आज मानव अंतरिक्ष में नए-नए ग्रहों को खोज रहा है, लेकिन वह पृथ्वी के बारे में भी पूरी तरह से जान नहीं पाया है। हमारे मन में अनेकों बार ऐसे प्रश्न उठते हैं जैसे कि पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई?
पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित सभी आश्चर्यचकित कर देने वाली खगोलीय घटनाओं के बारे में इस लेख में जानेंगे।
पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई?
ज्ञात सिद्धांतों के अनुसार, हमारी पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ था। पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत हैं। उन्होंने कल्पनाओं व अध्ययन के आधार पर कई सिद्धांत दिए हैं।
- गैसीय सिद्धांत-Gaseous Hypothesis
- नीहारिका सिद्धांत-Nebular Hypothesis
- ग्रहाणु सिद्धांत-Planetesimal Hypothesis
- ज्वारीय सिद्धांत-Tidal Hypothesis
- द्वैतारक सिद्धांत-Binary Star Hypothesis
- सुपर नोवा सिद्धांत-Super Nova Hypothesis
- अंतर तारक धूल सिद्धांत-Interstellar Dust Hypothesis
- विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत-Electromagnetic Hypothesis
- परिभ्रमण एवं ज्वारीय सिद्धांत-Rotational and Tidal Hypothesis
- वृहस्पति सूर्य द्वैतारक सिद्धांत-Jupiter Sun Binary Hypothesis
- सीफीड सिद्धांत-Cephed Hypothesis
- नीहारिका मेघ सिद्धांत-The Nebular Cloud Hypothesis
- आदिम ग्रह सिद्धांत-The Protoplanet Hypothesis
- महाविस्फोटक सिद्धांत-Big-Bang Theory
- स्फीति सिद्धांत-Inflationary theory
पृथ्वी की उत्पत्ति का सिद्धांत ब्रह्मांड के बनने की प्रकिया पर आधारित है। इससे सम्बंधित कई सिद्धांत दिए गए हैं जिनमें से बिग बैंग थ्योरी यानी महा विस्फोटक सिद्धांत को सबसे सही माना जाता है।
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गैसीय सिद्धांत
यह सिद्धांत जर्मन निवासी, कांट ने 1755 ईस्वी में की थी, इस सिद्धांत का आधार न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम थे। इस सिद्धांत को पृथ्वी के निर्माण के “गैसीय सिद्धांत” के नाम से भी जाना जाता है।
इसके अनुसार, ब्रह्मांड में छोटे बड़े पदार्थ बिखरे हुए थे, और इन पदार्थों में आकर्षण शक्ति के कारण यह एक दूसरे के साथ टकराने लगे। इस टकराव के कारण इन पदार्थों को गति मिली और इनकी गति बढ़ने लगी।
जब इन पदार्थों ने अधिक गति प्राप्त कर ली तो यह चक्रवात की तरह घूमने लगे, और जो बड़े पदार्थ मौजूद थे उनकी आकर्षण शक्ति के कारण बाकी सभी पदार्थ इनमें मिलने लगे और एक पिंड में बदल गए। कांट ने इन पिंडों को निहारिका कहा है।
निहारिका की गति तेज होने से प्रेषित बल के कारण निहारिका का ऊपरी भाग बढ़ने लगा। निहारिका की तेज गति के कारण निहारिका के टुकड़े छल्ले के रूप में हुए और यह प्रक्रिया ९ बार हुई। अलग हुए छल्लो में मौजूद सभी पदार्थ ठंडे हुए और एक पिंड के रूप में बादल गए।
निहारिका का बचा हुआ भाग सूर्य है, और जो 9 छल्ले इससे अलग हुए थे वह ग्रह है। बाकी बचा हुआ भाग उपग्रह और क्षुद्र ग्रह हैं।
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नीहारिका सिद्धांत
लाप्लास नामक फ्रांसीसी विद्वान ने कांट द्वारा की गई कल्पना को एक संशोधित रूप में अपनी पुस्तक “एक्सप्लोजन का वर्ल्ड सिस्टम” में 1796 ईस्वी में बताया है, जिसे हम नीहारिका सिद्धांत कहते हैं।
इसके अनुसार ब्रह्मांड में पहले एक गतिशील और गरम गैसीय पिंड निहारिका मौजूद था। समय के साथ साथ निहारिका ठंडा होता गया, और ऊपरी भाग ठंडा होने के कारण सिकुड़ने लगा। क्योंकि यह गतिशील था, इसीलिए सेंट्रीफ्यूगल फोर्स, अपकेंद्रीय बल के कारण निहारिका से एक छल्ला अलग हुआ और इसके बाद यह छल्ला 9 भागों में विभाजित हो गया।
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विभाजित हुए छल्ले के सभी पदार्थों ने मिलकर सभी ग्रह और पृथ्वी की उत्पत्ति हुई, और जो निहारिका का बचा हुआ गरम भाग है, वह सूर्य है।
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ग्रहाणु सिद्धांत
1904 ईस्वी में चैम्बरलीन एवं मोल्टन ने ग्रहाणु सिद्धांत के बारे में बताया। इनके अनुसार सूर्य एक ठंडा तारा था। पृथ्वी की उत्पत्ति और अन्य ग्रहों का निर्माण, एक दूसरे तारे की मदद से हुआ था, जिसका आकार बहुत विशाल था।
जब वह विशालकाय तारा सूर्य के नजदीक से गुजरा, तो उस तारे में मौजूद आकर्षण शक्ति से सूर्य से छोटे-छोटे कण उस विशालकाय तारे की तरफ आकर्षित हुए और सूर्य से अलग हो गए।
क्योंकि उस तारे की गति बहुत तेज थी इसीलिए वह आगे की तरफ निकल गया और इन छोटे-छोटे कणों ने सूर्य का चक्कर लगाना शुरू कर दिया। जो कण सूर्य से अलग हुए थे, उसे चैम्बरलीन एवं मोल्टन ने ग्रहाणु नाम दिया, और इस तरह पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।
ज्वारीय सिद्धांत
सर जेम्स जींस विद्वान द्वारा सन 1919 में ज्वारीय सिद्धांत दिया गया था। इस सिद्धांत को जेफरीज ने सन 1929 में संशोधित कर प्रस्तुत किया गया था। इससे पहले जितने भी पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांत मौजूद थे, यह उनमें से सबसे अधिक सही माना गया।
इसके अनुसार, सौरमंडल का निर्माण सूर्य और किसी दूसरे तारे के सहयोग से हुआ था। इनके अनुसार सूर्य पहले से ही एक गैसीय गोला है, जो अपने स्थान पर एक अक्ष पर घूम रहा है। जब एक तारा सूर्य के पास से गुजरा तो सूर्य पर ज्वारीय शक्ति का प्रभाव पड़ा और सूर्य पर एक ज्वार उत्पन्न हुआ।
यह ज्वार हजारों किलोमीटर लंबा और सिगार के आकार का था। ज्वारीय सिद्धांत में सर जेम्स जींस और जेफरीज ने इस ज्वार को “फिलामेंट” नाम दिया।
जब एक विशालकाय तारा सूर्य के पास से गुजरा तो फिलामेंट सूर्य से अलग हो गया, लेकिन विशालकाय तारे के दूर निकल जाने के कारण वह उसके साथ ना जा सका, और यह सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाने लगा। समय के साथ फिलामेंट अलग-अलग टुकड़ों में टूट गया जिसके बाद पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।
इस कल्पना के अनुसार इस फिलामेंट का आकार सिगार जैसा था, और इसीलिए सौर मंडल के बीच वाले ग्रह बड़े आकार के और किनारे वाले छोटे आकार के हैं।
द्वैतारक सिद्धांत
द्वैतारक सिद्धांत का सिद्धांत रसेल ने दिया था, रसेल के अनुसार सूर्य के निकट एक तारा नहीं बल्कि दो तारे मौजूद थे। एक तारा उस समय सूर्य की परिक्रमा कर रहा था, लेकिन जब दूसरा विशालकाय तारा सूर्य के निकट से गुजरा तो सूर्य पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा, जबकि जो तारा सूर्य की परिक्रमा कर रहा था उसमें ज्वार बना।
जो ज्वार परिक्रमा कर रहे तारे से उत्पन्न हुआ वह विशालकाय तारे की दिशा में और जिस तरह से ज्वार उत्पन्न हुआ, जो उसकी विपरीत दिशा में घूमने लगा। जो पदार्थ घूम रहे तारे से अलग हुए थे उनसे आगे चलकर ग्रहों का निर्माण हुआ।
सुपर नोवा सिद्धांत
सुपरनोवा का सिद्धांत होयल और लिटलिटन ने वर्ष 1939 में दिया था, जिसके अनुसार अंतरिक्ष में दो नहीं बल्कि 3 तारे मौजूद थे। इसके अनुसार सूर्य ग्रह का एक साथी तारा था और इसके अलावा एक तीसरा तारा भी मौजूद था, जो सूर्य से अधिक दूरी पर स्थित एक विशालकाय तारा था।
विशालकाय तारा सूर्य से अधिक दूरी पर स्थित था, जो समय के साथ इसके पास आ रहा था। जब सूर्य के साथी तारे में विस्फोट हुआ, तो उसके कारण बहुत भारी मात्रा में धूल और गैसीय पदार्थ फैल गए।
उस विस्फोट ने, साथी तारे को सूर्य के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर कर दिया और सिर्फ गैस और धूल के अवशेष बचे रह गए। यह धूल और गैस, सूर्य का चक्कर लगाने लगे, जिसके बाद इन पदार्थों ने मिलकर ग्रहों का निर्माण किया।
इंटर स्टेलर धूल सिद्धांत
ऑटो शिम्ड नामक एक रूसी वैज्ञानिक ने इंटर स्टेलर धूल सिद्धांत को वर्ष 1943 में प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के अनुसार सभी पृथ्वी की उत्पत्ति गैस और धूल कणों के कारण हुई है।
प्रारंभ में ब्रह्मांड में बहुत अधिक मात्रा में गैस और धूल के कारण मौजूद थे। इन धूल और गैस के कण तारों से बने। जब सूर्य अकाश गंगा के करीब से गुजर रहा था, तो सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण, यह कण सूर्य की तरफ़ आकर्षित हुए और सूर्य की परिक्रमा करने लगे।
सूर्य की परिक्रमा कर रहे कणों ने संगठित होकर पृथ्वी का निर्माण किया। यह कण सूर्य की परिक्रमा करते हुए आपस में टकराने लगे। टकराव के कारण इनकी गति धीमी हुई और धूल कणों ने संगठित होकर छोटे ग्रहों का निर्माण किया।
इसके बाद इन छोटे ग्रहों में और अधिक पदार्थ मिलते गए जिन्होंने एस्ट्रॉयड का रूप धारण किया। एस्टेरॉयड ने आसपास के अन्य पदार्थों को भी अपने साथ मिला लिया और इस तरह बड़े ग्रहों के साथ पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। कुछ पदार्थ एस्टेरॉयड के साथ संगठित नहीं हो पाए, जो उपग्रह बनकर ग्रहों की परिक्रमा करने लगे। इस तरह ग्रह के साथ उपग्रहों का भी निर्माण हुआ।
विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत
अल्फवेन ने विद्युत चुंबकीय सिद्धांत दिया था, इससे पहले मौजूद सभी सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण पर आधारित थे। यह सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण बल पर आधारित ना होकर, चुंबकीय बल पर आधारित है।
अल्फवेन के अनुसार इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फोर्स यानी चुंबकीय बल गुरुत्वाकर्षण बल से 60000 गुना अधिक है। सूर्य में मौजूद चुंबकीय बल के कारण अंतरिक्ष में मौजूद पदार्थ सूर्य की तरफ आकर्षित हुए और एक ऑर्बिट में घूमने लगे। इस तरह से ग्रहों और पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।
बिग बैंग सिद्धांत
बिग बैंग सिद्धांत जार्ज लेमैत्रे द्वारा सन 1927 में दिया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार 13.7 बिलियन वर्ष पहले हमारा ब्रह्मांड सिमटा हुआ था। जिसके बाद इसमें एक विस्फोट हुआ, और इस विस्फोट से सिमटा हुआ ब्रह्मांड फैलने लगा, जिससे हमारे ब्रह्मांड की रचना हुई।
यह ब्रह्मांड और पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में सबसे आधुनिक़ और नया सिद्धांत है। इससे हमें यह ज्ञात होता है, कि ब्रह्मांड हीलियम और हाइड्रोजन द्वारा निर्मित एक छोटी राशि या गर्म बूँद के रूप में था और इससे पहले किसी भी तारे या ग्रह का अस्तित्व नहीं था।
जार्ज लेमैत्रे कि बिग बैंग थ्योरी के अनुसार ब्रह्मांड गर्म एवं सघन था और यह एक छोटे से बिंदु के अंदर की मौजूद था। इसके पश्चात प्रारंभ में, ब्रह्मांड के विस्तार के बाद ब्रह्मांड के ठंडे होने की प्रक्रिया शुरू हुई, जो एटॉमिक कणों की रचना का कारण बना।
यह सब एटॉमिक कण प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन से बने थे और इन कणों की अधिकता से हाइड्रोजन का निर्माण हुआ। हाइड्रोजन के निर्माण के बाद लिथियम और हीलियम का निर्माण हुआ। इस सभी के संगठित होने से तारों और ग्रहों का निर्माण हमारे ब्रह्मांड में हुआ। हमारे ब्रह्मांड में मौजूद उस समय जो भारी पदार्थ थे, उनका सुपरनोवा के अंदर विश्लेषण और इनके बनने की प्रक्रिया में भूमिका रही है।
बिग बैंग थ्योरी हमें यह बताती है कि शुरुआत में हमारे ब्रह्मांड में एक विस्फोट हुआ, जिस कारण जो कण सिमटे हुए एक बूंद में सुसज्जित थे वह कण फैलते चले गए और इस तरीके से ब्रह्मांड की रचना हुई। यह विस्फोट इतना विशाल था कि आज भी इसका प्रभाव मौजूद है और हमारा ब्रह्मांड फैलता जा रहा है।
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