दोस्तों, हमारा समाज पहले से ही बंटा हुआ है। हमारे समाज कहीं जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर, वर्ण के नाम पर, भाषा इत्यादि के नाम पर बंटा हुआ है। इन सबके अलावा हमारा समाज दो और हिस्सों में बंटा हुआ है – 1. शोषण करने वाला वर्ग 2. शोषित होने वाला वर्ग। इसे रोकने के लिए भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण के विरुद्ध अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है।
आपने कभी न कभी दास, देवदासी, बलात श्रम और बंधुआ आदि शब्द सुने ही होंगे। दरअसल यह शब्द एक अनैतिक सामाजिक प्रणाली की उपज हैं। हमें अपने जीवन में आजादी की उतनी की आवश्यकता है, जितनी की हमें जीने की आवश्यकता है। अर्थात अगर इंसान खुद को आजाद महसूस नहीं करता है, तो वह जीवन उसके लिए मृत्यु के बराबर होगा। हमारे समाज में धनी, रसुखदार, जमींदार, सूदखोर या अन्य अति सुविधा प्राप्त लोग वंचित लोगों और अल्प सुविधा प्राप्त लोगों को दबाते रहे हैं।
इन वंचित और अल्प सुविधा प्राप्त लोगों से बंधुआ मजदूरी कारवाई जाती है। इनको वो अपने दास के जैसे रखते हैं। भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को आजादी के साथ साथ कुछ अधिकार भी दिए हैं जिनमे से एक है शोषण के विरुद्ध अधिकार। जिसके तहत वंचित वर्ग के हो रहे शोषण को रोकने का प्रयास किया जाता है, और इसके लिए इस अधिकार में शोषण करने वाले के लिए दंड का प्रावधान भी किया गया है। इस लेख में आपको भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 23 और 24 में वर्णित शोषण के विरुद्ध अधिकार के विषय में संक्षिप्त जानकारी दी जाएगी।
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शोषण के विरुद्ध अधिकार क्या है? – Shoshan ke virudh adhikar in hindi
यह अधिकार भारत के वंचित और अल्प सुविधा प्राप्त नागरिकों के शोषण की रोकथाम के लिए और उनकी रक्षा की गारंटी देता है। यह अधिकार भारत के संविधान के भाग 3 में दिये गए 6 मौलिक अधिकारों में से एक है। इस अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 23 और 24 में किया गया है।
दास प्रथा, बंधुआ मजदूरी, बलात श्रम और मानव तस्करी जैसे कार्यों को खत्म करने के उद्देश्य से इस अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है। जिससे की वंचित वर्ग के लोगों का शोषण होने से रोका जा सके और शोषण करने वाले लोगों को दंड दिया जा सके। दासता प्राचीन समय से चली आ रही एक असामाजिक प्रथा है जिसको खत्म करना अत्यंत जरूरी है, क्योंकि दास बनकर रहना किसी भी इंसान के लिए मरने के समान होता है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार के होने के बावजूद भी वर्तमान समय बंधुआ मजदूरी हो रही है, महिलाओं का भी शोषण हो रहा है। इसलिए इस अधिकार में शोषण करने वालों के लिए दंड का प्रावधान भी किया हुआ है। ताकि इस अधिकार को लोग गंभीरता से लें और शोषित हो रहे लोगों की रक्षा की जा सके।
शोषण के विरुद्ध अधिकार का महत्व
शोषण के विरुद्ध यह अधिकार समाज और संविधान में बहुत महत्वपूर्ण योगदान देता है। इस अधिकार के चलते ही समाज से दास प्रथा, बलात श्रम, मनुष्यों की तस्करी, बंधुआ प्रथा जैसी प्रथाएँ खत्म हो रही हैं और इन कमजोर वर्ग का शोषण करने वालों इस अधिकार के अंतर्गत दंड देकर ऐसे शोषण करने वाले व्यक्तियों पर अंकुश लगाया जा रहा है। शोषण के विरुद्ध अधिकार के निम्नलिखित महत्व हैं:-
- यह अधिकार नागरिकों के शोषण होने से रक्षा करता है।
- यह अधिकार नागरिकों को शोषण के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है और उनको सुरक्षित महसूस करवाता है।
- यह अधिकार समाज में पिछड़े, वंचित, असुरक्षित, कमजोर और अल्प सुविधा प्राप्त नागरिकों की रक्षा करता है।
शोषण के विरुद्ध अधिकार के मुख्य प्रावधान
इस अधिकार में 2 प्रावधान किए गए हैं, जो की अनुच्छेद 23 और अनुच्छेद 24 के अंतर्गत आते हैं। वर्तमान समय में भी हमारे समाज में युवा महिलाओं, नाबालिक लड़कियों और छोटे बच्चों को खरीदा बेचा जाता है। छोटे बच्चों (14 वर्ष से कम आयु) से फेक्टरियों, दुकानों और घरों में काम करवाया जाता है। इसलिए संविधान में ऐसे वंचित वर्ग के हो रहे शोषण को रोकने के लिए अनुच्छेद 23 और 24 को शामिल किया गया है। इस अधिकार के तहत वंचित वर्गों और अल्प सुविधा प्राप्त नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार के संदर्भ में राज्य ही नहीं बल्कि निजी व्यक्तियों से भी संरक्षा प्रदान की जाती है। अनुच्छेद 23 और अनुच्छेद 24 का उल्लेख निम्नलिखित है:-
- मनुष्य का व्यापार (मानव तस्करी), और बलात श्रम (बेगार) का निषेध (अनुच्छेद 23):- इस अनुच्छेद के अंतर्गत मानव तस्करी अर्थात मनुष्य को किसी भौतिक वस्तु के जैसे खरीदना और बेचना एक दंडनीय अपराध माना गया है। अनुच्छेद 23 के तहत मानव दुर्व्यापार और इसी प्रकार के अन्य बलात श्रम पर रोक लगाता है। इस अनुच्छेद का अगर कोई उल्लंघन करता है तो उसके लिए दंड का प्रावधान किया हुआ है। मानव दुर्व्यापार के खिलाफ अधिकार में निम्नलिखित को शामिल किया गया हैं:-
- वैशयावृति
- दास
- देवदासी
- महिला, पुरुष और बच्चों की तस्करी
इस अधिकार के अंतर्गत इस प्रकार का कार्य करने वाले व्यक्ति को दंड देने के लिए संसद द्वारा [Immoral Traffic (Prevention) Act] अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम 13, 1956 को लागू किया गया है। अनुच्छेद 23 के अंतर्गत अधिकार भारत के नागरिक और गैर – नागरिक दोनों प्राप्त है।
अनुच्छेद 23 (2) के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा अनिवार्य सेवाओं जो की लोक हित के लिए होंगी, उनमें अनुच्छेद 23 की शर्तें लागू नहीं होंगी। इसका अर्थ यह है की शाशकीय सेवक द्वारा बिना किसी भेदभाव के करवाया जाने वाला कार्य अनुच्छेद 23 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
- बाल श्रम का निषेध (अनुच्छेद 24):- इस अनुच्छेद के अंतर्गत प्रावधान है की 14 वर्ष के कम आयु वाले बच्चों को किसी खदान, कारखाने, रेल्वे में, निर्माण कार्य या अन्य किसी जोखिम युक्त रोजगार में नहीं लगाया जा सकता है। अर्थात इस अनुच्छेद के अंतर्गत बाल श्रम को रोकने के प्रावधान किए गए हैं। इस अनुच्छेद के अंतर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी व्यावसायिक कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध है जबकि 14 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के किशोरों को ”जोखिम युक्त” रोजगार में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस अधिकार को गंभीरता से लागू करने के लिए निम्नलिखित अधिनियमों को पारित किया गया है:-
- बाल श्रम (निषेध और रोकथाम) संसोधन अधिनियम, 2016 [Child Labor (Prohibition and Prevention) Amendment Act, 2016
- बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 [Child Labor (Prohibition and Regulation) Act, 1986
यह अनुच्छेद गैर जोखिम युक्त अर्थात नुकसान नहीं पहुंचाने वाले कार्यों में लगाने का निषेध नहीं करता है।
गुलाम और बंधुआ मजदूर में अंतर
जब किसी व्यक्ति को किसी से खरीद कर या जबरदस्ती बिना किसी वेतन के मजदूरी कारवाई जाए या उसकी सेवाओं का लाभ उठाया जाए ऐसी मजदूर को हम गुलाम कहते हैं और पहले की लिए हुए किसी ऋण को चुकाने के लिए जब कोई व्यक्ति ऋणदाता के अधीन मजदूरी करता है या अपनी सेवाएँ देता है।
निष्कर्ष
शोषण के विरुद्ध अधिकार के संविधान में होने और इसके अंतर्गत दंड का प्रावधान होने के बावजूद भी बाल श्रम, बंधुआ, दास प्रथा, गुलाम रखना जैसे अनैतिक कृत्य समाज में हो रहे हैं। हम सबको मिलकर अपने समाज को सुधारने के लिए इन अनैतिक कृत्यों को रोकने में सरकार की मदद करनी चाहिए।
छोटे बच्चे हमारे समाज की संपत्ति हैं। सुखी बचपन का आनंद लेकर उसे जीना और शिक्षा ग्रहण करना इन बच्चों का मूल अधिकार है। इसलिए हमें बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा से दूर रखकर उनको बाल मजदूर बनाने पर मजबूर नहीं करना चाहिए। हमें अपने आस पास दुकानों, घरों और कारखानों जैसी जगहों पर अगर छोटे बच्चे कार्य करते दिखें तो हमें उसकी जानकारी उपयुक्त व्यक्ति को देनी चाहिए और ऐसे बच्चों के बचपन को बर्बाद होने से बचाने में सरकार की सहायता करनी चाहिए।
बंधुआ मजदूरी क्या है?
पहले लिए गए ऋण को चुकाने के लिए ऋणदाता के अधीन मजदूरी करना या अपनी सेवाएँ देना।
मानव तस्करी क्या है?
पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को खरीदने और बेचने को मानव तस्करी कहा जाता है।
कोनसा कार्य अनुच्छेद 23 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा?
शाशकीय सेवक द्वारा लोक हित बिना किसी भेदभाव के करवाया गया कार्य अनुच्छेद 23 (2) के अंतर्गत अनुच्छेद 23 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।