दुनिया के सभी आधुनिक संविधानों में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। भारत के संविधान में भी 6 मौलिक अधिकारों का उल्लेख विस्तार पूर्वक किया गया है। भारतीय संविधान के अध्याय 3 को हम भारत का अधिकार पत्र कहते हैं। यह अधिकार पत्र ही मौलिक अधिकार के संदर्भ में प्रथम लिखा हुआ दस्तावेज है। इस अधिकार पत्र को इनका का जनक भी कहा जा सकता है।
इस पत्र से ही अंग्रेजों ने 1215 ईसवी में इंग्लैंड सम्राट जॉन से वहाँ के नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों की सुरक्षा मिली थी। इसके बाद
बिल ऑफ राइट्स नाम का दस्तावेज़ 1689 में लिखा गया, जिसमें व्यक्तियों को दिये सब अधिकारों को शामिल किया गया। भारतीय संविधान को तैयार करने के समय इन अधिकारों के विषय में पहले से ही एक पृष्ठभूमि उपलब्ध थी। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से ही संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों को संविधान में शामिल किया।
भारत के संविधान में इन अधिकारों की कोई परिभाषा नहीं दी है। अधिकतर प्रावधान, कानून या विधि दूसरे देशों के संविधान से लिए गए हैं, इसी तरह मौलिक अधिकार को भी भारतीय संविधान में संयुक्त राज्य अमेरिका से लिया गया है।
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार का वर्णन
भारतीय संविधान जो की दुनिया का सबसे बड़ा लिखित और बड़ा संविधान है, इसमें जब मौलिक अधिकार को शामिल किया गया तब शुरुआत में मौलिक अधिकार की संख्या 7 थी। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार का उल्लेख संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक मिलता है। सन 1978 में 44वें संविधान संसोधन द्वारा “संपत्ति का अधिकार” को मौलिक-अधिकारों में से हटा दिया गया, तब से लेकर अब तक भारत में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 हैं।
6 मौलिक अधिकार कौन कौन से हैं?
- समानता का अधिकार
- कानूनके समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
- लिंग, धर्म, जाति, मूल-वंश या जन्म के आधार पर भेदभाव के समक्ष समानता (अनुच्छेद 15)
- सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16)
- अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद 17)
- उपाधियोंका अंत (अनुच्छेद 18)
- स्वतंत्रता का अधिकार
- अभिव्यक्ति आवागमन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)
- अपराधों के लिए दोष सिद्धि सम्बंधित संरक्षण (अनुच्छेद 20)
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)
- गिरफ़्तारी नज़रबंदी के विरूद्ध संरक्षण (अनुच्छेद 22)
- शोषण के विरूद्ध अधिकार
- तस्करी व जबरन श्रम के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23)
- बाल-श्रम पर प्रतिबन्ध (अनुच्छेद 24)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- अपने धर्म अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)
- अपने धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26)
- धार्मिक प्रचार के लिए कराधान नहीं (अनुच्छेद 27)
- संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में हाजिर होने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28)
- सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
- अल्पसंख्यकोंकी रक्षा और संरक्षण (अनुच्छेद 29)
- शैक्षणिक संस्थानों में अल्पसंख्यकों को प्रशासन का अधिकार (अनुच्छेद 30)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
- मौलिक-अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायालय (अदालत) में जाने का अधिकार।
मौलिक अधिकारों का रक्षक कौन होता है?
हम
मौलिक-अधिकारों का रक्षक उच्चतम या उच्च न्यायालय को कह सकते हैं। संविधान और संविधान की प्रभुता की रक्षा का उत्तरदायित्व उच्चतम न्यायालय का है। उच्चतम न्यायालय के पास संविधान की रक्षा के लिए वो सब सर्वोच्च शक्तियां हैं, जिनसे वो संविधान और संविधान में प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक-अधिकारों की रक्षा कर सके। यदि सरकार और प्रशासन या सरकार का कोई भी अंग मौलिक अधिकार का हनन करता है तो व्यक्ति आर्टिकल 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय तथा आर्टिकल 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में जा सकता है।
इसलिए मौलिक-अधिकारों का रक्षक उच्चतम और उच्च न्यायालय दोनों ही हैं। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय, संसद के किसी भी सदन या राज्यों के किसी भी सदन द्वारा निर्मित कोई भी विधि अगर संविधान के विरूद्ध होगी तो उसको अवैध घोषित कर सकते हैं।