वैश्वीकरण ने भारत को विश्व व्यापार के नए आयाम स्थापित किए। इससे भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पैर फैलाने में बहुत मदद मिली और भारत के विदेश मुद्रा भंडार में भी बढ़ोतरी हुई। लेकिन वैश्वीकरण के कारण हमारे देश को लाभ के साथ साथ कुछ हानियाँ भी हुई जिनका उल्लेख इस लेख में विस्तृत रूप से किया गया है।
वैश्वीकरण के लाभ
शीत युद्ध के बाद देश और राजनेताओं ने इस बात को समझा और जाना कि वैश्वीकरण क्या है, किस प्रकार से वह वैश्वीकरण के लाभ वह ले सकते हैं। वैसे तो देश और राज्यों के बीच में लेनदेन पहले से ही होता आया है, परंतु शीत युद्ध के पश्चात इसमें बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई और इसके बहुत सारे लाभ हुए।
- इसकी वजह से उत्पादकों की संख्या बढ़ रही है, जिससे प्रतिस्पर्धा में भी वृद्धि हो रही है। प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पाद की गुणवत्ता में वृद्धि आती है जिसका लाभ ग्राहक को मिलता है। वैश्वीकरण के कारण व्यापार बढ़ता जा रहा है, जिससे गुणवत्ता भी बढती जा रही है।
- एक देश के लोगों को दुसरे देश के लोगों के त्योहारों, संस्कृतियों और वह इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं इत्यादि का ज्ञान होता है। जिससे पूरे विश्व में संस्कृति का सब देशों में आदान प्रदान सम्भव हुआ है। आज हम वो सब वस्तुएं देख रहे हैं और इस्तेमाल कर सकते हैं, जो की पहले के समय उपलब्ध नहीं होती थी।
- इससे बाजारों का एकीकरण हुआ है, जिसकी वजह से कोई भी देश किसी भी देश में अपना उत्पाद का आयात और निर्यात कर सकते है, जिससे बाजारों की स्वतंत्रता को बढ़ावा मिला है।
- संचार के साधनों में क्रांति, वैश्वीकरण का परिणाम है। संचार के साधनों ने पूरे विश्व को किसी एक बड़े गाँव का रूप दे दिया है।
- प्रत्येक देश को विश्व व्यापार को सुचारू रूप से चलने के लिए अपने नियमों में अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार बदलाव किये हैं, जिनकी वजह से नियमों में एकीकरण हुआ है।
- इससे विश्व की अर्थव्यवस्था का एकीकरण हुआ है। प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था पर विश्व अर्थव्यवस्था का बहुत प्रभाव पड़ता है। वैश्वीकरण के कारण प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था, विश्व अर्थव्यवस्था से जुडी हुई है।
- वैश्वीकरण से विकासशील देशों को विकसित देशों की उन्नत तकनीक से सहयोग मिलता है। आज के समय सब देश तकनीक को दुसरे देशों के साथ साझा करते हैं, जिससे तकनीक में सुधर हो रहे हैं।
- संचार और परिवहन पर लगने वाली लागत में भी कमी आई है।
- प्रत्येक देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसकी वजह से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है।
- वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप देश के सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि होती है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का देश में आगमन होता है जिससे देश में रोजगार बढ़ता है, सकल घरेलू उत्पाद बढ़ता है, नई तकनीक का प्रसार होता है, देश का राजस्व बढ़ता है इत्यादि।
- देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता है, जिससे देश में बिना ऋण के पूंजी का आगमन होता है।
- ग्राहक को प्रतिस्पर्धा की वृद्धि के कारण कम मूल्य पर अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद मिलते हैं, जिससे व्यक्ति के जीवन स्तर में वृद्धि होती है।
- वैश्वीकरण से दो देशों में श्रम का आदान प्रदान होता है जिससे व्यक्ति एक देश से दुसरे देश में रोजगार प्राप्त करते हैं जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है।
- देश को विदेशी सहयोग भी मिलता है अर्थात् वैश्वीकरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलता है। इसकी वजह से दो देशों में ना केवल व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं अपितु समाजी और राजनीतिक सम्बन्ध भी स्थापित होते हैं, जिससे आपसी सहयोग में वृद्धि होती है।
- वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों की औद्योगिक और आर्थिक विकास में तीव्र गति से वृद्धि होती है।
- वैश्वीकरण के कारण प्रतिस्पर्धा बढती है जिसके फलस्वरूप उत्पादक निर्यात के स्तर पर बने रहने के लिए उत्पाद की गुणवत्ता और कीमत पर विशेष ध्यान रखते हैं जिससे उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार आता है।
- इसके कारण पूरा विश्व एक बाजार बन गया है, जिससे उत्पादक को उत्पाद को बेचने के लिए नए नए बाजारों की खोज नहीं करनी पड़ती जिसके कारण उत्पादन में वृद्धि करके औसत लागत में कमी की जा सकती है।
वैश्वीकरण की हानियां
- वैश्वीकरण के कारण पूंजीवाद में वृद्धि हुई है और पूंजीवाद निजीकरण को बढ़ावा देता है। इसके कारण 1980 के में जो राजनीतिक उपनिवेश वाद था, उसने आज आर्थिक उपनिवेश वाद का रूप ले लिया है।
- इससे उत्पन्न हुए निजीकरण से कल्याणकारी राज्य की धारणा को ठेस पहुंची है। देश में सब क्षेत्रों से धन अर्जित कर शिक्षा और स्वास्थ्य पर वह धन व्यय किया जाता है और शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएँ निशुल्क लोगों को प्रदान की जाती है, जिससे कल्याणकारी राज्य की स्थापना हो।लेकिन वैश्वीकरण के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी निजीकरण की गति बहुत तीव्र हो गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं जो की वैश्वीकरण को क्रियाशील बनने के लिए एजेंट के रूप में कार्यरत हैं। अप्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए स्वतन्त्र करने के लिए दबाव डालती हैं। इससे विकासशील देशों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- वैश्वीकरण संस्थागत ढांचा उचित नहीं है, यह भेदभाव से भरा हुआ है।
- भारतीय लघु उद्योगों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संख्या में वृद्धि हुई है जिससे भारतीय लघु एवं कुटीर उद्योग प्रतिस्पर्धा में उनके सामने खड़े नहीं हो पा रहे हैं। जिससे ये उद्योग ख़त्म होते जा रहे हैं। छोटे मोटे कार्यों में लगे हुए व्यक्ति या उत्पादक कमजोर होते जा रहे हैं या ख़त्म होते जा रहे हैं।
- इसकी वजह से अमीर और गरीब के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है। अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है। इस तरह आर्थिक असमानता बढ़ रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को अधिक वेतन देती हैं, इसके कारण भी आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है। आर्थिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है।
- पूंजीवाद का विकास हुआ है, जिससे मशीनी-करण को बढ़ावा मिला है। मानव श्रम की मांग में कमी हुई है, जिसके कारण रोजगार में कमी हुई है।
- कल्याणकारी राज्य की अवधारणा कमजोर हुई है।
- कृषि क्षेत्र में आर्थिक सुधारों का अभाव रहा है।
- वैश्वीकरण से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आता है, बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन होता है, प्रतिस्पर्धा बढती है जिसके परिणाम स्वरूप ज्यादा औद्योगिक क्रियाएँ होती हैं जिसके लिए वनों को काटा जाता है और इन औद्योगिक गतिविधियों के बढ़ने के कारण प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने छोटी कम्पनियाँ पर्याप्त साधनों और तकनीकी के की कमी के कारण मर रही हैं। ऐसी छोटी कंपनियों का पतन होता जा रहा है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ये कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने लम्बे समय तक टिक नहीं पाती हैं। औद्योगिक जगत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा या वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। ये कम्पनियाँ छोटी कंपनियों, लघु उद्योगों और लघु पैमाने के उद्योगों को निगलती जा रही हैं।
- किसानों की आत्महत्या, गाँव और शहरों के मध्य असमानताएँ, बौद्धिक योग्यता का प्रवसन (Migration), मानव श्रम का प्रवसन जैसी समस्याएँ भी वैश्वीकरण के कारण उत्पन्न हुई हैं।
- वैश्वीकरण से राष्ट्र प्रेम की भवान को ठेस पहुँच रही है, क्योंकि लोग विदेशी वस्तु की तरफ आकर्षित होकर अपनी देशी वस्तु को तिरस्कार योग्य और घटिया समझते हैं और विदेशी वस्तु को खरीदना शान समझते हैं।
- मानव सम्पदा अधिकार कानून, वित्तीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट कानून जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का गलत उपयोग हो रहा है। पेटेंट कानून का सहारा लेकर कुछ परंपरागत उत्पाद पेटेंट के कारण महंगे हो गए हैं क्योंकि इससे एकाधिकार की सोच को बढ़ावा मिलता है।
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