दोस्तों, अगर आप राजनीति शास्त्र में थोड़ी बहुत भी रुचि रखते हैं तब आपके मन में कई प्रश्न उठते होंगे जैसे की – सरकार, संविधान, लोकतन्त्र या मौलिक अधिकार क्या हैं, “समानता का अधिकार किसे कहते हैं?”, “समानता का अधिकार किस अनुच्छेद में है?” इत्यादि।
इस लेख में आपको भारतीय संविधान में समानता का अधिकार article 14-18 के विषय में संक्षिप्त जानकारी दी जाएगी। दरअसल, समाज में रहने वाला हर व्यक्ति यह चाहता है की उसे भी समाज में समान महत्व दिया जाए या उसे भी समाज के सब व्यक्तियों के समान अधिकार प्राप्त हों।
समानता का अधिकार लोगों की इस सोच के आधार पर ही बनाया गया है, ताकि समाज में जाति, धर्म, वर्ण और लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव ना हो। अर्थात समाज की वह स्थिति जिसमें समाज के प्रत्येक व्यक्ति को एक समान अधिकार प्राप्त हों, समाज की ऐसी स्थिति को ही समानता का अधिकार कह सकते हैं।
samanta ka adhikar kya hai के विषय में संक्षिप्त जानकारी निम्नलिखित हैं:-
भारतीय संविधान में समानता का अधिकार
भारत के संविधान में (Right to Equality) समानता/ समता का अधिकार संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों में से एक है। यह अधिकार संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 14-18 में दिया गया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी इस अधिकार के वर्णन की झलक मिलती है।
संविधान में भी प्रत्येक नागरिक को बिना जाति, धर्म, वर्ण और लिंग इत्यादि के भेदभाव के समान अधिकार प्राप्त होने का वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान में यह अधिकार महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इस अधिकार के आधार पर ही प्रत्येक नागरिक को भारत में समान अधिकार और समान प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
समानता का अधिकार के आधार पर ही जाति, धर्म, वर्ण और लिंग इत्यादि के आधार पर किसी भी नागरिक को उसके अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता है। भारतवर्ष में जाति, धर्म, वर्ण और लिंग इत्यादि के आधार पर होने वाले भेदभाव और अस्पृश्यता/ छूआछूत (Untouchability) को हटाने में समानता के अधिकार का बहुत महत्व है।
ज़रूर पढ़ें:
- मौलिक अधिकार – सम्पूर्ण जानकारी।
- मौलिक कर्तव्य – सम्पूर्ण जानकारी।
- समान नागरिक संहिता
- लोकतंत्र क्या है, लोकतंत्र की परिभाषा, संक्षिप्त जानकारी।
भारतीय संविधान में समानता का अधिकार किस देश से लिया गया है?
भारतीय संविधान में बहुत से ऐसे अधिनियम हैं जो की दूसरे देशों के संविधान से लिए गए हैं। जैसे – संविधान के संशोधन की प्रक्रिया के प्रावधान को दक्षिण अफ्रीका के संविधान से लिया गया, एकल नागरिकता को ब्रिटेन से लिया गया, राष्ट्रपति के चुनाव की विधि को आयरलैंड से लिया गया है आदि।
भारतीय संविधान में समानता का अधिकार, मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आता है और भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) के संविधान से लिया गया है। इसलिए हम कह सकते हैं की समानता का अधिकार संयुक्त राज्य अमेरिका से लिया गया है।
समानता का अधिकार किस अनुच्छेद में है?
समानता का अधिकार भारत के संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14-18 के अंतर्गत आता है। समता/ समानता के अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित 5 प्रकार के विषय दिए गए हैं, जिनके संबंध में समानता का अधिकार प्राप्त है:-
- अनुच्छेद 14/article 14 – विधि या कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद15/article 15 – धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करने पर रोक
- अनुच्छेद16/article 16 – सार्वजनिक नियोजन के विषय में समान अवसर का अधिकार
- अनुच्छेद17/article 17 – छूआछुत/ अश्पृश्यता (Untouchability) का अंत (Abolition of Untouchability)
- अनुच्छेद18/article 18 – उपाधियों का अंत कर दिया गया है
समानता का अधिकार article 14-18 संक्षिप्त विवरण
अनुच्छेद 14:- विधि के समक्ष समानता
इसके अंतर्गत भारत में रह रहे हर व्यक्ति चाहे वो भारत का नागरिक हो या विदेशी को कानून की एक समान संरक्षण की गारंटी दी गई है अर्थात किस भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं रखा जाएगा।
इसमें यह प्रावधान है की राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, वर्ण, लिंग, वंश और जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा और सब व्यक्तियों पर समान रूप से कानून को लागू करेगा। इस प्रावधान को हम कानून और लोकतन्त्र द्वारा शासन करने की आधारशिला समझ सकते हैं।
इसमें गारंटी दी जाती है की हर व्यक्ति की पहुँच कानूनी और न्यायिक सुरक्षा तक हो चाहे हो उसकी आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक स्थिति जो भी हो। इस अधिकार के आधार पर भारत में रह रहे प्रत्येक व्यक्ति के साथ निष्पक्ष रूप से न्याय करने की गारंटी दी गई है।
अनुच्छेद 15:- धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार भेदभाव करने पर रोक
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य द्वारा किसी व्यक्ति के केवल धर्म, वंश, लिंग, जाति और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाई गई है। यहाँ केवल शब्द का उपयोग किया गया है, क्योंकि अगर वर्णित किए गए आधारों के अलावा किसी आधार पर राज्य द्वारा कोई भेद किया गया है तो वह इस अनुच्छेद के विरुद्ध नहीं माना जाएगा।
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य को पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और जंजातीयों के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति दी जाती है और इस अनुच्छेद के अंतर्गत ऐसे पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और जंजातीयों की सार्वजनिक स्थलों और सेवाओं तक पहुँच की गारंटी दी जाती है।
अनुच्छेद 15 के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:-
- राज्य द्वारा किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, वंश, लिंग, जाति और जन्म स्थान या फिर इनमें से किसी एक के आधार पर भी भेदभाव नहीं कर सकता।
- किसी भी नागरिक को केवल धर्म, वंश, लिंग, जाति और जन्म स्थान या फिर इनमें से किसी एक के आधार पर भी निम्नलिखित विषयों के संबंध में किसी प्रतिबंध, अक्षमता, दायित्व और शर्त के अधीन नहीं किया जा सकता है:-
- होटलों, रेस्टौरेंट, सार्वजनिक मनोरंजन के स्थलों तक प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच
- तालाब, कुएं, सड़कें, नहाने के घाट, सार्वजनिक आश्रय स्थलों को आम नागरिक के उपयोग हेतु राज्य निधि से पूर्ण या आंशिक रूप से बनाया और समर्पित किया जाता है।
- बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने से राज्य को नहीं रोका जाएगा।
- इस अनुच्छेद में और अनुच्छेद 29 (2) के अंतर्गत अगर राज्य सैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों, अनुसूचित जाति और जंजातीयों के लिए कोई विशेष प्रावधान करता है तो उसको रोका नहीं जाएगा।
अनुच्छेद 16:- लोग नियोजन के विषय में समान अवसर का अधिकार
इस अनुच्छेद के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को सरकारी नौकरियों या सेवाओं में समान अवसर प्रदान किए जाएंगे।
इस अनुच्छेद के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:-
- राज्य के अंदर सरकारी कार्यालय में नियुक्ति और रोजगार के लिए प्रत्येक नागरिक को समान दिए जाएंगे।
- केवल धर्म, वर्ण, वंश, लिंग, जाति और जन्म स्थान के आधार पर या फिर इनमें से किसी के भी आधार पर सरकारी रोजगार और नौकरी के लिए किसी नागरिक को अयोग्य नहीं माना जा सकता है और ना उनके साथ इस आधार पर शासकीय रोजगार के संबंध में भेदभाव नहीं किया जाएगा।
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत खंड 3 में वर्णित किया गया है की किसी विशेष क्षेत्र में रोजगार के लिए किसी विशेष क्षेत्र के निवासी होने की शर्त रखने का कानून संसद बना सकती है, इसके लिए संसद को रोका नहीं जा सकता है।
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत खंड 4 में कहा गया है की पिछड़े वर्गों के लोगों को प्रतिनिधित्व की कमी के कारण आरक्षण की व्यवस्था राज्य द्वारा की जा सकती है, इसको रोका नहीं जाएगा।
अनुच्छेद 17:- अश्पृश्यता का अंत (Abolition of Untouchability)
इस अनुच्छेद के अंतर्गत अश्पृश्यता का अंत कर दिया गया है अर्थात अब किसी भी वंचित समुदाय के व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा और अगर कोई ऐसा करता है तो उसके लिए दंड का प्रावधान किया गया है। छूयाछूत या अश्पृश्यता को पूर्ण रूप से समाज से खत्म करने व इसके उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा कई नियम व कानून लागू किए गए हैं।
जैसे:- अनुसूचित जाति व जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जिसके तहत वंचित समुदाय के लोगों पर होने वाले अत्याचार पर रोक लगाने के प्रावधान किए गए हैं तथा नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1955 के तहत अश्पृश्यता या छूआछूत को बढ़ावा देने पर और उसके अभ्यास पर दंड का प्रावधान किया गया है।
दरअसल, अश्पृश्यता या छूआछूत एक ऐसी परंपरा है जिसमें निम्न समुदाय के लोगों उच्च वर्ग के लोगों द्वारा हीन माना जाता है और उनको सार्वजनिक स्थलों, संसाधनों और अवसरों से वंचित रखा जाता है।
उदाहरण के लिए जैसे किसी निम्न वर्ग के व्यक्ति को मंदिर में जाने से रोका जाता था, कुएं से पानी भरने से रोका जाता था, उनको शादी पर ज्यादा धूम धाम से शादी मनाने से रोका जाता था इत्यादि। इस प्रकार के अभ्यास को समाज में अब इस अनुच्छेद के अंतर्गत नष्ट कर दिया गया है।
अनुच्छेद 18:- उपाधियों का अंत कर दिया गया है।
इस अनुच्छेद के अंतर्गत कोई भी भारतीय नागरिक किसी दूसरे राज्य से कोई उपाधि ग्रहण नहीं कर सकता है। इस अनुच्छेद के द्वारा उपाधियों का अंत कर दिया गया है।
आजादी से पहले के समय में आपने सर, महाराजा, राजा, राय बहादुर जैसे शब्दों को सुना होगा जिनको कुछ लोग अपने नाम के साथ लगाते थे, दरअसल ऐसी उपाधियाँ अंग्रेजों द्वारा दी जाती थी जिससे की वो सब अपने आपको बेहतर साबित कर सकें।
लेकिन इस अनुच्छेद के लागू होने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:-
- सैन्य और सेक्षणिक क्षेत्रों में विशिष्टता के अलावा कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी।
- अगर कोई विदेशी व्यक्ति जो की भारत का नागरिक नहीं है वह अगर भारत के अंदर किसी लाभ व विश्वास के पद पर हो, तब ऐसी स्थिति में वह बिना राष्ट्रपति की सहमति के विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि ग्रहण नहीं कर सकता है।
- कोई भी भारतीय नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि ग्रहण नहीं कर सकता है।
- भारत के अंदर कोई भी भारत का नागरिक अगर किसी लाभ व विश्वास के पद पर हो तब ऐसी स्थिति में वह किसी बिना राष्ट्रपति की सहमति के किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।
सन्न 1954 में भारत में चार प्रकार के पद्म पुरुष्कार देना शुरू किया गया। लेकिन इसका देश में विरोध हुआ था क्योंकि पद्मा पुरुष्कार प्रतिष्ठा की समानता के अधिकार के विपरीत थे। इस विरोध के कारण 1977 में पद्मा पुरुषकारों को बंद कर दिया गया था।
उसके बाद सन्न 1980 में इन्दिरा गांधी की सत्ता आने पर उन्होने फिर से पद्मा पुरुषकारों को देना शुरू किया गया। पद्मा पुरुष्कार सैन्य और सैक्षिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिए जाते हैं।
समानता का अधिकार प्रश्नोत्तरी
samanta ka adhikar article 14 में क्या है?
भारत का कानून सब लोगों पर समान रूप से लागू किया जाएगा अर्थात किसी भी व्यक्ति को इसके संबंध में कोई विशेषाधिकार नहीं दिया जाएगा। जो भी व्यक्ति कानून का उल्लंघन करेगा तो वह व्यक्ति कानून की नजर से समान रूप से ज़िम्मेवार माना जाएगा चाहे वह कोई पदाधिकारी हो, प्रधानमंत्री हो या आम नागरिक।
samanta ka adhikar kis anuchchhed mein वर्णित है?
समानता का अधिकार संविधान के भाग 3 के article 14-18 के अंतर्गत आता है।
भारतीय संविधान में समानता का अधिकार किस देश से लिया गया है?
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को संयुक्त राज्य अमेरिका से लिया गया है और समानता का अधिकार, मौलिक अधिकारों में से ही एक है।
सरकारी नौकरियों में समानता का अधिकार का प्रावधान किस अनुच्छेद में किया गया है?
सरकारी नौकरियों में समानता का अधिकार का प्रावधान अनुच्छेद 16 के अंतर्गत किया गया है।
समरूपता और समानता में क्या अंतर है?
अगर हम कहेंगे की प्रत्येक व्यक्ति समान है, तब इस वाक्य में समरूपता की उपेक्षा हो जाएगी। अगर हम कहेंगे की प्रत्येक से एक समान व्यवहार किया जाएगा, यह वाक्य समानता शब्द का आधार है।
दोस्तों हम सब एक ही समाज में रहते हैं फलते हैं, फूलते हैं। इसलिए हमें सामान्य जीवन में अपने स्तर पर भी एक दूसरे के साथ मिल जुलकर रहना चाहिए और सबके साथ समान बर्ताव करना चाहिए, चाहे संविधान में इसके लिए कोई प्रावधान हो या नहीं हो।
लेकिन अब तो भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14-18 में विशेष रूप से समानता का अधिकार का प्रावधान कर दिया गया है, तो हमें अपने संविधान का पालन करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार देने चाहिए और लिंग, वर्ण, जाति, वंश और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए, ताकि भारत में एक अच्छे समाज का निर्माण किया जा सके। प्रत्येक आम नागरिक को यह समझना चाहिए तब जाकर ही एक खुशहाल राज्य और समाज का निर्माण हो पाएगा।
समानता का अधिकार pdf download