलग – अलग भागों में विभक्त किया गया था।
- सड़क के किनारों पर दुकानें बनी हुए थी। लगभग सब दुकानें बहुत छोटी होती थी।
- खोजकर्ताओं का मानना है की जैसे शौचालय की व्यवस्था वर्तमान समय है, लगभग ठीक ऐसी ही व्यवस्था सिंधु घाटी सभ्यता में भी मौजूद थी।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
दरअसल सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों के विषय में इतिहासकारों के बीच में मतभेद है। कोई कहता है इस सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ है तो कोई कहता है की विदेशी आक्रमणकारी हैं। विभिन्न इतिहासकारों द्वारा दिये गए पतन के कारण निम्नलिखित हैं:-
- व्हीलर और चाइल्ड के अनुसार इस सभ्यता का पतन विदेशी आक्रमण के कारण हुआ है। उनका मत था की आर्यों ने ही इस सभ्यता पर आक्रमण करके नष्ट किया और उसके बाद भारत में गए और वह जाकर वैदिक समाज को निर्मित किया।
- जॉन मार्शल और अर्नेस्ट के अनुसार इस सभ्यता का पतन बाढ़ आने के कारण ही हुआ था। उनके मत को सबसे ज्यादा विद्वानों ने माना था।
- फेयर सर्विस के अनुसार इस सभ्यता का पतन धीरे धीरे होने वाले जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी में असंतुलन के कारण हुआ।
सिन्धु घाटी सभ्यता प्रश्नोत्तरी
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सिन्धु घाटी सभ्यता में लोग किस देवता की पुजा करते थे?
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग मातृ देवियों और पशुपतिनाथ को पूजते थे।
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किस पुस्तक में सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में वर्णन किया गया है?
चार्ल्स मेसन द्वारा लिखित नैरेटिव ऑफ जर्निस नामक पुस्तक में सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में वर्णन किया गया है।
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सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों का पालतू जानवर?
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों का पालतू जानवर कूबड़ वाला सांड था और इसको ही यहाँ पूजा जाता था।
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सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन कैसे हुआ?
इतिहासकारों के मतानुसार यह सभ्यता 1800 ईसा पूर्व पूर्ण रूप से नष्ट हो गई थी।
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भारतीय पुरातात्विक विभाग के जनक के रूप में किसको जाना जाता है?
अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातात्विक विभाग के जनक के रूप में जाना जाता है।